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समस्या समाधान विधि क्या है,अर्थ एवं परिभाषा,सोपान तथा सीमाएँ | Problem Solving method in Hindi

इसमें पोस्ट में समस्या समाधान विधि (Problem Solving Method), समस्या समाधान का अर्थ एवं परिभाषा(Meaning & Definition of Problem Solving), समस्या समाधान के सोपान (Steps of Problem Solving), समस्यात्मक स्थिति का स्वरूप (Nature of Problematic Situation), समस्या समाधान शिक्षण का प्रतिमान  (Model of Problem Solving Teaching), समस्या समाधान शिक्षण हेतु आदर्श पाठ-योजना, समस्या समाधान शिक्षण की सीमाएँ, समस्या समाधान शिक्षण की विशेषताएं,समस्या समाधान शिक्षण की सीमाएँ, आदि को पढेगें।

Table of Contents

विभिन्न पद्धतियों पर आधारित पाठ-योजना(Lesson Planning Based on Various Methods)

शिक्षण तकनीकी में तीव्र गति से हए विकास के फलस्वरूप शिक्षण हेतु शिक्षा न विभिन्न नवीनतम पद्धतियों का आविष्कार किया ताकि छात्रों में नवीन चनौति सामना करने हेतु मौलिक चिन्तन का विकास किया जा सके। बहुत लम्बे समय तक हरबर्ट की पंचपदी का प्रचलन शिक्षण हेतु मुख्य रूप से किया जाता रहा, लेकिन आज हरबाट पंचपदी के साथ-साथ विशिष्ट शिक्षण के प्रयोजनार्थ विशिष्ट शिक्षण विधियों का प्रयोग किया जाने लगा है। शिक्षण की कुछ नवीनतम पद्धतियों का वर्णन पाठ-योजना सहित यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है।

समस्या समाधान विधि (Problem Solving Method)

मानव जीवन में समय-समय पर अनेकानेक समस्याएँ आती रहती हैं और इनके परिणामस्वरूप मानव में तनाव, द्वन्द्व, संघर्ष, विफलता, निराशा जैसी प्रवृत्तियाँ जन्म लेती हैं जिनके कारण वह अपने जीवन से विमुख होने का प्रयत्न करता है। ऐसी परिस्थितियों से बचाने के लिए अच्छा शिक्षक छात्रों को प्रारम्भ से ही समस्या समाधान विधि से शिक्षण देकर छात्रों में तर्क एवं निर्णय के द्वारा किसी भी समस्या को सुलझाने की क्षमता का विकास करता है।

समस्या समाधान एक जटिल व्यवहार है। इस व्यवहार में अनेक मनोवैज्ञानिक प्रक्रियायें सम्मिलित रहती हैं। छात्र के समक्ष ऐसी समस्यात्मक परिस्थितियाँ उत्पन्न की जाती हैं जिनमें वह स्वयं चिन्तन, तर्क तथा निरीक्षण के माध्यम से समस्या का हल ढूंढ़ सके। सुकरात ने भी आध्यात्मिक संवादों में इसका प्रयोग किया था। समस्या समाधान सार्थक ज्ञान को प्रदर्शित करता है, इसमें मौलिक चिन्तन निहित होता है। इसके लिए शिक्षण की व्यवस्था चिन्तन स्तर पर की जाती है।

                                

समस्या समाधान का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning & Definition of Problem Solving)

समस्या समाधान एक ऐसी शैक्षिक प्रणाली है जिसके द्वारा शिक्षक तथा छात्र किसी महत्त्वपूर्ण शैक्षिक कठिनाई के समाधान अथवा निवारण हेतु प्रयत्न करते हैं तथा छात्र स्वयं सीखने के लिए प्रेरित होते हैं।

1. थॉमस एम. रिस्क-“समस्या समाधान किसी कठिनाई या जटिलता का एक पूर्ण सन्तोषजनक हल प्राप्त करने के उद्देश्य से किया गया नियोजित कार्य है। इसमें मात्र तथ्यों का संग्रह करना या किसी अधिकृत विद्वान के विचारों की तर्करहित स्वीकृति निहित नहीं है, वरन् यह विचारशील चिन्तन की प्रक्रिया है।”

2 रॉबर्टगेने-“दो या दो से अधिक सीखे गये प्रत्यय या अधिनियमों को एक उच्च स्तरीय अधिनियम के रूप में विकसित किया जाता है, उसे समस्या समाधान अधिगम कहते हैं।”

समस्या समाधान के सोपान (Steps of Problem Solving)

बॉसिंग ने समस्या समाधान प्रविधि के निम्नलिखित सोपान बताये हैं :

(अ) कठिनाई या समस्या की अभिस्वीकृति,

(ब) कठिनाई की समस्या के रूप में व्याख्या,

(स) समस्या समाधान के लिए कार्य करना

(i) तथ्यों का संग्रह करना,

(ii) तथ्यों का संगठन करना,

(iii) तथ्यों का विश्लेषण करना।

(द) निष्कर्ष निकालना,

(य) निष्कर्षों को प्रयोग में लाना ।

समस्यात्मक स्थिति का स्वरूप (Nature of Problematic Situation)

बोर्न (1971) ने ‘उस स्थिति को समस्यात्मक स्थिति कहा है जिसमें व्यक्ति किसी लक्ष्य तक पहुँचने की चेष्टा करता है, किन्तु प्रारम्भिक प्रयासों में लक्ष्य तक पहुँचने में असफल रहता है। इस स्थिति में उसे दो या दो से अधिक अनुक्रियायें करनी होती हैं जिनके लिए उसे प्रभावशाली उद्दीपक संकेत प्राप्त होते हैं।’

जॉन्सन (1972) ने समस्यात्मक स्थिति में प्राणी के व्यवहार का विश्लेषण करते हुए कहा:

1. प्राणी का व्यवहार लक्ष्योन्मुख होता है।

2. लक्ष्य की प्राप्ति पर अनुक्रियाएँ समाप्त हो जाती हैं।

3. समस्या समाधान हेतु विविध अनुक्रियाएँ की जाती हैं।

4. व्यक्तियों की अनुक्रियाओं में विभिन्नता होती है।

5. पहली बार समस्या समाधान में अधिक समय लगता है।

6. इससे सिद्ध होता है कि जीव में मध्यस्थ अनुक्रियायें होती हैं।

इस समस्यात्मक परिस्थिति का कक्षा शिक्षण में प्रयोग करते समय समस्या का चयन बहुत सावधानी से किया जाना चाहिए, जैसे :

1. समस्या जीवन से सम्बन्धित महत्त्वपूर्ण तथा सार्थक हो,

2. यह छात्रों को स्वतः चिन्तन हेतु प्रेरित करे,

3. छात्रों की अवस्था तथा स्तर के अनुरूप हो,

4. समस्या किसी निश्चित विषयवस्तु तथा लक्ष्य से सम्बन्धित हो,

5. यह स्पष्ट तथा बोधगम्य हो।

समस्या समाधान शिक्षण के सोपान (Steps of Problem Solving Teaching)

जेम्स एम. ली (James M. Lee) ने समस्या समाधान शिक्षण के निम्नलिखित सोपान बताये हैं:

1. समस्या का चयन करना- समस्या का चयन करते समय उपर्युक्त वर्णित सावधानियों का ध्यान रखना चाहिए।

2. यह समस्या क्यों है?- समस्या चयन क बाद समस्या की प्रकृति को छात्रों द्वारा सक्षमता से जाँचा जाता है।

3. समस्या को पूर्ण करना- समस्या का प्रकृति के अनुसार छात्र सूचनाओं, सिद्धान्तों कारणों आदि का संग्रह करते हैं, इसके बाद उनका संगठन एवं विश्लेषण करते हैं। शिक्षक समस्या समाधान हेतु पथ-प्रदर्शन नहीं करता, अपितु खोज एवं अध्ययन कार्यों तथा व्यक्तिगत एवं सामूहिक कठिनाइयों के समाधान में सहायता देता है।

4. समस्या का हल निकालना- छात्र समस्या से सम्बन्धित सामग्री का विश्लेषण करने के बाद उसका कोई उपयुक्त समाधान निकालते हैं।

5. समाधान का प्रयोग- छात्र समस्या का हल अथवा समाधान निकालने के बाद उनका प्रयोग जीवन में करते हैं।

समस्या समाधान के अनुदेशन के लिए पाँच सोपानों का अनुकरण किया जाता है जो ग्लेसर के बुनियादी शिक्षण प्रतिमान से सम्बन्धित हैं। इस प्रतिमान का विस्तृत वर्णन ‘शिक्षण के प्रतिमान’ नामक पाठ में विस्तार से किया जा चुका है।

समस्या समाधान शिक्षण का प्रतिमान (Model of Problem Solving Teaching)

समस्या समाधान शिक्षण का प्रतिमान शिक्षण के चिन्तन स्तर पर आधारित होता है। चिन्तन स्तर के शिक्षण के प्रवर्तक हण्ट है तथा इस स्तर के शिक्षण प्रतिमान को हण्ट शिक्षण प्रतिमान भी कहते हैं, इसमें मुख्य रूप से चार सोपानों का अनुसरण किया जाता है :

1. उद्देश्य,

2. संरचना :

(अ) डीवी की समस्यात्मक परिस्थिति,

(ब) कूट लेविन की समस्यात्मक परिस्थिति,

3. सामाजिक प्रणाली; एवं

4. मूल्यांकन प्रणाली।

समस्या समाधान शिक्षण हेतु आदर्श पाठ-योजना

वस्तुतः समस्या समाधान शिक्षण हेतु पाठयोजना बनाना तथा शिक्षण करना-दोनों ही जटिल कार्य हे तथापि इसके लिए शिक्षक को पाठयोजना बनाते समय निम्नलिखित प्रक्रिया का अनुसरण करना चाहिए :

1. पूर्व योजना-

शिक्षक को सर्वप्रथम पाठ को भली-भाँति समझकर उस पर चिन्तन करना, समस्या के विभिन्न पहलुओं को लिखना,छात्रों को समस्या के प्रति जिज्ञासु बनाना चाहिए, इस समय शिक्षक योजना के निर्माता के रूप में कार्य करता है । जैसे नागरिकशास्त्र शिक्षण करते समय संविधान प्रदत्त मौलिक अधिकार तथा राज्य के नीति-निर्देशक तत्त्वों में क्या अन्तर है ? संविधान निर्माताओं द्वारा इनके बीच अन्तर के लिए कौन-कौन से आधार निर्धारित किये ? यह मूल समस्या छात्रों के समक्ष प्रस्तुत की जाती है । इससे छात्रों में मौलिक अधिकार तथा राज्य के नीति-निर्देशक तत्त्वों के विषय में जानने की जिज्ञासा उत्पन्न होती है।

यदि समस्या के प्रस्तुतीकरण के साथ छात्र व्यक्तिगत रूप से समस्या से सम्बन्धित नवीन विचारणीय बिन्दुओं को प्रस्तुत करें तो उनकी जिज्ञासाओं को भी नोट करना चाहिए।

2. शिक्षण प्रदान करना-

कक्षा में समस्या का प्रस्तुतीकरण करने के बाद शिक्षक छात्रों के समक्ष मौलिक अधिकार और नीति-निर्देशक तत्त्वों पर कुछ प्रकाश डालेगा जिससे छात्रों में विषय के प्रति रुचि उत्पन्न होगी और वे अपनी प्रतिक्रियाएँ अभिव्यक्त करेंगे। शिक्षक का यह प्रयास होगा, कि छात्रों द्वारा प्रस्तुत अनेक समस्याओं में से केवल वह विषय से सम्बन्धित समस्याओं की ओर ही छात्रों को केन्द्रित करे। अब शिक्षक विभिन्न दृष्टिकोणों से चिन्तन करने के लिए छात्रों को उत्साहित करेगा कि वे कौन-कौन से कारक थे जिनके कारण संविधान में दो अलग-अलग अध्याय इस विषय से सम्बन्धित रखे गये।

इसके लिए छात्रों को भारत के संविधान की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, भारत एवं विश्व का इतिहास, सामाजिक ज्ञान तथा नागरिकशास्त्र की पुस्तकें, संविधान निर्मात्री सभा द्वारा व्यक्त किये गये विचार आदि विषय पढ़ने के लिए निर्देश देगा। छात्र प्रोत्साहित होकर रुचि के अनुसार अध्ययन करेंगे।

इस प्रकार शिक्षक छात्रों को विषयवस्तु से सम्बन्धित तथा अन्य सहायक सामग्री से सम्बन्धित सहायता प्रदान करेगा। इसके बाद छात्रों द्वारा अभिव्यक्त किये गये विषय से सम्बन्धित बिन्दुओं को संकलित किया जायेगा। इस समय शिक्षक की भूमिका एक आदर्श प्रबन्धक के रूप में होगी। संकलित विचारों पर संयुक्त रूप से विचार-विमर्श द्वारा समस्या के समाधान हेतु अनुमान निर्धारित किया जाता है।

अन्तिम चरण में जब विचार-विमर्श द्वारा मौलिक अधिकार तथा राज्य के नीति-निर्देशक तत्त्वों के बीच अन्तर का आधार छात्रों को ज्ञात हो जाता है, तो शिक्षक छात्रों से प्रश्न करता है, कि इन अधिकारों तथा नीति-निर्देशक तत्त्वों का संविधान में क्या स्थान है ? इन अधिकारों के साथ आपके क्या कर्त्तव्य हैं ? मानव जीवन के लिए यह कितने सार्थक सिद्ध हुए हैं ? इनमें कौन-कौन से दोष हैं ? इन दोषों के निवारणार्थ कौनसे उपाय हो सकते हैं ? आदि इन समस्याओं के चिन्तन से छात्र कुछ निष्कर्षों तक अवश्य पहुँचेंगे तथा भविष्य में आने वाली इन समस्याओं से सम्बन्धित आर्थिक, राजनैतिक और सामाजिक पहलुओं का निवारण करने में सक्षम होंगे। इस समय शिक्षक एक अच्छे मूल्यांकनकर्ता की भूमिका निभायेगा।

समस्या समाधान शिक्षण की विशेषताएं

1. यह छात्रों को समस्याओं के समाधान के लिए विशेष प्रशिक्षण प्रदान करता है।

2. इसमें छात्र क्रियाशील रहता है तथा स्वयं सीखने का प्रयत्न करता है।

3. यह मानसिक कुशलताओं, धारणाओं, वृत्तियों तथा आदर्शों के विकास में सहायक होता है।

4. यह छात्रों को आत्मनिर्णय लेने में कुशल बनाता है।

5. इससे छात्रों की स्मरण-शक्ति के स्थान पर बुद्धि प्रखर होती है।

6. इसके द्वारा छात्रों में मौलिक चिन्तन का विकास होता है।

7. यह छात्रों में उदारता, सहिष्णुता और सहयोग जैसे गुणों का विकास करती है।

समस्या समाधान शिक्षण की सीमाएँ

1. सभी विषयों को समस्याओं के आधार पर संगठित करना लाभदायक नहीं होता।

2. इसमें समय अधिक लगता है था छात्रों की प्रगति बहुत धीमी गति से होती है।

3. इसके अधिक प्रयोग से शिक्षण में नीरसता आ जाती है।

4. इसका प्रयोग केवल उच्च स्तर पर ही किया जा सकता है।

5. छात्र को समस्या का अनुभव करवाना तथा उसे स्पष्ट करना सरल नहीं है।

6. इसमें सामहिक वाद-विवाद को ही शिक्षण की प्रभावशाली व्यहरचना पाता जाता है।

7. इस शिक्षण में स्मृति तथा बोध स्तर के शिक्षण की भाँति किसी निश्चित कार्यक्रम का अनुसरण नहीं किया जा सकता।

8. इसमें छात्र तथा शिक्षकों के मध्य सम्बन्ध निकट के होते हैं। छात्र शिक्षक की आलोचना भी कर सकता है। निष्कर्षतः समस्या समाधान शिक्षण हेतु छात्रों की आकाँक्षा का स्तर ऊँचा होना। चाहिए तथा उन्हें अपनी समस्या के प्रति संवेदनशील और उनके लिए चिन्तन का समुचित वातावरण होना चाहिए, तब ही यह शिक्षण सफल होगा।

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समस्या समाधान विधि- विशेषताएँ, प्रक्रिया, पद / सोपान, गुण, दोष

समस्या समाधान विधि

अनुक्रम (Contents)

समस्या समाधान विधि (Problem Solving Method)

समस्या समाधान विधि प्रोजेक्ट तथा प्रयोगशाला विधि से मिलती-जुलती है परन्तु यह जरूरी नहीं है कि प्रत्येक समस्या का समाधान प्रयोगशाला में ही हो। कुछ कम जटिल समस्याओं का समाधान प्रयोगशाला से बाहर भी किया जा सकता है। इस विधि का प्रयोग छात्रों में समस्या समाधान करने की क्षमता उत्पन्न करने के लिए किया जाता है। छात्रों से यह आशा की जाती है कि वे स्वयं प्रयास करके अपनी समस्याओं का हल स्वयं ही निकालें। इस विधि में छात्र समस्या का चुनाव करते हैं और उसके कारणों की खोज करते हैं, परीक्षण करते हैं और समस्या का मूल्यांकन भी करते हैं।

तकनीकी शिक्षण में इस विधि का प्रयोग प्रभावशाली ढंग से किया जा सकता है। छात्रों के लिए यह अत्यन्त उपयोगी एवं मनोवैज्ञानिक मानी जाती है। इससे बालकों की चिंतन और तर्क शक्ति का विकास होता है परन्तु इसका प्रयोग प्राथमिक स्तर पर सफलतापूर्वक करना सम्भव नही है।

आसुबेल (Ausubel) के अनुसार, समस्या समाधान में सम्प्रत्यय का निर्माण तथा अधिगम का अविष्कार सम्मिलित है।”

According to Ausubel, “Problem solving involves concept formation and discovery learning.”

गैग्ने (Gagne) के अनुसार, “समस्या समाधान घटनाओं का एक ऐसा समूह है जिसमें मानव किसी विशिष्ट उददेश्य की उपलब्धि के लिए अधिनियमों अथवा सिद्धान्तों का उपयोग करता है।”

According to Gagne, “Problem solving is a set of events in which human being uses rules to achieve some goals.”

रिस्क (Risk) के अनुसार, “शिक्षार्थियों के मन में समस्या को उत्पन्न करने की ऐसी प्रक्रिया जिससे वे उद्देश्य की ओर उत्साहित होकर तथा गम्भीरतापूर्वक सोच कर एक युक्तिसंगत हल निकालते है, समस्या समाधान कहलाता है।”

According to Risk, “Problem solving may be defined as a process of raising a problem in the minds of students in such a way as to stimulate purposeful reflective thinking in arriving at a rational solution.”

रॉबर्ट गेने के अनुसार, “दो या दो से अधिक सीखे गए कार्य या अधिनियमों को एक उच्च स्तरीय अधिनियम के रूप में विकसित किया जाता है उसे समस्या-समाधान अधिगम कहते हैं।”

शिक्षण की इस विधि में शिक्षण तीनों अवस्थाओं के रूप में कार्य करता है तथा छात्रों को विभिन्न समस्याओं का समाधान करने की योग्यता प्राप्त होती है।

समस्या की विशेषताएँ (Characteristics of a Problem)

अध्ययन के लिए चुनी जाने वाली समस्या में निम्नलिखित विशेषताएँ होनी चाहिए-

(1) समस्या छात्रों के पूर्वज्ञान से सम्बन्धित होनी चाहिए ताकि उनको समस्या का हल ढूँढने में आसानी हो।

(2) समस्या छात्रों के लिए उपयोगी तथा व्यावहारिक होनी चाहिए।

(3) समस्या छात्रों की रुचि एवं दृष्टिकोण के अनुसार होनी चाहिए।

(4) समस्या चुनौतीपूर्ण होनी चाहिए जिससे छात्रों में सोचने तथा तर्क करने की शक्ति का विकास हो।

(5) समस्या पाठ्यक्रम के अनुसार होनी चाहिए तथा इतनी विशाल नहीं होनी चाहिए कि छात्रों को उसका समाधान ढूँढने के लिए विद्यालय अथवा शहर से बाहर जाना पड़े।

(6) समस्या के आलोचनात्मक पक्ष की ओर भी पूरा ध्यान दिया जाना चाहिए। यह परिकल्पनाओं का मूल्यांकन करने के लिए अति आवश्यक है।

(7) समस्या के समाधान में उपयोग किए जाने वाले उपकरण विद्यालय की प्रयोगशाला में उपलब्ध होने चाहिए।

(8) समस्या छात्रों पर एक भार की तरह नहीं होनी चाहिए ताकि छात्र प्रसन्नतापूर्वक समस्या समाधान की विधि का उपयोग कर सकें।

(9) समस्या नई तथा व्यावहारिक होनी चाहिए जिससे छात्रों में कल्पना शक्ति तथा वैज्ञानिक क्षमताओं का विकास हो सके।

(10) समस्या छात्रों के मानसिक स्तर तथा शारीरिक क्षमताओं के अनुकूल होनी चाहिए।

समस्या समाधान की प्रक्रिया (Process of Problem Solving Method)

किसी भी विषय के शिक्षण को प्रभावी बनाने हेतु तथा उससे सम्बन्धित विभिन्न नवीन तथ्यों की खोज हेतु समस्या समाधान विधि का प्रयोग किया जाता है।

किसी भी विषय के शिक्षण में छात्रों के सम्मुख जब कोई ऐसी परिस्थिति आती है जिससे उन्हें कठिनाई या समस्या का सामना करना पड़ता है तो इससे पूर्व छात्र विषय के सम्बन्ध में जो कुछ सीखा या पढ़ा है, उसके द्वारा भी इन समस्याओं का समाधान खोजने में कठिनाई आती है तो इस प्रकार की परिस्थितियों में आवश्यक रूप से कुछ नवीन तथ्यों एवं अनुभवों पर आधारित ज्ञान प्राप्त करना अनिवार्य हो जाता है जिससे समस्या का हल खोजा जा सके।

अतः किसी परिस्थिति का सामना करने हेतु समस्त छात्रों समक्ष समस्या समाधान विधि की प्रक्रिया निम्नलिखित है-

(1) सर्वप्रथम यह जाँच लेना चाहिए कि समस्या किस प्रकार की है?

(2) उस समस्या का समाधान किस प्रकार हो सकता है।

(3) इसके पश्चात् छात्र समस्या से सम्बन्धित सृजनात्मक तथा गम्भीर चिन्तन में प्रयत्नरत रहते हैं।

(4) छात्र समस्या के अनुकूल शैक्षिक अनुभव प्राप्त करने का प्रयास करते हैं।

(5) छात्र प्रकट समस्या का समाधान विभिन्न विकल्पों, जैसे- अर्जित अनुभवों आदि के आधार पर वस्तुनिष्ठ समाधान प्राप्त करने का प्रयास करते हैं।

(6) इसके पश्चात् छात्र इस बात की पुष्टि करते हैं कि प्राप्त समस्या का समाधान उपयुक्त एवं सही है अथवा नहीं।

उपर्युक्त विभिन्न चरणों के द्वारा छात्र किसी विशेष समस्या का समाधान खोजकर नवीन ज्ञान एवं कौशल अर्जित करने में सफल हो जाते हैं। इस प्रक्रिया के माध्यम से किसी समस्या का समाधान करने का प्रशिक्षण छात्रों को भूगोल एवं अर्थशास्त्र के विषय विशेष का समुचित ज्ञान प्रदान कराने में अत्यन्त सहायक सिद्ध हो सकता है।

समस्या समाधान विधि के पद / सोपान (Steps / Stages Involved in the Problem Solving Method)

समस्या समाधान पद्धति के पद / सोपान निम्नलिखित हैं-

(1) समस्या का चयन करना (Selection of the Problem)- तकनीकी शिक्षण में किसी समस्या-समाधान विधि में समस्या का चयन करते समय शिक्षकों को यह ध्यान रखना चाहिए कि छात्रों को ऐसी समस्या प्रदान की जाए जिससे वे उसे हल करने की आवश्यकता समझ सके। छात्र एवं शिक्षक दोनों को सम्मिलित रूप से समस्या का चयन करना चाहिए। यदि सम्भव हो तो शिक्षकों को छात्रों के समक्ष उत्पन्न समस्या से ही एक समस्या का चयन कर लेना चाहिए। समस्या का निर्धारण करते समय मुख्य रूप से ध्यान रखना चाहिए कि छात्रों के समक्ष समस्या अत्यन्त व्यापक न हो व समस्या स्पष्ट होनी चाहिए।

(2) समस्या का प्रस्तुतीकरण (Presentation of the Problem)- समस्या का चयन करने के उपरान्त दूसरा चरण समस्या का प्रस्तुतीकरण आता है। समस्या का चुनाव करने के बाद शिक्षक छात्रों के समक्ष चयनित समस्या का सम्पूर्ण विश्लेषण करते हैं। शिक्षकों द्वारा किया गया यह विश्लेषण विचार-विमर्श आदि के माध्यम से हो सकता है। इसके पश्चात् अध्यापक छात्रों को समस्या से सम्बन्धित विभिन्न तथ्यों की जानकारी प्रदान करते हैं। जैसे- समस्या की पद्धति क्या होगी, प्रदत्त संकल्प कहाँ से और कैसे होंगे। इन समस्त जानकारियों के बाद छात्रों को समस्या की समस्त जानकारी प्राप्त हो जाती है विभिन्न तरीकों से आगे की प्रक्रिया के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त हो जाती है।

(3) उपकल्पनाओं का निर्माण (Formulation of Hypothesis)- समस्या-समाधान के तृतीय चरण में समस्या का चयन करने के उपरान्त उसका प्रस्तुतीकरण तथा उपकल्पनाओं का निर्माण आता है। इन परिकल्पनाओं के निर्माण के उपरान्त उत्पन्न समस्याओं के क्या कारण हो सकते हैं, उनकी एक विस्तृत रूपरेखा तैयार कर ली जाती है। इस विधि में परिकल्पनाओं के निर्माण के द्वारा छात्रों की समस्या के विभिन्न कारणों पर गहनता से अध्ययन चिन्तन करने की क्षमता का विकास होता है। अतः समस्या से सम्बन्धित उपकल्पनाएँ ऐसी होनी चाहिए जिनका सरलता से परीक्षण किया जा सके।

(4) प्रदत्त संग्रह (Collection of Data) – समस्या से सम्बन्धित परिकल्पनाओं के निर्माण के उपरान्त चयनित परिकल्पनाओं का छात्रों के द्वारा संकलित प्रदत्तों के माध्यम से परीक्षण किया जाता है। विभिन्न प्रदत्त संकलनों छात्रों को समस्या से सम्बन्धित दिशा-निर्देश देने हेतु निर्णय लेने में शिक्षक यह सहायता प्रदान करें कि प्रदत्त संकलन कहाँ से और कैसे प्राप्त किया जाए। अध्यापकों की सहायता से छात्र विभिन्न संदर्भों से आवश्यक प्रदत्तों का निर्माण कर लेते हैं।

(5) प्रदत्तों का विश्लेषण (Analysis of Data) – समस्या विधि के प्रस्तुत पद में उपरोक्त पदों में समस्या का चयन, प्रस्तुतीकरण, उपकल्पनाओं की निर्माण तथा चतुर्थ पद में प्रदत्तों का संग्रह करने सम्बन्धी अध्ययन किया जाता है। इसके पश्चात् पंचम पद अर्थात् प्रस्तुत पद में प्रदत्तों का विश्लेषण के माध्यम से उनका प्रयोग किया जाता है। विभिन्न प्रदत्तों के मध्य स्थापित सम्बन्धों को ज्ञात किया जाता है। इस प्रक्रिया के लिए विभिन्न तथ्यों को व्यवस्थित एवं संगठित करने के पश्चात् उनकी व्याख्या की जाती है। अतः समस्या के प्रदत्तों का विश्लेषण करना अनिवार्य होता है।

(6) निष्कर्ष निकालना (Find Conclusion)- उपरोक्त सभी प्रक्रियाओं या पदों से होते हुए समस्या समाधान के पदों का विश्लेषण हो जाता है। इसके पश्चात् प्रदत्त संग्रहों विश्लेषण के उपरान्त निष्कर्ष प्राप्त किए जाते हैं। निष्कर्ष में समस्या से सम्बन्धित परिकल्पनाएँ प्रदत्त विश्लेषण में सही एवं उपयुक्त पाई जाती हैं उनके आधार पर समस्या के समाधान से सम्बन्धित उपयुक्त निष्कर्ष प्रदान किए जाते हैं। इसके अतिरिक्त इन प्राप्त निष्काष को नवीन परिस्थितियों में लागू करके समस्त तथ्यों तथा निष्कर्षों की जाँच कर ली जाती है। अतः उपरोक्त सभी पदों के माध्यम से समस्या समाधान विधि की प्रक्रिया / सोपान निर्धारित होते हैं तथा समस्या से सम्बन्धि समाधान प्राप्त हो जाते हैं।

समस्या समाधान पद्धति के गुण (Merits of Problem Solving Method)

समस्या समाधान पद्धति के गुण निम्नलिखित हैं-

(1) छात्रों में चिंतन शक्ति का विकास होता है।

(2) छात्रों में समस्याओं का वैज्ञानिक तरीके से समाधान खोजने की अभिवृत्ति तथा योग्यता का विकास होता है।

(3) शिक्षण में छात्रों की क्रियाओं की प्रचुरता के कारण अधिगम अधिक स्थायी होता है।

(4) इस पद्धति से शिक्षण करते समय छात्रों की व्यक्तिगत भिन्नताओं का ध्यान रखा जा सकता है।

(5) समस्या का चयन छात्रों की रुचि एवं मानसिक स्तर के अनुकूल होता है।

(6) छात्रों को विभिन्न समस्याओं के समाधान हेतु प्रेरित किया जाता है।

(7) समस्या पर किए गए कार्य के लिए छात्रों को पर्याप्त अभिप्रेरणा प्रदान की जाती है।

समस्या समाधान पद्धति के दोष (Demerits of Problem Solving Method)

समस्या समाधान पद्धति के दोष निम्नलिखित हैं-

(1) प्रत्येक विषय-वस्तु को समस्या समाधान पद्धति से नहीं पढ़ाया जा सकता है।

(2) समस्या समाधान पद्धति से शिक्षण में समय बहुत अधिक लगता है।

(3) सही समस्या का चुनाव स्वयं में एक समस्या है।

(4) इस विधि का उपयोग केवल बड़ी कक्षा में ही किया जा सकता है।

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समस्या का नहीं, समाधान का हिस्सा बने

Mahesh Yadav

Problem solving attitude in Hindi, Problems vs Solutions

समस्याओं का आना तो इस जीवन में लगा रहता है परंतु उनका सामना करना हर किसी को नहीं आता।

जब भी हमारे सामने कोई परेशानी खड़ी होती है तो वह हमें बेहद कठिन प्रतीत होती है। परंतु वक्त गुजरने के बाद अहसास होता है कि वह समस्या हमारे जीवन में काफी छोटी थी।

लेकिन वर्तमान में जो समस्या खड़ी है वह काफी बड़ी है और इससे निकल पाना बेहद मुश्किल है।

आप बचपन का ही उदाहरण ले लीजिए बचपन में हम जिन बातों से, जिन परिस्थितियों से डर तथा सहम जाते थे।

आज उनके बारे में सोचकर हमें हंसी आती है, हमें लगता है आज हम जिन चुनौतियों का सामना कर रहे हैं यह बचपन की तुलना में 100 गुना कठिन है।

और इसे आप विधि का ही विधान कहें कि जीवन में समस्याओं का आना-जाना अंतिम सांस तक बना रहता है।

अतः ऐसा कहा जाता हैं मानव जिंदगी की समस्याएं “मौत” के साथ ही ख़त्म होती हैं लेकिन इसका मतलब “आत्महत्या” बिल्कुल भी नहीं हैं, इस पर मैं एक और POST बहुत जल्द करूँगा, याद रहे “आत्महत्या” किसी भी समस्या का हल नहीं हैं बल्कि एक बहुत ही कायरता वाला कदम हैं जो कुछ लोग अपने आप को समस्या से, बीमारी से, अवसाद से दूर करने के लिए उठा लेते हैं, लेकिन इसका परिणाम बहुत ही बुरा होता हैं।

लेकिन यदि जीते जी समस्याओं से पार पाने का साहस इंसान में आ जाए, तो जीवन जीना उसके लिए बेहद आसान हो जाएगा।

आप किस तरह के व्यक्ति हैं?

दो तरह के व्यक्ति होते हैं, पहला जो समस्याओं को देखकर घबरा जाते हैं। दूसरे वे जो मुश्किलों के सामने डटे रहकर उसकि आंखों में आंखें डालकर हर समस्या का हल निकलते हैं । अब सवाल है व्यक्ति किस प्रकार का होना चाहिए? जवाब – दूसरे प्रकार का

जो इंसान पहली प्रवत्ति का होता है, उसके जीवन में यदि छोटी-छोटी समस्याएं आती हैं, तो व्यक्ति उन्हें काफी बड़ी समस्या समझ कर उनसे कतराता है।

लेकिन यह सत्य है कि यदि समय रहते किसी छोटी समस्या को न सुलझाया जाए तो वह समस्या वक्त के साथ बड़ी बन जाती है।

इसलिए इंसान को हमेशा परेशानी आने पर परेशान होने के बजाय उचित समाधान पर गौर करना चाहिए।

जब हम समस्या नहीं बल्कि समाधानों का हिस्सा बनते है, तो हमारा दिमाग हमारी परेशानियों पर नहीं बल्कि उसके समाधानों पर केंद्रित हो जाता है।

और यही छोटी सी आदत अगर मनुष्य अपना ले तो वह जीवन में आने वाली हर छोटी-बड़ी समस्याओं से निपटकर गहरा अनुभव प्राप्त कर सकता है।

क्योंकि छोटी सी जब मनुष्य इस काबिल बन जाता है तो उसे अपने जीवन में आगे आने वाली समस्याओं से ज्यादा दुख नहीं होता। क्योंकि वह जानता है कि इन समस्याओं का समाधान किस प्रकार किया जा सकता है।

उसे ज्ञात होता है कि समस्या हर किसी के जीवन का एक अभिन्न अंग होती है बिना समस्या के व्यक्ति अपना जीवन भी नहीं जी सकता।हर समस्या हमारे जीवन में एक नया सबक लेकर आती है कई बार यह हमें इशारा देती है कि संभल जाओ वरना जिंदगी तुम्हें बुरी तरह गिरा देगी।

लेकिन समस्याओं से घबराने वाले लोग कई बार जीवन में बुरे फैसले लेने के लिए मजबूर हो जाते हैं।

उदाहरण के तौर पर यदि कोई छात्र समय पर शिक्षा हासिल करने की बजाय अपना मूल्यवान समय अन्य क्रियाओं में व्यतीत करता है।

तो परीक्षा के निकट आने पर वह परीक्षा में पास होने को इस चुनौती को बड़ी समस्या मानता है।

और उस समस्या से घबराकर परीक्षाओं में नकल करने का निर्णय ले लेता है, जिससे अंततः उसे ज्ञान और सम्मान दोनों की हानि होती है।

नजरिया बदल कर जीवन में हल करें सारी समस्याएं

देखा जाए तो समस्या केवल तब बनती है जब हम उसके आगे घुटने टेक देते हैं और आगे कुछ करने की सोचते ही नहीं और अपने नजरिए से उसे समस्या के रूप में देखते हैं।

जैसे कि एक विद्यार्थी की मुख्य समस्या उसकी पढ़ाई होती है परंतु देखा जाए तो पढ़ाई कोई समस्या है ही नहीं।

हम जब अपनी पढ़ाई पूरी कर लेते हैं तो उससे हमें अपने जीवन और कैरियर में अनेक लाभ होते हैं अतः क्या पढ़ाई वाकई कोई समस्या है?

नहीं ना, पर विद्यार्थी उसे अपने नजरिए से समस्या का रूप देता है।

पर उसके भविष्य को संवारने वाली शिक्षा को ही यदि वह समस्या समझ कर जीवन में उससे बचने का प्रयास करता है, तो वह अपने भविष्य के लिए आज से ही समस्याएं खड़ी कर रहा है।

अतः इस स्थिति से गुजरने वाले लोगों को अंततः यह महसूस होता है कि यदि मै पढ़ाई को समस्या ना समझता तो आज मुझे जीवन में इतनी समस्या का सामना नहीं करना पड़ता।

हमें कभी भी किसी समस्या को समस्या के नजरिए से नहीं देखना चाहिए मात्र उसे अपने जीवन में छोटे सा कार्य समझकर उसका सामना करना चाहिए।

प्रत्येक समस्या को हल करने के बाद हमें हमेशा ही खुशी महसूस होती है और हमारा जीवन उस स्तिथि से एक कदम आगे बढ़ चुका होता है जिसका एहसास समस्या हल होने के बाद मिलता है।

हम आपको एक छोटी सी कहानी के माध्यम से समझाएंगे कि हमें किस प्रकार समस्या का नहीं बल्कि समाधान का हिस्सा बनना चाहिए।

यह कहानी है एक सुंदर हिरन और उसके बच्चों की, एक बार एक बड़े से जंगल में एक हिरन अपने बच्चों के साथ पानी की तलाश में घूम रहा था हिरन और उसके बच्चे बहुत दिनों से प्यासे थे।

पानी की तलाश में वे जंगल के एक कोने से दूसरे कोने में घूम रहे थे। पर उन्हें पानी कहीं भी नजर नहीं आया अतः थक हारकर अंततः दोपहर के समय वे सभी एक पेड़ के नीचे छांव में बैठ जाते हैं।

कुछ समय पश्चात जब वे वहां पर एक दम शांत बैठ जाते हैं तो उन्हें आस-पास एक उफनती नदी की आवाज सुनाई देती है।

हिरण और उसके दो बच्चे एक दूसरे को देखते है, और पानी की उसी लहर को सुनकर उसी तरफ बढ़ते चले जाते हैं। उन्हें यकीन हो जाता है आसपास कहीं ना कहीं एक नदी जरूर है इसलिए वे मन ही मन बहुत खुश हो जाते हैं।

कुछ दूर जाने के बाद नदी को देखते ही सब दौड़कर पानी पीने के लिए उस नदी में पहुंच जाते हैं और पानी पीने के लिए अपना सिर नीचे करते हैं।

खुद की और अपने बच्चों की सुरक्षा हेतु एक बार वह हिरण अपने चारों तरफ देखता है। पर बाईं तरफ हिरण पर नजरें गड़ाए जब वह एक शिकारी को देखता है तो उसके पैरों तले जमीन खिसक जाती हैं।

लेकिन अपने प्यार से बच्चों को पानी पीता देख हिरण उन्हें उस शिकारी के सामने होने के कोई संकेत नहीं देता है, और खूब घबराने के बावजूद भी वह स्वयं चुपचाप पानी पीने लग जाता है।

कुछ सेकंड पश्चात जब हिरन की नजर बाई तरफ पड़ती है तो उसे दूर पर ही खड़ा हुआ एक शेर नजर आता है। अब हिरन पहले से भी ज्यादा डर के मारे सहम जाता है, लेकिन धैर्य रखकर फिर भी अपने बच्चों को कुछ भी नहीं बताता।

अब बाहर से देखने में हिरण भले ही नदी में पानी पीता दिखाई दे रहा था परंतु मन ही मन वह अपनी दाएं एवम बाएं तरफ खड़ी हुई इस समस्या का समाधान करने की सोच रहा था।

हिरण सोचता है कि अब मुझे अपने बच्चों को पानी पिला कर पीछे की ओर भागना पड़ेगा लेकिन जब हिरन पीछे की ओर देखता है तो उसे जंगल में पीछे से नदी की ओर आ रही आग की लपटें दिखती हैं।

अब मानो हिरण के जीवित रहने की सारी उम्मीदें ही मर चुकी थी और सोचने लगता है।

कि अगर मैं आगे की ओर जाऊंगा तो सामने नदी है और मेरे छोटे से बच्चे उस नदी की धार में बह जाएंगे। अगर मैं पीछे की ओर भागता हूं तो, मैं और मेरे बच्चे आग की लपटों में जलकर राख हो जाएंगे।

अब हिरन के सामने बचने का कोई भी रास्ता नजर नहीं आता क्योंकि हिरन के बाई और शेर खड़ा था। अगर हिरन उस तरफ भागता तो शेर हिरण या हिरण के बच्चों को अवश्य मार डालता।

अगर हिरन अपनी दाएं और भागने की कोशिश करता है तो वहां खड़ा शिकारी हिरण को अपने तरकश में रखे बाण से मार डालता। अब हिरण के पास बचने का कोई भी उपाय नहीं रहा।

हिरन ने फिर भी हिम्मत नहीं हारी और यह सोचा की अगर मेरे सामने चारों तरफ से समस्याएं खड़ी हैं तो क्यों न मैं आखिरी सांस तक इसका सामना करू?

यह सोचकर हिरन अपना काम करने लग जाता है और जी भर कर पानी पीता है, जब हिरन पानी पी रहा होता है उसी समय शिकारी द्वारा छोड़ा गया बाण उसके निशाने से चूक कर बाईं दाईं तरफ मौजूद शेर को लग जाता है।

बाण लगते ही शेर गुस्से से दहाडने लगता है और उस शिकारी का पीछा करने लग जाता है।

मौका देखते ही हिरन खुशी के साथ अपने बच्चों को लेकर उस जंगल के उस तरफ भाग जाता है, जहां से वह आया था।

इस प्रकार अब हिरण अपनी उन सभी समस्याओं से छुटकारा पा चुका था जो उसके सामने खड़ी थी।

हमें हिरण की यह छोटी सी कहानी संदेश देती है कि समस्या हर किसी के जीवन में आती है ।

अतः हमें समस्या आने पर घबराकर फैसले नहीं लेनी चाहिए। परेशानी को देखकर हमें जल्द हार नहीं माननी चाहिए।

क्योंकि प्रत्येक समस्या के जन्म के साथ ही उस समस्या का हल भी हमारे पास होता है। स्वयं भगवान कृष्ण कहते हैं ऐसी कोई समस्या नहीं जिसका हल ना मिल सके।

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किसी भी मुश्किल को आसानी से कैसे सुलझाएं?

Problem Solving Techniques In Hindi : समस्याएं हमारे जीवन का एक अहम हिस्सा होती है, इससे हमें बहुत कुछ सीखने को मिलता है। हमारे में से ऐसा कोई नहीं है जिसके जीवन में कोई समस्या नहीं है। पढ़ाई और एग्जाम का तनाव, करियर का टेंशन, पैसों की समस्या आदि जैसी कई समस्याएं है जिसका हमें अपने जीवन में सामना होता है।

कई लोग ऐसे होते हैं जिनके सामने मुश्किल समय आता है तो वह समस्या से डर कर अपनी हिम्मत खो बैठते हैं। लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो चाहे कितना ही मुश्किल समय क्यों न आ जायें, उसका बहुत तैयारी के साथ सामना करते हैं और उस समस्या से बहुत कुछ सीखते भी है।

Problem Solving Techniques In Hindi

इस लिए हर समस्या को अपनी गलती मान कर हार के झोले में डाल देना ये हमारी सबसे बड़ी गलती होती है। हमें उस समस्या को सुलझाने की हर संभव कोशिश करनी चाहिए। हमें हमारे जीवन में हर दिन एक नई समस्या देखने को मिलती है उसके लिए हमें कुछ न कुछ निर्णय लेना ही पड़ता है। जिससे हम उस समस्या से निजात पा सके।

बहुत से लोग ऐसे होते हैं जो प्रोब्लम सोल्व करना अच्छी तरह से जानते हैं, उनके पास Skill की कोई कमी नहीं होती। लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जिनके पास Skill की कमी के कारण हर समय उलझे ही रहते हैं। इस Skill को ही Problem Solving Skill या फिर Problem Solving Techniques कहा जाता है।

ये सबकुछ हमें न तो स्कूल में सिखाया जाता है और ना ही कॉलेज में, इसे हमें खुद के अंदर खुद को ही इम्प्रूव करना पड़ता है। खुद को ही सीखना पड़ता है।

किसी भी समस्या को हल करने से पहले उस समस्या के को अच्छी तरह से समझना बहुत ही जरूर है। उस समस्या की जड़ का पता लगाना चाहिये कि यह समस्या आने का मुख्य कारण क्या है। अधिकतर लोग मुख्य समस्या से अनजान रह जाते हैं और उनसे समस्या तो सुलझ नहीं पाती और अधिक उलझ जाते हैं।

यदि आपके पास किसी भी समस्या को सुलझाने का सबसे अच्छा तरीका है तो आप किसी भी उच्च-शिक्षित व्यक्ति या फिर बुद्धिमान व्यक्ति जो बिना किसी योजना से अपनी समस्याओं को सुलझाते हैं, इनको भी पीछे धकेल सकते हैं।

आज हम यहां पर इस Skill के बारे में विस्तार से यहां पर जानेंगे कि आप इसे अपने अंदर कैसे ला सकते हैं और किसी भी Problem को बहुत ही कम समय में कैसे सुलझा सकते है? इसके लिए आप इस लेख को अंत तक पूरा जरूर पढ़े।

किसी भी समस्या का समाधान कैसे करे – Problem Solving Techniques In Hindi

जिस प्रकार गणित में बड़े से बड़े सवाल को सिर्फ एक सूत्र द्वारा हल किया जाता है ठीक उसी प्रकार हमारे जीवन में आने वाली समस्याओं को सुलझाने की प्रक्रियाएं होती है। आप इन प्रक्रियाओं को अपने जीवन में लाकर हर समस्या को कुछ ही समय में सुलझा पाएंगे।

समस्या को स्वीकारे और उसे समझे

किसी भी समस्या की साइज़ नहीं होती, यह हमारे हल करने के तरीके की क्षमता पर छोटी या बड़ी होती है। इसलिए सबसे पहले हमें अपनी समस्या को अच्छी तरह से समझ लेना चाहिए और फिर इसे स्वीकार कर लेना चाहिए। क्योंकि हम जब तक उस समस्या को जानेंगे नहीं तब तक उसे हल नहीं कर पाएंगे।

अक्सर हमारे सामने छोटी सी भी प्रोब्लम आ जाती है तो हम बौखला जाते हैं और उस पर अचानक से अपनी प्रतिक्रिया दे देते हैं जिससे वह Problem और अधिक बड़ी हो जाती है। इसलिए ऐसा करने से पहले उस समस्या को अच्छी तरह से समझो, उस पर गहराई से अध्ययन करो और पुराने विचारों को अलग रखकर उसके बारे में सोचो जब तक समस्या की जड़ का पता नहीं लग जाता। तब तक उस पर कुछ विचार नहीं करें और ना ही उस पर अपनी प्रतिक्रिया दें।

नकारात्मकता दूर रखें

जब कोई समस्या आती है तो हम उस समस्या या उस कठिन समय के बारे में अपने हिसाब से ही अपना मत बना लेते हैं। इस खुद का मत बना लेने के कारण समस्या को सुलझाने का कोई नया आईडिया नहीं आ पाता।

मनोविज्ञान का मानना है कि आप यदि अपना पूरा फोकस अपनी समस्याओं पर रखते हैं तो आपका दिमाग उस समस्याओं का Solution ढूंढ ही नहीं पाता है। अर्थात् यदि आप अपने Mind को प्रोब्लम्स की ओर फोकस करेंगे, तो आपके दिमाग में Negativity घर बना लेती है और फिर दिमाग Solution के बारे में सोच नहीं पाता।

इसलिए हर समस्या को एक नई नजर से देखे और उस समस्या को अलग और नये तरीको से सुलझाने की कोशिश करें। आप अपने दिमाग को पूरा समाधान करने पर लगा दें और यह जानने की कोशिश करें कि यह समस्या कैसे आई, क्या है और यह हल कैसे होगी? इन विचारों पर ही ध्यान दें न कि Negative Thought पर।

यह हमेशा ध्यान में रखें कि “आप जिस नजर से दुनिया को देखोंगे, दुनिया आपको वैसी ही नजर आएगी।”

Read Also: नकारात्मक सोच दूर कैसे करें?

जब हमारे सामने कोई Problem आती है तो हमारे मन में उसके समाधान को लेकर कई तरह के आइडिया आने लग जाते हैं। आप उस समय आये सभी आईडिया को एक जगह पर लिख दें। क्योंकि समस्या के समय सभी आईडिया व्यर्थ और अजीब लगते हैं। इस कारण हम उन पर ज्यादा ध्यान नहीं देते और उन्हें छोड़ देते हैं। लेकिन कई बार ये व्यर्थ आये आईडिया ही समस्या को जड़ से समाप्त कर देते हैं।

इसलिए समस्या के समय दिमाग में आई हर चीज को एक पेज पर नोट करते रहे और उस पर गौर करते रहे। हर चीज को सकारात्मक तरीके से देखना शुरू कर दें। सकारात्मक एक ऐसी चीज है जो हर समस्या को पूरी तरह से खत्म कर देती है।

सुने सबकी लेकिन करें खुद की

सबसे पहले तो आपके सामने आई समस्या का समाधान खुद के स्तर पर हल करने की कोशिश करें। अपनी हर संभव कोशिश करने के बाद जब आपको लगे कि अब किसी और कि भी सहायता लेनी चाहिए तो आप उसके लिए अपने परिवार के सदस्यों, रिश्तेदारों, दोस्तों आदि से उसके बारे में सलाह लें। सभी की सलाह लेने के बाद फिर आप उनमें से उस सलाह का चयन करें जिसके बारे में आपका दिल बोल रहा है।

ऐसा करने से आपके खुद के अंदर कॉन्फिडेंस आएगा और आप किसी दूसरे को इसके लिए जिम्मेदार भी नहीं समझोगे।

Problem Solving Techniques

खुद पर विश्वास रखें

यदि आपको अपने खुद पर विश्वास है तो आपको सफ़ल होने से कोई नहीं रोक सकता। इसके लिए हमें पहले अपने आप पर विश्वास करना होगा।

कोई भी काम करने से पहले आपको अपने अंदर आत्मविश्वास लाना होगा कि मैं यह काम आसानी से कर सकता हूँ। ऐसा सोचने मात्र से आपके अंदर की सभी नकारात्मकता दूर हो जाएगी।

मैं उम्मीद करता हूँ कि मेरे द्वारा शेयर की गई यह जानकारी “किसी समस्या का समाधान कैसे करें (Problem Solving Techniques in Hindi)” आपको पसंद आई होगी, आप इसे आगे शेयर करना नहीं भूलें। आपको यह जानकारी कैसी लगी, हमें कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं।

  • सॉफ्ट स्किल्स कैसे इम्प्रूव करें?
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  • प्रत्येक काम में सफल कैसे बने?
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Rahul Singh Tanwar

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12th notes in hindi

समस्या समाधान विधि क्या है problem solving method in hindi समस्या समाधान की परिभाषा किसे कहते हैं

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problem solving method in hindi in teaching समस्या समाधान विधि क्या है , समस्या समाधान की परिभाषा किसे कहते हैं ?

समस्या समाधान विधि क्या है ? इसमें कौन-से पद होते हैं ? इसके गुण-दोष लिखिये। What is problem solving method ? What are the steps involved in it ? Write its merits and demerits. उत्तर- रसायन विज्ञान-शिक्षण में समस्या-समाधान विधि (Problem Solving Method in Chemistry Teaching) – इस प्रणाली का जन्म प्रयोजनवाद के फलस्वरूप हुआ। इसका आधार ह्यरिस्टिक विधि की तरह है। सबसे पहले अध्यापक कक्ष में बालकों के सामने कोई समस्या समाधान के लिए रखता है। यह समस्या उनके पाठ से सम्बन्धित होती है। इसके बाद विद्यार्थी मिलकर वाद-विवाद के द्वारा उस समस्या का हल ढूढने की कोशिश करते हैं। वे एक वैज्ञानिक की भाँति तरह-तरह के प्रयास करते हैं और जब तक उसका समाधान नहीं खोज लेते हैं, तब तक कोशिश करते रहते हैं। वुडवर्थ (Woodworth) – “समस्या समाधान उस समय प्रकट होता है जब उद्देश्य की प्राप्ति में किसी प्रकार की बाधा पड़ती है। यदि लक्ष्य तक पहुंचने का मार्ग सीधा और आसान हो तो समस्या आती ही नहीं।” जार्ज जॉनसन (George Johnson) – “मस्तिष्क को प्रशिक्षित करने का सर्वोत्तम ढंग वह है जिसके द्वारा मस्तिष्क के समक्ष वास्तविक समस्याएँ उत्पन्न की जाती हैं और उसको उनका समाधान निकालने के लिए अवसर तथा स्वतंत्रता प्रदान की जाती है।” गेट्स तथा अन्य (Gates and others) – “समस्या समाधान, शिक्षण का एक रूप है जिसमें उचित स्तर की खोज की जाती है।‘‘ स्किनर (Skinner) –  “समस्या समाधान एक ऐसी रूपरेखा है जिसमें सृजनात्मक चिंतन तथा तर्क होते हैं।‘‘ समस्या समाधान विधि के सोपान या चरण-अध्यापक को समस्या समाधान विधि में कुछ विशेष क्रमबद्ध प्रक्रियाओं से गुजरना होता है। ये निम्न हैं- (प) सपस्या का चयन करना (Selection of Problem) – सर्वप्रथम शिक्षक को विज्ञान के विषय में से उन प्रकरणों का चयन करना पड़ेगा जो समस्या विधि की सहायता से पढ़ाये जा सकते हैं, क्योंकि सभी प्रकरण (Topic) समस्या समाधान विधि से नहीं पढ़ाये जा सकते। (पप) समस्या से सम्बन्धि तरयों का एकत्रीकरण एवं व्यवस्था (Collection & Organisation of Facts Regarding Problem) — समस्या से सम्बन्धित तथ्यों को एकत्रित करना भी अति आवश्यक है। यदि साधन ही अस्पष्ट होंगे तो हम इस विधि से जितना लाभ प्राप्त करना चाहते हैं, वह प्राप्त नहीं कर सकेंगे। (पपप) समस्या का महत्व स्पष्ट करना (Classifying the Importance of the Problem) — यदि विद्यार्थियों को समस्या के महत्व का पता नहीं होगा तो वे समस्या में कभी भी रुचि नहीं लेंगे। विद्यार्थियों का समस्या में रुचि न लेने से समस्या का कभी भी सही हल नहीं निकल सकता। (पअ) तथ्यों की जाँच तथा संभावित हलों का निर्णय (Evaluation of Facts and Decision about Possible Solutions) – अब समस्या से सम्बन्धित तथ्यों की जाँच की जाती है और यह पता लगाया जाता है कि उनमें से कौन से तथ्य समस्या के अनुरुप हैं और किन तथ्यों को अस्वीकृत किया जा सकता है। तथ्यों की जाँच के उपरान्त ही समस्या का हल निकालने का प्रयत्न किया जाता है। यदि किसी समस्या का हल कई प्रकार से निकलता है तो शिक्षक और विद्यार्थी दोनों मिलकर सबसे सही हल ढूंढने का प्रयत्न करेंगे। तथ्यों का आलोचनात्मक विश्लेषण, समालोचन तथा विचार-विमर्श किया जायेगा और तत्पश्चात् निष्कर्ष पर पहुंचा जायेगा। (अ) सामान्यीकरण एवं निष्कर्ष निकालना (Generalçation and Conclusion) – सामान्यीकरण से निष्कर्षों के सत्यापन में सहायता मिलती है। इसके साथ ही यह जानने के लिए प्रेरणा मिलती है कि ये निष्कर्ष प्रयोग में लाये जा सकते हैं या नहीं। (अप) निष्कर्षों का मूल्यांकन एवं समस्या का लेखा-जोखा बनाना (Evaluation of Result & Preparing Records of the Problem) – अन्त में समस्या के समाधान हेतु विद्यार्थी व शिक्षक जिस निष्कर्ष या परिणाम पर पहुंचते हैं उसका मूल्यांकन किया जाता है। समस्या समाधान विधि की विशेषताएँ- (प) सूझबूझ या अन्तर्दृष्टिपूर्ण (Insightful) – यह विधि सूझबूझपूर्ण वाली विधि है क्योंकि इसमें चयनात्मक और उचित अनुभवों का पुनर्गठन सम्पूर्ण हल में किया जाता है। (पप) सृजनात्मक (Creative) – इस विधि में विचारों आदि को पुनर्गठित किया जाता है, इसलिए इस विधि को सृजनात्मक माना जाता है। (पपप) चयनात्मक (Selective) – इस विधि की प्रक्रिया इस दृष्टि से चयनात्मक है कि सही हल ढूंढने के लिए चयन तथा उपयुक्त अनुभवों को स्मरण किया जाता है। (पअ) आलोचनात्मक (Critical) – यह विधि आलोचनात्मक है क्योंकि यह अनुपात या प्रयोगात्मक हल का पर्याप्त मूल्यांकन करने के लिए आवश्यक है। (अ) लक्ष्य-केन्द्रित विधि (Goal – oriented Method) – इस विधि का एक विशिष्ट लक्ष्य होता है । लक्ष्य ही बाधा को दूर करना होता है। समस्या समाधान विधि के गुण- (प) वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास (Development of Scientific Attitude) – विधि से विद्यार्थियों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास होता है। वे मुद्रित पाठों का प्रधानकरण नहीं करते और पुस्तकीय ज्ञान पर आश्रित नहीं रहते। (पप) जीवन की समस्याओं को सुलझाने में सहायक (Helpful in Solving the Dattlems of Life) – प्रत्येक व्यक्ति को जीवन में अनेक समस्याओं का सामना करना पडता है। विद्यालय में समस्याओं के समाधान के प्रशिक्षण प्राप्त करने से विद्यार्थियों में ऐसे सोशल व अनुभव आ जाते हैं जिससे वे जीवन की समस्याओं का समाधान करना सीखते हैं। (पपप) तथ्यों का संग्रह और व्यवस्थित करना (Collection and Organisation of Data) – इस विधि से विद्यार्थी तों को एकत्रित करना सीखते हैं तथा इन एकत्रित तथ्यों को एकत्रित करने के पश्चात् उन्हें व्यवस्थित करना भी सीखते हैं। (पअ) अनुशासन को बढ़ावा (Collection and Organisation of Data) –  इस विधि से अनुशासन-प्रियता को बढ़ावा मिलता है। प्रत्येक विद्यार्थी समस्या का हल निकालने में ही जुटा रहता है। अतः उसके पास अनुशासन भंग करने का अवसर ही नहीं होता। (अ) स्वाध्याय की आदत का निर्माण (Formation of Habit of Self-Study) – इस विधि से बालकों में स्वाध्याय की आदत का निर्माण होता है जो आगे जीवन में बहुत लाभकारी सिद्ध होता है। (अप) स्थायी ज्ञान (Permanent Knowledge) – इस विधि द्वारा अर्जित ज्ञान विद्यार्थियों के पास स्थायी रूप से रहता है, क्योंकि विद्यार्थियों ने स्वयं समस्या का समाधान ढूंढकर इस ज्ञान को अर्जित किया होता है। (अपप) पथ-प्रदर्शन (Guidance) – इस विधि से शिक्षक और शिक्षार्थी को एक-दूसरे के निकट आने का अवसर मिलता है। इस विधि में शिक्षक के पथ-प्रदर्शन का महत्वपूर्ण स्थान है। समस्या का समाधान ढूंढने के लिए विद्यार्थी समय-समय पर शिक्षक की सहायता लेता है। (अपपप) विभिन्न गुणों का विकास (Development of Various Qualities) – समस्या समाधान विधि बालकों में सहनशीलता (च्ंबजपमदबम), उत्तरदायित्व को भावना (Sense of Responsibility), व्यवहारिकता (Practicability), व्यापकता (Broad Mindedness), गंभीरता (Seriousness), दूरदर्शिता (Farsightedness) आदि अनेक गुणों को जन्म देती है। समस्या समाधान विधि के दोष (प) संदर्भ सामग्री का अभाव (Lack of Reference Materials)- इस विधि में विद्यार्थी को बहुत अधिक संदर्भ सामग्री की आवश्यकता पड़ती है जो आसानी से उपलब्ध नहीं होती। कई ऐसी पुस्तकें समस्या का समाधान ढूंढने में आवश्यक होती हैं जो प्रायः विद्यालय के पुस्तकालय में नहीं होती। (पप) चयनित अंशों का अध्ययन (Study of Selected Portions) – विद्यार्थी सम्पूर्ण पाठ्यक्रम का अध्ययन न कर केवल उन्हीं अंगों का अध्ययन करते हैं जो उनकी चुनी हुई समस्या से सम्बन्धित है। (पपप) नीरस शैक्षणिक वातावरण (Dull Educational Environment) – इस विधि का कक्षा में अधिक प्रयोग होने से सम्पूर्ण शैक्षणिक वातावरण में नीरसता आ जाती है। जब विद्यार्थी किसी एक समस्या पर कई दिन या कई सप्ताह कार्य करते है तो उस समस्या से उनकी रुचि समाप्त हो जाती है क्योंकि बालक स्वभाव से ही विभिन प्रकार के कार्यों में भाग लेना चाहते हैं। (पअ) निर्मित समस्याओं का वास्तविक जीवन की समस्याओं से तालमेल का अभाव (Lack of Co-ordination between Created Problems and Actual Problems) – कई बार कक्षा में निर्मित समस्यायें वास्तविक जीवन की समस्याओं से नहीं खाती जिसके परिणामस्वरूप विद्यार्थी व्यवहारिक ज्ञान प्राप्त करने में असमर्थ रहने । (अ) प्राथमिक कक्षाओं के लिए अनुपयुक्त (Not Fit for Primary Classes) – यह विधि प्राथमिक कक्षाओं के लिए उपयोगी नहीं है, क्योंकि इन कक्षाओं के विद्यार्थियों का मानसिक स्तर इतना ऊंचा नहीं होता कि वह समस्या का चुनाव कर सकें तथा समस्याओं का हल निकाल सकें। (अप) समस्या का चुनाव एक कठिन कार्य-रसायन विज्ञान-शिक्षण में समस्या समाधान विधि का उपयोग इसलिए भी दोषपूर्ण या सीमित है क्योंकि समस्या का चुनाव करना बहुत ही कठिन कार्य होता है। प्रत्येक विद्यार्थी या शिक्षक समस्या का चुनाव नहीं कर सकता। (अपप) संतोषजनक परिणामों का अभाव (Lack of Satisfactory Results) – इस विधि से प्रायः संतोषजनक परिणाम भी प्राप्त नहीं होते। कई बार विद्यार्थियों के मन में ऐसी बात आती है कि वह व्यर्थ ही समय नष्ट कर रहा है या जो परिणाम निकाला गया है उसका समस्या के साथ ठीक तरह से तालमेल नहीं बैठता। (अपपप) अधिक समय खर्च होना (Requires More Time) – इस विधि द्वारा समस्या के समाधान ढूंढने में विद्यार्थी का समय बहुत अधिक खर्च हो जाता है। इससे हमेशा यह भय बना रहता है कि पाठ्यक्रम पूरा होगा भी या नहीं। (पग) अनुभवी शिक्षकों की आवश्यकता (Experienced Teachers are Required) – रसायन विज्ञान शिक्षण में समस्या-समाधान विधि के प्रयोग के लिए कुशल, योग्य एवं अनुभवी शिक्षकों की आवश्यकता होती है जो कि समस्या का सावधानी से चुनाव कर सकें। लेकिन वास्तव में ऐसे गुणी शिक्षकों का अभाव ही रहता है। समस्या समाधान विधि के लिए सुझाव- 1. समस्या देने से पूर्व इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि समस्या बालको के मानसिक स्तर की हो तथा उनके अनुभवों पर आधारित हो। 2. पहले बालकों को सरल, फिर कठिन समस्या देनी चाहिए ताकि वे धीरे-धार सफलता प्राप्त करते हुए कार्य करें। 3. समस्या उनकी रुचि के अनुसार होनी चाहिए जो उनके पाठयक्रम के अन्तगत आती हो। 4. समस्या समाधान विधि का प्रयोग बड़ी कक्षाओं में ही ठीक प्रकार से हो सकता है। यदि हम समस्या को ठीक ढंग से प्रस्तुत करने का प्रयत्न करें तो इससे मानसिक कुशलताओं, अभिवृत्तियों व आदेशों के विकास में सहायता मिलती है।

decision making process in hindi

निर्णय लेने की प्रक्रिया(Decision Making Process In Hindi)

निर्णय लेना एक महत्वपूर्ण कार्यवाही है। हम कई तरह के कार्यों के करने के लिए  Decision लेना होते है, जिसके लिए उचित निष्कर्ष निकालना आवश्यक होता है। Decision Making Process एक ऐसी निर्णय लेने की प्रक्रिया है, जिसके द्वारा कोई लक्ष्य प्राप्त करने या किसी उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए लिया जाता है। 

दो या दो से अधिक वैकल्पिक पाठ्यक्रमों के बीच से इसका चयन किया जाता है। यह Decision Making  किसी भी कार्य के लिए हो सकता है, यह अपने व्यवसाय या किसी ऑफिस के प्रबंधकीय निर्णय लेना या किसी निजी उद्देश्य के लिए हो सकता है।  हम आपको आज की इस पोस्ट में Decision कैसे ले और Decision Making in hindi मे प्रक्रिया को विस्तार से आपके सामने रखेंगे।  

Table of Contents

Decision Making निर्णय निर्माण

Decision Making (निर्णय निर्माण) में कई तरह की चीजों को शामिल किया जाता है। जिसमे आपको अपने विचार को स्पष्ट करने के लिए कई योजना पर कार्य करके किसी Decision पर आया जाता है। जैसे कि किस भी निर्णय लेने से पहले आपको यह जानना होता है, की कब? कैसे? कहा पे? किसके द्वारा? आदि। 

इसके बाद उस कार्य के लिए निर्णय निर्माण का अंतिम रूप दिया जाता है। निर्णय निर्माण में कई कार्य आते है, उसी तरह प्रबंधन के अन्य कार्य जैसे आयोजन और नियंत्रण भी निर्णय लेने से बना है। जिसमे आप किसी दो या दो से अधिक पक्षों के बीच निर्णय चुनाव का एक कार्य करते है। 

Decision Making (निर्णय निर्माण) में हमेशा दो से अधिक विकल्प शामिल होते हैं, यह कभी भी किसी एक के साथ नहीं लिया जा सकता है। इसके लिए दो से अधिक पक्षों का होना आवश्यक होता है।  यदि केवल एक ही विकल्प है, तो कोई निर्णय नहीं लिया जा सकता है।

एक निर्णय एक कार्य की निष्क्रियता है जो किसी समाधान तक पहुँचती है, इसमें किसी भी तरह समस्या हो सकती है या कोई नए कार्य को करने के लिए लिया गया निर्णय हो सकता है। निर्णय को एक निष्कर्ष के रूप में भी देखा जाता है। एक प्रबंधक भविष्य में (या बाद में) उसे क्या करना है, कैसे करना है, और कब करना चाहिए यह सभी कुछ  Decision Making (निर्णय निर्माण) के अंतर्गत आता है।  

निर्णय लेने का अर्थ।

निर्णय लेना एक बहुत जवाबदारी का कार्य होता है।  यह प्रबंधन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, क्योंकि निर्णय लेना समस्या से संबंधित है और आपको किसी दो परिस्थितियों में से एक को चुनना होता है।  यह आपके निर्णय पर निर्भर करता है, की आप उसमे क्या निर्णय लेते है। 

प्रभावी निर्णय लेने से ऐसी समस्याओं को हल करके वांछित लक्ष्यों या उद्देश्यों को प्राप्त करने में मदद करता है। निर्णय का अर्थ है की, विचार-विमर्श में कटौती करना और निष्कर्ष पर आना। सभी परिस्थितियों को देखकर लिया गया निर्णय आपके कार्य और आपकी समस्या को ठीक करने में मदद करता है।

निर्णय निर्माण की प्रक्रिया (Process of Decision-Making)

निर्णय निर्माण इतना आसान नहीं होता है, किसी भी निर्णय तक पहुंचने के लिए आपको इसकी प्रोसेस को देखना होता है।  यदि हम प्रशासनिक क्षेत्र की बात करे तो, निर्णय निर्माण या निर्णय प्रक्रिया के क्षेत्र में विद्वानों ने अलग अलग मत प्रस्तुत किये हैं । सभी ने इसके अलग अलग चरणों के बारे में बताया है। 

हरबर्ट साइमन ने निर्णय प्रक्रिया को तीन चरण में बाटा है, वही  न्यूमैन व वारेन ने चार चरणों में निर्णय निर्माण की प्रक्रिया को समझाया है। इसी तरह सभी ने अलग अलग निर्णय निर्माण की प्रोसेस को बताया है।  हम आपको इन्ही में से मुख्य प्रोसेस को बताते है, जो आपके Decision Making को सफल बनाने में मदद करता है।  

(1) लक्ष्य निर्धारण (Setting of Goals)

लक्ष्य निर्धारण (Setting of Goals) निर्णय निर्माण की प्रक्रिया का हिस्सा होता है।  सबसे पहले निर्णय निर्माण के प्रथम चरण में आपको अपने उद्देश्यों या लक्ष्यों का निर्धारण करना होता है, जिसके बाद ही आगे बढ़ा जा सकता है। हमे देखना होता है की प्रशासक या व्यवसाय प्रबंधक को जनता के हित में अथवा सार्वजनिक कल्याण की दृष्टि से किन लक्ष्यों को प्राप्त करना उचित है ।

(2) अपनी समस्या की विस्तार से व्याख्या करना

किसी भी निर्णय को लेने से पहले समस्या की व्याख्या का आकलन करना होता है। यह दूसरा सबसे महत्वपूर्ण बिंदु होता है।  इस चरण में यह जानने का प्रयास किया जाता है कि लक्ष्यों को प्राप्त करने में मार्ग में कौन-कौन सी समस्याएँ आती है। सबसे पहले समस्याओं की पहचान होना जरुरी है, जिसके बाद हम निर्णय निर्माण की पप्रोसेस में आगे बढ़ते है।  

(3) समस्या का विश्लेषण (Analysis of the Problem)

यदि निर्णय निर्माण में आपको समस्या का पता चलता है, तो समस्या की व्याख्या करना होती है, उसके बाद ही किसी निर्णय पर पहुंचा जाता है | छोटी समस्या का विश्लेषण सरल होता है, लेकिन आपके  सामने यदि कोई बड़ी समस्या है, तो उसका पूरी तरह से विश्लेषण करने के बाद ही निर्णय लेना होता है।  

समस्या का विश्लेषण करने के तरिके –

वैकल्पिक समाधान (Alternative Solution):

समस्या-विश्लेषण के उपरान्त आप किसी भी समस्या के लिए वैकल्पिक समाधान का उपयोग कर सकते है।  जिससे आप अपनी समस्या का सही निर्णय ले सके। इसमें सम्बन्धित तथ्यों एवं सूचनाओं के आधार पर विकल्प प्रस्तुत किये जाते हैं ।

द्वारा चयन किया जाना 

सभी वैकल्पिक समाधानों को देखने के बाद यह देखा जाता है, की कौन सा विकल्प समस्या के समाधान हेतु सर्वाधिक उचित होगा।  विवेक संगत विश्लेषण के उपरान्त ही उसका निर्णय लिया जाता है।  

निर्णयों का क्रियान्वयन (Implementation of Decisions):

निर्णयों का क्रियान्वयन इसी का पहलू होता है। जब निर्णय लिया जाता है, उसके बाद निर्णयों का क्रियान्वयन करना बेहद जरूरी होता है। जिससे कि समाधान सम्भव हो सके, इसके माध्यम से आप अपने कार्य को और काम करने वाले कर्मचारियों से कार्य पर नियंत्रण रख सकते है।  

निर्णय की प्रतिपुष्टि (Confirmation of Decision):

यह Decision Making (निर्णय निर्माण)  की अंतिम प्रोसेस होती है, इसमें आपको अपना अंतिम निर्णय दिखाई देता है। जिसके ऊपर आपको अपना अंतिम पक्ष दीखता है। यही निर्णय प्रक्रिया का अन्तिम चरण है | 

Decision Making skill (निर्णय लेने का कौशल)

निर्णय लेने का कौशल d आपके अंदर होना जरूरी है, यदि निर्णय लेने का कौशल आपके पास है, तो आप सही निर्णय पर पहुंच सकते है।  इसके लिए आपको निम्न बातो को देखना होता है।  

1. महत्वपूर्ण कारकों की पहचान करें – 

सबसे पहले आपको निर्णय के लिए महत्वपूर्ण कारकों की पहचान करना होता है, जिसकी मदद से आप अपने निर्णय को ले सकते है। एक अत्यधिक कुशल निर्णयकर्ता होने के लिए उत्कृष्ट विश्लेषणात्मक कौशल की आवश्यकता होती है। और सभी से उचित विचार-विमर्श किया जाना चाहिए।  

2. नैतिक निर्णय लेने का कौशल – 

 नैतिक निर्णय लेने का कौशल आपके पास होना आवश्यक है। जिससे आप कठिन विकल्पों में से किस का चुनाव कर सकते है।  इसमें स्वास्थ्य देखभाल, वित्तीय उद्योग, और बहुत सारे केंद्रीय कौशल आते है।

3. विकल्पों का सही मूल्यांकन 

आपके पास जो भी विकल्प है उनका सही से मूल्यांकन करें क्योंकि उन्ही में से आपको निर्णय लेना होता है। इसके लिए

4. उपभोक्ता निर्णय लेना 

उपभोक्ता के लिए लिया गया निर्णय उपभोक्ता निर्णय कहलाता है, एक्स नादेर उपभोक्ता से जुड़े निर्णय लेने का कौशल होना आवश्यक है। जैसे किसी वास्तु का रेट बढ़ाना है, या कम करना है तो आपको सही समय पर इसका निर्णय लेते आना जरुरी है।  

5. टीम निर्णय लेने का कौशल

व्यापार और प्रबंधकीय नौकरियों में टीम निर्णय लेने का कौशल सबसे महत्वपूर्ण है। इसमें आपको अपनी टीम के लिए या टीम के साथ निर्णय लेना होता है। यह एक बड़ी चुनौती है, इसमें तेमा के सभी लोग आपसे सहमत होना महत्वपूर्ण होता है ।

 6. चिकित्सा निर्णय लेने का कौशल

चिकित्सा निर्णय अति महत्पूर्ण निर्णय में से एक होता है, क्युकी इसमें किसी की जान का नुकशान जुड़ा होता है।  यदि सही समय पर सही निर्णय नहीं लिया गया यो किसी की जान जा सकती है। इसमें  डॉक्टरों, नर्सों और अन्य स्वास्थ्य पेशेवरों के निर्णय जुड़े होते है।  

7. डेटा संचालित निर्णय लेने का कौशल

डेटा संचालित निर्णय लेने का कौशल आपको कई तरह की मार्केटिंग या स्वास्थ्य सेवा जैसे डेटा-भारी क्षेत्रों में महत्वपूर्ण है। इस तरह के निर्णय व्यवसाय की ग्रोथ को बढ़ाने में मदद करते है।  डेटा संचालित निर्णय लेने का कौशल आपको अपने जीवन में तरक्की में मदद करता है।

8. जोखिम और अनिश्चितता के साथ निर्णय लेने का कौशल 

सबसे कुशल प्रबंधक में यह गन होना आवश्यक होता है, जिससे वह किसी भी परिस्थिति में निर्णय ले सकता है। इस तरह के निर्णय सर्वोत्तम न्यायसंगत अनुमानों का न्याय करते हैं। सबसे अच्छा अनुमान आपके भविष्य से जुड़े हुए फैसले लेता है।  

Decision Making के प्रकार (Types of Decisions)

किसी भी संगठन या व्यापार में लिये जाने वाले निर्णयों को निम्न भागों में विभक्त किया जा सकता है:

कार्यात्मक तथा अकार्यात्मक निर्णय (Programmed and Non-Programmed Decisions)

Herbert Simon पद्धति मे Decision को दो वर्गों में बाँट गया है. पहला कार्यात्मक निर्णय और दूसरा अकार्यात्मक निर्णय । कार्यात्मक निर्णयों में व्यापार व संगठन के दिन-प्रतिदिन के लिए जाने वाले निर्णयों को शामिल किया जाता है। और अकार्यात्मक निर्णय किसी विशेष परिस्थिति या लम्बे समय के लिए निर्णय लिया जाता है।  

दैनिक आधार पर लिए जाने वाले निर्णय

दैनिक व आधारभूत निर्णय लेने के लिए आपको ज्यादा समय नहीं देना होता है।  इस तरह के निर्णय कम समय लेते है, यह सामान्य प्रक्रिया के द्वारा लिये जाते हैं तथा ‘दैनिक निर्णयों’ की श्रेणी में आते हैं । दैनिक व आधारभूत निर्णय लेने के लिए आपको ज्यादा  विवेक या ज्ञान की आवश्यकता नहीं होती है।  यह प्रतिदिन होने वाले कार्यों के अनुसार लिए जाते है। इस प्रकार के निर्णय उच्च श्रेणी के अधिकारियों द्वारा लिए जाते है, इसमें ज्यादा लोगों द्वारा सम्मिलित निर्णय नहीं होते है।  

संगठनात्मक और एकीकृत निर्णय (Organizational or Personal Decisions)

संगठनात्मक व एकीकृत निर्णय चेस्टर आई. बर्नार्ड के अनुसार इसमें दोनों को अलग विभाजित किया जाता है। जो निर्णय संगठन के परिप्रेक्ष्य में लिये जाते हैं जिनसे संगठन को फायदा होता है, इस तरह के निर्णय इस श्रेणी में आते है। ऐसे निर्णय संगठन के उच्च स्तर से निम्न स्तर की और किये जाते है।  और व्यक्तिगत निर्णय वे होते हैं, जो एक पदाधिकारी द्वारा अपने कर्मचारी के लिए लिए जाते है।  

एकाकी और सामूहिक निर्णय (Individual or Collective Decisions)

‘एकाकी निर्णय’ अकेले के आधार पर लिए जाते है, जो प्रशासन के क्षेत्र में एक ही व्यक्ति द्वारा लिये जाते है। इस तरह के निर्णय प्रशासन द्वारा लिए जाते है, जिन्हे सभी लोगो को मानना होता है। और वही सामूहिक निर्णय अधिक लिये जाते हैं। जो किसी संस्था के अनुसार ”समूह द्वारा किये जाते है।  

नियोजित और अनियोजित निर्णय (Planned or Unplanned Decision)

आर. ई. विलियम्स द्वारा नियोजित व अनियोजित निर्णय को दर्शाया गया है। इस तरह के निर्णय प्राय: तथ्यों के आधार पर लिए जाते है और उनके लिये वैज्ञानिक विधियों का प्रयोग किया जाता है। अनियोजित निर्णय किसी विशेष परिस्थिति या समस्या के आने पर लिए जाते है, यह पूर्वनियोजित नहीं होते है और कम समय में लिए जाते है। 

निर्णय लेना और समस्या समाधान

हमे आपको निर्णय लेने का कौशल और निर्णय लेने के प्रकार या Decision Making Process के बारे में बताया है। इन सभी के आधार पर निर्णय लेकर समस्या का समाधान किया जा सकता है। किसी भी तरह के निर्णय पर पहुंचने के लिए आपको अपनी समस्या का आकलन करना अति आवश्यक होता है, उसी के आधार पर कोई निर्णय तक पहुंच पाना संभव होता है।  

निर्णय लेना प्रबंधन में एक महत्वपूर्ण कार्य है, इसको बेहतर तरीके से आना हम सभी के लिए महत्वपूर्ण होता है। क्योंकि निर्णय लेना समस्या से संबंधित है, और यदि आप एक बेहतर निर्णय स्किल को समझते है, तो यह आपके लिए यह सभी कुछ बहुत आसान हो जाता है और आप अपने लिए और अपने संगठन के लिए निर्णय ले पाएंगे। इससे आप वांछित लक्ष्यों या उद्देश्यों को प्राप्त कर सकते है।  

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Problem Solving Method of Teaching in hindi

समस्या समाधान विधि (problem solving method).

समस्या समाधान विधि के प्रबल समर्थकों में किलपैट्रिक और जान ड्यूवी का नाम उल्लेखनीय है। इन्होंने पाठशाला कार्य को इस तरह से व्यवस्थित करने का प्रयास किया जिससे छात्र वास्तविक समस्या का अनुभव करें और मानसिक स्तर पर उसका हल ढूंढने के लिए प्रेरित हों। हमारे जीवन में पग-पग पर समस्याओं का आना स्वाभाविक है और हम इनका तर्क युक्त समाधान भी ढूंढने का प्रयास करते हैं। यदि हम तर्क के साथ किसी समस्या के समाधान की दिशा में प्रयास करते हैं तो निश्चित ही हम किसी न किसी लक्ष्य पर पहुँचते हैं और समस्या का समाधान कर लेते हैं। तर्क पूर्ण ढंग से समस्या की रुकावटों को हल करते हुए किसी लक्ष्य को प्राप्त कर लेना ही समस्या समाधान विधि के अन्तर्गत आता है।

Problem Solving Method of Teaching in hindi

(i) लेविन ने समस्या समाधान को परिभाषित करते हुए लिखा है कि, "एक समस्यात्मक स्थिति, एक रचनाहीन या असंरचित जीवन स्थल क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करती है।"

(ii) स्किनर के अनुसार, "समस्या समाधान किसी लक्ष्य की प्राप्ति में बाधा उपस्थित करने वाली कठिनाइयों पर विजय प्राप्त करने की प्रक्रिया है। यह बाधाओं की स्थिति में सामंजस्य स्थापित करने की एक प्रक्रिया है।”

(iii) जॉन ड्यूवी के मतानुसार, "समस्या हल करना तर्कपूर्ण चिन्तन के ताने बाने से बुना हुआ है। समस्या लक्ष्य का निर्धारण कर देती है और लक्ष्य ही चिन्तन प्रक्रिया को नियन्त्रित करता है।"

(iv) रिस्क के अनुसार, "समस्या समाधान किसी कठिनाई या जटिलता का एक सन्तोषजनक हल प्राप्त करने के उद्देश्य से किया गया योजनाबद्ध कार्य है। इसमें मात्र तथ्यों का संग्रह करना या किसी विद्वान के विचारों की तर्क रहित स्वीकृति नहीं है बल्कि यह विचारशील चिन्तन प्रक्रिया है।"

उपरोक्त परिभाषाओं से स्पष्ट होता है कि जब कोई व्यक्ति ज्ञान तथ्यों के आधार पर उद्देश्यों अथवा लक्ष्यों से भटक जाता है तो उसमें तनाव की स्थिति उत्पन्न होती है और यह तनाव तभी कम होता है जब इसका अन्त उस समस्या के समाधान के रूप में सामने आता है। लेविन की परिभाषा में जीवन स्थल शब्द का प्रयोग किया गया है। लेविन का जीवन स्थल से अभिप्राय व्यक्ति के चहुं ओर के वातावरण से है। इसी क्षेत्र में जब कोई कठिनाई उत्पन्न होती है तो व्यक्ति के सम्मुख समस्या उत्पन्न होती है और समस्या की कठिनाइयां उसे समस्या समाधान करने के लिए प्रेरित करती है। इस समाधान की स्थिति तक प्रयास करते हुए पहुँचना ही समस्या समाधान कहलाता है। शिक्षा के क्षेत्र में भी समस्या समाधान विधि के माध्यम से छात्रों को शिक्षित करने का प्रयास किया जा रहा है। छात्रों को शिक्षण सम्बन्धी विभिन्न समस्याओं का तर्कपूर्ण चिन्तन कर स्वयं ही इन समस्याओं का हल ढूंढने के लिए प्रेरित किया जाता है और उनकी शिक्षण प्रक्रिया आगे बढ़ती है।

समस्या समाधान विधि के सोपान (Steps in Problem Solving)

समस्या समाधान विधि के निम्न सोपान हैं-

1. चिन्ता:- समस्या समाधान विधि का प्रथम सोपान चिन्ता है। इस सोपान में किसी परिस्थिति को छात्रों के सम्मुख इस तरह से प्रस्तुत किया जाता है कि वे इसके प्रति कठिनाई महसूस करे और चिन्तित हो तथा उन्हें यह भी अहसास हो कि वह इस कठिनाई का हल किसी पूर्व निश्चित विधि के माध्यम से नहीं कर पायेगे। ऐसी स्थिति में वे इस समस्या या परिस्थिति को कठिनाइयों को हल करने के लिए प्रयास करेंगे। तर्कपूर्ण चिन्तन के लिए बाध्य होंगे।

2. परिभाषा:- समस्या समाधान विधि के इस दूसरे सोपान में समस्या से सम्बन्धित कठिनाई को परिभाषित किया जाता है और उसकी स्पष्ट रूप से व्याख्या की जाती है। प्रत्येक समस्या से जुड़ी हुई कई छोटी-छोटी समस्यायें भी होती हैं। इन समस्याओं को भी छात्रों को विस्तारपूर्वक समझाया जाता है और फिर उनके निराकरण को विधि भी निर्धारित कर दी जाती है। यही समस्या समाधान विधि का दूसरा सोपान समाप्त होता है।

3. निराकरण प्रयास:- समस्या समाधान का तीसरा सोपान समस्या के निराकरण के लिये किये गये प्रयासों का सोपान है। इसमें समस्या से सम्बन्धित तथ्यों का अध्ययन प्रयोग व विचार विमर्श किया जाता है। उनका वर्गीकरण एवं विश्लेषण कर समस्या को सुलझाने का प्रयास किया जाता है। पूर्व निश्चित सिद्धान्तों का भी पुनः निरीक्षण किया जाता है। इस दौरान विभिन्न प्रकार के उपकरणों और यन्त्रों आदि का भी सहारा लेना होता है। यदि समस्या का आकार बहुत बड़ा होता है तो उसे छोटे-छोटे भागों में विभक्त कर समस्या का समाधान करने का प्रयास किया जाता है।

4. अनुमान या उपकल्पना:- तीसरे सोपान में समस्या के समाधान से सम्बन्धित जिन तथ्यों को एकत्र किया जाता है इस सोपान में उनका विश्लेषण किया जाता है। इस क्रिया में कक्षा के सभी छात्र अपना-अपना सहयोग देते हैं। समस्या समाधान के बारे में एक उपकल्पना तैयार को जाती है और इस उपकल्पना को एकत्रित सभी प्रश्नों में से अधिकांश प्रश्नों की पुष्टि करती है। उसे ही अन्तिम स्वीकृति प्रदान कर दी जाती है और यह समझ लिया जाता है कि इसके माध्यम से ही समस्या का समाधान किया जाना सम्भव है। यही परिकल्पना कहलाती है। इसके पश्चात् इस उपकल्पना के माध्यम से समस्या का समाधान करने का प्रयास किया जाता है।

5. मूल्यांकन:- समस्या समाधान विधि के इस अन्तिम सोपान में निर्मित की गई उपकल्पना का पुनः प्रयोग करते हुए इसकी सत्यता को पुनः परखा जाता है। ऐसा करने के लिए इस उपकल्पना को अन्य सीखी हुई बातों के साथ सम्बन्धित किया जाता है और पूर्व अनुभवों के आधार पर इसकी सत्यता को आंका और जाँचा जाता है। इसके पश्चात् निर्णय की स्थिति आती है और समस्या का समाधान कर लिया जाता है।

ध्यान रहे कि इन पाँचों सोपानों में पहले चार सोपान आगमन विधि के है और पाँचवा और अन्तिम सौपान निगमन विधि का है। यह पाँचों पद एक दूसरे से पूरी तरह से गुथे हुए तथा सम्बन्धित होते हैं। इन्हें एक दूसरे से पृथक नहीं किया जा सकता।

समस्या समाधान विधि के प्रयोग में ध्यान देने योग्य बातें (Things to Note in Using Problem Solving Method)

समस्या समाधान विधि कक्षा शिक्षण में प्रयुक्त होने वाली सरल और स्वाभाविक विधि है। कक्षा में इस विधि का प्रयोग करते समय अध्यापक को निम्नलिखित बातो पर ध्यान देना चाहिये-

  • तार्किक चिन्तन के लिये एक प्रेरक का होना आवश्यक है। क्योंकि बिना किसी प्रेरणा के छात्र समाधान के लिये प्रयास नहीं करेगा।
  • स्वस्थ संकल्पना (Sound concepts) के आधार के रूप में बालक बाह्य संचार की वस्तुओं का ताजा ज्ञान अवश्य रखे। इनके अभाव में इनका प्रतिनिधित्व करने वाले उदाहरणों को सामने रखना चाहिये।
  • इनके साथ-साथ बालक के शब्द-ज्ञान (भाषा-ज्ञान) का भी उत्तरोत्तर क्रमिक विकास होना चाहिये। चिन्तन के लिये भाषा एक आवश्यक तत्त्व है।
  • तार्किक चिन्तन का बीज तत्त्व समझ या बुद्धि तत्त्व है जो कि बहुत कुछ जन्मजात सामान्य योग्यताओं पर निर्भर करती है।
  • तार्किकता बहुत कुछ सम्बन्धित विषय-सामग्री के परिचय या जानकारी पर निर्भर करती है चाहे वह सूक्ष्म हो या स्थूल। इसलिये विशिष्ट विषय के लिये विशिष्ट प्रशिक्षण की व्यवस्था होनी चाहिये। हम गणित या लैटिन में प्रशिक्षण देकर अर्थशास्त्र या सामाजिक समस्याओं के विषय में तर्क शक्ति का प्रशिक्षण नहीं दे सकते।
  • कुछ तर्कशास्त्र या वैज्ञानिक विधियों के सामान्य सिद्धान्तों की जानकारी अवश्य करा देना चाहिये और विभिन्न की समस्याओं के लिये उसका उपयोग कराना चाहिए।
  • मानवीय विचार का प्रत्येक विभाग अपना विशिष्ट चरित्र, भ्रांतियाँ एवं खतरा रखता है। गणित उच्चस्तरीय ज्ञान एवं प्रशिक्षण मनोविज्ञान और शिक्षा में तर्क की सफलता के लिये दावा नहीं कर सकता।
  • विभिन्न प्रकार के तथ्यों (facts) को ढूंढ निकालने के लिये विशेष या ज्ञान होना आवश्यक है।

समस्या समाधान विधि के गुण (Properties of Problem Solving Method)

समस्या समाधान विधि के प्रमुख गुण निम्न प्रकार हैं-

  • मनोवैज्ञानिक होने के साथ-साथ यह विधि पूर्ण रूप से वैज्ञानिक भी है। इस विधि में बालक वैज्ञानिक ढंग से ही ज्ञान को अर्जित करते हैं और शिक्षण सम्बन्धी सभी प्रक्रियायें वैज्ञानिक ढंग से सम्पन्न होती है।
  • समस्या समाधान विधि द्वारा छात्रों की अनेक क्षमताओं एवं योग्यताओं का विकास सम्भव होता है।
  • समस्या समाधान विधि छात्रों को क्रियायें करने के लिए प्रेरित करती है। समस्या स्वयं ही अपने आप में एक प्रेरक है। समस्या समाधान विधि छात्रों की समस्या का समाधान करने के लिए प्रेरित करती है।
  • इस विधि में छात्रों एवं शिक्षक के बीच अधिक सम्पर्क होने के कारण छात्र और शिक्षक के व्यवहार सौहार्दपूर्ण तथा सामंजस्यपूर्ण बनते हैं और शिक्षकों के निर्देशन को वह सहर्ष स्वीकार करते हैं।
  • समस्या समाधान विधि एक लचीली विधि है और इसका प्रयोग किसी भी शिक्षण परिस्थिति में सरलतापूर्वक किया जा सकता है।
  • समस्या समाधान विधि पूर्ण रूप से मनोवैज्ञानिक है।
  • समस्या समाधान विधि पूर्ण रूप से प्रजातान्त्रिक है। इसमें छात्र स्वयं अपनी समस्याओं का हल ढूँढने का प्रयास करते हैं। जिस प्रकार प्रजातन्त्र में मानव व्यक्तित्व के विकास पर विशेष बल दिया जाता है ठीक उसी प्रकार इस विधि में भी छात्रों के व्यक्तित्व को समस्या समाधान की दिशा में विशेष महत्व दिया गया है।
  • समस्याओं को हल करने के लिए छात्रों को समस्या से सम्बन्धित सामग्री को एकत्र करने के लिए प्रयास करने पड़ते हैं, तर्क वितर्क करना पड़ता है, चिन्तन करना पड़ता है जिससे छात्रों का मानसिक विकास सम्भव होता है।
  • समस्या समाधान विधि तर्क एवं आलोचना के द्वार खोलती है जिससे चालकों की मानसिक शक्तियों का विकास सम्भव होता है।
  • इस विधि द्वारा चूंकि बालकों को समस्या का समाधान अपने प्रयासों से स्वयं हो खोजना होता है अतः छात्र अधिक से अधिक प्रयास कर अध्ययन कर वार्तालाप के माध्यम से समस्या का समाधान करने के लिए प्रयत्नशील रहते हैं जिससे उनमें परिश्रम की आदत का विकास होता है और रचनात्मक प्रवृत्ति विकसित होती है।

समस्या समाधान विधि के दोष (Defects of Problem Solving Method)

  • इस विधि से शिक्षण प्रक्रिया को चलाने के लिए अधिक समय की आवश्यकता होती है। धीमी गति के कारण निर्धारित पाठ्यक्रम वर्ष भर में पूरे नहीं हो पाते। जो ज्ञान शिक्षक परम्परागत शिक्षण विधियों से 1 वर्ष में दे पाते हैं वह इस विधि द्वारा दिया जाना सम्भव नहीं है।
  • इस विधि द्वारा छात्रों की सभी मानसिक एवं शारीरिक शक्तियों का विकास किया जाना सम्भव नहीं है। इसी कारण इस विधि को एकागी विधि स्वीकार किया गया है।
  • यह विधि छोटे बच्चों के शिक्षण के लिए बिल्कुल भी उपयोगी नहीं है। इस विधि में चूंकि तर्क पर विशेष बल दिया गया है और छोटे बच्चों द्वारा तर्क के माध्यम से अधिगम प्रक्रिया सम्भव नहीं है।
  • समस्या समाधान विधि अरुचिपूर्ण विधि है। इस विधि से शिक्षण की प्रक्रिया नीरस हो जाती है।
  • इस विधि से शिक्षण का संचालन करने के लिए योग्य शिक्षकों को बहुत आवश्यकता है। योग्य शिक्षकों के अभाव में यह विधि सफलतापूर्वक अपनायी नहीं जा सकती।

समस्या समाधान विधि में शिक्षक का स्थान (Teacher's Place in Problem Solving Method)

इस विधि के छात्र केन्द्रित होने के कारण और छात्रों के व्यक्तिगत कार्यों पर अधिक बल दिया गया है। इस कारण अक्सर यह भ्रान्ति हो जाती है कि इस विधि में शिक्षकों की कोई विशेष भूमिका नहीं है। किन्तु यह सोच बिल्कुल निरर्थक और सही नहीं है। वास्तव में शिक्षक शिक्षण प्रक्रिया की वह महत्वपूर्ण कड़ी है जिसके अभाव में शिक्षण प्रक्रिया का समपन्न होना सम्भव नहीं है। इस विधि में भी शिक्षक का महत्वपूर्ण स्थान है। यह शिक्षक ही है जो समस्याओं को प्रभावपूर्ण ढंग से छात्रों के सम्मुख प्रस्तुत करते हैं और ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न करते हैं जिनमें छात्र इस समस्या के समाधान के लिए प्रेरित हो तथा बाध्य हो। शिक्षक को हर कदम पर यह भी ध्यान रखना होता है कि छात्रों की रुचि इसमें बनी रहे। समस्या से सम्बन्धित सामग्री को एकत्रित करते समय भी छात्रों को शिक्षक के निर्देशन की आवश्यकता होती है।

शिक्षक के निर्देशन के अभाव में छात्र अनुपयुक्त सामग्री का संग्रह कर बैठते हैं जो किसी भी प्रकार से समस्या के समाधान में सहायक नहीं होती। छात्रों को अनुमानों के आधार पर शीघ्र ही निष्कर्षो पर पहुंचने से बचाना भी शिक्षक का ही दायित्व होता है। शिक्षक को इस बात का पूर्ण रूप से निरीक्षण करना होता है कि छात्र सही दिशा में कार्यरत हैं और यदि उनकी दिशा गलत है तो शिक्षक को छात्रों का मार्गदर्शन करना होता है। संक्षेप में कदम-कदम पर शिक्षक का निर्देशन छात्रों के लिए बहुत आवश्यक है। अतः कहा जा सकता है कि यह सोचना कि समस्या समाधान विधि में शिक्षक का कोई महत्व एवं भूमिका नहीं है एक गलत धारणा ही है।

  • Small Group Instruction Method of Teaching in hindi
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Solve मीनिंग : Meaning of Solve in Hindi - Definition and Translation

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Definition of solve.

  • find the solution to (a problem or question) or understand the meaning of; "did you solve the problem?"; "Work out your problems with the boss"; "this unpleasant situation isnt going to work itself out"; "did you get it?"; "Did you get my meaning?"; "He could not work the math problem"
  • find the solution; " solve an equation"; " solve for x"
  • settle, as of a debt; "clear a debt"; " solve an old debt"

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Synonym/Similar Words : resolve , lick , figure out , work out , clear , work , puzzle out

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What is Problem Solving? (Steps, Techniques, Examples)

By Status.net Editorial Team on May 7, 2023 — 5 minutes to read

What Is Problem Solving?

Definition and importance.

Problem solving is the process of finding solutions to obstacles or challenges you encounter in your life or work. It is a crucial skill that allows you to tackle complex situations, adapt to changes, and overcome difficulties with ease. Mastering this ability will contribute to both your personal and professional growth, leading to more successful outcomes and better decision-making.

Problem-Solving Steps

The problem-solving process typically includes the following steps:

  • Identify the issue : Recognize the problem that needs to be solved.
  • Analyze the situation : Examine the issue in depth, gather all relevant information, and consider any limitations or constraints that may be present.
  • Generate potential solutions : Brainstorm a list of possible solutions to the issue, without immediately judging or evaluating them.
  • Evaluate options : Weigh the pros and cons of each potential solution, considering factors such as feasibility, effectiveness, and potential risks.
  • Select the best solution : Choose the option that best addresses the problem and aligns with your objectives.
  • Implement the solution : Put the selected solution into action and monitor the results to ensure it resolves the issue.
  • Review and learn : Reflect on the problem-solving process, identify any improvements or adjustments that can be made, and apply these learnings to future situations.

Defining the Problem

To start tackling a problem, first, identify and understand it. Analyzing the issue thoroughly helps to clarify its scope and nature. Ask questions to gather information and consider the problem from various angles. Some strategies to define the problem include:

  • Brainstorming with others
  • Asking the 5 Ws and 1 H (Who, What, When, Where, Why, and How)
  • Analyzing cause and effect
  • Creating a problem statement

Generating Solutions

Once the problem is clearly understood, brainstorm possible solutions. Think creatively and keep an open mind, as well as considering lessons from past experiences. Consider:

  • Creating a list of potential ideas to solve the problem
  • Grouping and categorizing similar solutions
  • Prioritizing potential solutions based on feasibility, cost, and resources required
  • Involving others to share diverse opinions and inputs

Evaluating and Selecting Solutions

Evaluate each potential solution, weighing its pros and cons. To facilitate decision-making, use techniques such as:

  • SWOT analysis (Strengths, Weaknesses, Opportunities, Threats)
  • Decision-making matrices
  • Pros and cons lists
  • Risk assessments

After evaluating, choose the most suitable solution based on effectiveness, cost, and time constraints.

Implementing and Monitoring the Solution

Implement the chosen solution and monitor its progress. Key actions include:

  • Communicating the solution to relevant parties
  • Setting timelines and milestones
  • Assigning tasks and responsibilities
  • Monitoring the solution and making adjustments as necessary
  • Evaluating the effectiveness of the solution after implementation

Utilize feedback from stakeholders and consider potential improvements. Remember that problem-solving is an ongoing process that can always be refined and enhanced.

Problem-Solving Techniques

During each step, you may find it helpful to utilize various problem-solving techniques, such as:

  • Brainstorming : A free-flowing, open-minded session where ideas are generated and listed without judgment, to encourage creativity and innovative thinking.
  • Root cause analysis : A method that explores the underlying causes of a problem to find the most effective solution rather than addressing superficial symptoms.
  • SWOT analysis : A tool used to evaluate the strengths, weaknesses, opportunities, and threats related to a problem or decision, providing a comprehensive view of the situation.
  • Mind mapping : A visual technique that uses diagrams to organize and connect ideas, helping to identify patterns, relationships, and possible solutions.

Brainstorming

When facing a problem, start by conducting a brainstorming session. Gather your team and encourage an open discussion where everyone contributes ideas, no matter how outlandish they may seem. This helps you:

  • Generate a diverse range of solutions
  • Encourage all team members to participate
  • Foster creative thinking

When brainstorming, remember to:

  • Reserve judgment until the session is over
  • Encourage wild ideas
  • Combine and improve upon ideas

Root Cause Analysis

For effective problem-solving, identifying the root cause of the issue at hand is crucial. Try these methods:

  • 5 Whys : Ask “why” five times to get to the underlying cause.
  • Fishbone Diagram : Create a diagram representing the problem and break it down into categories of potential causes.
  • Pareto Analysis : Determine the few most significant causes underlying the majority of problems.

SWOT Analysis

SWOT analysis helps you examine the Strengths, Weaknesses, Opportunities, and Threats related to your problem. To perform a SWOT analysis:

  • List your problem’s strengths, such as relevant resources or strong partnerships.
  • Identify its weaknesses, such as knowledge gaps or limited resources.
  • Explore opportunities, like trends or new technologies, that could help solve the problem.
  • Recognize potential threats, like competition or regulatory barriers.

SWOT analysis aids in understanding the internal and external factors affecting the problem, which can help guide your solution.

Mind Mapping

A mind map is a visual representation of your problem and potential solutions. It enables you to organize information in a structured and intuitive manner. To create a mind map:

  • Write the problem in the center of a blank page.
  • Draw branches from the central problem to related sub-problems or contributing factors.
  • Add more branches to represent potential solutions or further ideas.

Mind mapping allows you to visually see connections between ideas and promotes creativity in problem-solving.

Examples of Problem Solving in Various Contexts

In the business world, you might encounter problems related to finances, operations, or communication. Applying problem-solving skills in these situations could look like:

  • Identifying areas of improvement in your company’s financial performance and implementing cost-saving measures
  • Resolving internal conflicts among team members by listening and understanding different perspectives, then proposing and negotiating solutions
  • Streamlining a process for better productivity by removing redundancies, automating tasks, or re-allocating resources

In educational contexts, problem-solving can be seen in various aspects, such as:

  • Addressing a gap in students’ understanding by employing diverse teaching methods to cater to different learning styles
  • Developing a strategy for successful time management to balance academic responsibilities and extracurricular activities
  • Seeking resources and support to provide equal opportunities for learners with special needs or disabilities

Everyday life is full of challenges that require problem-solving skills. Some examples include:

  • Overcoming a personal obstacle, such as improving your fitness level, by establishing achievable goals, measuring progress, and adjusting your approach accordingly
  • Navigating a new environment or city by researching your surroundings, asking for directions, or using technology like GPS to guide you
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  • Her only problem is lack of confidence .
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  • Tiredness, loss of appetite and sleeping problems are all classic symptoms of depression .
  • Desperate measures are needed to deal with the growing drug problem.

(Translation of problem from the Cambridge English–Hindi Dictionary © Cambridge University Press)

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problem - Meaning in Hindi

  • उपपाद्य विषय

adjective 

  • मसला-संबंधी

problem Word Forms & Inflections

Definitions and meaning of problem in english, problem noun.

कठिनाई का कारण

उलझन , गुत्थी , प्रश्न , मसला , मुद्दा , समस्या

  • "one trouble after another delayed the job"
  • "what's the problem?"

समस्या, ... Subscribe

  • "our homework consisted of ten problems to solve"
  • "it is always a job to contact him"
  • "she and her husband are having problems"
  • "urban problems such as traffic congestion and smog"

Synonyms of problem

Problem solving is the process of achieving a goal by overcoming obstacles, a frequent part of most activities. Problems in need of solutions range from simple personal tasks to complex issues in business and technical fields. The former is an example of simple problem solving (SPS) addressing one issue, whereas the latter is complex problem solving (CPS) with multiple interrelated obstacles. Another classification of problem-solving tasks is into well-defined problems with specific obstacles and goals, and ill-defined problems in which the current situation is troublesome but it is not clear what kind of resolution to aim for. Similarly, one may distinguish formal or fact-based problems requiring psychometric intelligence, versus socio-emotional problems which depend on the changeable emotions of individuals or groups, such as tactful behavior, fashion, or gift choices.

बाधा, कठिनाई या चुनौती को समस्या कहते हैं या ऐसी स्थिति जिसमें व्यक्ति सुल्झाने का प्रयत्न करता है।

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What is problem meaning in hindi.

The word or phrase problem refers to a source of difficulty, or a question raised for consideration or solution, or a state of difficulty that needs to be resolved. See problem meaning in Hindi , problem definition, translation and meaning of problem in Hindi. Find problem similar words, problem synonyms. Learn and practice the pronunciation of problem. Find the answer of what is the meaning of problem in Hindi. देखें problem का हिन्दी मतलब, problem का मीनिंग, problem का हिन्दी अर्थ, problem का हिन्दी अनुवाद।

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Synonyms of Problem in Hindi क्या है, जानिए वाक्य प्रयोग के साथ?

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  • Updated on  
  • अक्टूबर 6, 2023

synonyms of problem in hindi

synonyms of problem in hindi के माध्यम से आप problem का सिनोनिम्स के बारे में जान पाएंगे, problem का सिनोनिम्स “Issue, Difficulty और Complication” आदि होते हैं। इस पोस्ट में आपको problem का सिनोनिम्स शब्द के बारे में पता चलेगा, जो आपके ज्ञान को बढ़ाएंगे। जो कि निम्नलिखित हैं-

  • Complication
  • Predicament
  • Concern etc.

यह भी पढ़ें : Synonyms of Good in Hindi क्या है, जानिए वाक्य प्रयोग के साथ?

synonyms of problem in hindi का वाक्यों में प्रयोग

Problem सिनोनिम्स का वाक्यों में प्रयोग निम्नलिखित है-

  • The environmental issue of pollution needs urgent attention.
  • Solving this math problem proved to be quite a difficulty for the students.
  • She faced a dilemma when she had to choose between two equally attractive job offers.
  • Climbing that steep mountain is a real challenge.
  • Lack of funding has become a significant obstacle in completing the project.
  • The legal complication delayed the settlement of the estate.
  • Being stranded without a phone in an unfamiliar city was a real predicament.
  • The mystery of the missing keys was a conundrum that puzzled everyone.
  • He found himself in a quandary trying to decide which car to purchase.
  • Passing the final exam was the last hurdle before graduation.
  • Language can sometimes be a barrier to effective communication.
  • The unexpected setback in the construction schedule will delay the project.
  • His speech impediment made it challenging for him to express himself clearly.
  • We hit a snag in our travel plans when our flight was canceled.
  • The wedding went off without a hitch, and everyone had a great time.
  • Dealing with all the paperwork for the visa was a real headache.
  • Solving this riddle is like working on a complex puzzle.
  • The economic crisis of 2008 had far-reaching consequences.
  • The distress caused by the natural disaster was immense.
  • The safety concern led to the implementation of stricter regulations.

यह भी पढ़ें : Synonyms of Happy in Hindi क्या है, जानिए वाक्य प्रयोग के साथ?

Synonyms किसे कहते हैं?

Synonyms अंग्रेजी भाषा का शब्द है, जो कि इंग्लिश ग्रामर का एक टॉपिक होता है। Synonyms को हिन्दी में समानार्थी या पर्यायवाची शब्द कहा जाता है, यह ऐसे शब्द या वाक्यांश होते हैं, जिसका अर्थ दूसरे शब्द या वाक्यांश के समान या लगभग समान होता है।

यह भी पढ़ें : Great Synonyms in Hindi क्या है, जानिए वाक्य प्रयोग के साथ?

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मयंक विश्नोई

जन्मभूमि: देवभूमि उत्तराखंड। पहचान: भारतीय लेखक । प्रकाश परिवर्तन का, संस्कार समर्पण का। -✍🏻मयंक विश्नोई

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  21. PROBLEM

    PROBLEM translate: समस्या. Learn more in the Cambridge English-Hindi Dictionary.

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