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सामाजिक न्याय

Make Your Note

लैंगिक समानता और महिला सशक्तीकरण अंतराल

  • 21 Jul 2023
  • 12 min read
  • सामान्य अध्ययन-II
  • महिलाओं से संबंधित मुद्दे
  • समावेशी विकास

, महिला सशक्तीकरण सूचकांक (WEI), वैश्विक लैंगिक समानता सूचकांक (GGPI) 

महिला सशक्तीकरण तथा लैंगिक समानता प्राप्त करने में चुनौतियाँ और अंतराल, महिलाओं से संबंधित मुद्दे  

चर्चा में क्यों?  

संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में विश्व भर में महिला सशक्तीकरण और लैंगिक समानता की स्थिति पर प्रकाश डाला गया है।

  • यू.एन. वीमेन और संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम द्वारा संयुक्त रूप से किये गए व्यापक विश्लेषण में महिला सशक्तीकरण सूचकांक (Women’s Empowerment Index- WEI) और वैश्विक लैंगिक समानता सूचकांक (Global Gender Parity Index- GGPI) के आधार पर 114 देशों का मूल्यांकन किया गया है।
  • मौजूदा निष्कर्ष कमियों को दूर करने और अधिक न्यायसंगत एवं समावेशी विश्व की दिशा में प्रगति को बढ़ावा देने हेतु व्यापक नीति की तत्काल आवश्यकता पर बल देते हैं।

रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष:

  • विश्व स्तर पर केवल 1% महिलाएँ उच्च महिला सशक्तीकरण और लैंगिक समानता वाले देशों में रहती हैं।
  • नेतृत्व भूमिका और निर्णय-प्रक्रिया मुख्य रूप से पुरुष-प्रधान बनी हुई है जिससे महिलाओं के लिये अवसर सीमित हो गए हैं।
  • WEI के अनुसार, महिलाएँ औसतन अपनी पूरी क्षमता का केवल 60% ही प्राप्त कर पाती हैं।
  • GGPI के अनुसार, मानव विकास के प्रमुख आयामों में महिलाएँ पुरुषों की तुलना में 28% पीछे हैं।
  • विश्लेषण किये गए 114 देशों में से किसी ने भी पूर्ण महिला सशक्तीकरण या लैंगिक समानता प्राप्त नहीं की।
  • विश्व स्तर पर 90% से अधिक महिलाएँ उन देशों में रहती हैं जो लैंगिक समानता और महिला सशक्तीकरण प्राप्त करने में खराब या औसत दर्जे का प्रदर्शन करती हैं।
  • मध्यम मानव विकास के बावजूद भारत में महिला सशक्तीकरण और लैंगिक समानता कम है, जो लैंगिक अंतर को समाप्त करने तथा महिलाओं की स्थिति को ऊपर उठाने के लिये ठोस प्रयासों की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है।
  • इसके अतिरिक्त लगभग 8% महिलाएँ कम सशक्तीकरण लेकिन उच्च लैंगिक समानता वाले देशों में रहती हैं।

यू.एन. वीमेन:  

  • विश्व भर में महिलाओं और लड़कियों की ज़रूरतों तथा उनके अधिकारों को पूरा करने में प्रगति में तीव्रता लाने के लिये संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा वर्ष 2010 में यू.एन. वीमेन की स्थापना की गई थी।
  • यू.एन. वीमेन, संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों का समर्थन करती है क्योंकि यह लैंगिक समानता प्राप्त करने के लिये वैश्विक मानक निर्धारित करती है, साथ ही महिलाओं और लड़कियों को लाभ पहुँचाने वाले कानूनों, नीतियों, कार्यक्रमों और सेवाओं के डिज़ाइन के साथ उन्हें कार्यान्वित करने के लिये सरकारों तथा नागरिक समाज के साथ काम करती है।
  • यू.एन. वीमेन चार प्रमुख रणनीतिक प्राथमिकताओं पर ध्यान केंद्रित करती है: महिलाओं का नेतृत्व और राजनीतिक भागीदारी, महिलाओं का आर्थिक सशक्तीकरण, महिलाओं के खिलाफ हिंसा को समाप्त करना और शांति, सुरक्षा तथा मानवीय कार्रवाई।

व्यापक नीति कार्रवाई के लिये सिफारिशें:  

  • स्वास्थ्य नीतियाँ: सरकारों को सभी के लिये लंबी आयु और स्वस्थ जीवन के लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए यौन तथा प्रजनन स्वास्थ्य तक सार्वभौमिक पहुँच का समर्थन एवं प्रचार करना चाहिये।
  • शिक्षा में समानता: कौशल और शिक्षा की गुणवत्ता में अंतर (विशेष रूप से STEM जैसे क्षेत्रों में) की समस्या से निपटना, डिजिटल युग में महिलाओं एवं लड़कियों को सशक्त बनाने में मदद करना।
  • कार्य और जीवन के बीच संतुलन तथा परिवारों के लिये समर्थन: कार्य और जीवन के बीच संतुलन बनाने में सहायक नीतियों और सेवाओं में निवेश किया जाना चाहिये, जिसमें वहनीय तथा गुणवत्तापूर्ण बाल देखभाल, माता-पिता की अवकाश संबंधी योजनाएँ एवं लचीली कामकाजी व्यवस्थाएँ शामिल हैं।
  • महिलाओं की समान भागीदारी: सार्वजनिक जीवन के सभी क्षेत्रों में लैंगिक समानता हासिल करने के लिये निर्दिष्ट लक्ष्य और कार्य योजनाओं की स्थापना की जानी चाहिये, साथ ही महिलाओं को आगे बढ़ने से रोकने वाले भेदभावपूर्ण कानूनों और विनियमों को समाप्त किया जाना चाहिये।
  • महिलाओं के खिलाफ हिंसा: इसके लिये रोकथाम, सामाजिक मानदंडों में बदलाव और भेदभावपूर्ण कानूनों तथा नीतियों को खत्म करने पर केंद्रित व्यापक उपायों को लागू करना महत्त्वपूर्ण है।

महिला सशक्तीकरण सूचकांक (Women's Empowerment Index- WEI) : 

  • यह यू.एन. वीमेन और UNDP द्वारा तैयार किया जाने वाला एक समग्र सूचकांक है।
  • यह पाँच आयामों के आधार पर महिला सशक्तीकरण का आकलन करता है: जीवन और अच्छा स्वास्थ्य, शिक्षा, कौशल निर्माण और ज्ञान , श्रम एवं वित्तीय समावेशन, निर्णय लेने में भागीदारी तथा हिंसा से मुक्ति ।
  • WEI विकल्प चुनने और जीवन के अवसरों का लाभ उठाने की महिलाओं की शक्ति एवं स्वतंत्रता को दर्शाता है ।
  • WEI का विकास साक्ष्य-आधारित नीति निर्माण में एक महत्त्वपूर्ण मील का पत्थर है और लैंगिक समानता एवं महिलाओं तथा लड़कियों के सशक्तीकरण पर सतत् विकास लक्ष्य 5 (SDG5) की दिशा में सरकार की प्रगति की निगरानी के लिये आधार रेखा के रूप में कार्य करता है।

वैश्विक लैंगिक समानता सूचकांक (GGPI): 

  • GGPI एक समग्र सूचकांक है जो स्वास्थ्य, शिक्षा, समावेशन और निर्णय लेने सहित मानव विकास के प्रमुख आयामों में लैंगिक असमानताओं का आकलन करता है।
  • GGPI को यू.एन. वीमेन और UNDP द्वारा ' समानता का मार्ग: महिला सशक्तीकरण एवं मानव विकास में लैंगिक समानता ' शीर्षक से एक नई वैश्विक रिपोर्ट के हिस्से के रूप में विकसित किया गया है, जिसे जुलाई 2023 में लॉन्च किया गया था।
  • GGPI का लक्ष्य विभिन्न संदर्भों और आयामों में पुरुषों के सापेक्ष महिलाओं की स्थिति को जानना है। यह लैंगिक समानता की बहुआयामी तथा परस्पर संबंधित प्रकृति को भी दर्शाता है।  

सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक जीवन में लैंगिक अंतर को कम करने के लिये भारतीय पहल: 

  • बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ : यह पहल बालिकाओं की सुरक्षा, अस्तित्व और शिक्षा सुनिश्चित करती है।
  • महिला शक्ति केंद्र: इसका उद्देश्य ग्रामीण महिलाओं को कौशल विकास और रोज़गार के अवसर प्रदान करके सशक्त बनाना है।
  • राष्ट्रीय महिला कोष: यह एक शीर्ष सूक्ष्म-वित्त संगठन है जो गरीब महिलाओं को विभिन्न आजीविका और आय सृजन गतिविधियों के लिये रियायती शर्तों पर सूक्ष्म ऋण प्रदान करता है।
  • सुकन्या समृद्धि योजना : इस योजना के तहत लड़कियों के बैंक खाते खुलवाकर उन्हें आर्थिक रूप से सशक्त बनाया गया है।
  • महिला उद्यमिता : महिला उद्यमिता को प्रोत्साहित करने के लिये सरकार ने स्टैंड-अप इंडिया और महिला ई-हाट (महिला उद्यमियों/SHG/NGO का समर्थन करने हेतु ऑनलाइन मार्केटिंग प्लेटफॉर्म), उद्यमिता एवं कौशल विकास कार्यक्रम (ESSDP) शुरू किये हैं।
  • कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय: इन्हें शैक्षिक रूप से पिछड़े ब्लॉक (EBB) में खोला गया है।
  • निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों का क्षमता निर्माण: यह महिलाओं को शासन प्रक्रियाओं में प्रभावी ढंग से भाग लेने के लिये सशक्त बनाने की दृष्टि से आयोजित किया जाता है।

विश्व आर्थिक मंच
(b) UN मानव अधिकार परिषद्
(c) यू.एन. वीमेन 
(d) विश्व स्वास्थ्य संगठन

 

स्रोत: डाउन टू अर्थ

essay on women's liberation in hindi

HindiSwaraj

महिला आरक्षण पर निबंध | Women Reservation Essay in Hindi | Essay in Hindi | Hindi Nibandh | हिंदी निबंध | निबंध लेखन | Essay on Women Reservation in Hindi

By: savita mittal

महिला आरक्षण पर निबंध | Women Reservation Essay in Hindi

महिला आरक्षण की आवश्यकता क्यों , महिलाओं की वर्तमान स्थिति व उपलब्धियाँ, महिला आरक्षण निबंध | essay on women reservation in hindi video.

सम्पूर्ण विश्व में महिला सशक्तीकरण एवं महिला सम्बन्धी नीतियों का मुख्य लक्ष्य महिलाओं को राजनीतिक रूप से सशक्त करना रहा है। विश्व के सबसे बड़े लोकतान्त्रिक देश भारत में स्वतन्त्रता प्राप्ति के 72 वर्षों बाद भी भारतीय नारी • लोकतान्त्रिक प्रक्रिया में पीछे छूट गई है। भारतीय संविधान द्वारा स्त्री-पुरुष को समान दर्जा दिए जाने के बाद भी देश की महत्त्वपूर्ण राजनीतिक संस्थाओं में स्त्री की भागीदारी 20% से भी कम है।

भारतीय समाज में स्त्रियों के प्रति उपेक्षापूर्ण व्यवहार की समाप्ति एवं उनकी राजनीतिक स्थिति को सुदृढ़ करने के लिए 12 सितम्बर, 1996 को पहली बार महिला आरक्षण विधेयक लोकसभा में प्रस्तुत किया गया था, जो तब से लेकर आज तक राजनीतिक दलों की राजनीति का शिकार है। मार्च, 2010 में राज्यसभा में यह विधेयक पारित हो जाने के बाद “महिलाओं को 33% आरक्षण देने की नीति पर काफी विवाद हो गया। वर्ष 2017 तक इस विधेयक पर पूर्णत: सहमति नहीं बन पाई। परिणाम यह हुआ, कि लोकसभा ने इसे भारी मतभेद के कारण अभी तक पारित नहीं किया है।

महिलाओं को दोयम दर्जे का प्राणी न केवल भारतीय, बल्कि पूरे विश्व के पुरुष प्रधान समाजों में माना जाता रहा है। यही कारण है कि आज भी विश्व की अधिकांश संसदीय व्यवस्था वाले देशों में महिलाओं की हिस्सेदारी 20% से भी कम है।

इण्टर पार्लियामेण्ट्री यूनियन की 2019 की रिपोर्ट के अनुसार विश्व के 193 देशों में मात्र 50 देशों की संसदों में महिलाओं की भागीदारी 30% या उससे अधिक है। शेष देशों में महिलाओं की भागीदारी 30% से नीचे है। विश्व के एक चौथाई देशों में महिला सांसदों की भागीदारी 14% से कम है। विश्व में खाण्डा, क्यूबा तया बोलीविया ऐसे देश हैं, जहाँ 50% से अधिक महिलाओं की भागीदारी है।

संयुक्त राष्ट्र के मानकों के अनुसार संसद में महिलाओं की भागीदारी 30% होनी चाहिए। चीन, रूस, कोरिया, फिलीपीन्स आदि देशों में महिलाओं को 33% आरक्षण का पहले से ही प्रावधान किया हुआ है, जबकि फ्रांस, जर्मनी, स्वीडन, नॉर्वे आदि देशों की राजनीतिक पार्टियों ने भी महिलाओं को 33% आरक्षण दे रखा है। 

भारत वर्तमान में महिला आरक्षण को लेकर कानून बनाने में असफल रहा है। इसके बावजूद 17वीं लोकसभा (2019) में महिला सांसदों की संख्या 62 से बढ़कर 78 हो गई है, जो कुल सासदों का 14.39% है। अतः भारत को इसे और बढ़ाने की आवश्यकता है, क्योंकि भारत की भागीदारी अपने पड़ोसी देश चीन, पाकिस्तान व चांग्लादेश से कम है।। 

Women Reservation Essay in Hindi

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भारत में जहाँ एक ओर स्त्रियाँ आर्थिक रूप से पुरुष के अधीन रही हैं, वहीं दूसरी ओर सार्वजनिक जीवन में भी उनकी स्थिति अत्यधिक असन्तोषजनक रही है। इस असन्तोषजनक स्थिति को समाप्त करने के लिए आवश्यक है कि उनकी राजनीतिक स्थिति को सुदृद किया जाए। राजनीतिक स्थिति से तात्पर्य यही है कि ऐसे अनेक निकायों में, जो निर्णयकारी है और जिन निकायों में राष्ट्र की सामाजिक-आर्थिक नीतियों को निर्धारित किया जाता है, महिलाओं की सक्रिय भागीदारी को सुनिश्चित किया जाना चाहिए।

बिना आरक्षण महिलाओं की राजनीतिक स्थिति को सुदृढ़ कर पाना अत्यधिक कठिन है, क्योंकि अधिकांश राजनीतिक दल पुरुष प्रधान मानसिकता वाले हैं, जो चुनावों में सामान्यतया महिलाओं को अपना उम्मीदवार नहीं बनाते। महिला प्रमुख पार्टियाँ भी पुरुष प्रधान समाज के कारण पुरुषों को ही उम्मीदवार बनाने के लिए बाध्य हैं। सरकार के विधायी एवं कार्यकारी अंगों में भी महिलाओं की भागीदारी न के बराबर है। अत: वे स्त्री के अधिकारों के सम्बन्ध में आवाज़ नहीं उठा पाती, इसलिए यह आवश्यक है कि विधायी संस्थाओं में महिलाओं के प्रतिनिधित्व हेतु एक सुनिश्चित प्रतिशत स्थान आरक्षित किया जाए।

महिला आरक्षण विधेयक के अनुसार, संसद में 33.3% सीटें महिला उम्मीदवारों के लिए आरक्षित होगी। चुनाव के लिए लॉटरी के द्वारा एक-तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित की जाएँगी। वास्तव में, भारतीय राजनीति में आरक्षण का प्रावधान अंग्रेजों की ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति का परिणाम था। अंग्रेज़ों ने भारत परिषद् अधिनियम, 1909 के माध्यम से पहली बार मुसलमानों को पृथक् एवं प्रत्यक्ष प्रतिनिधित्व दिया।

स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद संविधान के अनुच्छेद-15(4) एवं अनुच्छेद-16(4) के अतिरिक्त अनुच्छेद- 330 से लेकर अनुच्छेद-342 तक भारतीय समाज में सामाजिक एवं शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों के उत्थान के लिए विभिन्न प्रकार के आरक्षणों की व्यवस्था की गई है, किन्तु अभी तक गठित किसी भी समिति या आयोग ने महिलाओं के लिए स्वतन्त्र रूप से आरक्षण प्रदान करने की कभी भी संस्तुति नहीं की। महिलाओं को आरक्षण देने सम्बन्धी मुद्दा पहली बार राजीव गांधी ने उठाया था।

प्रधानमन्त्री इन्द्रकुमार गुजराल के शासनकाल में महिला आरक्षण विधेयक को पारित करवाने की पूरी कोशिश की गई। उसके बाद भाजपा के नेतृत्व वाली गठबन्धन सरकार ने विधेयक को संसद में प्रस्तुत किया, लेकिन हर बार लोकसभा एवं विधानसभाओं में महिलाओं को 33% आरक्षण देने का मामला विभिन्न राजनीतिक दलों के मध्य तीव्र मतभेद होने के कारण पारित नहीं हो सका।

इन दलों की माँग ‘आरक्षण में आरक्षण देने की है, जिसका अर्थ है- महिलाओं के लिए आरक्षित 99% सीटों में भी एक-तिहाई सीटें अल्पसंख्यक, दलित एवं पिछड़े वर्ग की महिलाओं के लिए आरक्षित करना। वर्ष 2016 में बिहार सरकार ने राज्य स्तरीय नौकरियों में महिलाओं को 35% आरक्षण प्रदान कर महिला आरक्षण की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम उठाया है।

इससे पूर्व बिहार सरकार पंचायत चुनावों में महिलाओं को 50% आरक्षण प्रदान कर चुकी है। इसके अतिरिक्त भारत के अन्य राज्यों में भी यह प्रावधान किया गया है, जो महिला आरक्षण की दिशा में महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है। के महिला आरक्षण के सन्दर्भ में सबसे महत्त्वपूर्ण प्रश्न यह है कि उन्हें पर्याप्त आरक्षण क्यों मिलना चाहिए? समाज का सुधारवादी या प्रगतिशील वर्ग मानता है कि आरक्षण के माध्यम से पर्याप्त प्रतिनिधित्व प्राप्त होने से समाज का पर्याप्त विकास सम्भव है, जबकि समाज के रूढ़िवादी वर्ग का मानना है कि विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं के घर से बाहर निकलने पर उसका बुरा प्रभाव पारिवारिक प्रणाली पर पड़ेगा, जिससे समाज के विकास की नींव कमजोर हो जाएगी।

उत्तर वैदिककाल से ही महिलाओं की सामाजिक एवं राजनीतिक प्रस्थिति निरन्तर निम्न होती गई। ‘मनु’ जैसे नीति निर्धारक ने तो स्त्रियों के बारे में स्पष्ट रूप से घोषणा कर दी कि-

पिता रक्षति कौमार्य, भर्ता रक्षति यौवने। रक्षन्ति स्थविरे पुनाः, न स्त्री स्वातन्त्र्य मर्हति ।।

अर्थात्, “बचपन में स्त्री की रक्षा पिता करता है, जवानी में पति तथा बुढ़ापे में पुत्र इसलिए स्त्रियाँ स्वतन्त्रता के योग्य ही नहीं हैं।” धीरे-धीरे मध्यकाल तक आते-आते उनके सभी अधिकार छीन लिए गए। उन्हें पुरुषों के उपयोग की मस्तुमात्र बना दिया गया। पर्दा प्रथा के आगमन के साथ-साथ उनकी स्थिति और दयनीय होती गई, लेकिन समय के साथ आधुनिक काल में पाश्चात्य शिक्षा के विकास एवं प्रसार के बाद महिलाओं के लिए एक बार फिर विकास का मार्ग प्रशस्त हुआ है। ऐसी स्थिति में महिलाओं को अपने सर्वांगीण विकास के लिए हरसम्भव कोशिश करनी चाहिए और पुरुष वर्ग को उनकी इस कोशिश में ईमानदारीपूर्वक सहायता करनी चाहिए। 

शिक्षा के क्षेत्र में अपनी क्षमता का परिचय देने के बाद स्त्रियों ने जीवन के अन्य क्षेत्रों; जैसे- व्यवसाय, प्रशासर आदि में भी अपना प्रभाव दिखाना प्रारम्भ कर दिया है, इसके बावजूद उन्हें यह महसूस हो रहा है कि राजनीति में पर्याप्त प्रतिनिधित्व प्राप्त किए बिना उन्हें अपने सम्पूर्ण विकास के लिए अनुकूल वातावरण प्राप्त नहीं हो सकता। सत्ता में सशक्त भागीदारी के विना विकास असम्भव है।

अच्छा तो यह होता कि महिलाओं को विधायिकाओं में आरक्षण देने की अपेक्षा शैक्षिक एवं आर्थिक क्षेत्र में विकास के पर्याप्त अवसर प्रदान किए जाते तथा समाज में ऐसा बातावरण निर्मित किया जाता, जिससे स्त्रियाँ स्वयं को प्रासंगिक एवं स्वतन्त्र महसूस करती तथा देश के विकास में पुरुषों के समकक्ष भागीदार बनती, लेकिन पुरुष मानसिकता प्रधान समाज में संकीर्ण विचारधारा के कारण लोग उन्हें घरों की चहारदीवारी में ही कैद रहने का समर्थन करते हैं, क्योंकि बास्तव में, उन्हें अपनी सत्ता पर खतरा नजर आता है। अतः वर्तमान में महिलाओं की विभिन्न क्षेत्रों में कार्य करने की क्षमता व योग्यता, दृढ संकल्प कार्यप्रणाली ने पुरुषों को प्रभावित किया है। ऐसी स्थिति में आरक्षण को बढ़ावा देना प्रासंगिक साबित होगा। 

इस प्रकार, सभ्यता के आरम्भ से ही मानव समाज के विकास में ‘आधी आबादी’ की अत्यन्त महत्त्वपूर्ण भूमिका रही। है और हमेशा रहेगी। ऐसी स्थिति में किसी भी समाज का पूर्ण विकास समाज के आधे सदस्यों को अलग-थलग करके नहीं किया जा सकता। अतः समय की माँग है कि समाज के चतुर्मुखी एवं समग्र विकास के लिए आधी आबादी को सहयोगी बनाया जाए और उसकी सहभागिता के लिए यदि आरक्षण आवश्यक हो, तो इस प्रणाली को भी क्रियान्वित किया जाए।

सामाजिक मुद्दों पर निबंध | Samajik nyay

reference Women Reservation Essay in Hindi

essay on women's liberation in hindi

मेरा नाम सविता मित्तल है। मैं एक लेखक (content writer) हूँ। मेैं हिंदी और अंग्रेजी भाषा मे लिखने के साथ-साथ एक एसईओ (SEO) के पद पर भी काम करती हूँ। मैंने अभी तक कई विषयों पर आर्टिकल लिखे हैं जैसे- स्किन केयर, हेयर केयर, योगा । मुझे लिखना बहुत पसंद हैं।

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महिला सशक्तिकरण पर निबंध 500 शब्दों में | Essay on Women Empowerment in Hindi

  • by Rohit Soni
  • 14 min read

इस लेख में महिला सशक्तिकरण पर निबंध शेयर किया गया है। जो कि आपके परीक्षा के लिए बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण है। Essay on Women Empowerment in Hindi प्रतियोगी परीक्षाओं में लिखने के लिए आता है। इसलिए महिला सशक्तिकरण पर निबंध बहुत जरूरी है आपके लिए। इसके साथ ही देश की संमृद्धि के लिए भी महिला सशक्तिकरण अति आवश्यक है।

महिला सशक्तिकरण पर निबंध 500 शब्दों में | Essay on Women Empowerment in Hindi

Table of Contents

महिला सशक्तिकरण पर निबंध 300 शब्दों में – Short Essay On Mahila Sashaktikaran in Hindi

महिला सशक्तिकरण क्या है.

महिला सशक्तिकरण से आशय यह है कि महिलाओं के सामाजिक और आर्थिक स्थिति में सुधार लाना है। इससे महिलाएं शक्तिशाली बनती है। जिससे वह अपने जीवन से जुड़े सभी फैसले स्वयं ले सकती हैं, और परिवार व समाज में अच्छे से रह सकती हैं। पुरुषों की तरह ही समाज में उनके वास्तविक अधिकार को प्राप्त करने के लिए उन्हें सक्षम बनाना ही महिला सशक्तिकरण कहलाता है।

महिला सशक्तिकरण जरुरी क्यों है?

महिला सशक्तिकरण आवश्यकता का मुख्य कारण महिलाओं की आर्थिक तथा सामाजिक स्थित में सुधार लाना है। क्योंकि आज भी भारत में पुरुष प्रधान समाज की व्यवस्था है जिसमें महिलाओं को पुरुषों की तुलना में बहुत कम महत्व दिया जाता है। उन्हें घर तक ही सीमित करके रखा जाता है। कम उम्र में विवाह और शिक्षा के अभाव से महिलाओं का विकाश नहीं हो पाता है। जिससे वे समाज में स्वयं को असुरक्षित और लाचार महसूस करती है। इसी वजह से महिलाओं का शोषण हो रहा है। महिला सशक्तिकरण जरूरी है, ताकि महिलाओं को भी रोजगार, शिक्षा , और आर्थिक तरक्की में बराबरी के मौके मिल सके, जिससे वह सामाजिक स्वतंत्रता और तरक्की प्राप्त कर सके। और महिलाएँ भी पुरुषों की तरह अपनी हर आकांक्षाओं को पूरा कर सके और स्वयं को सुरक्षित महसूस कर सकें।

जहाँ वैदिक काल में नारी को देवी का स्वरूप माना जाता था। वहीं वर्तमान के कुछ शतकों में समाज में नारी की स्थित बहुत ज्यादा दयनीय रही है। और महिलाओं को काफी प्रताड़ना झेलना पड़ा है। यहां तक की आज भी कई गांवों में कुरीतियों के चलते महिलाओं के केवल मनोरंजन समझा जाता है। और पुरुषों द्वारा उनके अधिकारों का हनन कर उनका शोषण किया जाता है। इसलिए आज वर्तमान के समय में महिला सशक्तिकरण एक अहम चर्चा का विषय बन चुका है। हालाँकि पिछले कुछ दशकों में सरकार द्वारा महिला सशक्तिकरण पर जोर दिया गया है। लेकिन अभी भी पिछड़े हुए गांवों में सरकार को पहुंचकर लोगों को महिला सशक्तिकरण के बारे में जागरूकता लाने के लिए ठोस कदम उठाने जरूरत है।

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महिला सशक्तिकरण पर निबंध 500 शब्दों में (Essay on Women Empowerment in Hindi)

महिला सशक्तिकरण में बहुत बड़ी ताकत है जिससे देश और समाज को सकारात्मक तरीके से बदला जा सकता है। महिलाओं को समाज में किसी समस्या को पुरुषों से बेहतर ढंग से निपटना आता है। सही मायने में किसी देश या समाज का तभी विकाश होता है जब वहां की नारी जाति को प्रतिष्ठा व सम्मान दिया जाता है।

महिला सशक्तिकरण का अर्थ – Meaning of women empowerment

नारी को सृजन की शक्ति माना जाता है। अर्थात स्त्री से ही मानव जाति का अस्तित्व संभव हुआ है। फिर भी वर्तमान युग में एक नारी इस पुरुष समाज में स्वयं को असुरक्षित और असहाय महसूस करती है। अतः महिला सशक्तिकरण का अर्थ महिलाओं के सामाजिक और आर्थिक स्थिति में सुधार लाना है। ताकि उन्हें शिक्षा, रोजगार, आर्थिक विकाश के समान अधिकार मिल सके, जिससे वह सामाजिक व आर्थिक स्वतंत्रता और खुद को सुरक्षित प्राप्त कर सके।

महिला सशक्तिकरण का मुख्य उद्देश्य

महिला सशक्तिकरण का मुख्य उद्देश्य महिलाओं की प्रगति और उनमें आत्मविश्वास को बढ़ाना हैं। महिला सशक्तिकरण देश के विकास के लिए अति महत्वपूर्ण है। महिलाओं का सशक्तिकरण सबसे महत्वपूर्ण पहलू है क्योंकि वे सृजन कर्ता होती हैं। अगर उन्हें सशक्त कर दिया जाए, उन्हें शक्तिशाली बनाएं और प्रोत्साहित करें, तो इससे राष्ट्र का विकाश सुनिश्चित होता है। महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाना और उनके अधिकारों को उनसे अवगत कराना तथा सभी क्षेत्र में समानता प्रदान करना ही महिला सशक्तिकरण का प्रमुख उद्देश्य है।

महिला सशक्तिकरण में शिक्षा की भूमिका क्या है?

महिला सशक्तिकरण में शिक्षा का महत्वपूर्ण स्थान हैं। क्योंकि बिना शिक्षा के महिलाओं की प्रगति में सकारात्मक परिवर्तन सम्भव नही है। शिक्षा के माध्यम से महिलाओं में जागरूकता लाना आसान है और आयी भी है, वे अपने बारे में सोचने की क्षमता रखने लगी है, उन्होंने अब महसूस किया है कि घर से बाहर भी उनका जीवन है। महिलाओं में आत्मविश्वास का संचार हुआ तथा उनके व्यक्तित्व में निखार आया है। इसीलिए सरकार द्वारा बेटी बचाओं बेटी पढ़ाओ योजना चलाई गई है। ताकि घर-घर बेटियों को शिक्षा दी जा सके।

महिला सशक्तिकरण के उपाय

महिला सशक्तिकरण के लिए कई योजनाएं शासन की तरफ से चलाई गई हैं जिससे नारी जाति के उत्थान में मदद मिली है। और भारत में महिलाओं को एक अलग पहचान प्रदान करती है। महिला सशक्तिकरण के उपाय के लिए चल रही योजनाओं के नाम निम्नलिखित हैं –

  • सुकन्या समृध्दि योजना
  • बेटी बचाओं बेटी पढ़ाओं योजना
  • प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना
  • प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना
  • प्रधानमंत्री महिला शक्ति केंद्र योजना
  • वन स्टॉप सेंटर
  • लाड़ली लक्ष्मी योजना
  • फ्री सिलाई मशीन योजना

एक स्त्री पुरुष की जननी होकर भी एक पुरुष से कमजोर महसूस करती है। क्योंकि उसका पिछले कई सदियों से शोषण किया जा रहा है। जिस कारण से एक नारी अपनी शक्ति और अधिकारों को भूल चुकी है। और अपने साथ हो रहे दुराचार को बर्दाश्त करती चली आ रही है। परन्तु वर्तमान युग महिला का युग है। अब उन्हें अपने अधिकारों को प्राप्त करने से कोई नहीं रोक सकता है। इसके लिए कई महिला सशक्तिकरण के उपाय भी किए जा रहे है। किन्तु अभी भी कुछ आदिवासी पिछड़े गांवों में कई सारी कुरीतियां या शिक्षा की कमी के कारण महिलाओं को उनके अधिकारों से वंचित रखा गया है। अतः वहां तक पहुँच कर उन महिलाओं को भी महिला सशक्तिकरण के बारे में जागरूक करना होगा।

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महिला सशक्तिकरण पर निबंध 1000 शब्दों में (Mahila Sashaktikaran Essay in Hindi)

[ विस्तृत रूपरेखा – (1) प्रस्तावना, (2) महिलाओं का अतीत, (3) भारत में महिलाओं का सम्मान, (4) वर्तमान में महिलाओं के प्रति अनुदार व्यवहार, (5) महिला सशक्तिकरण की आवश्यकता, (6) शासन तथा समाज का दायित्व, (7) नारी जागरण की आवश्यकता, (8) उपसंहार ।]

“अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी आंचल में है दूध और आंखों में पानी ।”

प्राचीन काल से ही महिलाओं के साथ बड़ा अन्याय होता आ रहा है। उन्हें शिक्षा और उनके अधिकारों से वंचित किया गया जिससे महिलाओं का जो सामाजिक और आर्थिक विकाश होना चाहिए वह नहीं हो सका। समाज में आज भी पुरुषों की तुलना में महिलाओं को कम आका जाता है। और वे ज्यादातर अपने जीवन-यापन के लिए पुरुषों पर ही निर्भर रह गयी जिससे उन्हें न चाहते हुए भी पुरुषों का अत्याचार सहना पड़ रहा है। इसलिए महिलाओं के आर्थिक व सामाजिक विकाश के लिए महिला सशक्तिकरण की आवश्यकता है।

महिलाओं का अतीत

वैदिक काल में महिलाओं को गरिमामय स्थान प्राप्त था। उन्हें देवी,  अर्द्धांगिनी,  लक्ष्मी माना जाता था। स्मृति काल में भी ” यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता”   यह सम्मानित स्थान प्रदान किया गया था। तथा पौराणिक काल में नारी को शक्ति का स्वरूप मानकर उसकी आराधना की जाती थी। परन्तु 11 वीं शताब्दी से 19 वीं शताब्दी के बीच भारत में महिलाओं की स्थिति बहुत ज्यादा दयनीय होती गई। यह महिलाओं के लिए अंधकार युग था। पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं को अपनी इच्छाओं के अनुसार उपयोग में लिए जाने तक ही सीमित रखा जाता था। विदेशी आक्रमण और शासकों की विलासिता पूर्ण प्रवृत्ति ने महिलाओं को उपभोग की वस्तु बना दिया था। और उसके कारण भारत के कुछ समुदायों में सती प्रथा, बाल विवाह और विधवा पुनर्विवाह पर रोक, अशिक्षा आदि सामाजिक कुरीतियां जिंदगी का एक हिस्सा बन चुकी थी।जिसने महिलाओं की स्थिति को बदतर बना दिया और उनके अधिकारों व स्वतंत्रता को उनसे छीन लिया।

भारत में महिलाओं का सम्मान

भारत में महिलाओं को सम्मान दिलाने के लिए सरकार द्वारा समय-समय पर योजनाएं निकाली गई हैं जिनका मुख्य उद्देश्य महिलाओं के सामाजिक और आर्थिक रूप से मजबूत बनाना है। जिसका असर यह है कि आज महिलाएं भी पुरुषों से कदम से कदम मिलाकर चलने में सक्षम हो रही हैं। महिलाओं को बराबर की शिक्षा, रोजगार और उनके अधिकार को दिलाकर भारत में महिलाओं को सम्मानित किया गया है। अब महिलाएं घर की दीवारों तक ही सीमित नहीं रहीं हैं। हालांकि कुछ शतकों पहले भारत में महिलाओं की स्थित काफी दयनीय रही हैं किन्तु 21 वीं सदी महिला सदी है। अब महिलाएं भी हर क्षेत्र में अपनी कुशलता का परिचय दे रही हैं।

वर्तमान में महिलाओं के प्रति अनुदार व्यवहार

महिलाओं के उत्थान के लिए भारत में कई प्रकार से प्रयास किए जा रहे हैं इसके बावजूद भी अभी तक महिलाओं का उतना विकाश नहीं हो पा रहा है। भारत में 50 प्रतिशत की आबादी महिलाओं की है और कही न कहीं महिलाएं स्वयं को कमजोर और असहाय मानती है जिसके कारण से पुरुषों द्वारा उनके प्रति अनुदार व्यवहार किया जाता है। शिक्षा और जागरूकता की कमी के कारण महिलाएं अपने अधिकारों और शक्ति का इस्तेमाल नहीं कर पाती हैं। परिणाम स्वरूप उनका शारीरिक और मानसिक रूप से शोषण किया जाता है। कई ऐसे गांव कस्बे हैं जहाँ अभी भी महिलाओं को शिक्षा और उनके अधिकारों से वंचित कर दिया जाता है और कई प्रकार की कुरीतियों के चलते उन्हें प्रताड़ित किया जाता है। और उन्हें देह-व्यापार करने के लिए मजबूर किया जाता है। ऐसे में सरकार और समाज दोनों को इसके प्रति विचार करना चाहिए।

महिला सशक्तिकरण की आवश्यकता

जैसा कि भारत में 50 फीसदी की आबादी महिलाओं की है और जब तक इनका विकास नहीं होगा तो भारत कभी भी विकसित देश नहीं बन सकता है। देश के विकाश के लिए महिलाओं का विकाश होना जरूरी है। भारत में महिला सशक्तिकरण की आवश्यकता इसलिए है क्योंकि प्राचीन काल के अपेक्षा मध्य काल में भारतीय महिलाओं के सम्मान स्तर में काफी कमी आयी है। और जितना सम्मान उन्हें प्राचीन काल में दिया जाता था, मध्य काल में वह सम्मान बहुत कम हो गया था। वर्तमान समय में कई भारतीय महिलाएँ कई सारे महत्वपूर्ण राजनैतिक तथा प्रशासनिक पदों पर पदस्थ हैं, फिर भी सामान्य ग्रामीण महिलाएँ आज भी अपने घरों में रहने के लिए बाध्य हैं और उन्हें सामान्य स्वास्थ्य सुविधा और शिक्षा जैसी सुविधाएँ भी उपलब्ध नहीं हो रही है।

शासन तथा समाज का दायित्व

महिलाओं के विकाश के लिए शासन तथा समाज का दायित्व है कि इसके लिए विभिन्न प्रकार से प्रयास किए जाएं ताकि वह अपने जीवन से जुड़े सभी फैसले स्वयं ले सके, और परिवार व समाज में सुरक्षित तरीके से रह सकें। तथा पुरुषों की तरह ही महिलाएं भी समाज में उनके वास्तविक अधिकार को प्राप्त करें।

शासन द्वारा महिला सशक्तीकरण से संबंधित कुछ प्रमुख सरकारी योजनाएँ

  • सुकन्या समृद्धि योजना

नारी जागरण की आवश्यकता

यह समाज पुरुष प्रधान है और हमेशा से ही महिलाओं को पुरुषों से नीचे रखा गया है। परन्तु नारी की अपनी एक गरिमा है। वह पुरुष की जननी है नारी स्नेह और सौजन्य की देवी है। किसी राष्ट्र का उत्थान नारी जाति से ही होता है। और वर्तमान समाज में व्याप्त कुरीतियों को दूर करने के लिए नारी जागरण की आवश्यकता महसूस हो रही है। समाज के बेहतर निर्माण के लिए समाज में नारी को एक समान अधिकार दिए जाए तभी एक बेहतर समाज और राष्ट्र का निर्माण होगा। इसके लिए नारी को अपने अधिकारों के लिए स्वयं आगे आना होगा।

वैदिक काल, और प्राचीन काल में महिलाओं को पूजा जाता था उन्हें पुरुषों से भी ऊँचा दर्जा प्रदान किया गया था। किन्तु मध्यकाल में नारी जाति का अत्यधिक शोषण हुआ है जिस कारण से महिलाओं का विकाश बहुत कम हो पाया है। उन्हें घर के अंदर तक ही बंधन में रखा जाता है बाहर निकल कर रोजगार करने में प्रतिबंध लगाया जाता है। और यदि बाहर निकलने की छूट भी मिलती है तो समाज के अराजक तत्वों से उन्हें कई तरह से खतरा बना रहता है। अतः उनके उत्थान के लिए महिला सशक्तिकरण बहुत जरूरी है। महिलाओं को उचित शिक्षा प्रदान की जानी चाहिए जिससे वे अपने अधिकारों को पहचान सकें और अपने ऊपर हो रहें अत्याचार का विरोध कर सकें। तथा अपने जीवन के अहम फैसले स्वयं लेने के लिए हमेशा स्वतंत्र रहें।

  • रिश्तों के नाम हिंदी और अंग्रेजी में जानें

महिला सशक्तिकरण पर 10 वाक्य (Nari Sashaktikaran par Nibandh in Hindi)

महिला सशक्तिकरण पर 10 वाक्य (Nari Sashaktikaran par Nibandh in Hindi)

  • महिला सशक्तिकरण से आशय यह है कि महिलाओं के सामाजिक और आर्थिक स्थिति में सुधार लाना।
  • हमारे देश में महिलाओं के प्रति अनुदार व्यवहार को खत्म करने के लिए महिला सशक्तिकरण आवश्यक है।
  • महिला सशक्तिकरण में शिक्षा सबसे महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है।
  • बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, सुकन्या सम्बृध्दि योजना, प्रधानमंत्री महिला शक्ति केंद्र योजना आदि शासन द्वारा महिला सशक्तिकरण के तहत मुहिम चलाई जा रही है।
  • बेटी व महिलाओं को पुरुष समाज में बराबरी के अधिकार दिलाने के लिए उनमें जागरूकता लाना आवश्यक है।
  • बेहतर समाज के निर्माण के लिए समाज में नारी को एक समान अधिकार व सम्मान प्रदान करना उतना ही जरूरी है, जितना की जीवन के लिए भोजन जरूरी है।
  • 21 वीं सदी महिला सदी माना जाता है, अब महिलाएं भी हर क्षेत्र में अपनी कुशलता का बखूबी परिचय दे रही हैं। यह महिला सशक्तिकरण से ही संभव है।
  • वर्तमान समय में कई भारतीय महिलाएँ महत्वपूर्ण राजनैतिक तथा प्रशासनिक पदों पर पदस्थ हैं, फिर भी सामान्य ग्रामीण महिलाएँ आज भी अपने घरों में रहने के लिए बाध्य हैं।
  • महिलाओं को अपने अधिकार, आत्मसम्मान और स्वतंत्रता के लिए स्वयं आगे आना होगा।
  • महिलाओं के उत्थान के लिए समाज और शासन को अधिक से अधिक उपाय करना चाहिए।

यह निबंध महिला सशक्तिकरण के बारे में है। जिसका शीर्षक इस प्रकार से है “ महिला सशक्तिकरण पर निबंध 500 शब्दों में ” अथवा “ Essay on Women Empowerment in Hindi ” यह निबंध आपके लिए बहुत उपयोगी है अतः आपको Mahila Sashaktikaran Essay in Hindi 1000 शब्दों में लिखना जरूर से आना चाहिए।

FAQ Mahila Sashaktikaran Essay

Q: महिला सशक्तिकरण कब शुरू हुआ था.

Ans: महिला सशक्तिकरण की शुरुआत संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा 8 मार्च,1975 को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस से मानी जाती हैं। फिर महिला सशक्तिकरण की पहल 1985 में महिला अंतरराष्ट्रीय सम्मलेन नैरोबी में की गई।

Q: महिला सशक्तिकरण कब लागू हुआ था?

Ans: राष्ट्र निर्माण गतिविधियों में महिलाओं की भूमिका को ध्यान में रखते हुए सरकार ने वर्ष 2001 को महिला सशक्तिकरण वर्ष घोषित किया था और महिलाओं को स्वशक्ति प्रदान करने की राष्ट्रीय नीति अपनायी थी।

Q: समाज में महिलाओं की क्या भूमिका है?

Ans: समाज में महिलाओं की अहम भूमिका है क्योंकि नारी ही परिवार बनाती है, परिवार से घर बनता है, घर से समाज बनता है और फिर समाज ही देश बनाता है। इसलिए महिला का योगदान हर जगह है। और महिला की क्षमता को नज़रअंदाज करके समाज की कल्पना करना व्यर्थ है।

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3 thoughts on “महिला सशक्तिकरण पर निबंध 500 शब्दों में | Essay on Women Empowerment in Hindi”

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धन्यवाद भाई 💖

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महिलाओं की सुरक्षा पर निबंध – Essay on Women’s Safety in Hindi

essay on women's liberation in hindi

महिला सुरक्षा आज के समाज में एक अत्यंत प्रासंगिक और संवेदनशील मुद्दा है। महिला सुरक्षा के महत्व को न केवल राष्ट्रीय स्तर पर, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी मान्यता मिल चुकी है। इस निबंध में हम महिला सुरक्षा के विभिन्न पहलुओं, चिंताओं, उपायों और सुझावों पर विस्तृत चर्चा करेंगे।

Table of Contents

महिला सुरक्षा का परिचय

ध्यान देने योग्य यह है कि महिलाओं को सुरक्षित रखना समाज का एक महत्वपूर्ण दायित्व है। महिलाओं को हर क्षेत्र में, चाहे वह कार्यस्थल हो, घर हो, या सार्वजनिक स्थान हो, सुरक्षा की आवश्यकता होती है।

महिला सुरक्षा के महत्व

महिलाओं का समाज में महत्वपूर्ण योगदान होता है। वे एक कुशल गृहिणी, कार्यक्षेत्र में कर्मठ कर्मचारी, माँ, बहन, बेटी और मित्र के रूप में अपनी भूमिका निभाती हैं। इसलिए, उनकी सुरक्षा का ध्यान रखना हर नागरिक का कर्तव्य है।

महिला सुरक्षा के पहलू

1. कार्यस्थल पर सुरक्षा.

कार्यस्थल पर महिलाओं की सुरक्षा अत्यंत महत्वपूर्ण है। यहां हम महिला कर्मचारियों को सुरक्षित रखने के विभिन्न पहलुओं का प्रयोग करेंगे:

  • यौन उत्पीड़न: कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न एक गंभीर मुद्दा बन चुका है। इसे रोकने के लिए संगठनों में सख्त नियम और क़ानून लागू होने चाहिए।
  • जीरो टॉलरेंस नीति: कार्यस्थल पर महिलाओं के प्रति हो रही किसी भी प्रकार की उत्पीड़न का तुरंत निवारण होना चाहिए।
  • सुरक्षा तंत्र: संगठनों को उचित सुरक्षा तंत्र और हेल्पलाइन नंबर प्रदान करने चाहिए ताकि महिलाएं तुरंत मदद पा सकें।

2. घर पर सुरक्षा

घर पर भी महिलाओं का सुरक्षित महसूस करना बहुत ज़रूरी है। यहां कुछ महत्वपूर्ण बिंदु हैं:

  • घरेलू हिंसा: घरेलू हिंसा के मामले में महिलाओं को समर्थन और संरक्षण मिलना चाहिए। इसके लिए सरकार और गैर-सरकारी संगठनों द्वारा अनेक योजनाएं चलाई जा रही हैं।
  • परिवार का समर्थन: महिलाओं को अपने परिवार से भी समर्थन मिलना चाहिए ताकि उन्हें खुशहाल जीवन जीने में मदद मिल सके।

3. सार्वजनिक स्थानों पर सुरक्षा

महिलाओं की सार्वजनिक स्थानों पर सुरक्षा के लिए भी कई कदम उठाए जा रहे हैं:

  • सीसीटीवी कैमरे: महत्वपूर्ण सार्वजनिक स्थानों पर सीसीटीवी कैमरे लगाए जा रहे हैं ताकि किसी भी आपराधिक गतिविधि को रोका जा सके।
  • पुलिस पेट्रोलिंग: नियमित पुलिस पेट्रोलिंग भी महिलाओं की सुरक्षा के लिए अत्यंत आवश्यक है।

महिला सुरक्षा के लिए कानूनी प्रावधान

भारत सरकार ने महिलाओं की सुरक्षा के लिए कई कानूनी प्रावधान बनाए हैं जिनकी जानकारी सभी को होनी चाहिए:

  • यौन उत्पीड़न से संबंधित कानून: कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न का संरक्षण अधिनियम, 2013 महिलाओं की सुरक्षा के लिए बनाया गया है।
  • घरेलू हिंसा से संरक्षण: घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
  • दहेज निषेध अधिनियम: इस अधिनियम का उद्देश्य महिलाओं को दहेज से जुड़े उत्पीड़न से सुरक्षा प्रदान करना है।

महिला सुरक्षा के लिए सुझाव

महिला सुरक्षा के मुद्दे पर कुछ सुझाव दिए जा सकते हैं:

  • शिक्षा: शिक्षा हर समस्या की जड़ को समाप्त करने में सहायक होती है। महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए शिक्षा एक प्रमुख साधन है।
  • सामाजिक जागरूकता: महिलाओं की सुरक्षा के प्रति सामाजिक जागरूकता भी महत्वपूर्ण है। इसके लिए मीडिया और स्कूलों में कार्यक्रम आयोजित किए जा सकते हैं।
  • सख्त कानूनी व्यवस्था: कानूनों को और भी सख्त बनाया जाना चाहिए ताकि अपराधियों को तुरंत और कठोर सजा दी जा सके।
  • स्व-रक्षा प्रशिक्षण: महिलाओं को स्व-रक्षा के लिए प्रशिक्षित करना भी महत्वपूर्ण है ताकि वे किसी भी स्थिति में अपना बचाव कर सकें।

महिला सुरक्षा एक गंभीर और संवेदनशील मुद्दा है जिसे हल करने के लिए सभी स्तरों पर प्रयास किए जाने चाहिए। सरकार, सार्वजनिक संस्थानों, गैर-सरकारी संगठनों और नागरिक समाज को मिलकर इस दिशा में कार्य करने की आवश्यकता है ताकि महिलाएं सुरक्षित और सशक्त महसूस कर सकें। केवल तभी हम एक खुशहाल और सुरक्षित समाज की कल्पना कर सकते हैं।

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महिलाओं के विरुद्ध हिंसा पर निबंध (Violence against Women in India Essay in Hindi)

महिलाओं के विरुद्ध हिंसा

21वीं सदी के भारत में तकनीकी प्रगति और महिलाओं के विरुद्ध हिंसा दोनों ही साथ-साथ चल रहे है। महिलाओं के विरुद्ध होती यह हिंसा अलग-अलग तरह की होती है तथा महिलाएं इस हिंसा का शिकार किसी भी जगह जैसे घर, सार्वजनिक स्थान या दफ्तर में हो सकती हैं। महिलाओं के प्रति होती यह हिंसा अब एक बड़ा मुद्दा बन चुकी है और इसे अब और ज्यादा अनदेखा नहीं किया जा सकता क्योंकि महिलाएं हमारे देश की आधी जनसँख्या का प्रतिनिधित्व करती हैं।

भारत में महिलाओं के विरुद्ध हिंसा पर छोटे तथा बड़े निबंध  (Short and Long Essay on Violence against Women in India in Hindi, Bharat me Mahilaon ke Viruddh Hinsa par Nibandh Hindi mein)

महिलाओं के विरुद्ध हिंसा पर निबंध – 1 (250 – 300 शब्द).

भारतीय समाज के पुरुष-प्रधान होने की वजह से महिलाओं को बहुत अत्याचारों का सामना करना पड़ा है। आमतौर पर महिलाओं को जिन समस्याओं से लड़ना पड़ता है उनमे प्रमुख है दहेज़-हत्या, यौन उत्पीड़न, महिलाओं से लूटपाट, नाबालिग लड़कियों से राह चलते छेड़-छाड़ इत्यादि।

भारतीय दंड संहिता के अनुसार बलात्कार, अपहरण अथवा बहला फुसला के भगा ले जाना, शारीरिक या मानसिक शोषण, दहेज़ के लिए मार डालना, पत्नी से मारपीट, यौन उत्पीड़न आदि को गंभीर अपराध की श्रेणी में रखा गया है। महिला हिंसा से जुड़े केसों में लगातार वृद्धि हो रही है और अब तो ये बहुत तेज़ी से बढ़ते जा रहे हैं।

महिलाओं के विरुद्ध हिंसा

हिंसा से तात्पर्य है किसी को शारीरिक रूप से चोट या क्षति पहुँचाना। किसी को मौखिक रूप से अपशब्द कह कर मानसिक परेशानी देना भी हिंसा का ही रूप है। इससे शारीरिक चोट तो नहीं लगती परन्तु दिलों-दिमाग पर गहरा आघात जरुर पहुँचता है। बलात्कार, हत्या, अपहरण आदि को आपराधिक हिंसा की श्रेणी में गिना जाता है तथा दफ़्तर या घर में दहेज़ के लिए मारना, यौन शोषण, पत्नी से मारपीट, बदसलूकी जैसी घटनाएँ घरेलू हिंसा का उदाहरण है। लड़कियों से छेड़-छाड़, पत्नी को भ्रूण-हत्या के लिए मज़बूर करना, विधवा महिला को सती-प्रथा के पालन करने के लिए दबाव डालना आदि सामाजिक हिंसा के अंतर्गत आते है। ये सभी घटनाएँ महिलाओं तथा समाज के बड़े हिस्से को प्रभावित कर रहीं हैं।

महिलाओं के प्रति होती हिंसा में लगातार इज़ाफा हो रहा है और अब तो ये चिंताजनक विषय बन चुका है। महिला हिंसा से निपटना समाज सेवकों के लिए सिरदर्द के साथ-साथ उनके लिए एक बड़ी जिम्मेदारी भी है। हालाँकि महिलाओं को जरुरत है की वे खुद दूसरों पर निर्भर न रह कर अपनी जिम्मेदारी खुद ले तथा अपने अधिकारों, सुविधाओं के प्रति जागरूक हो।

निबंध 2 (300 शब्द)

भारत में महिलाओं के विरुद्ध हिंसा बहुत पुराना सामाजिक मुद्दा है जिसकी जड़ें अब सामजिक नियमों तथा आर्थिक निर्भरता के रूप में जम चुकी है। बर्बर सामूहिक बलात्कार, दफतर में यौन उत्पीड़न, तेजाब फेकनें जैसी घटनाओं के रूप में महिलाओं के विरुद्ध हिंसा उजागर होती रही है। इसका ताज़ा उदाहरण है राजधानी दिल्ली में 16 दिसम्बर 2012 निर्भया गैंग-रेप केस।

23 साल की लड़की से किये गए सामूहिक बलात्कार ने देश को झकझोर कर रख दिया था। परिणामस्वरूप बड़ी संख्या में भीड़ बदलाव की मांग करती हुई सड़कों पर उतर आई। ऐसी घटनाओं के रोज़ होने के कारण इससे महिलाओं के लिए सामाजिक मापदंड बदलना नामुमकिन सा लगता है। लोगों की शिक्षा स्तर बढ़ने के बावजूद भारतीय समाज के लिए ये समस्या गंभीर तथा जटिल बन गई है। महिलाओं के विरुद्ध होती हिंसा के पीछे मुख्य कारण है पुरुष प्रधान सोच, कमज़ोर कानून, राजनीतिक ढाँचे में पुरुषों का हावी होना तथा नाकाबिल न्यायिक व्यवस्था।

एक रिसर्च के अनुसार महिलाएं सबसे पहले हिंसा का शिकार अपनी प्रारंभिक अवस्था में अपने घर पर होती हैं। खासकर ग्रामीण इलाकों में महिलाओं को उनके परिवारजन, पुरुष रिश्तेदारों, पड़ोसियों द्वारा प्रताड़ित किया जाता है।

भारत में महिलाओं की स्थिति संस्कृति, रीती-रिवाज़, लोगों की परम्पराओं के कारण हर जगह भिन्न है। उत्तर-पूर्वी राज्यों तथा दक्षिण भारत के राज्यों में महिलाओं की अवस्था बाकि राज्यों के काफी अच्छी है। भ्रूण हत्या जैसी कुरीतियों के कारण भारत में 2011 की जनगणना के अनुसार 1000 लड़कों पर केवल 940 लड़कियां ही थी। इतनी कम लड़कियों की संख्या के पीछे भ्रूण-हत्या, बाल-अवस्था में लड़कियों की अनदेखी तथा जन्म से पहले लिंग-परीक्षण जैसे कारण हैं।

राष्ट्रीय अपराधिक रिकार्ड्स ब्यूरो के अनुसार महिलाएं अपने ससुराल में बिलकुल भी सुरक्षित नहीं हैं। महिलाओं के प्रति होती क्रूरता में एसिड फेंकना, बलात्कार, हॉनर किलिंग, अपरहण, दहेज़ के लिए क़त्ल करना, पति अथवा ससुराल वालों द्वारा पीटा जाना आदि शामिल है।

Essay on Violence Against Women in India in Hindi

निबंध 3 (400 शब्द)

भारत में महिलाएं हर तरह के सामाजिक, धार्मिक, प्रान्तिक परिवेश में हिंसा का शिकार हुई हैं। महिलाओं को भारतीय समाज के द्वारा दी गई हर तरह की क्रूरता को सहन करना पड़ता है चाहे वो घरेलू हो या फिर शारीरिक, सामाजिक, मानसिक, आर्थिक हो। भारत में महिलाओं के विरुद्ध हिंसा को बड़े स्तर पर इतिहास के पन्नों में साफ़ देखा जा सकता है। वैदिक काल में महिलाओं की स्थिति आज के मुकाबले बहुत सुखद थी पर उसके बाद, समय के बदलने के साथ-साथ महिलाओं के हालातों में भी काफी बदलाव आता चला गया। परिणामस्वरुप हिंसा में होते इज़ाफे के कारण महिलाओं ने अपने शिक्षा के साथ सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक समारोह में भागीदारी के अवसर भी खो दिए।

महिलाओं पर बढ़ते अत्याचारों के कारण उन्हें भरपेट भोजन नहीं दिया जाता था, उन्हें अपने मनपसंद कपड़े पहनने की अनुमति नहीं थी, जबरदस्ती उनका विवाह करवा दिया जाता था, उन्हें गुलाम बना के रखा जाने लगा, वैश्यावृति में धकेला गया। महिलाओं को सीमित तथा आज्ञाकारी बनाने के पीछे पुरुषों की ही सोच थी। पुरुष महिलाओं को एक वस्तु के रूप में देखते थे जिससे वे अपनी पसंद का काम करवा सके। भारतीय समाज में अक्सर ऐसा माना जाता है की हर महिला का पति उसके लिए भगवान समान है।

उन्हें अपने पति की लम्बी उम्र के लिए व्रत रखना चाहिए तथा हर चीज़ के लिए उन्हें अपने पति पर निर्भर रहना चाहिए। पुराने समय में विधवा महिलाओं के दोबारा विवाह पर पाबंदी थी तथा उन्हें सती प्रथा को मानने का दबाव डाला जाता था। महिलाओं को पीटना पुरुष अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझते थे। महिलाओं के प्रति हिंसा में तेज़ी तब आई जब नाबालिग लड़कियों को मंदिर में दासी बना कर रखा जाने लगा। इसने धार्मिक जीवन की आड़ में वैश्यावृति को जन्म दिया।

मध्यकालीन युग में इस्लाम और हिन्दू धर्म के टकराव ने महिलाओं के विरुद्ध हिंसा को बढ़ावा दिया। नाबालिग लड़कियों का बहुत कम उम्र में विवाह कर दिया जाता था और उन्हें हर समय पर्दे में रहने की सख्त हिदायत दी जाती थी। इस कारण महिलाओं के लिए अपने पति तथा परिवार के अलावा बाहरी दुनिया से किसी भी तरह का संपर्क स्थापित करना नामुमकिन था। इसके साथ ही समाज में बहुविवाह प्रथा ने जन्म लिया जिससे महिलाओं को अपने पति का प्यार दूसरी महिलाओं से बांटना पड़ता था।

नववधू की हत्या, कन्या भ्रूण हत्या और दहेज़ प्रथा महिलाओं पर होती बड़ी हिंसा का उदाहरण है। इसके अलावा महिलाओं को भरपेट खाना न मिलना, सही स्वास्थ्य सुविधा की कमी, शिक्षा के प्रयाप्त अवसर न होना, नाबालिग लड़कियों का यौन उत्पीड़न, दुल्हन को जिन्दा जला देना, पत्नी से मारपीट, परिवार में वृद्ध महिला की अनदेखी आदि समस्याएँ भी महिलाओं को सहनी पड़ती थी।

भारत में महिला हिंसा से जुड़े केसों में होती वृद्धि को कम करने के लिए 2015 में भारत सरकार जुवेनाइल जस्टिस (केयर एंड प्रोटेक्शन ऑफ़ चिल्ड्रेन) बिल लाई। इसका उद्देश्य साल 2000 के इंडियन जुवेनाइल लॉ को बदलने का था क्योंकि इसी कानून के चलते निर्भया केस के जुवेनाइल आरोपी को सख्त सजा नहीं हो पाई। इस कानून के आने के बाद 16 से 18 साल के किशोर, जो गंभीर अपराधों में संलिप्त है, के लिए भारतीय कानून के अंतर्गत सख्त सज़ा का प्रावधान है।

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Essay on Women Empowerment in Hindi

  • Essay on Women Empowerment in Hindi is Important for 5,6,7,8,9,10,11 and 12th Class.
  • इस लेख में हम महिला सशक्तिकरण का अर्थ, भारत में महिला सशक्तिकरण की आवश्यकता, महिला सशक्तिकरण के लाभ पर चर्चा करेंगे। “

महिला सशक्तिकरण’ के बारे में जानने से पहले हमें ये समझ लेना चाहिए कि हम ‘सशक्तिकरण’से क्या समझते है । ‘सशक्तिकरण’ से तात्पर्य किसी व्यक्ति की उस योग्यता से है जिसमें वो अपने जीवन से जुड़े सभी निर्णय स्वयं ले सके।

‘महिला सशक्तिकरण’ के इस लेख में भी हम उसी क्षमता की बात कर रहे हैं, जहाँ महिलाएँ परिवार और समाज के सभी बंधनों से मुक्त होकर अपने निर्णयों की निर्माता खुद हो।

आशा करते हैं कि यह लेख आपको समाज में महिलाओं की स्थिति और अधिकारों से अवगत करवाने में सक्षम होगा और महिला सशक्तिकरण के विषय में आपकी जानकारी को और अधिक विस्तृत करेगा।

  • महिला सशक्तिकरण का अर्थ
  • भारत में महिला सशक्तिकरण की आवश्यकता
  • भारत में महिला सशक्तिकरण के मार्ग में आने वाली बाधाएँ
  • भारत में महिला सशक्तिकरण के लिए सरकार की भूमिका
  • संसद द्वारा महिला सशक्तिकरण के लिए पास किए कुछ अधिनियम
  • महिलाओं की राष्ट्र निर्माण में भूमिका
  • महिला सशक्तिकरण के लाभ
  • Frequently Asked Questions

प्रस्तावना (introduction) आज के आधुनिक समय में महिला सशक्तिकरण एक विशेष चर्चा का विषय है। हमारे आदि – ग्रंथों में नारी के महत्त्व को मानते हुए यहाँ तक बताया गया है कि “यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:” अर्थात जहाँ नारी की पूजा होती है, वहाँ देवता निवास करते है।

लेकिन विडम्बना तो देखिए नारी में इतनी शक्ति होने के बावजूद भी उसके सशक्तिकरण की अत्यंत आवश्यकता महसूस हो रही है। महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण का अर्थ उनके आर्थिक फैसलों, आय, संपत्ति और दूसरे वस्तुओं की उपलब्धता से है, इन सुविधाओं को पाकर ही वह अपने सामाजिक स्तर को ऊँचा कर सकती हैं।

राष्ट्र के विकास में महिलाओं का महत्त्व और अधिकार के बारे में समाज में जागरुकता लाने के लिये मातृ दिवस, अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस आदि जैसे कई सारे कार्यक्रम सरकार द्वारा चलाए जा रहे हैं। महिलाओं को कई क्षेत्र में विकास की जरुरत है। भारत में, महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए सबसे पहले समाज में उनके अधिकारों और मूल्यों को मारने वाली उन सभी राक्षसी सोच को मारना जरुरी है, जैसे – दहेज प्रथा, अशिक्षा, यौन हिंसा, असमानता, भ्रूण हत्या, महिलाओं के प्रति घरेलू हिंसा, वैश्यावृति, मानव तस्करी और ऐसे ही दूसरे विषय।

अपने देश में उच्च स्तर की लैंगिक असमानता है। जहाँ महिलाएँ अपने परिवार के साथ ही बाहरी समाज के भी बुरे बर्ताव से पीड़ित है। भारत में अनपढ़ो की संख्या में महिलाएँ सबसे अव्वल है। नारी सशक्तिकरण का असली अर्थ तब समझ में आयेगा जब भारत में उन्हें अच्छी शिक्षा दी जाएगी और उन्हें इस काबिल बनाया जाएगा कि वो हर क्षेत्र में स्वतंत्र होकर फैसले कर सकें।

महिला सशक्तिकरण का अर्थ – Meaning of women empowerment

स्त्री को सृजन की शक्ति माना जाता है अर्थात स्त्री से ही मानव जाति का अस्तित्व माना गया है। इस सृजन की शक्ति को विकसित-परिष्कृति कर उसे सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक न्याय, विचार, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, अवसर की समानता का सु-अवसर प्रदान करना ही नारी सशक्तिकरण का आशय है। दूसरे शब्दों में – महिला सशक्तिकरण का अर्थ महिलाओं के सामाजिक और आर्थिक स्थिति में सुधार लाना है। ताकि उन्हें रोजगार, शिक्षा, आर्थिक तरक्की के बराबरी के मौके मिल सके, जिससे वह सामाजिक स्वतंत्रता और तरक्की प्राप्त कर सके। यह वह तरीका है, जिसके द्वारा महिलाएँ भी पुरुषों की तरह अपनी हर आकंक्षाओं को पूरा कर सके। आसान शब्दों में महिला सशक्तिकरण को इस प्रकार परिभाषित किया जा सकता है कि इससे महिलाओं में उस शक्ति का प्रवाह होता है, जिससे वो अपने जीवन से जुड़े हर फैसले स्वयं ले सकती हैं और परिवार और समाज में अच्छे से रह सकती हैं। समाज में उनके वास्तविक अधिकार को प्राप्त करने के लिए उन्हें सक्षम बनाना ही महिला सशक्तिकरण है।

भारत में महिला सशक्तिकरण की आवश्यकता – The need for women empowerment in India

भारत में महिला सशक्तिकरण की आवश्यकता के बहुत से कारण सामने आते हैं। प्राचीन काल के अपेक्षा मध्य काल में भारतीय महिलाओं के सम्मान स्तर में काफी कमी आयी। जितना सम्मान उन्हें प्राचीन काल में दिया जाता था, मध्य काल में वह सम्मान घटने लगा था। (i) आधुनिक युग में कई भारतीय महिलाएँ कई सारे महत्वपूर्ण राजनैतिक तथा प्रशासनिक पदों पर पदस्थ हैं, फिर भी सामान्य ग्रामीण महिलाएँ आज भी अपने घरों में रहने के लिए बाध्य है और उन्हें सामान्य स्वास्थ्य सुविधा और शिक्षा जैसी सुविधाएँ भी उपलब्ध नही है। (ii) शिक्षा के मामले में भी भारत में महिलाएँ पुरुषों की अपेक्षा काफी पीछे हैं। भारत में पुरुषों की शिक्षा दर 81.3 प्रतिशत है, जबकि महिलाओं की शिक्षा दर मात्र 60.6 प्रतिशत ही है। (iii) भारत के शहरी क्षेत्रों की महिलाएँ ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं के अपेक्षा अधिक रोजगारशील है, आकड़ो के अनुसार भारत के शहरों में साफ्टवेयर इंडस्ट्री में लगभग 30 प्रतिशत महिलाएँ कार्य करती है, वही ग्रामीण क्षेत्रों में लगभग 90 फीसदी महिलाएँ मुख्यतः कृषि और इससे जुड़े क्षेत्रों में दैनिक मजदूरी करती है। (iv) भारत में महिला सशक्तिकरण की आवश्यकता का एक और मुख्य कारण भुगतान में असमानता भी है। एक अध्ययन में सामने आया है कि समान अनुभव और योग्यता के बावजूद भी भारत में महिलाओं को पुरुषों के अपेक्षा 20 प्रतिशत कम भुगतान दिया जाता है।

(v) हमारा देश काफी तेजी और उत्साह के साथ आगे बढ़ता जा रहा है, लेकिन इसे हम तभी बरकरार रख सकते है, जब हम लैंगिग असमानता को दूर कर पाए और महिलाओं के लिए भी पुरुषों के तरह समान शिक्षा, तरक्की और भुगतान सुनिश्चित कर सके। (vi) भारत की लगभग 50 प्रतिशत आबादी केवल महिलाओं की है मतलब, पूरे देश के विकास के लिए इस आधी आबादी की जरुरत है जो कि अभी भी सशक्त नहीं है और कई सामाजिक प्रतिबंधों से बंधी हुई है। ऐसी स्थिति में हम नहीं कह सकते कि भविष्य में बिना हमारी आधी आबादी को मजबूत किए हमारा देश विकसित हो पायेगा। (vii) महिला सशक्तिकरण की जरुरत इसलिए पड़ी क्योंकि प्राचीन समय से भारत में लैंगिक असमानता थी और पुरुषप्रधान समाज था। महिलाओं को उनके अपने परिवार और समाज द्वार कई कारणों से दबाया गया तथा उनके साथ कई प्रकार की हिंसा हुई और परिवार और समाज में भेदभाव भी किया गया ऐसा केवल भारत में ही नहीं बल्कि दूसरे देशों में भी दिखाई पड़ता है। (viii) भारतीय समाज में महिलाओं को सम्मान देने के लिये माँ, बहन, पुत्री, पत्नी के रुप में महिला देवियों को पूजने की परंपरा है लेकिन आज केवल यह एक ढोंग मात्र रह गया है। (ix) पुरुष पारिवारिक सदस्यों द्वारा सामाजिक राजनीतिक अधिकार (काम करने की आजादी, शिक्षा का अधिकार आदि) को पूरी तरह प्रतिबंधित कर दिया गया। (x) पिछले कुछ वर्षों में महिलाओं के खिलाफ होने वाले लैंगिक असमानता और बुरी प्रथाओं को हटाने के लिये सरकार द्वारा कई सारे संवैधानिक और कानूनी अधिकार बनाए और लागू किए गए हैं। हालाँकि ऐसे बड़े विषय को सुलझाने के लिये महिलाओं सहित सभी का लगातार सहयोग की जरुरत है। (xi) आधुनिक समाज महिलाओं के अधिकार को लेकर ज्यादा जागरुक है जिसका परिणाम हुआ कि कई सारे स्वयं-सेवी समूह और एनजीओ आदि इस दिशा में कार्य कर रहे है। (xii) महिलाएँ ज्यादा खुले दिमाग की होती है और सभी आयामों में अपने अधिकारों को पाने के लिये सामाजिक बंधनों को तोड़ रही है। हालाँकि अपराध इसके साथ-साथ चल रहा है।

भारत में महिला सशक्तिकरण के मार्ग में आने वाली बाधाएँ (hurdles in implementation of women empowerment in India)

भारतीय समाज एक ऐसा समाज है, जिसमें कई तरह के रिवाज, मान्यताएँ और परम्पराएँ शामिल हैं। इनमें से कुछ पुरानी मान्यताएँ और परम्पराएँ ऐसी भी हैं जो भारत में महिला सशक्तिकरण के लिए बाधा सिद्ध होती हैं। उन्हीं बाधाओं में से कुछ निम्नलिखित हैं –

(i) पुरानी और रुढ़ीवादी विचारधाराओं के कारण भारत के कई सारे क्षेत्रों में महिलाओं के घर छोड़ने पर पाबंदी होती है। इस तरह के क्षेत्रों में महिलाओं को शिक्षा या फिर रोजगार के लिए घर से बाहर जाने के लिए आजादी नही होती है। (ii) पुरानी और रुढ़ीवादी विचारधाराओं के वातावरण में रहने के कारण महिलाएँ खुद को पुरुषों से कम समझने लगती हैं और अपने वर्तमान सामाजिक और आर्थिक दशा को बदलने में नाकाम साबित होती हैं। (iii) कार्यक्षेत्र में होने वाला शोषण भी महिला सशक्तिकरण में एक बड़ी बाधा है। नीजी क्षेत्र जैसे कि सेवा उद्योग, साफ्टवेयर उद्योग, शैक्षिक संस्थाएं और अस्पताल इस समस्या से सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं। (iv) समाज में पुरुष प्रधनता के वर्चस्व के कारण महिलाओं के लिए समस्याएँ उत्पन्न होती है। पिछले कुछ समय में कार्यक्षेत्रों में महिलाओं के साथ होने वाले उत्पीड़नों में काफी तेजी से वृद्धि हुई है और पिछले कुछ दशकों में लगभग 170 प्रतिशत वृद्धि देखने को मिली है।

(v) भारत में अभी भी कार्यस्थलों में महिलाओं के साथ लैंगिग स्तर पर काफी भेदभाव किया जाता है। कई सारे क्षेत्रों में तो महिलाओं को शिक्षा और रोजगार के लिए बाहर जाने की भी इजाजत नही होती है। इसके साथ ही उन्हें आजादीपूर्वक कार्य करने या परिवार से जुड़े फैसले लेने की भी आजादी नही होती है और उन्हें सदैव हर कार्य में पुरुषों के अपेक्षा कम ही माना जाता है। (vi) भारत में महिलाओं को अपने पुरुष समकक्षों के अपेक्षा कम भुगतान किया जाता है और असंगठित क्षेत्रो में यह समस्या और भी ज्यादा दयनीय है, खासतौर से दिहाड़ी मजदूरी वाले जगहों पर तो यह सबसे बदतर है। (vii) समान कार्य को समान समय तक करने के बावजूद भी महिलाओं को पुरुषों के अपेक्षा काफी कम भुगतान किया जाता है और इस तरह के कार्य महिलाओं और पुरुषों के मध्य के शक्ति असमानता को प्रदर्शित करते है। संगठित क्षेत्र में काम करने वाली महिलाओं को अपने पुरुष समकक्षों के तरह समान अनुभव और योग्यता होने के बावजूद पुरुषों के अपेक्षा कम भुगतान किया जाता है। (viii) महिलाओं में अशिक्षा और बीच में पढ़ाई छोड़ने जैसी समस्याएँ भी महिला सशक्तिकरण में काफी बड़ी बाधाएँ है। वैसे तो शहरी क्षेत्रों में लड़कियाँ शिक्षा के मामले में लड़कों के बराबर हैं, पर ग्रामीण क्षेत्रों में इस मामले वह काफी पीछे हैं। (ix) भारत में महिला शिक्षा दर 64.6 प्रतिशत है, जबकि पुरुषों की शिक्षा दर 80.9 प्रतिशत है। काफी सारी ग्रामीण लड़कियाँ जो स्कूल जाती भी हैं, उनकी पढ़ाई भी बीच में ही छूट जाती है और वह दसवीं कक्षा भी नही पास कर पाती हैं। (x) हालांकि पिछलें कुछ दशकों सरकार द्वारा लिए गए प्रभावी फैसलों द्वारा भारत में बाल विवाह जैसी कुरीति को काफी हद तक कम कर दिया गया है लेकिन 2018 में यूनिसेफ के एक रिपोर्ट द्वारा पता चलता है, कि भारत में अब भी हर वर्ष लगभग 15 लाख लड़कियों की शादी 18 वर्ष से पहले ही कर दी जाती है, जल्द शादी हो जाने के कारण महिलाओं का विकास रुक जाता है और वह शारीरिक तथा मानसिक रुप से व्यस्क नही हो पाती हैं। (xi) भारतीय महिलाओं के विरुद्ध कई सारे घरेलू हिंसाओं के साथ दहेज, हॉनर किलिंग और तस्करी जैसे गंभीर अपराध देखने को मिलते हैं। हालांकि यह काफी अजीब है कि शहरी क्षेत्रों की महिलाएँ ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं के अपेक्षा अपराधिक हमलों की अधिक शिकार होती हैं। (xii) कामकाजी महिलाएँ भी देर रात में अपनी सुरक्षा को देखते हुए सार्वजनिक परिवहन का उपयोग नही करती है। सही मायनों में महिला सशक्तिकरण की प्राप्ति तभी की जा सकती है जब महिलाओं की सुरक्षा को सुनिश्चित किया जा सके और पुरुषों के तरह वह भी बिना भय के स्वच्छंद रुप से कही भी आ जा सकें। (xiii) कन्या भ्रूणहत्या या फिर लिंग के आधार पर गर्भपात, भारत में महिला सशक्तिकरण के रास्ते में आने वाली सबसे बड़ी बाधाओं में से एक है। कन्या भ्रूणहत्या का अर्थ लिंग के आधार पर होने वाली भ्रूण हत्या से है, जिसके अंतर्गत कन्या भ्रूण का पता चलने पर बिना माँ के सहमति के ही गर्भपात करा दिया जाता है। कन्या भ्रूण हत्या के कारण ही हरियाणा और जम्मू कश्मीर जैसे प्रदेशों में स्त्री और पुरुष लिंगानुपात में काफी ज्यादे अंतर आ गया है। हमारे महिला सशक्तिकरण के यह दावे तब तक नही पूरे होंगे, जब तक हम कन्या भ्रूण हत्या की समस्या को मिटा नहीं पाएँगे।

भारत में महिला सशक्तिकरण के लिए सरकार की भूमिका – Role of the government in implementation of women empowerment in India भारत सरकार द्वारा महिला सशक्तिकरण के लिए कई सारी योजनाएँ चलाई जाती हैं। इनमें से कई सारी योजनाएँ रोजगार, कृषि और स्वास्थ्य जैसी चीजों से सम्बंधित होती हैं। इन योजनाओं का गठन भारतीय महिलाओं के परिस्थिति को देखते हुए किया गया है ताकि समाज में उनकी भागीदारी को बढ़ाया जा सके। इनमें से कुछ मुख्य योजनाएँ मनरेगा, सर्व शिक्षा अभियान, जननी सुरक्षा योजना (मातृ मृत्यु दर को कम करने के लिए चलायी जाने वाली योजना) आदि हैं। महिला एंव बाल विकास कल्याण मंत्रालय और भारत सरकार द्वारा भारतीय महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए निम्नलिखित योजनाएँ इस आशा के साथ चलाई जा रही है कि एक दिन भारतीय समाज में महिलाओं को पुरुषों की ही तरह प्रत्येक अवसर का लाभ प्राप्त होगा-

1) बेटी बचाओं बेटी पढ़ाओं योजना –

यह योजना कन्या भ्रूण हत्या और कन्या शिक्षा को ध्यान में रखकर बनायी गयी है। इसके अंतर्गत लड़कियों के बेहतरी के लिए योजना बनाकर और उन्हें आर्थिक सहायता देकर उनके परिवार में फैली भ्रांति लड़की एक बोझ है की सोच को बदलने का प्रयास किया जा रहा है।

2) महिला हेल्पलाइन योजना –

इस योजना के अंतर्गत महिलाओं को 24 घंटे इमरजेंसी सहायता सेवा प्रदान की जाती है, महिलाएँ अपने विरुद्ध होने वाली किसी तरह की भी हिंसा या अपराध की शिकायत इस योजना के तहत निर्धारित नंबर पर कर सकती हैं। इस योजना के तरत पूरे देश भर में 181 नंबर को डायल करके महिलाएँ अपनी शिकायतें दर्ज करा सकती हैं।

3) उज्जवला योजना –

यह योजना महिलाओं को तस्करी और यौन शोषण से बचाने के लिए शुरू की गई है। इसके साथ ही इसके अंतर्गत उनके पुनर्वास और कल्याण के लिए भी कार्य किया जाता है।

4) सपोर्ट टू ट्रेनिंग एंड एम्प्लॉयमेंट प्रोग्राम फॉर वूमेन (स्टेप) –

स्टेप योजना के अंतर्गत महिलाओं के कौशल को निखारने का कार्य किया जाता है ताकि उन्हें भी रोजगार मिल सके या फिर वह स्वंय का रोजगार शुरु कर सके। इस कार्यक्रम के अंतर्गत कई सारे क्षेत्रों के कार्य जैसे कि कृषि, बागवानी, हथकरघा, सिलाई और मछली पालन आदि के विषयों में महिलाओं को शिक्षित किया जाता है।

5) महिला शक्ति केंद्र –

यह योजना समुदायिक भागीदारी के माध्यम से ग्रामीण महिलाओं को सशक्त बनाने पर केंद्रित है। इसके अंतर्गत छात्रों और पेशेवर व्यक्तियों जैसे सामुदायिक स्वयंसेवक ग्रामीण महिलाओं को उनके अधिकारों और कल्याणकारी योजनाओं के बारे में जानकारी प्रदान करते है।

6) पंचायाती राज योजनाओं में महिलाओं के लिए आरक्षण –

2009 में भारत के केंद्रीय मंत्रिमंडल ने पंचायती राज संस्थानों में 50 फीसदी महिला आरक्षण की घोषणा की, सरकार के इस कार्य के द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं के सामाजिक स्तर को सुधारने का प्रयास किया गया। जिसके द्वारा बिहार, झारखंड, उड़ीसा और आंध्र प्रदेश के साथ ही दूसरे अन्य प्रदेशों में भी भारी मात्रा में महिलाएँ ग्राम पंचायत अध्यक्ष चुनी गई।

संसद द्वारा महिला सशक्तिकरण के लिए पास किए कुछ अधिनियम (Laws made by the Parliament favouring women empowerment) कानूनी अधिकार के साथ महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए संसद द्वारा भी कुछ अधिनियम पास किए गए हैं। वे अधिनियम निम्नलिखित हैं – (i) अनैतिक व्यापार (रोकथाम) अधिनियम 1956 (ii) दहेज रोक अधिनियम 1961 (iii) एक बराबर पारिश्रमिक एक्ट 1976 (iv) मेडिकल टर्म्नेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट 1987 (v) लिंग परीक्षण तकनीक एक्ट 1994 (vi) बाल विवाह रोकथाम एक्ट 2006 (vii) कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन शोषण एक्ट 2013

महिलाओं की राष्ट्र निर्माण में भूमिका – (Role of women in the nation’s progress) बदलते समय के साथ आधुनिक युग की नारी पढ़-लिख कर स्वतंत्र है। वह अपने अधिकारों के प्रति सजग है तथा स्वयं अपना निर्णय लेती हैं। अब वह चारदीवारी से बाहर निकलकर देश के लिए विशेष महत्वपूर्ण कार्य करती है। महिलाएँ हमारे देश की आबादी का लगभग आधा हिस्सा हैं। इसी वजह से राष्ट्र के विकास के महान काम में महिलाओं की भूमिका और योगदान को पूरी तरह और सही परिप्रेक्ष्य में रखकर ही राष्ट्र निर्माण के लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है।

भारत में भी ऐसी महिलाओं की कमी नहीं है, जिन्होंने समाज में बदलाव और महिला सम्मान के लिए अपने अन्दर के डर को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया। ऐसी ही एक मिसाल बनी सहारनपुर की अतिया साबरी। अतिया पहली ऐसी मुस्लिम महिला हैं, जिन्होंने तीन तलाक के खिलाफ अपनी आवाज को बुलंद किया।

तेजाब पीड़ितों के खिलाफ इंसाफ की लड़ाई लड़ने वाली वर्षा जवलगेकर के भी कदम रोकने की नाकाम कोशिश की गई, लेकिन उन्होंने इंसाफ की लड़ाई लड़ना नहीं छोड़ा। हमारे देश में ऐसे कई उदहारण है जो महिला सशक्तिकरण का पर्याय बन रही है।

आज देश में नारी शक्ति को सभी दृष्टि से सशक्त बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं। इसका परिणाम भी देखने को मिल रहा है। आज देश की महिलाएँ जागरूक हो चुकी हैं। आज की महिला ने उस सोच को बदल दिया है कि वह घर और परिवार की ही जिम्मदारी को बेहतर निभा सकती है।

आज की महिला पुरुषों के साथ कंधे से कन्धा मिला कर बड़े से बड़े कार्य क्षेत्र में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रहीं हैं। फिर चाहे काम मजदूरी का हो या अंतरिक्ष में जाने का। महिलाएँ अपनी योग्यता हर क्षेत्र में साबित कर रही हैं।

महिला सशक्तिकरण के लाभ – Advantages of women empowerment महिला सशक्तिकरण के बिना देश व समाज में नारी को वह स्थान नहीं मिल सकता, जिसकी वह हमेशा से हकदार रही है। महिला सशक्तिकरण के बिना वह सदियों पुरानी परम्पराओं और दुष्टताओं से लोहा नहीं ले सकती। बन्धनों से मुक्त होकर अपने निर्णय खुद नहीं ले सकती। स्त्री सशक्तिकरण के अभाव में वह इस योग्य नहीं बन सकती कि स्वयं अपनी निजी स्वतंत्रता और अपने फैसलों पर आधिकार पा सके। महिला सशक्तिकरण के कारण महिलाओं की जिंदगी में बहुत से बदलाव हुए। (i) महिलाओं ने हर कार्य में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेना शुरू किया है। (ii) महिलाएँ अपनी जिंदगी से जुड़े फैसले खुद कर रही हैं। (iii) महिलाएँ अपने हक के लिए लड़ने लगी हैं और धीरे धीरे आत्मनिर्भर बनती जा रही हैं। (iv) पुरुष भी अब महिलाओं को समझने लगे हैं, उनके हक भी उन्हें दे रहें हैं। (v) पुरुष अब महिलाओं के फैसलों की इज्जत करने लगे हैं। कहा भी जाता है कि – हक माँगने से नही मिलता छीनना पड़ता है और औरतों ने अपने हक अपनी काबिलियत से और एक जुट होकर मर्दों से हासिल कर लिए हैं।

महिला अधिकारों और समानता का अवसर पाने में महिला सशक्तिकरण ही अहम भूमिका निभा सकती है। क्योंकि स्त्री सशक्तिकरण महिलाओं को सिर्फ गुजारे-भत्ते के लिए ही तैयार नहीं करती, बल्कि उन्हें अपने अंदर नारी चेतना को जगाने और सामाजिक अत्याचारों से मुक्ति पाने का माहौल भी तैयारी करती है।

उपसंहार (conclusion)

जिस तरह से भारत आज दुनिया के सबसे तेज आर्थिक तरक्की प्राप्त करने वाले देशों में शुमार हुआ है, उसे देखते हुए निकट भविष्य में भारत को महिला सशक्तिकरण के लक्ष्य को प्राप्त करने पर भी ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है। भारतीय समाज में सच में महिला सशक्तिकरण लाने के लिए महिलाओं के विरुद्ध बुरी प्रथाओं के मुख्य कारणों को समझना और उन्हें हटाना होगा जो समाज की पितृसत्तामक और पुरुष युक्त व्यवस्था है। यह बहुत आवश्यक है कि हम महिलाओं के विरुद्ध अपनी पुरानी सोच को बदलें और संवैधानिक तथा कानूनी प्रावधानों में भी बदलाव लाए।

भले ही आज के समाज में कई भारतीय महिलाएँ राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, प्रशासनिक अधिकारी, डॉक्टर, वकील आदि बन चुकी हो, लेकिन फिर भी काफी सारी महिलाओं को आज भी सहयोग और सहायता की आवश्यकता है। उन्हें शिक्षा, और आजादीपूर्वक कार्य करने, सुरक्षित यात्रा, सुरक्षित कार्य और सामाजिक आजादी में अभी भी और सहयोग की आवश्यकता है। महिला सशक्तिकरण का यह कार्य काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि भारत की सामाजिक-आर्थिक प्रगति उसके महिलाओं के सामाजिक-आर्थिक प्रगति पर ही निर्भर करती है।

महिला सशक्तिकरण महिलाओं को वह मजबूती प्रदान करता है, जो उन्हें उनके हक के लिए लड़ने में मदद करता है। हम सभी को महिलाओं का सम्मान करना चाहिए, उन्हें आगे बढ़ने का मौका देना चाहिए। इक्कीसवीं सदी नारी जीवन में सुखद सम्भावनाओं की सदी है। महिलाएँ अब हर क्षेत्र में आगे आने लगी हैं। आज की नारी अब जाग्रत और सक्रीय हो चुकी है। किसी ने बहुत अच्छी बात कही है “नारी जब अपने ऊपर थोपी हुई बेड़ियों एवं कड़ियों को तोड़ने लगेगी, तो विश्व की कोई शक्ति उसे नहीं रोक पाएगी । ” वर्तमान में नारी ने रुढ़िवादी बेड़ियों को तोड़ना शुरू कर दिया है। यह एक सुखद संकेत है। लोगों की सोच बदल रही है, फिर भी इस दिशा में और भी प्रयास करने की आवश्यकता है। Top

महिला अधिकारिता पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

इन सवालों के जवाब देने से आपको महिला सशक्तिकरण पर अपने निबंध में शामिल करने के लिए महत्वपूर्ण बिंदु मिलेंगे।

प्रश्न 1- महिला सशक्तिकरण वास्तव में क्या है? A- महिला सशक्तिकरण महिलाओं को अपने निर्णय लेने और अपने स्वयं के जीवन का निर्माण करने का अधिकार और संसाधन देने की प्रक्रिया है, साथ ही लैंगिक समानता को बढ़ावा देने और महिलाओं की संभावनाओं और स्वायत्तता को सीमित करने वाली बाधाओं को दूर करने की प्रक्रिया है।

प्रश्न 2- महिला सशक्तिकरण का क्या महत्व है? बी- दीर्घकालीन विकास हासिल करने और बुनियादी अधिकारों को बढ़ावा देने के लिए महिला सशक्तिकरण महत्वपूर्ण है। जो महिलाएं सशक्त हैं, वे समाज में भाग लेने, अर्थव्यवस्था में योगदान देने और अपने समुदायों की भलाई में सुधार करने में अधिक सक्षम हैं।

प्रश्न 3- महिलाओं को अधिक शक्ति कैसे दी जा सकती है? शिक्षा, आर्थिक अवसर, स्वास्थ्य देखभाल तक पहुंच और कानूनी सहारा, सरकार में प्रतिनिधित्व, और बदलते सामाजिक और सांस्कृतिक विचार सभी महिलाओं को सशक्त बनाने में सहायता कर सकते हैं।

प्रश्न 4- महिला सशक्तिकरण के क्या लाभ हैं? A- महिला सशक्तीकरण के कई फायदे हैं, जिनमें अधिक आर्थिक अवसर और वित्तीय स्वतंत्रता, बेहतर स्वास्थ्य और कल्याण, अधिक राजनीतिक प्रतिनिधित्व और निर्णय लेने की शक्ति, और मजबूत समुदाय और समाज शामिल हैं।

प्रश्न 5- महिला सशक्तिकरण के लिए क्या चुनौतियाँ हैं? सांस्कृतिक और सामाजिक विचार, महिलाओं के खिलाफ हिंसा, आर्थिक असमानता, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा तक सीमित पहुंच, और अपर्याप्त राजनीतिक प्रतिनिधित्व सभी महिला सशक्तिकरण के लिए बाधाएं हैं।

प्रश्न 6- महिला सशक्तिकरण में शिक्षा की क्या भूमिका है? A – शिक्षा महिला सशक्तिकरण का एक महत्वपूर्ण घटक है क्योंकि यह महिलाओं को ज्ञान और कौशल से लैस करती है जिसकी उन्हें समाज और कार्यस्थल में भाग लेने के साथ-साथ सूचित जीवन निर्णय लेने की आवश्यकता होती है।

प्रश्न 7- आर्थिक सशक्तिकरण का महिलाओं पर क्या प्रभाव पड़ता है? A- महिलाओं को आर्थिक सशक्तिकरण से बहुत लाभ होता है क्योंकि यह उन्हें आर्थिक रूप से अधिक सुरक्षित बनने और अपने स्वयं के जीवन पर अधिक नियंत्रण रखने के लिए सशक्त बनाता है। यह महिलाओं की संभावनाओं और स्वायत्तता को सीमित करने वाली बाधाओं को दूर करने में भी योगदान देता है।

प्रश्न 8- महिलाओं के खिलाफ हिंसा को कैसे संबोधित किया जा सकता है? A- कानूनी सुरक्षा और न्याय तक पहुंच, शिक्षा और जागरूकता बढ़ाने की पहल, और बदलती सामाजिक और सांस्कृतिक मानसिकता जो हिंसा को बढ़ावा देती है, सभी महिलाओं के खिलाफ हिंसा के खिलाफ लड़ाई का समर्थन कर सकती हैं।

प्रश्न 9- महिला सशक्तिकरण में सरकारें क्या भूमिका निभाती हैं? A- सरकारें लैंगिक समानता, स्वास्थ्य देखभाल और शिक्षा तक पहुंच और महिलाओं के लिए सामाजिक आर्थिक अवसरों को प्रोत्साहित करने के लिए कानून और कार्यक्रम बनाकर महिला सशक्तिकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं।

प्रश्न 10- समुदाय महिलाओं को सशक्त बनाने में कैसे मदद कर सकते हैं? A- समुदाय लैंगिक समानता को प्रोत्साहित करके, शैक्षिक अवसरों और संसाधनों को बढ़ावा देकर, और महिलाओं की स्वायत्तता और क्षमता में बाधा डालने वाले सांस्कृतिक और सामाजिक व्यवहारों से निपटकर महिलाओं का समर्थन और सशक्तिकरण कर सकते हैं। Top Recommended Read –

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भारत में महिलाओं की स्थिति पर निबंध

essay on women's liberation in hindi

By विकास सिंह

women's status in india in hindi

स्वतंत्रता के बाद भारत में महिलाओं की स्थिति में बहुत सुधार हुआ है। धीरे-धीरे महिलाओं ने समाज में पुरुषों के साथ समानता का आनंद लेना शुरू कर दिया। भारत में महिलाओं की स्थिति पर निबंधों की विविधता उनके स्कूल में निबंध लेखन प्रतियोगिता के दौरान छात्रों की मदद करने के लिए नीचे दी गई है।

यह अब के दिनों का सबसे आम विषय है जिसे छात्रों को कुछ पैराग्राफ या पूरा निबंध लिखने के लिए सौंपा जा सकता है। सभी निबंध बहुत ही सरल और आसान शब्दों का उपयोग करके लिखे गए हैं ताकि छात्र अपनी आवश्यकता के अनुसार उनमें से किसी का चयन कर सकें।

भारत में महिलाओं की स्थिति पर निबंध, women’s status in india in hindi (100 शब्द)

प्राचीन भारत में महिलाओं की स्थिति काफी उच्च थी, लेकिन यह समय बीतने और महिलाओं के प्रति लोगों की मानसिकता के साथ बिगड़ गया। धीरे-धीरे बहुविवाह, सती प्रथा, दहेज प्रथा, कन्या भ्रूण हत्या आदि की प्रथा हावी हो गई और पुरुष प्रधान देश को जन्म दिया।

महान भारतीय नेताओं ने भारतीय समाज में महिलाओं की स्थिति को फिर से बढ़ाने के लिए बहुत काम किया था। उनकी मेहनत के कारण भारतीय समाज में महिलाओं के खिलाफ बुरे व्यवहार पर काफी हद तक प्रतिबंध लगा दिया गया है। भारत सरकार ने महिलाओं की सुरक्षा और सशक्तिकरण के संबंध में कई प्रभावी कानून लागू किए हैं।

पंचायती राज व्यवस्था में लगभग 33% सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित हैं, इसलिए महिलाएं अधिक जागरूक हो रही हैं और अपने अधिकारों के लिए लड़ने के लिए आगे आ रही हैं।

भारत में महिलाओं की स्थिति पर लेख, women’s situation in india in hindi (150 शब्द)

पहले वैदिक काल में, भारतीय समाज में महिलाओं को बहुत सम्मान और आदर दिया जाता था। उन्हें समान रूप से सामाजिक, बौद्धिक और नैतिक रूप से पुरुषों को विकसित करने के अवसर दिए गए थे। वे जीवन में अपना रास्ता चुनने और जीवन साथी का चयन करने के लिए पूरी तरह से स्वतंत्र थे।

वे शादी से पहले पूरी शिक्षा प्राप्त कर रहे थे और साथ ही अपनी सुरक्षा के लिए सैन्य प्रशिक्षण भी ले रहे थे। हालांकि, भारतीय समाज में महिलाओं के खिलाफ विभिन्न बुरे व्यवहारों के कारण मध्य युग में महिलाओं की स्थिति खराब हो गई।

महिलाओं की स्थिति उस समय हीन हो गई जब वे पुरुष और ड्रॉइंग रूम की सजावट की भूमिका निभाने वाली थीं। महिलाएं लगभग पुरुषों की भावनाओं की गुलाम बन गईं और उन्हें परदे के पीछे रहने को मजबूर होना पड़ा। उन्हें शिक्षा और संपत्ति के अपने अधिकार छोड़ दिए गए।

हालांकि फिर से स्वतंत्र भारत में, महिलाएं पुरुष के साथ पूर्ण समानता का आनंद ले रही हैं। वे अब आदमी के जुनून के गुलाम नहीं हैं और इंसान की दया पर नहीं रहते। वे अपनी आवाज उठा रहे हैं और देश के भाग्य को आकार देने में मदद कर रहे हैं।

भारत में महिलाओं की स्थिति पर निबंध, women’s status in india in hindi (200 शब्द)

प्राचीन भारतीय समाज में महिलाओं की स्थिति काफी बेहतर थी, लेकिन अधेड़ उम्र में यह बिगड़ गई। महिलाओं के खिलाफ विभिन्न बीमारियां अस्तित्व में आईं, जिन्होंने महिलाओं की स्थिति को खराब किया। भारतीय समाज पुरुष प्रधान समाज बन गया और महिलाओं को पुरुष का गुलाम माना जाने लगा।

धीरे-धीरे वे समाज में कमजोर लिंग बन गए क्योंकि पुरुष महिलाओं को अपने अंगूठे के नीचे रखते थे। उन्हें घर की चार दीवारों के नीचे रहने वाले गूंगे मवेशियों के रूप में नेत्रहीन पुरुषों का पालन करने के लिए मजबूर किया गया था। देश में किसी स्थान पर, महिलाओं को समाज में तेजी से बदलाव के बाद भी पुरुषों द्वारा बीमार किया जाता है।

समाज की सभी पुरानी संस्कृतियों, परंपराओं और प्रतिबंधों के बाद महिलाओं को घर की जीवित चीजों के रूप में माना जाता है। पहले परिवार के बुजुर्ग घर में एक महिला बच्चे के जन्म पर खुश नहीं थे, लेकिन अगर बच्चा पुरुष था तो वे दोगुने खुश हो गए। वे समझ गए कि पुरुष बच्चा पैसे का स्रोत होगा जबकि महिला बच्चा पैसे का उपभोक्ता होगा।

बेटी का जन्म परिवार के लिए अभिशाप माना जाता था। भारतीय समाज में धीरे-धीरे होने वाले सकारात्मक बदलाव महिलाओं की स्थिति के लिए फायदेमंद साबित हुए हैं। लोगों की सकारात्मक सोच ने तेजी से गति पकड़ी है जिसने मानव मन को राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक रूप से महिलाओं के प्रति बदल दिया है।

भारत में महिलाओं की स्थिति पर निबंध, 250 शब्द:

भारतीय समाज में विशेष रूप से मध्यम आयु में महिलाओं की स्थिति इतनी बुरी और हीन थी। शास्त्रों में उच्च स्थान दिए जाने के बाद भी महिलाओं को पुरुषों का गुलाम माना जाता था। सैद्धांतिक रूप से महिलाओं की स्थिति अधिक थी लेकिन व्यावहारिक रूप से यह कम था।

महिलाओं को कई घरेलू, सामाजिक और साथ ही बाहरी मामलों में भाग लेने की मनाही थी। उन्हें शादी से पहले माता-पिता के प्रभाव में रहने के लिए मजबूर किया गया, जबकि शादी के बाद पति के प्रभाव में। मुगल काल में महिलाओं की स्थिति और अधिक खराब हो गई। महिलाओं को सती प्रथा, क्षमा प्रार्थना, और महिलाओं के खिलाफ अन्य बुरी प्रथाओं के नियमों का पालन करने के लिए मजबूर किया गया था।

भारत में ब्रिटिश शासन के दौरान महिलाओं की स्थिति इतनी बदली नहीं थी कि बदतर भी हो गई थी। भारत की आजादी के कई वर्षों के संघर्ष के बाद इसे बदलना शुरू किया गया था जब महात्मा गांधी ने महिलाओं को आगे आने और स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने का आह्वान किया था।

इसमें कई महान महिलाओं (विजया लक्ष्मी पंडित, सरोजिनी नायडू, श्रीमती अरुणा आसफ अली, आदि) का हाथ है जिन्होंने भारत में महिलाओं की स्थिति को बदलने में मदद की। श्रीमती इंदिरा गांधी के भारत के प्रधान मंत्री के रूप में होने के बाद, महिलाओं की स्थिति को सकारात्मक रूप से बदल दिया गया था।

वह दुनिया भर में प्रसिद्ध महिला बन गई और इस तरह अन्य भारतीय महिलाओं के लिए शानदार आइकन और प्रेरणा बन गई। बाद में भारत में कई महिलाओं के प्रतिष्ठित पदों ने साबित कर दिया है कि महिलाएं पुरुषों से नीच नहीं हैं और एक साथ जा सकती हैं।

भारत में महिलाओं की स्थिति पर निबंध, 300 शब्द:

पिछले कुछ सहस्राब्दी में, भारत में महिलाओं की स्थिति में कई बड़े बदलाव हुए हैं। हाल के दशकों में समान यौन अधिकारों को काफी हद तक बढ़ावा मिला है। पहले महिलाएं घरेलू गतिविधियों के लिए जिम्मेदार थीं और बाहरी गतिविधियों के लिए सख्ती से प्रतिबंधित थीं।

प्राचीन भारत में महिलाएं अपने पति और बच्चों को उनकी प्राथमिक ड्यूटी के रूप में देखभाल करने के लिए जिम्मेदार थीं। महिलाओं को पुरुषों की तरह समान रूप से आनंद लेने की अनुमति नहीं थी। प्रारंभिक वैदिक काल में, यह ध्यान दिया जाता है कि महिलाओं को अच्छी तरह से शिक्षित किया गया था (प्राचीन भारतीय व्याकरण जैसे पतंजलि, कात्यायन आदि के काम में)।

ऋग्वैदिक छंदों के अनुसार, महिलाएं अपनी परिपक्व उम्र में शादी कर रही थीं और उस समय अपने जीवन साथी का चयन करने के लिए स्वतंत्र थीं। गार्गी और मैत्रेयी दो महान और उल्लेखनीय महिला संत हैं जिनका उल्लेख ऋग्वेद और उपनिषद शास्त्रों में किया गया है।

इतिहास के अनुसार, महिलाओं की स्थिति स्मिट्रिटिस (मनुस्मृति) के साथ घटने लगी थी। धीरे-धीरे इस्लामी आक्रमण और ईसाई धर्म के कारण महिलाओं की स्वतंत्रता और अधिकारों से पर्दा उठा दिया गया। तब भारत में महिलाओं को सती प्रथा, बाल विवाह, बाल श्रम, क्षमा प्रथा, विधवा पुनर्विवाह पर प्रतिबंध आदि जैसे समाज में बुरी प्रथाओं के कारण कारावास और प्रतिबंधों का सामना करना पड़ा।

भारतीय उपमहाद्वीप में मुस्लिम विजय के द्वारा भारतीय समाज में पुरदाह प्रथा को लाया गया था। राजस्थान के राजपूतों द्वारा जौहर का अभ्यास किया गया था, जबकि मंदिरों में देवदासियों का अमीर लोगों द्वारा यौन शोषण किया गया था। हालांकि, अब एक महिला, डर के बिना काम के हर क्षेत्र (जैसे राजनीति, सामाजिक कार्य, आईटी क्षेत्र, ड्राइविंग, आदि) में भाग ले रही है।

महिलाएं कई क्षेत्रों में काम कर रही हैं, यहां तक ​​कि वे पुरुषों की तुलना में अधिक रुचि और बेहतर प्रदर्शन कर रही हैं। हम यह नहीं कह सकते कि भारतीय समाज में महिलाओं की स्थिति पूरी तरह से विकसित हो चुकी है, लेकिन यह लगातार बढ़ रही है क्योंकि महिलाएं अपने अधिकारों के बारे में अधिक जागरूक हो रही हैं।

भारत में महिलाओं की स्थिति पर निबंध, women’s status in india in hindi (400 शब्द)

स्वतंत्रता के बाद भारत में महिलाओं की स्थिति में बहुत सुधार हुआ है। धीरे-धीरे महिलाओं ने समाज में पुरुषों के साथ समानता का आनंद लेना शुरू कर दिया। पुरुषों के पास महिलाओं के पास हर क्षेत्र में सभी अधिकार और विशेषाधिकार हैं। भारत के संविधान ने समान अधिकार, विशेषाधिकार और स्वतंत्रता दी है जो पुरुषों द्वारा वर्षों से आनंदित हैं।

महिलाओं के खिलाफ विभिन्न शोषण के बाद भी, वे अब बहुत अधिक मुक्त महसूस कर रही हैं। भारत में लगभग आधा क्षेत्र और जनसंख्या महिलाओं द्वारा कवर की जाती है इसलिए देश का विकास समान रूप से दोनों की स्थिति पर निर्भर करता है।

हम उस समय की कल्पना कर सकते हैं जब 50% आबादी को समान अवसर और अधिकार नहीं दिए गए थे और यहां तक ​​कि समाज में कई गतिविधियों को करने के लिए प्रतिबंधित किया गया था। अब-के-दिन, महिलाएं जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में शीर्ष स्थान प्राप्त कर रही हैं जैसे कि कुछ महान राजनीतिक नेता, समाज सुधारक, उद्यमी, व्यावसायिक व्यक्तित्व, प्रशासक आदि रहे हैं।

महिलाओं की स्थिति में सुधार से देश की सामाजिक और आर्थिक स्थिति बदल जाती है। भारतीय समाज में महिलाओं की स्थिति अन्य विकासशील देशों की महिलाओं की तुलना में बहुत बेहतर है। हालांकि, यह कहना पर्याप्त नहीं है कि भारत में महिलाओं की स्थिति पूरी तरह से बेहतर हुई है।

ऐसी प्रतिस्पर्धी दुनिया में, भारतीय महिलाएं विभिन्न क्षेत्रों में अपने अधिकारों और विशेषाधिकारों के बारे में अच्छी तरह से जागरूक हो रही हैं। वे परिवार के प्रति अपनी सभी जिम्मेदारियों का पालन करके अपने पेशेवर कैरियर (सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक और शैक्षणिक रूप से) के बारे में अधिक जागरूक हो रहे हैं।

महिलाएं लोकतांत्रिक प्रक्रिया और चुनावों में सक्रिय रूप से भाग ले रही हैं जो उनकी स्थिति को बढ़ाने में काफी प्रभावशाली है। मतदान के दिन पुरुषों के मतदाताओं की तुलना में पुरुषों की तुलना में महिला मतदाताओं की संख्या बढ़ रही है, पुरुषों की तुलना में किसी भी कार्य क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है।

कुछ महान भारतीय महिला नेता, समाज सुधारक, सामाजिक कार्यकर्ता, प्रशासक, और साहित्यिक व्यक्तित्व जिन्होंने महिलाओं की स्थिति को बहुत बदल दिया है, वे हैं इंदिरा गांधी, विजय लक्ष्मी पंडित, एनी बेसेंट, महादेवी वर्मा, टिप्पी कृपलानी, पी.टी. उषा, अमृता प्रीतम, पद्मजा नायडू, कल्पना चावला, राज कुमारी अमृत कौर, मदर टेरेसा, सुभद्रा कुमारी चौहान, आदि महिलाओं को सामाजिक, आर्थिक, आर्थिक रूप से विभिन्न क्षेत्रों में बेटियों, बहनों, पत्नियों, माताओं, दादी, आदि के रूप में भाग लेना शुरू किया गया है।

राजनीतिक, शैक्षिक, वैज्ञानिक और अन्य राष्ट्र निर्माण गतिविधियाँ। वे पेशेवर प्रदर्शन के साथ-साथ घरेलू जिम्मेदारियों को भी बहुत सक्रियता से निभा रहे हैं। भारत में महिलाओं की स्थिति में भारी स्तर के सुधार के बाद भी, उनके साथ बलात्कार, यौन भेदभाव, आदि जैसे कई तरीकों से शोषण और दुर्व्यवहार किया जाता है।

महिलाओं की सुरक्षा और महिलाओं के खिलाफ अपराध को कम करने के बारे में, भारत सरकार ने एक और किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) विधेयक, 2015 पारित किया है, जो 2000 के पहले के भारतीय किशोर अपराध कानून की जगह लेती है। यह अधिनियम निर्भया मामले के बाद विशेष रूप से तब पारित किया जाता है जब कोई आरोपी किशोर होता है। जारी किया गया। इस अधिनियम के अनुसार, जघन्य अपराधों के मामलों में किशोर की आयु 18 वर्ष से 16 वर्ष है।

[ratemypost]

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विकास नें वाणिज्य में स्नातक किया है और उन्हें भाषा और खेल-कूद में काफी शौक है. दा इंडियन वायर के लिए विकास हिंदी व्याकरण एवं अन्य भाषाओं के बारे में लिख रहे हैं.

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महिलाओं की सुरक्षा पर निबंध | Essay on Women Safety in Hindi

महिलाओं की सुरक्षा पर निबंध (250 शब्द).

सदियों से महिलाओं की सुरक्षा समाज के लिए एक चिंतित विषय रहा है। भारतीय संस्कृति में महिलाओं का विशिष्ट स्थान है। नारी को देवी लक्ष्मी के समान पूजा जाता है। लेकिन महिलाएं न तो बाहर सुरक्षित हैं और न ही घर में। यह अब एक बड़ा मुद्दा बन गया है।

रात में महिलाएं अपने घरों से बाहर निकलने से पहले दो बार सोचती हैं। यह हमारे देश की दुखद वास्तविकता है, महिलाएं निरंतर भय में रहती है। महिलाओं के खिलाफ कुछ अपराध में बलात्कार, ऑनर किलिंग, बाल शोषण, दहेज हत्या, एसिड अटैक, कन्या भ्रूण हत्या, तस्करी, बाल विवाह और बहुत कुछ शामिल हैं।आंकड़ों के मुताबिक भारत में हर 20 मिनट में एक महिला के साथ रेप होता है। दूसरे देशों से आने वाली महिला भी भारत घूमने आने के लिए सोचने पर मजबूर हो जाती है।

भारत  के संविधान में  महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार दिए गए हैं। अब देश में महिलाओं को काफी सन्मान मिलता है लेकिन पर्दे के पीछे देखें तो उनका शोषण किया जा रहा है। लोग महिलाओं की सुरक्षा के लिए बनाए गए किसी भी नियम का पालन नहीं कर रहे है।

महिलाओं को आत्मरक्षा करना सिखाना चाहिए। महिला पीड़िता को तुरंत न्याय मिले इसके लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट की स्थापना की जानी चाहिए। महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों के संबंध में कानूनों को और सख्त बनाया जाना चाहिए ताकि महिलाओं को हिंसा से बचाया जा सके। पुरुषों को कम उम्र से ही महिलाओं का सम्मान करना और उनके साथ समान व्यवहार करना सिखाया जाना चाहिए।

महिलाओं की सुरक्षा पर निबंध (800 शब्द)

महिला सुरक्षा एक सामाजिक मुद्दा है। महिलाएं देश की आबादी का लगभग आधा हिस्सा हैं, जो शारीरिक, मानसिक और सामाजिक रूप से पीड़ित हैं। यह देश के विकास और प्रगति में बाधक बनता जा रहा है। कड़े कानून बनने के बाद भी महिला अपराध में कमी के बजाय आए दिन तेजी से उछाल आ रहा है। हमारे देश में महिलाओं को डर के साए में जीना पड़ रहा है।

समाज में महिलाओं की सुरक्षा लगातार गिरती जा रही है। महिलाएं अपने आप को असुरक्षित महसूस कर रही हैं। भारतीय संस्कृति में महिलाओं को लक्ष्मी माता का दर्जा दिया गया है। लेकिन यह सब सिर्फ किताबों की बातें है । परदे के पीछे की असलियत यह है की देश की महिला ना तो घर में सुरक्षित है न बहार। 21वीं सदी में भारत में ऐसी घटनाओं का होना ही हमारी संस्कृति को शर्मसार करता है।

महिलाओं के खिलाफ होने वाले अत्याचार

महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराध केवल किसी की हत्या करने के बारे में नहीं है बल्कि यह कुछ ऐसा है जो मानसिक रूप से भी प्रभावित करता है। एक महिला को विभिन्न प्रकार की यातनाओं का सामना करना पड़ता है। उनमें से कुछ शारीरिक हैं जबकि उनमें से कुछ मानसिक हैं जैसे यौन शोषण, कार्यस्थल पर या कहीं भी उत्पीड़न, बलात्कार, लिंग पूर्वाग्रह आदि।

भारत में महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराध की सूची काफी लंबी है। तेजाब फेंकना, जबरन वेश्यावृत्ति, यौन हिंसा, दहेज हत्या, अपहरण, ऑनर किलिंग, बलात्कार, भ्रूण हत्या, मानसिक उत्पीड़न जैसे अपराध की वजह से आज किसी भी महिला अपने आप को सुरक्षित महसूस नहीं करती है। सड़कों, सार्वजनिक स्थानों, सार्वजनिक परिवहन, आदि जैसे क्षेत्र महिला शिकारियों के क्षेत्र रहे हैं।

घरेलू हिंसा भी महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराध में शामिल है। महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा भी काफी बढ़ गई है। जिसकी वजह से उन्हें मानसिक रोगों का सामना करना पड़ रहा है।  दहेज के लिए जलाना, ससुराल पक्ष की तरफ से किसी सामान्य बात को लेकर पिटाई जैसी घटनाएं रोज की बात हो गई हैं।

आज कल अपराध का एक नया पहलू नजर आया है वो है लव जिहाद, जिसमें महिलाओं को प्यार के चककर में फँसाकर उन के साथ शादी करके उन्हें विदेशों में बेचा जा रहा है।

महिला सुरक्षा के कानून

भारत के संविधान और कानून में महिलाओं की सुरक्षा का काफी ध्यान रखा गया है, जिसके चलते महिलाओं के पक्ष में कई कानून बनाए गए है। भारत में महिला सुरक्षा से जुड़े कानूनों की सूची बहुत लंबी है। इसमें बाल विवाह अधिनियम 1929, विशेष विवाह अधिनियम 1954, हिंदू विवाह अधिनियम 1955, हिंदू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम 1856, भारतीय दंड संहिता 1860, मातृत्व लाभ अधिनियम 1861, विदेशी विवाह अधिनियम 1969, भारतीय तलाक अधिनियम 1969, ईसाई विवाह अधिनियम 1872, विवाहित महिलाएं शामिल हैं। संपत्ति अधिनियम 1874, मुस्लिम महिला संरक्षण अधिनियम 1986, राष्ट्रीय महिला आयोग अधिनियम 1990, कार्यस्थल पर उम का यौन उत्पीड़न अधिनियम 2013 आदि। इसके अलावा 7 मई 2015 को लोकसभा और 22 दिसंबर 2015 को राज्यसभा ने भी किशोर न्याय विधेयक में संशोधन किया। इसके तहत अगर 16 से 18 साल का किशोर किसी अपराध में लिप्त पाया जाता है तो कड़ी सजा का भी प्रावधान है।

महिलाओं की सुरक्षा के उपाय

महिलाओं की सुरक्षा में सबसे महत्वपूर्ण चीज है आत्मरक्षा। आत्मरक्षा के बारे में प्रत्येक महिला को जागरूक होना चाहिए और अपनी सुरक्षा के लिए उचित आत्मरक्षा प्रशिक्षण प्राप्त करना चाहिए। किक टू ग्रोइन, ब्लॉकिंग आदि के बारे में महिलाओं को बचपन से ही सीखना चाहिए। महिलाओं को खुद को सचेत रहना होगा। 

उन्हें कभी भी किसी अज्ञात व्यक्ति के साथ किसी अज्ञात स्थान पर अकेले नहीं जाना चाहिए और अगर ऐसा करने पर संकट की घड़ी लगे तो वहां से तुरंत भागने की कोशिश करनी चाहिए।

उनके पास सभी आपातकालीन नंबर होने चाहिए और यदि संभव हो तो व्हाट्सएप भी करें ताकि वे तुरंत अपने परिवार के सदस्यों और पुलिस को बता सकें। महिलाओं को अगर किसी काम से बाहर जाना पड़े तो अपने परिवार से संपर्क जरूर बनाये रखने चाहिए।

सोशल मीडिया पर या किसी अन्य माध्यम से किसी भी तरह के अनजान व्यक्ति से बातचीत करते समय सावधानी रखें और अपनी कोई निजी जानकारी को कभी भी शेयर न करें।

आम तौर पर भगवान के द्वारा ज्यादातर महिलाओं को छठी इंद्रिय का उपहार दिया जाता है, जिसका उपयोग उन्हें किसी समस्या में होने पर अवश्य करना चाहिए। महिलाओं को अपनी शारीरिक शक्ति को समझना और महसूस करना चाहिए और उसी के अनुसार उपयोग करना चाहिए। उन्हें कभी भी पुरुषों की तुलना में खुद को कमजोर महसूस नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से उनका मनोबल ऊँचा होगा।

एक बहुत ही प्रसिद्ध कहावत है ‘समाज को बदलने के लिए बदलाव बनें’। हम दुनिया को नहीं बदल सकते हैं लेकिन हम खुद को बदल सकते हैं । महिलाओं के खिलाफ अपराध के पीछे लैंगिक भेदभाव प्रमुख कारण है। हम एक अच्छे नागरिक बनें और इस तरह के गलत विचारों और गतिविधियों को बढ़ावा नहीं देना चाहिए।

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Rahul Singh Tanwar

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Vibhuti Patel

Women’s Liberation in India

the West. We have taken up the cause of maid-servants, fought against temple-prostitution, denounced superstition and witch-hunting, opposed deforestation and the exploitation of Dalit and tribal women. The problems of women living in slums and the socio-economic oppression of working-class and peasant women have always been to the forefront. This is hardly surprising, as the overwhelming majority of women in India live in conditions of extreme poverty and deprivation. At the same time, rape, wife-beating, economically motivated killings and other atrocities against women show no sign of declining. The tasks confronting the women’s movement in India are formidable indeed. This brief essay is an attempt to explain our situation to sisters and the Left in the West.

During the seventies there was a new rise of women’s struggles in India, which marked a break with all previous tradition and provided a tremendous stimulus to the network of women’s groups. Never before had women mobilized around demands related specifically to their gender. In the 19th century the reform movement against female infanticide and Sati (self-immolation of widows), for widow remarriage and the education of women, was initiated and pursued by liberal men. Women thus became the object of a liberal humanitarianism, which reached its apogée during the days of independence struggles. Subsequently, however, women were encouraged to return to their domestic labours, and although the Constitution of independent India guarantees ‘equal status’ to women, the overwhelming majority have not seen any improvement in their conditions of life. A striking illustration of this can be seen in the demography of contemporary India: the mortality rate among women is higher than that of men; and there has been a continuous decline of the gender ratio, from 972 females per thousand males in 1901 to 930 per thousand in 1971.

The development of capitalism in India, as in other parts of the Third World, has had a contradictory impact, incorporating pre-capitalist social and economic relations and introducing new ones that compel women to face up to other challenges. For working-class women, of course, there has always been a strong compulsion to seek work outside the home, although all research indicates that economic development has generally tended to push them out of the labour force. In a country where most of the population is never fully employed, women showed up in the 1981 Census as a mere 14 per cent of those at work. In sectors where women do find stable employment, they receive unequal wages for equal work, particularly in the mines, plantations and agri-business.

damaging. Technological changes have adversely affected job opportunities for women in agriculture and manufacturing. Urban women workers are now concentrated in food-processing, garment, construction and other small-scale industries, while low-caste women have to work as sweepers, scavengers and domestic servants. Few working women are provided with facilities such as hostels, creches and legal advice.

The fact that in modern India roughly three-quarters of its female citizens are illiterate speaks volumes. The last three decades have witnessed a rise in the absolute number of highly educated and skilled women, but the total is still pitiful when compared with the millions of illiterate women who operate permanently on the margins of subsistence. For those who do have more than basic training and education, the biggest openings are in teaching and nursing. By 1978, nearly 750,000 women were employed in education, out of a total of three million, although as in most other countries the proportion becomes particularly unfavourable as one moves up into higher education (28,000 out of 133,000). footnote 1

of women was too easily forgotten, as was the fact that the whole operation took place under the auspices of the World Bank. Techniques such as amniocentesis and ante-natal sex determination are also being abused: to put it bluntly, scientific advances have been utilized in India to encourage female infanticide—one reason for the declining gender ratio.

The violence inflicted on Indian women exists on virtually every level of society: within the family, within the workforce, and at the hands of the state. In town and countryside the police treat poor women as sex objects, and the instances of rape of peasant and working-class women are far too numerous to be recounted. Many women prisoners have described the humiliation they have undergone through perverse sexual abuses and particularly brutal forms of torture. To all this must be added the violence associated with religion and allied pre-capitalist customs. Several hundred brides were burned to death by their husbands in 1984 alone, after marriage had served its purpose of extracting a dowry. The killers could then move on to fresh victims. The scale of deaths was so great that even the Delhi police was compelled to set up a special ‘dowry squad’, although with very little consequence. Certain interpretations of Hindu religious customs are also used to force women into prostitution. Muslim laws deprive Indian Muslim women of most of the rights enjoyed by their sisters in a country like Turkey or Egypt. The conditions of tribal women have worsened as capitalism has penetrated their sanctuaries and deforestation has driven them to live on the margins of the cities.

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Essay, Paragraph or Speech on “Women’s Liberation in India” Complete English Essay, Speech for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.

Women’s Liberation in India

Since the previous century onwards, a deep concern over the rights and status of women has marked the Indian political thinking. The impetus was provided by the Father of the Nation, Mahatma Gandhi who had categorically stated, “Woman is the companion of man, gifted with equal mental capacities. She has the right to participate in every minute detail in the activities of man and she has an equal right of freedom and liberty with him….”

By sheer force of a vicious custom, even the most ignored and worthless men have been enjoying superiority over women, which they do not deserve and ought not to have. Many of our movements stop half way because of the conditions of our women. Much of the work done does not yield appropriate results. Our Merl Shakti which was regarded as next only to God, is now downtrodden, starved and relegated to the lowest rung of status in Indian society.

Those who had framed our Constitution took the first step in the right direction. They provided gender equality in the matters of economic, social and political significance as a fundamental Right to Indian women, who roughly form one-sixth of the world’s female population. India is one of the few countries which have a highly creditable record with respect to the enactment of laws to protect and promote the interests of women.

In fact, much legislation has been passed. We can take a look at the impressive list of such laws, ranging from Dowry Prohibition Act, Marriage and Succession Act of different religious groups, Indecent Representation of Women Act, Immoral Traffic (Prevention) Act, Family Courts Act, etc. These laws have, however, not yielded as effective and uniform results as they were expected to.

Reports of child marriages, dowry harassment, dowry deaths, eve-teasing and molestation at workplaces bear a glaring testimony to these observations. More important is the factor that the social laws have turned out to be far ahead of social practices prevalent in the country. Indeed, there does exist a hiatus between the laws on women’s rights and social sanctions necessary to make these a reality. There is also a host of recognizable differences between our rural and urban women so far as attitudes, aspirations, accomplishments, abilities and access to judicial remedies are concerned.

The issue of reservation of women in the Lok Sabha to the tune of thirty-three per cent was scrapped politely by the male chauvinist parliamentarians several times, during the last decades in the Lok Sabha. however, it was passed in the Rajya Sabha in March 2010. Unfortunately, the Women’s Reservation Bill which proposes to provide thirty-three per cent of all seats in the Lok Sabha and state legislative assemblies, reservation, is pending. The Indian women had pinned their hopes on the issue but they lost the battle.

In spite of all these constraints, the status and conditions of the fair sex have undergone a great change during the past 60 years. f he top leaders have recognized that women are an integral part of all development and priorities and that all plans and programmes pertaining to women are not only vital for their survival, but also they are an investment in the country’s future that demands equality of justice for all and opportunities to all of her subjects.

The freedom movement can be treated as the launching pad for the development of women in India as everyone came out to oppose the British rule. The enactment of Constitution, granting equal rights to all the citizens, was another milestone. The setting up of the Central Social Welfare Board in 1953 and subsequent establishment of State Welfare Advisory Boards to promote and assist voluntary organizations in the field of welfare of women, children and the handicapped was a part of the good beginning.

All these culminated—by the late 1980s and early 1990s- – into the creation of a separate Union Department of Women and Child Development, State Department of Women Development, Women Development Corporation, National Commission for Women and State Commission in selected States. The women’s movement in the country got an impetus during the seventies. These included observance of the International Women’s Year in 1975, preparation of National Action Plan for Women, submission of the report of the Committee on Status of Women in India and the National Perspective Plan for Women (1988-2000). The Eleventh Five-Year Plan (2007-2012) also favoured the empowerment of women in its objectives.

Several programmes for empowerment of women have been started. The Mahila Samriddhi Yojana and Rashtriya Mahila Kosh have been set up to encourage the habit of thrift among rural women and provide credit in the informal sector. These schemes are expected to increase control of women over household resources and to inculcate self-confidence in them. Schemes for training for employment of women programmes for child development, health and nutrition, education as well as agricultural and rural development have been started.

The 73rd Amendment of Constitution in 1992 which had reserved one-third of seats for women in Panchayati Raj institutions is a major landmark in the field of political empowerment of women. As a unique experiment in the world, these measures will go a long way in improving the social and economic conditions of the Indian women who constitute about half the population of our country. The United Progressive Affiance weld a step forward and got the Women Reservation Bill that proposes to reserve one-third of Parliament and legislative assemblies’ scats for women passed in the Rajya Sabha, though it remains to be passed in Lok Sabha.

In the first Parliament, the representation of women in the Lok Sabha was to the tune of 4.4 per cent. In the present Lok Sabha fifty-nine women are MPs, which form 13.80 per cent of its total strength. Once the women become the law-makers, the circumstances are definitely going to change in their favour. Several barriers have been broken by Indian women and they have entered male bastions. Doctors, engineers, lawyers pilots and defence personnel are some of the examples of such professions, which were hitherto deemed to be the exclusive operational zones of the stronger sex.

India has the distinction of having a woman Prime Minister for a long period. Besides, many women have held governmental positions. At present the president of India, speaker of the Lok Sabha, and the leader of opposition are women. Although tremendous amount of work has been done for the empowerment of women, yet they are having unequal opportunities of employment as compared to men. Nearly 15.3 per cent of the total workers in the organised sector are women. The rest are employed in the unorganized sectors—mostly in agriculture, household industry and services. This shortcoming is being sought to be overcome through women’s vocational training, informal skill training and more sophisticated training schedules in technical institutions. The ministries of agriculture, Industries environment and science and technology run special schemes for women’s training for giving them employment.

Women’s literacy is another indicator of the status of women which has improved after Independence. The literacy rate for women at the time of census in 1901 was a meagre 0.60 per cent. It rose to 8.86 per cent in 1951 and in 1991 it jumped to 39.42 per cent and in the census of 2001 showed 54.16 per cent of literacy among ‘them. Women literacy shot up to 65.46 per cent in Census 2011.

During the last three decades, several voluntary organizations and NGOs have come into existence in the country. They are mobilizing women by making them aware of their rights and preparing them for collective actions. They have acted like pressure groups, forcing the government to reorient its programmes to meet the challenges.

They can be credited with reshaping the strategies of socio-economic development and shifting their focus to real empowerment of the weaker sex. The Indian woman of the new millennium would take care of her family, children and spouse. She would also work hard in offices and factories. She would work as a typist, DTP operator, doctor, engineer, scientist, social worker and surgeon. Tomorrow belongs to her as she has already achieved many landmarks.

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