जलवायु परिवर्तन पर निबंध (Essay on Climate Change in Hindi)

जलवायु परिवर्तन पर निबंध: धरती पर जीवन के अनुकूल जलवायु के कारण ही यहां जीवन संभव है, लेकिन हाल के वर्षों में इसमें लगातार हो रहे परिवर्तन ने वैश्विक स्तर पर चिंता बढ़ाई है। जीवाश्म ईंधन जैसे, कोयला, तेल, प्राकृतिक गैस आदि को जलाने के कारण पृथ्वी के वातावरण में तेजी से जलवायु परिवर्तन हो रहा है। औसत मौसम में लगातार हो रहे परिवर्तन को जलवायु परिवर्तन या क्लाइमेट चेंज (Climate change) कहा जाता है। दशकों, सदियों या उससे अधिक समय में जलवायु में बड़े स्तर पर हो रहे परिवर्तन से जीवन पर प्रभाव पड़ता है। इन दिनों उद्योग और शहरीकरण से इस परिवर्तन में तेजी देखी गई है।

जलवायु परिवर्तन पर लेख (Essay on climate change in hindi) - जलवायु क्या है?

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जलवायु परिवर्तन पर निबंध (Essay on Climate Change in Hindi)

सामान्यतः जलवायु का मतलब किसी क्षेत्र में लंबे समय तक औसत मौसम से होता है। अतः जब किसी क्षेत्र विशेष के औसत मौसम में परिवर्तन आता है तो उसे जलवायु परिवर्तन (Climate Change) कहते हैं। जलवायु एक ऐसा पहलू है जो दुनिया के हर इंसान के जीवन से जुड़ा हुआ है। जलवायु की दशा हमारे जीवन को बहुत प्रभावित करती है। मानवीय तथा कुछ प्राकृतिक गतिविधियों के कारण जलवायु की दशा बदल रही है। हाल के वर्षों और दशकों में गर्मी के कई रिकॉर्ड टूट गए हैं: यूएन जलवायु रिपोर्ट 2019 इस बात की पुष्टि करती है कि 2010-2019 सबसे गर्म दशक था। वर्ष 2019 में वातावरण में कार्बन डाईऑक्साइड (CO2) तथा अन्य ग्रीनहाउस गैसें नए रिकॉर्ड स्तर तक पहुंच गई थी।

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इन सब वजहों से जलवायु में परिवर्तन आ रहा है, जिसे जलवायु परिवर्तन की संज्ञा दी जा रही है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि जलवायु में हो रहे नकारात्मक परिवर्तन (Negative changes in climate) पृथ्वी पर रहने वाले जीवों के लिए बहुत ही खतरनाक सिद्ध होंगे। हालांकि जलवायु परिवर्तन से जुड़े खतरों के प्रति सरकारें जागरूक हो रही हैं और लोगों को भी जलवायु परिवर्तन से जुड़े खतरों के प्रति आगाह करने की जरूरत है। हमारे देश भारत के लिए राहत की बात है कि वर्ष 2024 में जलवायु प्रदर्शन सूचकांक में सातवें स्थान पर रहा जो बीते वर्ष 2023 में 8वें नंबर पर था। हालांकि इसमें अभी काफी सुधार की जरूरत है।

जलवायु परिवर्तन पर निबंध (jalvayu parivartan par nibandh) से इस विषय के विभिन्न पहलुओं के बारे में जानकारी मिलेगी। जलवायु परिवर्तन वैश्विक स्तर पर एक बेहद गंभीर मुद्दा है जिससे अवगत करवाने के लिए विद्यालयों में छात्रों को भी जलवायु परिवर्तन पर निबंध (Essay on Climate Change in hindi) लिखने का कार्य दे दिया जाता है या फिर कभी-कभी परीक्षा में अच्छे अंकों के लिए जलवायु परिवर्तन पर निबंध (climate change par nibandh) लिखने से संबंधित प्रश्न पूछ लिए जाते हैं।

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जलवायु परिवर्तन पर लेख (jalvayu parivartan par lekh) के प्रारंभ में जलवायु क्या है, पहले इस बात को समझने की जरूरत है। एक बड़े भू-क्षेत्र में लंबे समय तक रहने वाले मौसम की औसत स्थिति को जलवायु की संज्ञा दी जाती है। किसी भू-भाग की जलवायु पर उसकी भौगोलिक स्थिति का सर्वाधिक असर पड़ता है। यूरोपीय देशों में जहां गर्मी की ऋतु छोटी होती है और कड़ाके की ठंड पड़ती है, जबकि भारत में अधिक गर्मी वाले मौसम की प्रधानता रहती है। सर्दियों के 2-3 महीनों को छोड़ दिया जाए, तो शेष समय जलवायु गर्म ही रहता है। भारत के समुद्र तटीय क्षेत्रों में, तो सर्दियों की ऋतु का तापमान औसत स्तर का रहता है। इस तरह किसी क्षेत्र की जलवायु उसकी स्थिति पर निर्भर करती है।

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किसी क्षेत्र विशेष की परंपरागत जलवायु में समय के साथ होने वाले बदलाव को जलवायु परिवर्तन कहा जाता है। जलवायु में आने वाले परिवर्तन के प्रभाव को एक सीमित क्षेत्र में अनुभव किया जा सकता है तथा पूरी दुनिया में भी इसके प्रभाव दिखने लगे हैं। वर्तमान में जलवायु परिवर्तन की स्थिति गंभीर दशा में पहुँच रही है और पूरे विश्व पर इसका असर देखने को मिल रहा है। संयुक्त राष्ट्र की जलवायु रिपोर्ट (climate report) में बताया गया है कि जलवायु परिवर्तन का पर्यावरण के सभी पहलुओं के साथ-साथ वैश्विक आबादी के स्वास्थ्य और कल्याण पर व्यापक प्रभाव पड़ रहा है। विश्व मौसम विज्ञान संगठन की अगुवाई में तैयार रिपोर्ट में जलवायु परिवर्तन के भौतिक संकेतों - जैसे भूमि और समुद्र के तापमान में वृद्धि, समुद्र के जल स्तर में वृद्धि और बर्फ के पिघलने के अलावा सामाजिक-आर्थिक विकास, मानव स्वास्थ्य, प्रवास और विस्थापन, खाद्य सुरक्षा और भूमि तथा समुद्र के पारिस्थितिक तंत्र पर प्रभाव का दस्तावेजीकरण किया गया है। जलवायु परिवर्तन को विस्तार से समझने के लिए क्लाइमेटचेंज नॉलेज पोर्टल https://climateknowledgeportal.worldbank.org/overview पर विजिट कर इसे विस्तार से समझ सकते हैं। यह पोर्टल दुनिया भर में सदियों से हो रहे जलवायु परिवर्न को विस्तार से बताता है। जलवायु परिवर्तन में सकारात्मक सुधार के लिए विश्व पर्यावरण दिवस पर संस्थानों, सरकारों को जागरूक करते हुए इस दिशा में व्यापक पैमाने पर काम करने को प्रोत्साहिक किया जाता है।

बढ़ते पर्यावरण प्रदूषण के कारण भी पृथ्वी के तापमान में लगातर बढ़ोतरी हो रही है। पर्यावरण प्रदूषण के कारण बढ़ते तापमान ने जलवायु परिवर्तन की स्थिति को और गंभीर बनाने का कार्य किया है। जलवायु रिपोर्ट के अनुसार 1980 के दशक के बाद आगामी प्रत्येक दशक, 1850 से किसी भी दशक की तुलना में अधिक गर्म रहा है। विश्व मौसम विज्ञान संगठन के महासचिव पेटेरी टालस के इस कथन से भी यह बात समझी जा सकती है - अब तक का सबसे गर्म साल 2016 था, लेकिन जल्द ही इससे अधिक गर्म वर्ष देखने को मिल सकते हैं। यह देखते हुए कि ग्रीनहाउस गैसों के स्तर में वृद्धि जारी है, तापमान में वृद्धि (global warming) जारी रहेगी। आगामी दशकों के लिए लगाए जाने एक हालिया पूर्वानुमान से संकेत मिलता है कि आने वाले पांच वर्षों में एक नया वार्षिक वैश्विक तापमान रिकॉर्ड मिलने की आशंका है।

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जिसके कारण के कारणों को दो श्रेणियों में बाँटा जा सकता है- प्राकृतिक और मानवीय। जलवायु परिवर्तन के प्राकृतिक कारणों में ज्वालामुखी, महासागरीय धाराओं, महाद्वीपों के अलगाव आदि प्रमुख हैं।

ज्वालामुखी- ज्वालामुखी की सक्रियता बड़ी मात्रा में सल्फर डाइऑक्साइड, जलवाष्प, धूल कण तथा राख को वायुमण्डल में फैलाने के लिए जिम्मेदार है। हालांकि, ज्वालामुखी की सक्रियता कुछ दिनों की ही हो सकती हैं, लेकिन भारी मात्रा में निकलने वाली गैसें तथा राख लंबे समय तक जलवायु के पैटर्न को प्रभावित करती है।

महासागरीय धाराएं- महासागरों की जलवायु परिवर्तन की प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका है। वायुमंडल या भू-सतह की तुलना में दुगुना तापमान इनके द्वारा अवशोषित किया जाता है। महासागरीय प्रवाह चारों ओर तापमान के स्थानांतरण के लिए जिम्मेदार है। इनकी वजह से हवाओं की दिशा परिवर्तित कर तापमान को प्रभावित किया जाता है। तापमान को अवशोषित करने वाली ग्रीनहाउस गैस का एक अहम हिस्सा समुद्रों जलवाष्प होती है जो कि वायुमंडल में तापमान को अवशोषित करने का काम करती है।

मिथेन गैस का भंडार- आर्कटिक महासागर की बर्फ के नीचे अतल गहराइयों में मेथेन हाइड्रेट के रूप में ग्रीनहाउस गैस मेथेन का विशाल भंडार है जो विशिष्ट ताप और दाब में हाइड्राइट रूप में रहता है। ताप और दाब में परिवर्तन होने पर यह मिथेन मुक्त होती है और वायुमंडल में घुल जाती है। अपने गैसीय रूप में, मिथेन सबसे शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैसों में से एक है, जो कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में पृथ्वी को बहुत अधिक गर्म करती है।

ग्रीनहाउस प्रभाव गैसें- वायुमंडल में विद्यमान कार्बन डाईऑक्साइड, मेथेन, जलवाष्प आदि के द्वारा सूर्य के प्रकाश की ऊष्मा के एक भाग को अवशोषित कर लिया जाता है, इस घटना को ग्रीनहाउस प्रभाव कहा जाता है।

जीवाश्म ईंधन का प्रयोग- जीवाश्म ईँधन के प्रयोग के कारण ग्रीनहाउस गैसों खासकर कार्बन डाईऑक्साइड का स्तर वायुमंडल में बढ़ता जा रहा है। लगभग 33% कार्बन डाईऑक्साइड उत्सर्जन के लिए जीवाश्म ईँधनों के प्रयोग को माना जाता है।

जलवायु परिवर्तन के कारण पूरी दुनिया पर आपदाओं के बादल मंडरा रहे हैं। जलवायु परिवर्तन के कुछ परिणाम निम्नलिखित हैं-

जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम में बहुत ही जल्दी-जल्दी और घातक बदलाव होने लगे हैं।

साल 2019 दूसरा सबसे गर्म साल रिकॉर्ड किया गया।

अब तक का सबसे गर्म दशक 2010- 2019 रिकॉर्ड किया गया।

वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य ग्रीनहाउस गैसों का स्तर 2019 में नए रिकॉर्ड तक पहुंच गया।

बाढ़, सूखा, झुलसा देने वाली लू, जंगल की आग और क्षेत्रीय चक्रवातों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है।

जलवायु परिवर्तन के कारण दुनिया भर में समुद्र का जलस्तर बढ़ रहा है। ग्रीनलैंड और अंटार्कटिका में जमी बर्फ के पिघलने की दर बढ़ती जा रही है जिससे समुद्र का जलस्तर बढ़ रहा है।

मालदीव की समुद्र तल से ऊंचाई कम होने के कारण यह द्वीपीय राष्ट्र विशेष खतरे में है। इस देश का उच्चतम स्थान समुद्र तल से लगभग 7.5 फीट ऊँचा है जिससे मालदीव के समुद्र में डूबने का खतरे बढ़ता जा रहा है।

दक्षिण अमेरिका, यूरोप, अफ्रीका, एशिया और ओशिनिया सहित अधिकांश भू-क्षेत्र हालिया औसत से अधिक गर्म रहे। अमेरिकी राज्य अलास्का भी तुलानात्मक रूप से गर्म था वहीं इसके विपरीत उत्तरी अमेरिका का एक बड़ा क्षेत्र हाल के औसत से अधिक ठंडा रहा।

वर्ष 2019 जुलाई के अंत में आए लू के थपेड़ों से मध्य और पश्चिमी यूरोप का अधिकांश भाग प्रभावित हुआ। इस दौरान नीदरलैंड में 2964 मौतें लू से जुड़ी पाई गईं जो कि गर्मी के सप्ताह में औसतन होने वाली मौतों की तुलना में लगभग 400 अधिक थीं।

लंबे समय तक तापमान अधिक रहने के कारण मौसम के स्वभाव में बदलाव आ रहा है जिसके चलते प्रकृति में मौजूद सामान्य संतुलन की स्थिति बिगड़ती जा रही है। इससे मनुष्यों के साथ ही पृथ्वी पर जीवन के लिए खतरा बढ़ता जा रहा है।

जलवायु परिवर्तन तथा ग्लोबल वार्मिंग के चलते उपजे खतरों को देखते हुए ग्लोबल वार्मिंग कारण और निवारण पर साल 2015 में ऐतिहासिक पेरिस समझौते को अपनाया गया जिसका लक्ष्य इस सदी में वैश्विक तापमान वृद्धि को पूर्व-औद्योगिक काल के तापमान से 2 डिग्री सेल्सियस अधिक होने के स्तर से नीचे रखना है। समझौते का उद्देश्य उपयुक्त वित्तीय प्रवाह, नए प्रौद्योगिकी ढांचे और उन्नत क्षमता निर्माण ढांचे के माध्यम से जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने के लिए देशों की क्षमता में वृद्धि करना भी है। जलवायु परिवर्तन के खतरे के लिए दुनिया भर में उठाए जा रहे कदमों को मजबूत करने और तापमान वृद्धि को 2 डिग्री सेल्सियस से घटाकर 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के प्रयासों की रूपरेखा के साथ 4 नवंबर, 2016 को जलवाय परिवर्तन पर पेरिस समझौते को क्रियान्वित किया गया।

जीवन और आजीविका बचाने के लिए महामारी और जलवायु आपातकाल दोनों को संबोधित करने के लिए तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता है। हमारे ग्रह पृथ्वी का तापमान लगातार बढ़ रहा है। सरकारों को इसमें नागरिकों की सहभागिता सुनिश्चित करने के लिए उपयुक्त व मजबूत कदम उठाने होंगे। जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने के लिए सरकारों को सतत विकास के उपायों में निवेश करने, ग्रीन जॉब, हरित अर्थव्यवस्था के निर्माण की ओर आगे बढ़ने की जरूरत है। पृथ्वी पर जीवन को बचाए रखने, पृथ्वी को स्वस्थ रखने और ग्लोबल वार्मिंग के खतरों से निपटने के लिए विश्व के सभी देशों को एकजुट होकर व पूरी ईमानदारी के साथ काम करना होगा। यह बात ज्ञात हो कि कोई देश अकेले ही ग्लोबल वार्मिंग के खतरे से निपटने में सक्षम नहीं है। इस खतरे को सभी मिलकर ही दूर कर सकते हैं।

Frequently Asked Questions (FAQs)

एक बड़े भू-क्षेत्र में लंबे समय तक रहने वाले मौसम की औसत स्थिति को जलवायु की संज्ञा दी जाती है। किसी भू-भाग की जलवायु पर उसकी भौगोलिक स्थिति का सर्वाधिक असर पड़ता है। 

किसी क्षेत्र विशेष की परंपरागत जलवायु में समय के साथ होने वाले बदलाव को जलवायु परिवर्तन कहा जाता है। जलवायु में आने वाले परिवर्तन के प्रभाव को एक सीमित क्षेत्र में अनुभव किया जा सकता है और पूरी दुनिया में भी। वर्तमान में जलवायु परिवर्तन की स्थिति गंभीर दिशा में पहुँच रही है और पूरे विश्व में इसका असर देखने को मिल रहा है।

ग्लोबल वार्मिंग के कारण पृथ्वी का तापमान लगातार बढ़ रहा है। लंबे समय तक तापमान अधिक रहने के कारण मौसम के स्वभाव में बदलाव आ रहा है जिसके चलते प्रकृति में मौजूद सामान्य संतुलन की स्थिति बिगड़ रही है। इससे मनुष्यों के साथ ही पृथ्वी पर जीवन के लिए खतरा बढ़ता जा रहा है। जलवायु परिवर्तन के अन्य परिणामों के बारे में जानकारी लेख में दी गई है।

जलवायु परिवर्तन का संबंध तापमान और मौसम के पैटर्न में दीर्घकालिक बदलावों से है। ऐसे बदलाव प्राकृतिक हो सकते हैं, जो सूर्य की गतिविधि में बदलाव या बड़े ज्वालामुखी विस्फोटों के कारण हो सकते हैं।

ग्लोबल वार्मिंग के लिए मनुष्य जिम्मेदार हैं। जलवायु वैज्ञानिकों ने दिखाया है कि पिछले 200 वर्षों में लगभग सभी वैश्विक ताप बढ़ने के लिए मनुष्य ही जिम्मेदार हैं। कई तरह की मानवीय गतिविधियों के कारण ग्रीनहाउस गैसें उत्पन्न हो रही हैं, जो कम से कम पिछले दो हज़ार वर्षों में किसी भी समय की तुलना में दुनिया को तेज़ी से गर्म कर रही हैं।

पृथ्वी की सतह का औसत तापमान अब 1800 के दशक के अंत (औद्योगिक क्रांति से पहले) की तुलना में लगभग 1.2°C अधिक है और पिछले 1 लाख वर्षों में किसी भी समय की तुलना में अधिक गर्म है। पिछला दशक (2011-2020) रिकॉर्ड पर सबसे गर्म था और पिछले चार दशकों में से प्रत्येक 1850 के बाद से किसी भी पिछले दशक की तुलना में अधिक गर्म रहा है।

कई लोग सोचते हैं कि जलवायु परिवर्तन का मुख्य अर्थ गर्म तापमान है। लेकिन तापमान में वृद्धि केवल कहानी की शुरुआत है। क्योंकि पृथ्वी एक प्रणाली है, जहाँ सब कुछ जुड़ा हुआ है, एक क्षेत्र में परिवर्तन सभी अन्य क्षेत्रों में परिवर्तन को प्रभावित कर सकता है।

जलवायु परिवर्तन के परिणामों में अब अन्य बातों के अलावा तीव्र सूखा, जल की कमी, भीषण आग, समुद्र का बढ़ता स्तर, बाढ़, ध्रुवीय बर्फ का पिघलना, विनाशकारी तूफान और जैव विविधता में गिरावट शामिल हैं।

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Essay on Climate Change: जलवायु परिवर्तन पर छात्र इस तरह लिख सकते हैं निबंध

climate change essay in hindi drishti ias

  • Updated on  
  • जून 18, 2024

Essay on Climate Change in Hindi

Essay on Climate Change in Hindi :  जलवायु परिवर्तन दुनिया की सबसे बड़ी समस्यओं में से एक बन गया है। इससे होने वाले प्रभावों को अब साफ देखा जा सकता है। जलवायु परिवर्तन से कई देशों के डूबने की संभावना है, तो कई जगहों पर पीने के पानी की कमी हो गई है। इस समस्या से बचने के लिए  यूनाइटेड नेशंस एनवायरनमेंट प्रोग्राम (UNEP) या कहे संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम और विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) द्वारा 1988 में स्थापित किया गया था। संयुक्त राष्ट्र का एक निकाय है। जिसमें 195 मेंबर देश हैं।  जलवायु परिवर्तन पर नेशनल एक्शन प्लान या ये कहे की राष्ट्रीय कार्ययोजना का शुभारंभ वर्ष 2008 में किया गया था। कई बार छात्रों को स्कूल में इस विषय पर निबंध लिखने को कहा जाता है। तो चलिए इस Essay on Climate Change in Hindi ब्लॉग के जरिये जानते है इसके बारे में कुछ अहम बातें।

This Blog Includes:

जलवायु परिवर्तन पर 100 शब्दों में निबंध, जलवायु परिवर्तन पर 200 शब्दों में निबंध, जलवायु परिवर्तन के कारण, जलवायु परिवर्तन के नतीजे , जलवायु परिवर्तन पर 500 शब्दों में निबंध, कब हुई जलवायु परिवर्तन की शुरुआत , जलवायु परिवर्तन के कारक, जलवायु परिवर्तन पर नेशनल एक्शन प्लान .

जलवायु परिवर्तन हम सभी के जीवन को परवर्तित करता है। जलवायु परिवर्तन के कारण पृथ्वी पर जलवायु परिस्थितियाँ बदलती रहती हैं। इसके लिए कई आंतरिक और बाहरी चीजे जिम्मेदार हैं, जैसे कि सौर विकिरण, पृथ्वी की कक्षा में बदलाव, ज्वालामुखी विस्फोट, प्लेट टेक्टोनिक्स आदि।

जलवायु में ज्यादा परिवर्तन होने से मौसम खराब हो सकता है, पानी की कमी हो सकती है, कृषि उत्पादन कम हो सकता है और इससे लोगों की आजीविका चलाने की क्षमता प्रभावित हो सकती है। स्वच्छ हवा में सांस लेने और शुद्ध पानी पीने के लिए, आपको हम सभी को  गतिविधि को सीमित करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। 

समय के साथ पृथ्वी की जलवायु में काफी बदलाव आता रहता है। जिसमें से कुछ बदलाव प्राकृतिक से होता है, जैसे ज्वालामुखी विस्फोट, बाढ़, जंगल की आग आदि के कारण और कई बदलाव ह्यूमन एक्टिविटीज के कारण हुए हैं। जीवाश्म ईंधन का जलना, पशुओं को पालना और कई ह्यूमन एक्टिविटीज ग्रीनहाउस गैसों की एक महत्वपूर्ण मात्रा का उत्पादन भी करती हैं। इसके परिणामस्वरूप ग्लोबल वार्मिंग में अधिकता होती है जोकि जलवायु परिवर्तन के प्रमुख कारण हैं।

  • वनों की कटाई
  • जीवाश्म ईंधन का अत्यधिक उपयोग
  • जल और मृदा प्रदूषण
  • प्लास्टिक और अन्य गैर-बायोडिग्रेडेबल अपशिष्ट
  • वन्यजीव और प्रकृति विलुप्ति

अगर जलवायु में परिवर्तन इसी तरह से होता रहा, तो एक दिन पृथ्वी पर जीवन इससे बहुत प्रभावित होगा। जैसे देखा जा रहा है की पृथ्वी का तापमान बढ़ता जा रहा है, मानसून में बदलाव देखने को मिलेगा, समुद्र का लेवल बढ़ेगा, जिससे कई बार तूफान, ज्वालामुखी विस्फोट प्राकृतिक आपदाएँ अधिक होंगी। पृथ्वी पर जैविक और पारिस्थितिक संतुलन बिगड़ जाएगा। हम सभी को जलवायु परिवर्तन के मुद्दे को कम करने के लिए प्राकृतिक पर्यावरण रक्षा और संरक्षण के लिए उपायों के साथ-साथ सामाजिक जागरूकता लाने की आवश्यकता है।

देशों में औद्योगिक क्रांति के साथ ही जलवायु परिवर्तन होने वाले संकेतों को देखा जा सकता हैं। जिस तेजी के साथ लोग बड़े पैमाने पर चीजों का उत्पादन करते थे, उसके लिए काफी मात्रा में कच्चे माल की आवश्यकता होती थी। चूंकि कच्चे माल को अब तैयार उत्पादों में बदला जा रहा है, इसलिए लाभ की बहुत बड़ी संभावना है, इसलिए ये व्यवसाय मॉडल दुनिया भर में तेजी से फैल गए हैं। कंपनी के उत्सर्जन और अपशिष्ट निपटान के परिणामस्वरूप पर्यावरण में खतरनाक पदार्थ और रसायन जमा हो जाते हैं।

जलवायु परिवर्तन वैसे तो एक प्राकृतिक घटना है, लेकिन मानव द्वारा किए निर्माण और प्रदूषण के कारण जलवायु परिवर्तन में उसकी स्थती पहले नंबर पर आ गई है। जलवायु परिवर्तन में बढ़ती जनसंख्या भी एक बड़ा कारक है। जनसंख्या की वृद्धि के परिणामस्वरूप प्राकृतिक संसाधनों का अधिक से अधिक दोहन हो रहा है, जिससे सीमित मात्रा में उपलब्ध संसाधनों पर जरूरत से ज्यादा बोझ पड़ रहा है। 

कृषि :  फसल उगाने और पशुधन पालने से भी कई तरह की ग्रीनहाउस गैसें निकलती है जो वायुमंडल में प्रभावित करता है । उदाहरण के लिए, जानवर मीथेन बनाते हैं, जो एक ग्रीनहाउस गैस है जो कार्बन डाइऑक्साइड से 30 गुना अधिक शक्तिशाली है। खाद और उर्वरकों में इस्तेमाल होने वाला नाइट्रस ऑक्साइड कार्बन डाइऑक्साइड से लगभग 300 गुना अधिक शक्तिशाली होता है।

सौर विकिरण :  पृथ्वी की जलवायु को प्रभावित करने में सूर्य का भी बड़ा योगदान है। सूर्य से निकलने वाली ऊर्जा पृथ्वी को भी प्रभावित करती है। यह ऊर्जा हवाओं, समुद्री धाराओं आदि द्वारा दुनिया भर में फैलती है  जो कि जलवायु को प्रभावित करती है।

वनों की कटाई :  वायुमंडल की कार्बन डाइऑक्साइड पेड़ों द्वारा संग्रहीत की जाती है। लगातार तेजी से कटते वनों के कराण कार्बन डाइऑक्साइड अधिक तेजी से बनता है, क्योंकि इसे अवशोषित करने के लिए पेड़ नहीं होते हैं। इसके अतिरिक्त, जब हम उन्हें जलाते हैं तो पेड़ द्वारा संग्रहीत कार्बन को भी वातावरण में और फैलता है जो जलवायु को प्रभावित करता है। 

जलवायु परिवर्तन को कैसे रोकें

हम सभी को जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए कठोर से कठोर कदम उठाने की आवश्यकता है, क्योंकि यह हमारे ग्रह पर संसाधनों और जीवन को प्रभावित कर रहा है। हम नीचे दी गई कुछ टिप्स से जलवायु परिवर्तन को रोक सकते हैं। 

  • देश में लोगों में जलवायु परिवर्तन के बारे में जागरूकता को बढ़ाना।
  • वनों की कटाई और पेड़ों की कटाई को रोकना।  
  • आसपास का वातावरण को शुद्ध और साफ-सुथरा रखना।
  • जितना हो सके रासायनिक उर्वरकों का उपयोग करने से बचें।
  • जगह-जगह हो रही पानी और कई प्राकृतिक संसाधनों की बर्बादी पर रोक लगाना।
  • वृक्षारोपण करना और जानवरों की रक्षा करें।
  • प्लास्टिक चीजों का कम से कम उपयोग करना। 
  • खाद्यपदार्थों को उपयोग में लाना।  

इस राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन कार्ययोजना के लिए 8 मिशन शामिल है-

  • राष्ट्रीय सौर मिशन
  • राष्ट्रीय जल मिशन
  • हरित भारत हेतु राष्ट्रीय मिशन
  • सुस्थिर कृषि हेतु राष्ट्रीय मिशन
  • सुस्थिर निवास पर राष्ट्रीय मिशन
  • विकसित ऊर्जा दक्षता के लिये राष्ट्रीय मिशन
  • सुस्थिर हिमालयी पारिस्थितिक तंत्र हेतु राष्ट्रीय मिशन
  • जलवायु परिवर्तन हेतु रणनीतिक ज्ञान पर राष्ट्रीय मिशन

शहरों के बसने के बाद और औद्योगिकीकरण की वजह से लोगों के जीवन को जीने के तौर-तरीकों में बहुत अधिक परिवर्तन देखने को मिलता है। विश्व भर में सड़कों पर वाहनों की संख्या बहुत अधिक होती जा रही है। जीवन शैली में परिवर्तन ने खतरनाक गैसों के उत्सर्जन में काफी अधिक योगदान दिया है।

10वाँ स्थान।

अक्षांश, ऊंचाई, राहत, धाराएं, हवाएं और समुद्र से दूरी।

दो भागों में।

 अक्षांश और पानी से दूरी हैं। 

आशा है कि इस ब्लाॅग में आपको Essay on Climate Change in Hindi के बारे में पूरी जानकारी मिल गई होगी। इसी तरह के अन्य निबंध से संबंधित ब्लॉग्स पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।

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अंतिम समाधानः जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से पृथ्वी को निजात दिलाने की कोशिश का सवाल

जलवायु परिवर्तन के सबसे बुरे प्रभावों से पृथ्वी को केवल समन्वित प्रयास ही बचा सकता है.

Published - March 23, 2023 11:26 am IST

जलवायु परिवर्तन पर अंतरसरकारी पैनल (आइपीसीसी) ने अपनी अंतिम ‘सिंथेसिस’ रिपोर्ट सार्वजनिक कर दी है। यह उसके छठवें आकलन चक्र का हिस्सा है। आइपीसीसी ने मौसम और जलवायु में परिवर्तन के साथ ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के संबंध पर अपने वैज्ञानिक अनुसंधान को 1990 के बाद प्रचारित करना शुरू किया था। तब से इस बात के सबूत लगातार मजबूत होते गए हैं कि इंसानी गतिविधियां दुनिया को अपरिवर्तनीय विनाश के कगार पर ले जा रही हैं। आइपीसीसी के विभिन्न मूल्यांकन चक्रों ने इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। स्विट्जरलैंड के इंटरलेकन में सप्ताह भर के विचार-विमर्श के बाद सार्वजनिक की गई इस रिपोर्ट में नई जानकारी के रूप में बहुत कुछ खास नहीं है क्‍योंकि यह 2018 के बाद की उन रिपोर्टों का एक संश्लेषण है जिन्होंने न केवल ग्‍लोबल वार्मिंग में मानवीय योगदान की पुष्टि की है बल्कि 2015 के पेरिस समझौते को पूरा नहीं करने के निहितार्थों का भी कई कोणों से विश्लेषण किया है, जिसमें तापमान वृद्धि को प्राक्-औद्योगिक काल के मुकाबले अधिकतम 1.5 डिग्री सेल्सियस ऊपर तक थामने के प्रयासों की बात कही गई थी।

इस रिपोर्ट में विकसित देशों से विकासशील देशों में वित्त प्रवाह की जरूरत पर जोर दिया गया है और उन देशों को मुआवजा देने की जरूरत बताई गई है जो जलवायु परिवर्तन के कारण सबसे अधिक नुकसान उठाने वाले हैं, ताकि उन्हें अपनी नीतियों में लचीलापन लाने में मदद मिल सके। नीति निर्माताओं के लिए यह नवीनतम संश्लेषण रिपोर्ट संक्षेप में कहती है कि पृथ्‍वी की तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने का सबसे अच्छा तरीका यह सुनिश्चित करना है कि ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को 2030 तक 2019 के स्तर से 48 फीसदी और 2050 तक 99 फीसदी तक कम किया जाए। फिलहाल दुनिया के देश सामूहिक रूप से जिन घोषित नीतियों पर चल रहे हैं वे अगर पूरी तरह से लागू की जाती हैं तो 2100 तक तापमान 2.5 डिग्री सेल्सियस से लेकर 3.2 डिग्री सेल्सियस तक ऊपर चला जाएगा। ताजा रिपोर्ट नवंबर में दुबई में होने वाली पक्षकारों की बैठक (कॉप) के अगले सत्र में अहम चर्चा का विषय हो सकती है, जहां पेरिस समझौते में निर्धारित प्रतिबद्धताओं को हासिल करने के लिए अब तक देशों द्वारा किए गए कामों का लेखाजोखा चर्चा के केंद्र में होने की संभावना है। आइपीसीसी की रिपोर्ट को आम तौर पर कयामत के संकेत के रूप में देखा गया है, लेकिन वर्तमान रिपोर्ट सौर और पवन ऊर्जा

की गिरती लागत और इलेक्ट्रिक वाहनों के विस्तार के बारे में भी बात करती है। हालांकि, पेरिस समझौते के लक्ष्यों को उत्सर्जन घटाए या कार्बन डाइऑक्साइड हटाए बिना पूरा नहीं किया जा सकता है। इसमें अप्रमाणित प्रौद्योगिकियों की जरूरत पड़ेगी जो अब भी जरूरत से ज्‍यादा महंगी हैं। भारत ने इस रिपोर्ट का ‘स्वागत’ किया है और कहा है कि इसके कई खंड उसकी घोषित स्थिति को रेखांकित करते हैं: कि जलवायु संकट असमान योगदान के कारण है शमन व अनुकूलन में ही जलवायु न्याय निहित है। भारत को इस संदेश को भी नजरअंदाज नहीं करना चाहिए कि सिर्फ एक ठोस और समन्वित प्रयास ही इस धरती को आसन्‍न तबाही से बचने का मौका दे पाएगा। इसके लिए देशों को अपनी सुविधाजनक मुद्रा को त्‍यागना होगा।

This editorial has been translated from English, which can be read here.

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