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स्वामी विवेकानंद का संपूर्ण साहित्य

हमें स्वामी विवेकानंद का संपूर्ण साहित्य पहली बार हिंदी में इंटरनेट पर प्रस्तुत करते हुए हर्ष का अनुभव हो रहा है। यहाँ आप स्वामी जी की सारी किताबें व ग्रंथ आदि ऑनलाइन पढ़ सकते हैं। पढ़िए स्वामी विवेकानंद की पुस्तकें हिन्दी में–

स्वामी विवेकानंद साहित्य (भाग-1)

  • भूमिका – हमारे गुरु व उनका संदेश
  • स्वामी विवेकानंद
  • स्वामी विवेकानंद का शिकागो भाषण
  • हमारे मतभेद का कारण
  • हिंदू धर्म पर निबंध
  • धर्म – भारत की प्रधान आवश्यकता नहीं
  • बौद्ध धर्म – हिन्दू धर्म की निष्पत्ति
  • अंतिम अधिवेशन में भाषण
  • साधना के प्राथमिक सोपान
  • प्राण का आध्यात्मिक रूप
  • आध्यात्मिक प्राण का संयम
  • प्रत्याहार और धारणा
  • ध्यान और समाधि
  • संक्षेप में राजयोग
  • हिंदू दार्शनिक चिंतन के सोपान
  • वेदप्रणीत धार्मिक आदर्श
  • भारतीय आध्यातिक चिंताधारा
  • हिन्दू धर्म
  • क्या भारत तमसाच्छादित देश है?
  • भारत की जनता
  • हिंदू और ईसाई
  • भारत में ईसाई धर्म
  • हिन्दू और यूनानी
  • स्फुट विचार
  • भारतीय नारी
  • प्राच्य नारी
  • अधिकारीवाद के दोष
  • पत्रावली – स्वामी विवेकानंद के पत्र (भाग 1)

स्वामी विवेकानंद साहित्य (भाग-2)

  • मनुष्य का यथार्थ स्वरूप
  • मनुष्य का वास्तविक और प्रातिभासिक स्वरूप
  • माया और भ्रम
  • माया और ईश्वर-धारणा का क्रमविकास
  • माया एवं मुक्ति
  • ब्रह्म एवं जगत
  • विश्व – बृहत ब्रह्माण्ड
  • विश्व – सूक्ष्म ब्रह्माण्ड
  • बहुत्व में एकत्व
  • सभी वस्तुओं में ब्रह्मदर्शन
  • अपरोक्षानुभूति
  • आत्मा का मुक्त स्वभाव
  • धर्म की आवश्यकता
  • आत्मा – उसके बंधन तथा मुक्ति
  • संन्यासी का गीत
  • आत्मा, ईश्वर और धर्म
  • धर्म – उसकी विधियाँ और प्रयोजन
  • धर्म एवं विज्ञान
  • भवत्प्राप्ति ही धर्म है
  • स्वार्थोन्मूलन ही धर्म है
  • धर्म का प्रमाण
  • धर्म का सार-तत्त्व
  • धर्म के दावे
  • तर्क और धर्म
  • धर्म क्या है?
  • पत्रावली – स्वामी विवेकानंद के पत्र (भाग 2)

स्वामी विवेकानंद साहित्य (भाग-3)

  • कर्म का चरित्र पर प्रभाव
  • हरेक अपने क्षेत्र में महान है
  • कर्म का रहस्य
  • कर्तव्य क्या है?
  • हम स्वयं अपना उपकार करते हैं, संसार का नहीं
  • अनासक्ति ही पूर्ण आत्मत्याग है
  • कर्मयोग का आदर्श
  • उच्चतर जीवन के निमित्त साधनाएँ
  • आत्मानुभूति के सोपान
  • क्रियात्मक आध्यात्मिकता के प्रति संकेत
  • विश्व धर्म की उपलब्धि का मार्ग
  • विश्व धर्म का आदर्श
  • शाश्वत शांति का पथ
  • लक्ष्य और उसकी प्राप्ति के उपाय
  • धर्म की साधना–१
  • धर्म की साधना–२
  • संन्यासी और गृहस्थ
  • संन्यास और गृहस्थ जीवन
  • गुरु के अधिकारी होने का प्रश्न
  • सच्चा गुरु कौन है?
  • मंत्र और मंत्र-चैतन्य
  • दिव्य माता की उपासना
  • मुक्ति का मार्ग
  • उपासक और उपास्य
  • औपचारिक उपासना
  • धर्म में व्यवसायी
  • भक्तियोग के पाठ
  • ईश्वर-प्रेम–१
  • ईश्वर-प्रेम–२
  • दिव्य प्रेम
  • नारद-भक्ति-सूत्र
  • पत्रावली – स्वामी विवेकानंद के पत्र (भाग 3)

स्वामी विवेकानंद साहित्य (भाग-4)

  • भक्ति की लक्षण
  • ईश्वर का स्वरूप
  • भक्तियोग का ध्येय प्रत्यक्षानुभूति
  • गुरु की आवश्यकता
  • गुरु और शिष्य के लक्षण
  • मंत्र ॐ – शब्द और ज्ञान
  • प्रतीक तथा प्रतिमा उपासना
  • उपाय और साधन
  • प्रारंभिक त्याग
  • भक्त का वैराग्य – प्रेमजन्य
  • भक्ति-योग की स्वाभाविकता और केन्द्रीय रहस्य
  • भक्ति के अवस्थाभेद
  • सार्वजनीन प्रेम
  • पराविद्या और पराभक्ति एक हैं
  • प्रेम का त्रिकोण
  • प्रेममय ईश्वर स्वयं ही अपना प्रमाण है
  • दैवी प्रेम की मानवी विवेचना
  • पाँचवाँ पाठ
  • राजयोग का उद्देश्य
  • राजयोग-शिक्षा
  • एकाग्रता और श्वास-प्रश्वास-क्रिया
  • मनोविज्ञान का महत्व
  • चित्त की एकाग्रता
  • योग-विज्ञान
  • अतीन्द्रिय अथवा मनस्तात्त्विक अनुसंधान का आधार
  • श्वास-प्रश्वास क्रिया
  • योग के सिद्धांत
  • मन की शक्तियाँ
  • मन की शक्ति
  • एकत्व – धर्म का लक्ष्य
  • ब्रह्माण्ड-विज्ञान
  • सांख्य दर्शन का एक अध्ययन
  • सांख्य एवं वेदांत
  • लंदन में भारतीय योगी
  • भारत का मिशन
  • भारत और इंग्लैंड
  • इंग्लैण्ड में भारत के मिशनरी का उद्देश्य
  • मदुरा में स्वामी विवेकानन्द के साथ
  • विदेशों की बात और देश की समस्याएँ
  • पश्चिम में प्रथम हिंदू संन्यासी
  • राष्ट्रीय आधार पर हिन्दू धर्म का पुनर्जागरण
  • भारतीय नारियाँ–उनका भूत, वर्तमान और भविष्य
  • हिंदू धर्म की सीमा
  • पत्रावली – स्वामी विवेकानंद के पत्र (भाग 4)

स्वामी विवेकानन्द साहित्य (भाग-5)

  • प्राची में प्रथम सार्वजनिक व्याख्यान
  • पाम्बन-अभिनन्दन का उत्तर
  • यथार्थ उपासना
  • रामनाड़-अभिनन्दन का उत्तर
  • परमकुड़ी-अभिनन्दन का उत्तर
  • मानमदुरा-अभिनन्दन का उत्तर
  • मदुरा-अभिनन्दन का उत्तर
  • वेदांत का उद्देश्य
  • मद्रास-अभिनन्दन का उत्तर
  • मेरी क्रान्तिकारी योजना
  • भारतीय जीवन में वेदान्त का प्रभाव
  • भारत के महापुरुष
  • हमारा प्रस्तुत कार्य
  • भारत का भविष्य
  • कलकत्ता-अभिनन्दन का उत्तर
  • सर्वांग वेदांत
  • अल्मोड़ा-अभिनन्दन का उत्तर
  • वैदिक उपदेश – तात्त्विक और व्यावहारिक
  • हिंदू धर्म के सामान्य आधार
  • इंग्लैंड में भारतीय आध्यात्मिक विचारों का प्रभाव
  • संन्यास – उसका आदर्श तथा साधन
  • मैंने क्या सीखा?
  • वह धर्म जिसमें हम पैदा हुए
  • पत्रावली – स्वामी विवेकानंद के पत्र (भाग 5)

स्वामी विवेकानंद साहित्य (भाग-6)

  • शिष्य से वार्तालाप
  • ज्ञान-योग (१)
  • ज्ञान-योग (२)
  • ज्ञानयोग का परिचय
  • प्रथम प्रवचन
  • द्वितीय प्रवचन
  • तृतीय प्रवचन
  • चतुर्थ प्रवचन
  • पंचम प्रवचन
  • षष्ठ प्रवचन
  • सप्तम प्रवचन
  • अष्टम प्रवचन
  • सत्य और छाया – १
  • सत्य और छाया – २
  • माया का कारण क्या है?
  • बहुरूप में प्रतीयमान एक सत्ता
  • पत्रावली – स्वामी विवेकानंद के पत्र (भाग 6)

स्वामी विवेकानन्द साहित्य (भाग-7)

  • याज्ञवल्क्य और मैत्रैयी
  • रामायण पर स्फुट टिप्पणियाँ
  • जड़ भरत की कथा
  • प्रह्लाद की कथा
  • विश्व के महान शिक्षक
  • भगवान बुद्ध
  • संसार को बुद्ध का संदेश
  • बौद्ध धर्म – एशिया की ज्योति का धर्म
  • मेरे गुरुदेव
  • श्री रामकृष्ण और उनके विचार
  • श्री रामकृष्ण – राष्ट्र के आदर्श
  • गीता पर विचार
  • योग के चार मार्ग
  • कल्प-विराम एवं परिवर्तन
  • विकास के लिए संघर्ष
  • धर्म का जन्म
  • शिव जी का भूत
  • पत्रावली – स्वामी विवेकानंद के पत्र (भाग 7)

स्वामी विवेकानंद साहित्य (भाग-8)

  • द्वितीय भाग
  • आत्मा और विश्व
  • ईश्वर और ब्रह्म
  • आत्मा, प्रकृति तथा ईश्वर
  • ईश्वरत्व की धारणा
  • आत्मा का स्वरूप और लक्ष्य
  • जीवात्मा एवं परमात्मा
  • आत्मा और ईश्वर
  • आत्मा की मुक्ति
  • ईश्वर – सगुण तथा निर्गुण
  • यूरोप यात्रा के संस्मरण
  • श्री प्रियनाथ सिन्हा द्वारा आलिखित
  • श्री सुरेन्द्रनाथ सेन द्वारा आलिखित
  • श्री सुरेन्द्रनाथ दास गुप्ता द्वारा आलिखित
  • इतिहास का प्रतिशोध (श्रीमती राइट)
  • धर्म, सभ्यता और चमत्कार (दी अपील–आभालांस)
  • धार्मिक समन्वय (डिट्राएट फ़्री प्रेस)
  • पतिता नारियाँ (डिट्राएट ट्रिब्यून)
  • पत्रावली – स्वामी विवेकानंद के पत्र (भाग 8)

स्वामी विवेकानन्द साहित्य (भाग-9)

  • पूर्व साधना
  • प्रारंभिक सोपान
  • आध्यात्मिक गुरु
  • प्रतीकों की आवश्यकता
  • प्रमुख प्रतीक
  • वेदांत दर्शन – १
  • वेदांत दर्शन – २
  • क्या वेदान्त भावी युग का धर्म होगा?
  • वेदान्त और विशेषाधिकार
  • विशेषाधिकार
  • सभ्यता का अवयव वेदांत
  • वेदांत का सार-तत्त्व तथा प्रभाव
  • वेदों और उपनिषदों के विषय में विचार
  • मानव का भाग्य
  • वेदांत पर टिप्पणियाँ
  • आधुनिक संसार पर वेदान्त का दावा
  • मनुष्य अपना भाग्य-विधाता
  • वेदांत दर्शन और ईसाई मत
  • प्रकृति और मानव
  • नियम और मुक्ति
  • बौद्ध मत और वेदान्त
  • कर्म और उसका रहस्य
  • कर्म ही उपासना है
  • निष्काम कर्म
  • ज्ञान और कर्म
  • निष्काम कर्म ही सच्चा संन्यास है
  • वर्तमान भारत
  • क्या आत्मा अमर है?
  • प्रोफ़ेसर मैक्समूलर
  • डॉक्टर पॉल डॉयसन
  • पवहारी बाबा
  • धर्म के मूल तत्त्व
  • आर्य और तमिल
  • सामाजिक सम्मेलन भाषण
  • थियोसॉफ़ी पर कुछ स्फुट विचार
  • बुद्धि, श्रद्धा और प्रेम
  • छः संस्कृत आदर्श वाक्य
  • ब्रह्म (परात्पर) और मुक्ति-प्राप्ति
  • बेलूड़ मठ – एक अपील
  • अद्वैत आश्रम, हिमालय
  • रामकृष्ण सेवाश्रम, बनारस – एक अपील
  • सखा के प्रति
  • गाता हूँ गीत मैं तुम्हें सुनाने को
  • नाचे उसपर श्यामा
  • सागर के वक्ष पर
  • श्री कृष्ण-संगीत
  • शिवस्तोत्रम्
  • अम्बास्तोत्रम्
  • श्री रामकृष्ण-स्तोत्रम्
  • श्री रामकृष्ण-आरत्रिकम्
  • श्री रामकृष्ण प्रणामः
  • खेतड़ी के महाराज के अभिनन्दन का उत्तर – धर्मभूमि भारत
  • मद्रास के अभिनन्दन का उत्तर
  • पत्रावली – स्वामी विवेकानंद के पत्र (भाग 9)

स्वामी विवेकानंद साहित्य (भाग-10)

  • मेरा जीवन तथा ध्येय
  • जीवन और मृत्यु के नियम – १
  • जीवन और मृत्यु के नियम – २
  • आत्मा और प्रकृति
  • सृष्टि-रचनावाद का सिद्धान्त
  • तुलनात्मक धर्म-विज्ञान
  • धार्मिक एकता-सम्मेलन
  • ईसा का पुनरागमन कब होगा?
  • मनुष्य और ईसा में अन्तर
  • क्या ईसा और बुद्ध एक हैं?
  • पाप से मोक्ष
  • दिव्य माता के पास प्रत्यागमन
  • ईश्वर से भिन्न व्यक्तित्व नहीं
  • प्राच्य और पाश्चात्य
  • भारत का ऐतिहासिक क्रम-विकास
  • बालक गोपाल की कथा
  • हमारी वर्तमान समस्या
  • भारत और हिंदुत्व
  • भारतीयों के आचार-विचार तथा रीति-रिवाज़
  • भारत के धर्म
  • भारत के सम्प्रदाय और मत-मतान्तर
  • संसार को भारत की देन
  • भारत की बाल विधवाएँ
  • हिन्दुओं के कुछ रीति-रिवाज़
  • धर्म-सिद्धांत कम, रोटी अधिक
  • बुद्ध का धर्म
  • संन्यासी का भाषण
  • सभी धर्म अच्छे हैं
  • जीवन पर हिन्दू दृष्टिकोण
  • नारीत्व का आदर्श
  • सच्चा बुद्धमत
  • स्वामी विवेकानंद के साथ दो-चार दिन – श्री हरिपद मित्र
  • स्वामी विवेकानंद की अस्फुट स्मृति – स्वामी शुद्धानन्द
  • बेलूड़ मठ की डायरी से
  • ब्रुकलिन नैतिक सभा, बोस्टन में
  • ट्वेंटिएथ सेंचुरी क्लब, बोस्टन में
  • हार्डफ़ोर्ड में ‘आत्मा, ईश्वर और धर्म’
  • अमेरिका के एक संवाद-पत्र से
  • हार्वर्ड विश्वविद्यालय की ‘ग्रेजुएट दार्शनिक सभा’ में
  • योग, वैराग्य, तपस्या, प्रेम
  • गुरु, अवतार, योग, जप, सेवा
  • भगिनी निवेदिता के कुछ प्रश्नों के उत्तर
  • पत्रावली – स्वामी विवेकानंद के पत्र (भाग 10)
  • स्वामी विवेकानंद के विचार
  • स्वामी विवेकानन्द के शिक्षा पर विचार
  • पवहारी बाबा – स्वामी विवेकानंद कृत पुस्तक

इंटरनेट पर The Complete Works Of Swami Vivekananda अभी तक अंग्रेज़ी में ही उपलब्ध है। हमारा प्रयास है कि हिंदी में स्वामी विवेकानन्द की संपूर्ण ग्रंथावली को जल्द-से-जल्द उपलब्ध कराया जाए। स्वामी जी की कोई भी पुस्तक या किसी किताब का कोई अंश जैसे ही पूरी तरह टाइप हो जाएगा, उसकी कड़ी को यहाँ जोड़ दिया जाएगा। हमें आशा है कि आप भी स्वामी विवेकानन्द के विचारों से लाभान्वित होंगे और अधिक-से-अधिक लोगों तक ज्ञान के प्रकाश को पहुँचाएंगे।

  • बीरबल और घी का व्यवसाय
  • अकबर-बीरबल और चार मूर्ख

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

11 thoughts on “ स्वामी विवेकानंद का संपूर्ण साहित्य ”

विवेकानन्द साहित्य के 10 खण्डों को हिन्दी में नेट पर प्रकाशित करने के लिये कोटिशः धन्यवाद है ! किन्तु अंग्रेजी और बंगला में प्रकाशित साहित्य की तरह , इसकी सामग्री को यदि ‘cut and pest ‘ करने की अनुमति नहीं दी जायेगी तब , उनकी रचनाओं पर ब्लॉग्स लिखने में कोई सहायता नहीं मिलेगी। अतः श्रीमान से प्रार्थना है , कि अन्य भाषाओँ की तरह विवेकानन्द के हिन्दी साहित्य को भी सुरक्षित की श्रेणी से हटाकर सार्वजनिक संपत्ति बनाने की कृपा की जाय !

बिजय जी, टिप्पणी करके हमारा मार्गदर्शन करने के लिए धन्यवाद। संपूर्ण विवेकानंद साहित्य पर कार्य अभी भी प्रगति पर है। जल्दी ही पूरा साहित्य हिंदीपथ पर उपलब्ध होगा। आपका सुझाव टीम हिंदीपथ तक पहुँचा दिया गया है और शीघ्र ही इस सुझाव पर आपको उत्तर प्राप्त होगा।

साहित्य, समाज और अध्यात्म की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण कार्य ! एतदर्थ, नमन और आभार

डॉ. विनय कुमार जी, आपके आशीष के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद। स्वामी विवेकानंद से प्रेरित होकर इस वेबसाइट का निर्माण हुआ है। शीघ्र ही संपूर्ण विवेकानंद साहित्य तथा वेद आदि अन्य आध्यात्मिक ग्रंथ यहाँ आप पढ़ पाएंगे। कृपया इसी तरह हमारा उत्साहवर्धन करते रहें।

swami vivekanand ji ke baare me aapne bahoot acchi jankari di.

रमण जी, टिप्पणी करके हमारा उत्साहवर्धन करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद। स्वामी विवेकानंद की पुस्तकों को जन-जन तक पहुँचाना ही हमारा लक्ष्य है। इसी तरह हिंदी पथ पढ़ते रहें और हमारा मार्गदर्शन करते रहें।

मेरा नाम भारत भूषण है और मैं उत्तर प्रदेश 245101 के एक शहर हापुड़ से हूं। और मैं स्वामी जी का संपूर्ण साहित्य पेपर पैक में खरीदना चाहता हूं। अतः 8171602997 पर संपूर्ण जानकारी भेंजन की कृपया करें। धन्यवाद

भारत भूषण जी, हिंदीपथ पढ़ने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद। स्वामी विवेकानन्द का साहित्य ही हमारे जीवन की प्रेरणा है। यह जानकर अच्छा लगा कि आप उनका संपूर्ण साहित्य पढ़ना चाहते हैं। शीघ्र ही हमारी टीम आपसे संपर्क कर उनका साहित्य ख़रीदने में आपकी सहायता करेगी। इसी तरह यहाँ आते रहें, पढ़ते रहें और अपने अनमोल विचारों से हमें अवगत कराते रहें।

Aap bahut hi achha kam kar rahe he, par kafi vaktse ye kam aage nahi badha, naye article nahi jode gaye Swami Vivekananda ke, to kab khatam hoga ye?

हेमन्त जी, टिप्पणी करके हमारे विचारों से अवगत करने के लिए धन्यवाद। शीघ्र ही आप यहाँ स्वामी विवेकानंद के नए लेख पढ़ पाएंगे। इसी तरह हमारा मार्गदर्शन करते रहें।

अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य भारत के जागरण के लिए आप पर भगवान की असीम कृपया है इसीलिए इस महान कार्य के लिए आप लोग चुने गए हैं उनके द्वारा भगवान श्री रामकृष्ण , माँ सारदा और स्वामी विवेकानंद की असंख्य आशीर्वाद आप पर वर्षित हों

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Swami vivekananda biography in Hindi

स्वामी विवेकानंद जी की सम्पूर्ण जीवनी, Swami Vivekananda jivani

स्वामी विवेकानंद जी का संपूर्ण जीवन परिचय, उनके जीवन से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्यों तथा घटनाओं का भी अध्ययन करेंगे।

यह जीवन परिचय युवा प्रेरणा स्रोत , ऊर्जावान स्वामी विवेकानंद जी के जीवन पर आधारित है। इस लेख के माध्यम से आप नरेंद्र से स्वामी विवेकानंद बनाने की कहानी जान सकेंगे। उनकी स्मरण शक्ति और उनके जीवन शैली को इस लेख के माध्यम से विस्तृत अध्ययन का प्रयत्न किया गया है।

प्रस्तुत लेख स्वामी विवेकानंद जी के संकल्प शक्ति, विचारों के ऊर्जा, अध्यात्म, आत्मविश्वास आदि का विस्तार है। उन्होंने अल्पायु से लेकर अपने जीवन काल तक जिस मार्ग को अपनाया, उसे आज युवा प्रेरणा के रूप में ग्रहण करते हैं। स्वामी जी आज करोड़ों देशवासियों के मार्गदर्शक और प्रेरणा के स्रोत हैं। उनको पसंद करने वाले देश ही नहीं अभी तो विदेश में भी है। उनकी विचारधारा ऐसी थी जिसे भारत ही नहीं विदेश में भी पसंद किया गया।

यह लेख स्वामी जी के जीवन पर विस्तृत प्रकाश डालने में सक्षम है.

Table of Contents

स्वामी विवेकानंद जी का जीवन परिचय – Swami Vivekananda biography in Hindi

स्वामी विवेकानंद जी किसी परिचय के मोहताज नहीं है, उनकी स्मरण शक्ति और दृढ़ प्रतिज्ञा बेजोड़ है। बचपन में उनका नाम नरेंद्र नाथ दत्त हुआ करता था। उनकी कुशाग्र बुद्धि ने उन्हें स्वामी विवेकानंद बनाया। एक छोटे से जगह पर जन्मे और देश-विदेश में अपनी ख्याति को सिद्ध करने वाले स्वामी आज करोड़ों देशवासियों के लिए आदर्श व्यक्ति हैं। देश-विदेश में उनकी ख्याति है , उनको पसंद करने वाले किसी एक सीमा में बंधे नहीं है। स्वामी जी की स्मरण शक्ति इतनी तीव्र थी कि, उन्होंने आधुनिक वेद-वेदांत धर्म आदि की सभी महत्वपूर्ण पुस्तकों का अध्ययन किया था।

Read Swami Vivekananda biodata below  which includes birth date, birth place, mother and father’s name, education, early life, full name, nationality, religion, famous quotes, stories, and some unknown facts.

12 जनवरी 1863
कोलकाता ( बांग्ला )
नरेंदर नाथ दत्त
सनातन हिन्दू
भारतीय
भुवनेश्वरी
विश्वनाथ दत्त ( प्रसिद्ध वकील )
दुर्गा चरण दत्त
रामकृष्ण परमहंस
रामकृष्ण मिशन
4 जुलाई 1902 में महासमाधि में लीन हुए ( आयु 39 ) बेलूर मठ पश्चिम बंगाल

स्वामी विवेकानंद जी का पारिवारिक जीवन – Swami Vivekananda family life

Swami Vivekananda jivani and family life

स्वामी विवेकानंद का जन्म कोलकाता के कुलीन बंगाली कायस्थ परिवार में हुआ। कुछ विद्वानों के अनुसार उनका जन्म मकर संक्रांति के दिन हुआ था। यह दिन हिंदू मान्यता का महत्वपूर्ण दिन माना जाता है। सूर्य की दिशा कुछ इस प्रकार होती है जो , वर्ष भर में मात्र एक बार अनुभव करने को मिलती है। विवेकानंद जी का परिवार मध्यमवर्गीय था।

जन्म के उपरांत उन्हें वीरेश्वर के नाम से जाना जाता था। 

शिक्षा शिक्षा के लिए औपचारिक नाम नरेंद्रनाथ दत्त रखा गया। विवेकानंद उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस का दिया हुआ नाम था।

जैसा कि उपरोक्त विदित हुआ स्वामी जी का परिवार मध्यमवर्गीय था।

पिता विश्वनाथ दत्त कोलकाता हाईकोर्ट के मशहूर वकीलों में से एक थे। उनकी वकालत काफी लोकप्रिय थी, अधिवक्ता समाज उन्हें आदरणीय मानता था। विवेकानंद जी के दादा दुर्गा चरण दत्त काफी विद्वान थे। उन्होंने कई भाषाओं में अपनी मजबूत पकड़ बनाई हुई थी। उन्हें संस्कृत , फारसी, उर्दू का विद्वान माना जाता था। उनकी रुचि धार्मिक विषयों में अधिक थी, जिसका परिणाम यह हुआ उन्होंने अपने युवावस्था में सन्यास धारण किया।

पच्चीस वर्ष की युवावस्था में दुर्गा चरण दत्त अपना परिवार त्याग कर सन्यासी बन गए।

स्वामी जी की माता भुवनेश्वरी दत्त धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थी।

वह विशेष रूप से शिव की उपासना किया करती थी। यही कारण है उनके घर में निरंतर पूजा-पाठ, हवन, कीर्तन-भजन आदि का कार्यक्रम हुआ करता था। रामायण, महाभारत और कथा वाचन नित्य प्रतिदिन का कार्य था।

स्वामी विवेकानंद जी का पालन पोषण इस परिवेश में हुआ।

उनकी जिज्ञासु प्रवृत्ति और धर्म के प्रति लगाव , घर में बने वातावरण के कारण था । वह सदैव जानने की प्रवृत्ति को अपने भीतर रखते थे। वह अपने माता-पिता या कथावाचक आदि से नित्य प्रतिदिन ईश्वर, धर्म और संस्कृति के बारे में प्रश्न पूछा करते थे।

कई बार उनके प्रश्न इस प्रकार हुआ करते थे , जिसका जवाब किसी के पास नहीं होता। स्वामी जी मे दिखने वाली कुशाग्र बुद्धि और जिज्ञासा धर्म-संस्कृति आदि की समझ परिवार की देन ही माना जाएगा।

नरेंद्र से स्वामी विवेकानंद जी कैसे बने – Swami Vivekananda Childhood

नरेंद्र नाथ दत्त बचपन से खोजी प्रवृत्ति के थे, उन्हें किसी एक विषय में रुचि नहीं थी। वह विषय के उद्गम और विस्तार को कारणों सहित जानने के जिज्ञासु थे । नरेंद्र नाथ कि इसी प्रवृत्ति के कारण शिक्षक उनसे प्रभावित रहते थे।

उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस थे बालक नरेंद्र नाथ के जिज्ञासा और उनकी उत्सुकता को अपना प्रेम देते थे।

नरेंद्र नाथ दत्त में बहुमुखी प्रतिभा थी, यह सामान्य बालक से बिल्कुल अलग थे। सामान्य बालक जहां एक विषय के अध्ययन में वर्षों निकाल दिया करते थे। नरेंद्र नाथ पूरी पुस्तक का अध्ययन कुछ ही क्षण में कर लिया करते थे। उनका यह अध्ययन सामान्य नहीं था वह पृष्ठ संख्या और अक्षरसः हुआ करता था। इस प्रतिभा से रामकृष्ण परमहंस प्रसन्न होकर नरेंद्र नाथ दत्त को विवेकानंद कहकर पुकारते थे।

यही विवेकानंद भविष्य में स्वामी विवेकानंद के नाम से प्रसिद्ध हुए। जो विवेक का स्वामी हो वही विवेकानंद।

स्वामी विवेकानंद की शिक्षा – Swami Vivekananda Education

Swami vivekananda education in Hindi - स्वामी विवेकानंद जी की शिक्षा

स्वामी विवेकानंद की आरंभिक शिक्षा कोलकाता में हुई। विद्यालय से पूर्व उनका ज्ञान संस्कार घर पर ही किया गया। दादा तथा माता-पिता की देख-रेख में उन्होंने विद्यालय से पूर्व ही, सामान्य बालकों से अधिक जानकारी प्राप्त कर ली थी।

आठ वर्ष की आयु में, उन्हें ईश्वर चंद्र विद्यासागर मेट्रोपॉलिटन संस्थान कोलकाता में प्राथमिक ज्ञान के लिए विद्यालय भेजा गया। यह समय 1871 का था। कुछ समय पश्चात 1877 में परिवार किसी कारणवश रायपुर चला गया। दो वर्ष के पश्चात 1879 मे कोलकाता वापस आ गया।  यहां स्वामी विवेकानंद ने प्रसिद्ध प्रेसीडेंसी कॉलेज प्रवेश परीक्षा में उच्चतम अंक प्राप्त किए।

यह बेहद ही सराहनीय सफलता थी, अन्य विद्यार्थियों के लिए यह सपना हुआ करता था।

स्वामी विवेकानंद इस समय तक

  • राजनीति विज्ञान
  • समाजिक विज्ञान
  • अनेक हिंदू धर्म के ग्रंथ तथा साहित्य का अक्षरसः गहनता से अध्ययन कर लिया था।

स्वामी जी ने पश्चिमी साहित्य के धार्मिक और विचारों तथा क्रांतिकारी घटनाओं का व्याख्यात्मक विश्लेषण भी सूक्ष्मता से अध्ययन किया था।

स्वामी विवेकानंद शास्त्रीय कला में भी निपुण थे , उन्होंने शास्त्रीय संगीत में परीक्षा को सफलतापूर्वक उत्तीर्ण किया। वह शास्त्रीय संगीत को जीवन का अभिन्न अंग मानते हुए स्वीकार करते हैं। वह जीवन के किसी भी क्षेत्र को नहीं छोड़ना चाहते थे।

यही कारण है उनका स्वयं के शरीर से काफी लगाव था।

वह योग, कसरत, खेल, संगीत आदि को प्रसन्नता पूर्वक स्वीकार किया करते थे। उनका मानना था अगर मस्तिष्क को संतुलित रखना है तो, शरीर को स्वस्थ रखना ही होगा। जिसके लिए वह योग और कसरत पर विशेष बल दिया करते थे। स्वामी जी खेल में भी निपुण थे, वह विभिन्न प्रकार के खेलों में भाग लेते तथा प्रतियोगिता को अपने बाहुबल से जितते भी थे।

स्वामी विवेकानंद ने पश्चिमी देश के धर्म, संस्कृति, विचारधारा और महान लेखकों के साहित्य का विस्तार पूर्वक अध्ययन किया था। उन्होंने यूरोप, अमेरिका, फ्रांस, रूस, जर्मनी आदि विकसित देशों के महान दार्शनिकों की पुस्तकें और उनके शोध को गहनता से अध्ययन किया था।

1881 में विवेकानंद जी ने ललित कला की परीक्षा दी, जिसमें वह सफलतापूर्वक उच्च अंकों के साथ उत्तीर्ण हुए।

1884 में उनका स्नातक भी सफलतापूर्वक पूर्ण हो गया था।

स्वामी जी का शिक्षा के प्रति काफी लगाव था, जिसके कारण उन्होंने संस्कृत के साहित्य को विकसित किया। क्षेत्रीय भाषा बांग्ला में अनेकों साहित्य का अनुवाद किया। संभवत उपन्यास, कहानी, नाटक और महाकाव्य हिंदी साहित्य में बांग्ला साहित्य के माध्यम से ही आया था।

Swami vivekananda biography in Hindi - स्वामी विवेकानंद

सामाजिक दृष्टिकोण – Swami Vivekananda views towards society

स्वामी विवेकानंद की सामाजिक दृष्टि समन्वय भाव की थी। वह सभी जातियों को एक समान दृष्टि से देखते थे। यही कारण है सभी जाती और मानव कल्याण के लिए ब्रह्म समाज की स्थापना की। उन्होंने वेद-वेदांत, धर्म, संस्कृति आदि की शिक्षा प्राप्त की थी। वह ईश्वर को एक मानते थे। उनका मानना था कि ईश्वर एक है, उसे पूजने और मानने का तरीका अलग-अलग है। उन्होंने अनेक मठ की स्थापना धर्म के विकास के लिए ही किया था।

स्वामी जी मूर्ति पूजा का विरोध किया करते थे, उन्होंने अपने भीतर ईश्वर की मौजूदगी का एहसास दिलाया था। उन्होंने स्पष्ट किया था कि ब्रह्मांड की सभी सार्थक शक्तियां व्यक्ति के भीतर निहित होती है। अपनी साधना और शक्ति के माध्यम से उन सभी दिव्य शक्तियों को जागृत किया जा सकता है।

इसलिए वह सदैव कर्मकांड और बाह्य आडंबरों, पुरोहितवाद पर चोट करते थे।

समाज के कल्याण के लिए वह जमीनी स्तर पर कार्य कर रहे थे। जहां एक और समाज में जाति-धर्म व्यवस्था आदि की पराकाष्ठा थी। वही स्वामी जी ने उन सभी जाति धर्म और वर्ण में समन्वय स्थापित करने के लिए अथक प्रयास किया। स्वामी जी ने समाज कल्याण के लिए जमीनी स्तर पर सराहनीय कार्य किया। ब्रह्म समाज की स्थापना कर उन्होंने समाज में बहिष्कृत जाति आदि को मान्यता दी।

स्वामी विवेकानंद एक ऐसे समाज का सपना देखते थे जहां भेदभाव जाति के आधार पर ना हो। वह इसीलिए ब्रह्मावाद, भौतिकवाद, मूर्ति पूजा पर, अंग्रेजों द्वारा फैलाए गए धर्म और अनाचार के विरुद्ध वह सदैव कार्य कर रहे थे। उन्होंने समाज में युवाओं द्वारा किया जा रहा मदिरापान तथा अन्य व्यसनों को दूर करने के लिए कार्य किया। कई उपदेश दिए और अपने सहयोगियों के साथ उन सभी केंद्रों को बंद करवाया।

वह अमीरी-गरीबी, ऊंच-नीच आदि को समाज से दूर करना चाहते थे।

उन्होंने सेठ महाजन ओ आदि के द्वारा किया जा रहा , सामान्य जनता पर अत्याचार आदि को भी दूर करने का प्रयत्न किया । स्वामी जी ने नर सेवा को ही नारायण सेवा मानकर समाज के प्रति अपना सम्मान जनक दृष्टिकोण रखा।

स्वामी विवेकानंद जी की स्मरण शक्ति – Swami Vivekananda memory powers

Swami Vivekananda memory power

स्वामी जी की स्मरण शक्ति अतुलनीय थी। वह बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के थे, अपनी कक्षा की पाठ्य सामग्री को कुछ ही दिनों में समाप्त कर दिया करते थे। जहां उसके अध्ययन में अन्य बच्चों को पूरा वर्ष लग जाया करता था। बड़े से बड़े धार्मिक ग्रंथ और साहित्य की पुस्तकों को उन्होंने अक्षर से याद किया हुआ था। उनकी स्मरण शक्ति इतनी तीव्र थी कि उनसे पढ़ी हुई पुस्तक को पूछने पर पृष्ठ संख्या सहित प्रत्येक शब्द बता दिया करते थे।

स्मरण शक्ति के पीछे उनके आरंभिक जीवन के ज्ञान का अहम योगदान है।

स्वामी विवेकानंद के दादाजी धार्मिक प्रवृत्ति के थे, उन्होंने संस्कृत और फारसी पर अच्छी पकड़ बनाई हुई थी। वह इन साहित्यों का गहन अध्ययन कर चुके थे। विवेकानंद जी की माता जी धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थी। उन्होंने पूजा-पाठ, कीर्तन-भजन और धार्मिक पुस्तकों, वेद आदि को नित्य प्रतिदिन पढ़ना और सुनना अपनी दिनचर्या में शामिल किया हुआ था। पिता प्रसिद्ध वकील थे, उनकी वकालत कोलकाता हाईकोर्ट में उच्च श्रेणी की थी।

इन सभी संस्कारों के कारण स्वामी विवेकानंद कुशाग्र बुद्धि के हुए। उन्होंने ईश्वर के प्रति जानने की इच्छा और स्वयं अपने भीतर के ईश्वर को पहचानने का यत्न किया। जिसके कारण उनकी स्मरण शक्ति अतुलनीय होती गई।

स्वामी विवेकानंद जी की तार्किक शक्ति – Swami Vivekananda Logical thinking

जैसा कि हम जानते हैं स्वामी जी का आरंभिक जीवन वेद-वेदांत, भगवत गीता, रामायण आदि को पढ़ते-सुनते बीता था। वह कुशाग्र बुद्धि के थे, उन्होंने अपने घर आने वाले कथा वाचक को ऐसे-ऐसे प्रश्न जाल में उलझाया था।  जिनका जवाब उनके पास नहीं था। वह जीव, माया, ईश्वर, जगत, दुख आदि के विषय में अनेकों ऐसे प्रश्न जान लिए थे जिनका कोई तोड़ नहीं था।

इस कारण स्वामी जी की बौद्धिक शक्ति का विस्तार हुआ। वह सभ्य समाज में बैठने लगे, उनकी ख्याति दिन प्रतिदिन बढ़ती गई। उनके जवाब इस प्रकार के होते, जिसके आगे सामने वाला व्यक्ति निरुत्तर हो जाता। उसे संतुष्टि हो जाती, इस जवाब के अतिरिक्त कोई और जवाब नहीं हो सकता।

उनकी तर्कशक्ति इतनी प्रसिद्ध थी कि, बड़े से बड़े विद्वान, नीतिवान और चिंतकों ने स्वामी विवेकानंद से शास्त्रार्थ किया।

योग के प्रति स्वामी विवेकानंद जी का दृष्टिकोण – Swami Vivekananda view towards Yoga

Swami Vivekananda views on Yoga in Hindi

स्वामी जी का स्पष्ट मानना था स्वस्थ मस्तिष्क के लिए , स्वस्थ शरीर का होना अति आवश्यक है। योग साधना पर उन्होंने विशेष बल दिया था। योग के माध्यम से व्यक्ति अपने शरीर के भीतर निहितदिव्य शक्तियों को जागृत कर बड़े से बड़ा कार्य कर सकता है। स्वयं स्वामी विवेकानंद प्रतिदिन काफी समय तक योग किया करते थे। उनकी बुद्धि और शरीर सभी उनके नियंत्रण से कार्य करती थी। इस प्रकार की दिव्य साधना स्वामी जी ने एकांतवास में किया था।

वह समाज में योग को विशेष महत्व देते हुए, योग के प्रति प्रेरित करते थे। संसार जहां व्यभिचार और व्यसनों में बर्बाद हो रहा है, वही योग का अनुकरण कर ईश्वर की प्राप्ति होती है। योग के द्वारा माया को दूर भी किया जा सकता है। एक सिद्ध योगी अपने शक्तियों के माध्यम से सांसारिक मोह-माया से बचता है, आत्मा-परमात्मा के बीच का भेद मिटाता है।

स्वामी विवेकानंद जी की दार्शनिक विचारधारा – Swami Vivekananda Philosophy

स्वामी विवेकानंद बचपन से ही धर्म-संस्कृति में विशेष रूचि रखते थे। स्वामी जी ने अपनी बुद्धि का प्रयोग धर्म – संस्कृति तथा जीव , माया , ईश्वर आदि को जानने में प्रयोग किया। वह अद्वैतवाद को मानते थे, जिसका संस्कृत में अर्थ है एकतत्ववाद या जिसका दो अर्थ नहीं हो । जो ईश्वर है वही सत्य है, ईश्वर के अलावा सब माया है।

यह संसार माया है, इसमें पडकर व्यक्ति अपना जीवन बर्बाद कर देता है। ईश्वर उस माया को दूर करता है, इस माया को दूर करने का एक माध्यम ज्ञान है। जिसने ज्ञान को हासिल किया वह इस माया से बच गया।

इस प्रकार के विचार स्वामी विवेकानंद के थे, इसलिए उन्होंने अद्वैत आश्रम का मायावती स्थान पर किया था। अनेक मठों की स्थापना उन्होंने स्वयं की। देश-विदेश का भ्रमण करके उन्होंने ईश्वर सत्य जग मिथ्या पर अपना संदेश लोगों को सुनाया।

लोगों ने इसे स्वीकार करते हुए स्वामी जी के विचारों को अपनाया है।

स्वामी जी मूर्ति पूजा के विरोधी थे, उन्होंने युक्ति संगत बातों को समाज के बीच रखा। वेद-वेदांत, धर्म, उपनिषद आदि का सरल अनुवाद लोगों के समक्ष प्रकट किया। उनके साथ उनकी पूरी टोली कार्य किया करती थी।

संभवत वह केशव चंद्र सेन और देवेंद्र नाथ टैगोर के नेतृत्व में भी कार्य करते थे।

1881 – 1884 के दौरान उन्होंने धूम्रपान, शराब और व्यसन से दूर रहने के लिए युवाओं को प्रेरित किया। उनके दुष्परिणामों को उनके समक्ष रखा। जिससे काफी संख्या में युवा प्रभावित हुए, आज से पूर्व उन्हें इस प्रकार का ज्ञान किसी और ने नहीं दिया था। देश में फैल रहे अवैध रूप से ईसाई धर्म को भी उन्होंने प्रबल इच्छाशक्ति के साथ रोकने का प्रयत्न किया। ईसाई मिशनरी देश की भोली-भाली जनता को प्रलोभन देकर धर्मांतरण करा रही थी।

इसका विरोध भी स्वामी जी ने किया था।

स्वामी विवेकानंद ने ब्रह्म समाज की स्थापना की थी जिसका मूल उद्देश्य वेदो की ओर लोटाना था।

स्वामी विवेकानंद जी थे धर्म-संस्कृति के प्रबल समर्थक

विवेकानंद जी का बाल संस्कार धर्म और संस्कृति पर आधारित था। उन्हें बाल संस्कार के रूप में वेद – वेदांत, भगवत, पुराण, गीता आदि का ज्ञान मिला था। जिस व्यक्ति के पास इस प्रकार का ज्ञान हो वह व्यक्ति महान हो जाता है। समाज में वह पूजनीय स्थान प्राप्त कर लेता है। इस ज्ञान की प्राप्ति के बाद वह किसी और ज्ञान का आश्रित नहीं रह जाता।

उन्होंने विद्यालय शिक्षा अवश्य प्राप्त की थी, किंतु उन्हें विद्यालयी शिक्षा सदैव बोझ लगा। यह केवल समय बर्बादी के अलावा और कुछ नहीं था।  विद्यालयी शिक्षा अंग्रेजी शिक्षा नीति पर आधारित थी। जहां केवल ईसाई धर्म आदि का महिमामंडन किया गया था। यह शिक्षा समाज के लिए नहीं थी।समाज का एक बड़ा वर्ग जहां अशिक्षित था।

शिक्षा की कमी के कारण वह समाज निरंतर विघटन की ओर जा रहा था। 

अतः समाज में ऐसी शिक्षा की कमी थी जो समाज को सन्मार्ग पर ले जाए।

निरंतर सामाजिक मूल्यों का ह्रास हो रहा था, धर्म की हानि हो रही थी। स्वामी जी ने अपने बुद्धि बल का प्रयोग कर समाज को एकजुट करने का प्रयास किया। उन्होंने सभी मोतियों को एक माला में पिरोने का कार्य किया।

विवेकानंद जी ने जगह-जगह घूमकर धर्म-संस्कृति का प्रचार-प्रसार किया।

लोगों को, समाज को यह विश्वास दिलाया कि वह महान और दिव्य कार्य कर सकते हैं। बस उन्हें इच्छा शक्ति जागृत करनी है। उन्होंने माया और जगत मिथ्या हे लोगों के समक्ष प्रस्तुत किया।

ईश्वर की सत्ता को परम सत्य के रूप में प्रकट किया।

स्वामी जी ने मठ तथा आश्रम की स्थापना कर धर्म और संस्कृति के क्षेत्र में अपना विशेष योगदान दिया। उन्होंने ऐसे सहयोगी तथा शिष्य को तैयार किया। जो समाज के बीच जाकर, उनके बीच फैली हुई अज्ञानता को दूर करते थे।

धर्म तथा संस्कृति के वास्तविक मूल्यों को सामने रखने का प्रयत्न किया।

शरीर के प्रति स्वामी विवेकानंद जी के विचार

स्वस्थ शरीर होने की वकालत सदैव स्वामी विवेकानंद जी करते रहे। वह हमेशा कहते थे , स्वस्थ शरीर के रहते हुए ही स्वस्थ कार्य अर्थात अच्छे कार्य किए जा सकते हैं। अच्छी शक्तियां शरीर के भीतर तभी जागृत होती है, जब मन और शरीर स्वच्छ हो। वह स्वयं खेल-कूद और शारीरिक प्रतियोगिता में भाग लिया करते थे।

शारीरिक कसरत उनकी दिनचर्या में शामिल थी। उनका शरीर, कद-काठी उनके ज्ञान की भांति ही मजबूत और शक्तिशाली थी।

स्वामी विवेकानंद जी का वेदों की और लोटो से आशय

स्वामी जी के समय समाज में व्याप्त आडंबर, पुरोहितवाद, मूर्ति पूजा और विदेशी धर्म संस्कृति, भारतीय सनातन संस्कृति की नींव खोद रही थी। उन्होंने स्वयं वेद-वेदांत, पुराण तथा अन्य प्रकार के धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन किया था। इस अध्ययन में वह निपुण हो गए थे। उन्होंने ईश्वर और जगत के बीच माया-मोह का अंतर जाने लिया था। वह सभी लोगों को ईश्वर की ओर अपना ध्यान लगाने के लिए प्रेरित किया। इसीलिए उन्होंने वेदों की ओर लौटो का नारा बुलंद किया।

इस नारे को लेते हुए वह विदेश भी गए, वहां उन्हें काफी सराहना मिली। अमेरिका, यूरोप, रूस, फ्रांस आदि विकसित देशों ने भी स्वामी जी के विचारों को सराहा। उनके विचारों से प्रेरित हुए, जिसके कारण वहां आश्रम तथा मठ की स्थापना हो सकी। वहां ऐसे शिक्षक तैयार हो सके जो स्वामी जी के विचारों को आगे लेकर जाए।

स्वामी विवेकानंद जी की प्रसिद्धि

स्वामी जी की प्रसिद्धि देश ही नहीं अपितु विदेश में भी थी। उनकी कुशाग्र बुद्धि और तर्कशक्ति का लोहा पूरा भारत तो मानता ही था। जब उन्होंने अमेरिका के शिकागो में अपना ऐतिहासिक भाषण धर्म सम्मेलन में दिया।

उनकी ख्याति रातो-रात विदेश में भी बढ़ गई।

स्वामी जी की प्रसिद्धि अब विदेशों में भी हो गई थी।

उनसे मिलने के लिए विदेश के बड़े से बड़े दार्शनिक, चिंतक, आदि लालायित रहा करते थे।

स्वामी जी से मुलाकात किसी भी विद्वान के लिए सौभाग्य की बात हुआ करती थी। स्वामी जी भारतीय सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व करते थे। सनातन धर्म से अपने धर्म को श्रेष्ठ बताने वाले अनेकों दूसरे धर्म के प्रचारक भेंट करने को आतुर रहते। स्वामी जी के तर्कशक्ति के आगे बड़े से बड़ा विचारक, दार्शनिक आदि धाराशाही हो जाते। वह किसी भी साहित्य को बिना खोले बाहर सही अध्ययन करने की क्षमता रखते थे।

इस प्रतिभा ने स्वामी जी को और प्रसिद्धि दिलाई।

फ्रांस, जर्मनी, रूस और अमेरिका तथा अन्य देशों की ऐसी घटनाएं यह साबित करती है कि उनकी प्रसिद्धि किस स्तर पर थी।

फ़्रांस के महान दार्शनिक के घर जब वह आतिथ्य हुए तब उनकी पंद्रह सौ से अधिक पृष्ठ की पुस्तक को एक घंटे में बिना खोलें अध्ययन किया। यह अध्ययन पृष्ठ संख्या सहित, अक्षरसः था।

इस प्रतिभा से फ्रांस का वह दार्शनिक स्वामी जी का शिष्य हो गया।

अंग्रेजी भाषा के प्रतिस्वामी विवेकानंद जी का दृष्टिकोण

स्वामी विवेकानंद अपनी मातृभाषा के प्रति समर्पित थे। वह बांग्ला, संस्कृत, फ़ारसी आदि भाषाओं को जानते थे। इन भाषाओं में वह काफी अच्छा ज्ञान रखते थे। अंग्रेजी भाषा के प्रति उनका दृष्टिकोण अलग था। वह अंग्रेजी भाषा को कभी भी हृदय से स्वीकार नहीं करते थे। उनका मानना था जिन लुटेरों और आतंकियों ने उनकी मातृभूमि को क्षति पहुंचाई है।

उनकी भाषा को जानना भी पाप है।

इस पाप से वह सदैव बचते रहे।

जब आभास हुआ, भारतीय संस्कृति को तथाकथित अंग्रेजी विद्वानों के सामने रखने के लिए उनकी भाषा की आवश्यकता होगी। स्वामी जी ने उनकी भाषा में, उनको समझाने के लिए अंग्रेजी का अध्ययन किया। वह अंग्रेजी में इतने निपुण हो गए, उन्होंने अंग्रेजी के महान दार्शनिक, चिंतकों और विचारकों के साहित्य को विस्तारपूर्वक अक्षर से अध्ययन किया। इतना ही नहीं उनकी महानता को बताने वाले, सभी धार्मिक साहित्य का भी गहनता से अध्ययन किया। जिसका परिणाम हम अनेकों धर्म सम्मेलनों में देख चुके हैं।

मतिभूमि के प्रति स्वामी विवेकानंद जी का प्रेम

विवेकानंद जी की देशभक्ति अतुलनीय थी। एक समय की बात है ,स्वामी जी विदेश यात्रा कर समुद्र मार्ग से अपने देश लौटे। यहां जहाज से उतर कर उन्होंने मातृभूमि को झुककर प्रणाम किया। यह संत यहीं नहीं रुका।जमीन में इस प्रकार लौटने लगा, जैसे प्यास से व्याकुल कोई व्यक्ति। यह प्यास अपनी मातृभूमि से मिलने की थी, जो उद्गार रूप में प्रकट हुई थी। स्वामी जी अपनी मातृभूमि के प्रति निष्ठा और सम्मान की भावना संभवत अपने बाल संस्कारों से लिए थे।

बालक नरेंद्र ने अपने दादा को देखा था।

जिन्होंने पच्चीस वर्ष की अल्पायु में ही अपने परिवार का त्याग कर सन्यास धारण किया था। ऐसा कौन युवा होता है जो इतनी कम आयु में संन्यास लेता है।

संभवत नरेंद्र ने भी राष्ट्रभक्ति का प्रथम अध्याय अपने घर से ही पढ़ा था।

स्वामी विवेकानंद जी के अद्भुत सुविचार

१.  कोई तुम्हारी मदद नहीं कर सकता अपनी मदद स्वयं करो तुम खुद के लिए सबसे अच्छे मित्र हो और सबसे बड़े दुश्मन भी। ।

स्वामी जी कहते हैं तुम्हारी मदद कोई और नहीं कर सकता , जब तक तुम स्वयं की मदद नहीं करते। मनुष्य को यहां तक कि किसी के मदद की आवश्यकता नहीं होती। वह स्वयं अपनी मदद कर सकता है। व्यक्ति स्वयं का जितना अच्छा मित्र होता है, उतना ही बड़ा दुश्मन भी। यह उसके व्यवहार पर निर्भर करता है कि, वह स्वयं से दोस्ती करना चाहता है या दुश्मनी।

२.  हम जितना ज्यादा बाहर जाएंगे और दूसरों का भला करेंगे हमारा हृदय उतना ही शुद्ध होता जाएगा और परमात्मा उसमें निवास करेंगे। ।

भारत में नर सेवा को नारायण सेवा माना गया है। स्वामी जी इसका पुरजोर समर्थन करते हैं, उन्होंने कहा है व्यक्ति जितना बाहर निकल कर दीन – दुखीयों  और आवश्यक लोगों की सेवा करेगा। उस व्यक्ति का हृदय उतना ही पवित्र होगा। पवित्र हृदय में ही परमात्मा का सच्चा निवास होता है। प्रत्येक व्यक्ति को चाहिए वह दिन दुखियों की सेवा करे।

३. कुछ ऊर्जावान व्यक्ति एक साल में इतना कर देता है , जितना भीड़ एक हजार साल में नहीं कर सकती। ।

बड़ी सफलता और उपलब्धि हासिल करने वाले कुछ ही लोग होते हैं।

ऐसे ऊर्जावान व्यक्ति कुछ ही समय में ऐसा कार्य कर दिखाते हैं, जो बड़े से बड़ा जनसमूह हजारों साल में नहीं कर सकता। वर्तमान समय में भी ऐसे लोग विद्यमान है।

ऐसे ही लोगों के कारण आज का विज्ञान सूरज और चांद से आगे निकल चुका है।

४. कोई एक विचार लो , और उसे ही जीवन बना लो उसी के बारे में सोचो , उसके सपने देखो उसे मस्तिष्क में , मांसपेशियों में , नसों में और शरीर के हर हिस्से में डूब जाने दो। दूसरे सभी विचारों को अलग रख दो यही सफल होने का तरीका है। ।

स्वामी जी का मानना था किसी एक लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए उसके पीछे दिन-रात की मेहनत लगानी पड़ती है। उसे अपने प्रत्येक इंद्रियों में समाहित करना पड़ता है। उसके प्रति लगन समर्पण का भाव रखना पड़ता है , तब जाकर सफलता प्राप्त होती है। जो इस प्रकार के यत्न नहीं करते उन्हें सफलता दुष्कर लगती है।

५.  विकास ही जीवन है और संकोच ही मृत्यु प्रेम ही विकास है और स्वार्थपरता ही संकोच एतव प्रेम ही जीवन का एकमात्र नियम है जो प्रेम करता है , वह जीता है जो स्वार्थी है , वह मरता है एतव प्रेम के लिए ही प्रेम करो क्योंकि प्रेम ही , जीवन का एकमात्र नियम है। ।

माना जाता है प्रेम से शुद्ध और कोई चीज नहीं होती। व्यक्ति के जीवन में प्रेम अहम भूमिका निभाती है , प्रेम जितना शुद्ध होगा व्यक्ति उतना ही योग्य होगा। जिस व्यक्ति के मन में स्वार्थ और संकोच की भावना होती है , वह मृत्यु के समान बर्ताव करती है। जीवन का एक मात्र सत्य प्रेम है प्रेम के प्रति व्यक्ति को समर्पण भाव रखते हुए स्वीकार करना चाहिए।

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स्वामी विवेकानंद जी के जीवन की महत्वपूर्ण तिथियां

  • 12 जनवरी 1863 – कोलकाता (वर्तमान पश्चिम बंगाल) में जन्म ।
  • 1871 प्राथमिक शिक्षा के लिए ईश्वर चंद्र विद्यासागर मेट्रोपॉलिटन संस्था कोलकाता में दाखिला।
  • 1877 परिवार रायपुर चला गया।
  • 1879 प्रेसिडेंसी कॉलेज प्रवेश परीक्षा में अव्वल हुए।
  • 1880 जनरल असेंबली इंस्टिट्यूट में प्रवेश।
  • 1881 ललित कला की परीक्षा उत्तीर्ण की
  • नवंबर 1881 रामकृष्ण परमहंस से भेंट।
  • 1882 – 86 रामकृष्ण परमहंस के सानिध्य में रहे
  • 1884  स्नातक की परीक्षा सफलतापूर्वक उत्तीर्ण किया
  • 1884 पिता का स्वर्गवास
  • 16 अगस्त 1886 रामकृष्ण परमहंस का निधन
  • 1886 वराहनगर मठ की स्थापना किया
  • 1887 वडानगर मठ से औपचारिक सन्यास धारण किया
  • 1890-93 परिव्राजक के रूप में भारत भ्रमण किया
  • 25 दिसंबर 1892 कन्याकुमारी में निवास किया
  • 13 फरवरी 1893 प्रथम व्याख्यान सिकंदराबाद में दिया
  • 31 मई 1893 मुंबई से अमेरिका के लिए जल मार्ग से रवाना हुए
  • 25 जुलाई 1893 कनाडा पहुंचे
  • 30 जुलाई 1893 शिकागो शहर पहुंचे
  • अगस्त 1893 हार्वर्ड विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जॉन राइट से मुलाकात हुई
  • 11 सितंबर 1893 विश्व धर्म सम्मेलन शिकागो में ऐतिहासिक व्याख्यान
  • 16 मई 1894 हार्वर्ड विश्वविद्यालय में व्याख्यान
  • नवंबर 1894 न्यूयॉर्क में वेदांत समिति की स्थापना
  • जनवरी 1895 न्यूयॉर्क में धार्मिक कक्षाओं का संचालन आरंभ

अगस्त 1895 वह पेरिस गए

  • अक्टूबर 1895 लंदन में अपना व्याख्यान दिया
  • 6 दिसंबर 1895 न्यूयॉर्क वापस आए
  • 22-25 मार्च 1886 वह पुनः लंदन आ गए
  • मई तथा जुलाई 1896 में हार्वर्ड विश्वविद्यालय में व्याख्यान दिया
  • 28 मई 1896 ऑक्सफोर्ड में मैक्स मूलर से भेंट किया
  • 30 दिसंबर 1896 नेपाल से भारत की ओर रवाना हुए
  • 15 जनवरी 1897 कोलंबो श्री लंका पहुंचे
  • जनवरी 1897 रामेश्वरम में उनका जोरदार स्वागत हुआ साथ ही एक व्याख्यान भी
  • 6- 15 1897 मद्रास में भ्रमण किया
  • 19 फरवरी 1897 वह कोलकाता आ गए
  • 1 मई 1897  रामकृष्ण मिशन की स्थापना की
  • मई- दिसंबर 1897 उत्तर भारत की महत्वपूर्ण यात्रा की
  • जनवरी 1898 कोलकाता वापस हो गए
  • 19 मार्च 1899 अद्वैत आश्रम की स्थापना की
  • 20 जून 1899 पश्चिम देशों के लिए दूसरी यात्रा का आरंभ किया
  • 31 जुलाई 1899 न्यूयॉर्क पहुंचे
  • 22 फरवरी 1900 सैन फ्रांसिस्को में वेदांत की स्थापना की
  • जून 1900 न्यूयॉर्क में अंतिम कक्षा का आयोजन हुआ
  • 26 जुलाई 1900 यूरोप के लिए रवाना हुए
  • 24 अक्टूबर 1900 विएना , हंगरी , कुस्तुनतुनिया , ग्रीस , मिश्र आदि देशों की यात्रा किया
  • 26 नवंबर 1900 भारत को रवाना हुए
  • 6 दिसंबर 1900 बेलूर मठ में आगमन हुआ
  • 10 जनवरी 1901 अद्वैत आश्रम में भ्रमण किया
  • मार्च – मई1901 पूर्वी बंगाल और असम की तीर्थ यात्रा की
  • जनवरी-फरवरी1902 बोधगया और वाराणसी की यात्रा की
  • मार्च 1902 बेलूर मठ वापसी हुई
  • 4 जुलाई 1902 स्वामी विवेकानंद जी ने महासमाधि धारण की

स्वामी विवेकानंद जी पर आधारित कहानी

बालक नरेंदर बुद्धि का धनी था। वह अन्य विद्यार्थियों से बिल्कुल अलग था, जानने की जिज्ञासा उसके भीतर सदैव जागृत रहती थी।

स्वभाव से वह खोजी प्रवृत्ति का था।जब तक किसी विषय के उद्गम-अंत आदि का विस्तार से अध्ययन नहीं करता, चुप नहीं बैठा करता ।

यही कारण है उसका नाम  नरेंद्र नाथ दत्त  से  स्वामी विवेकानंद  हो गया ।

विवेकानंद कहलाने के पीछे भी उनके गुरु की अहम भूमिका है।

नरेंद्र बचपन से ही कुशाग्र और तीक्ष्ण बुद्धि के थे। वह किसी भी विषय को बेहद ही सरल और कम समय में अध्ययन कर लिया करते थे। उनका ध्यान विद्यालय शिक्षा पर अधिक नहीं लगता था।

वह उन्हें अरुचिकर विषय जान पड़ता था। 

विद्यालय पाठ्यक्रम को वह कुछ दिन में ही समाप्त कर लिया करते थे। इसके कारण उन्हें फिर भी अन्य विद्यार्थियों के साथ वर्ष भर इंतजार करना पड़ता था , यह उन्हें बोझिल लगता था।

नरेंद्र की स्मरण शक्ति इतनी तीव्र थी , वह कुछ क्षण में पूरी पुस्तक का अध्ययन अक्षरसः कर लिया करते थे। उनकी इस प्रतिभा से उनके  गुरु रामकृष्ण परमहंस  काफी प्रभावित थे। नरेंद्र की इस प्रतिभा को देखते हुए वह प्यार से  विवेकानंद  पुकारा करते थे।

भविष्य में यही नरेंद्र स्वामी विवेकानंद के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

अल्पायु में स्वामी विवेकानंद ने वेद-वेदांत, गीता, उपनिषद आदि का विस्तार पूर्वक अध्ययन कर लिया था।

यह उनके स्मरण शक्ति का ही परिचय है।

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स्वामी विवेकानंद जी की जितनी प्रशंसा की जाए उतनी कम है। मनुष्य होते हुए भी उनमें आलौकिक गुण विद्यमान थे जो उन्हें औरों से अलग बनाता था। भारतीय ही नहीं बल्कि पुराने जमाने में विदेश में भी उनकी प्रशंसा की जाती थी और वहां के लोग विवेकानंद जी पर किताब लिखते थे और उनकी प्रशंसा करते थे।

ऐसे महान व्यक्ति सदी में एक बार जन्म लेते हैं। इनसे जितना हो सके उतना लोगों को सीखना चाहिए और अपने जीवन को बदलना चाहिए। आशा है यह लेख आपको काफी पसंद आया होगा और आपको बहुत कुछ सीखने को मिला होगा। आप अपने विचार हम तक कमेंट सेक्शन में लिखकर पहुंचा सकते हैं।

आप हमारे द्वारा लिखी अन्य महान लोगों पर जीवनी भी पढ़ सकते हैं नीचे दिए गए लिंक के माध्यम से

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इस लेख को अंत तक पढ़ने के लिए आपका धन्यवाद।

अगर आपके मन में कोई भी प्रश्न या फिर दुविधा है इस लेख से संबंधित तो आप हमें नीचे कमेंट सेक्शन में लिखकर सूचित कर सकते हैं।

4 thoughts on “स्वामी विवेकानंद जी की सम्पूर्ण जीवनी, Swami Vivekananda jivani”

महान व्यक्तियों में स्वामी विवेकानंद जी को मैं काफी फॉलो करता हूं और वह मेरे लिए काफी बड़े प्रेरणा के स्रोत हैं. उनके द्वारा कहा गया एक एक शब्द एक किताब के बराबर है जिसके मूल्य को नापना बहुत मुश्किल है. उनकी जीवनी लिखकर आपने बहुत अच्छा काम किया है

स्वामी विवेकानंद जी एक महान व्यक्ति थे जिनका चरित्र चित्रण आपने बहुत अच्छे तरीके से किया है. परंतु इसमें कुछ बातें नहीं लिखी जो मैं चाहता हूं कि आप यहां पर लिखें जैसे कि उन्होंने कौन सी स्पीच दी थी।

स्वामी विवेकानंद जी के गुरू रामकृष्ण परमहंस जी थे जो काली के उपासक थे

बहुत बहुत साधुवाद आपकी पुरी टीम को जिन्होंने इतनी मेहनत कर के हम सभी तक स्वामी जी के जीवन की अमुल्य बातें पहुचाई

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स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय PDF

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स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय

स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय

स्वामी विवेकानंद जी का जन्म 12 जनवरी 1863 को कोलकाता में हुआ था। स्वामी विवेकानंद के पिता का नाम विश्वनाथ दत्त था और माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था।   विवेकानन्द के पिता जी एक विचारक अति उदार गरीबों के प्रति सहानुभूति रखने वाले तथा सामाजिक विषयों में व्यवहारिक और रचनात्मक दृष्टिकोण रखने वाले व्यक्ति थे। स्वामी विवेकानंद जी की माता जी भुवनेश्वरी देवी जो सरल व अत्यंत धार्मिक महिला थी इनका जीवन बचपन से ही काफी संघर्ष भरा रहा है इन्होंने बहोत कम आयु में लगातार प्रयास और संघर्ष से 39 वर्ष की आयु में पूरे विश्व में छा गए थे । स्वमी विवेकानंद जी हिन्दू सभ्यता के शिरोमणि संत थे।

स्वामी विवेकानंद के गुरु रामकृष्ण परमहंस ने सपने में आकर धर्म संसद में जाने का संदेश दिया था लेकिन नरेंद्र नाथ के पास पश्चिम देशों मैं जाने के लिए पैसे नहीं थे इसीलिए नरेंद्र नाथ ने खेत्री के महाराज से संपर्क किया उन्हीं के सुझाव पर अपना नाम स्वामी विवेकानंद रख लिया। इस प्रकार नरेंद्र का नाम स्वामी विवेकानंद पड़ा।

स्वामी विवेकानंद एक जीवनी

स्वामी विवेकानंद के गुरु का नाम श्री  रामकृष्ण परमहंस  था। रामकृष्ण परमहंस कोलकाता के दक्षिणेश्वर में स्थित काली मन्दिर के प्रसिद्ध पुजारी थे। स्वामी विवेकानंद की श्री रामकृष्ण परमहंस से पहली भेंट 1881 में हुई थी।

दक्षिणेश्वर के इसी काली मंदिर में स्वामी विवेकानंद ने अपने गुरु श्री रामकृष्ण परमहंस के चरणों में बैठकर ईश्वर संबंधी ज्ञान पाया था। स्वामी विवेकानंद अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस के साथ पाच वर्षों 1882 से लेकर 1886 तक रह सके। स्वामी विवेकानंद समाज में व्याप्त समस्याओं को जड़ से नष्ट करना चाहते थे स्वामी विवेकानंद समाज के विभिन्न समस्या पर उन्होंने अपना महत्वपूर्ण विचार व्यक्त किए।

स्वामी विवेकानंद भारतीय समाज में व्याप्त राष्ट्रीयता छुआछूत पर कटि प्रहार किया वह उच्चव निम्न जातियों के भेद को मिटाना चाहते थे वे कहते थे तुम्हारे मन में जो ईश्वर स्थित है वही मेरे मन में भी है फिर यह भेदभाव क्यों यह समानता क्यों। जातियों द्वारा निम्न जातियों के किए जाने वाले शोषण के विरुद्ध थे। स्वामी विवेकानन्द प्रत्येक राष्ट्र को अपनी स्त्री जाति का पूरा सम्मान करना चाहिए जो राष्ट्र स्त्रियो का आदर नहीं करते वो कभी उन्नति नहीं कर पाए और न भविष्य में ही कर पाएंगे ऐसा कथन स्वामी विवेकानंद जी ने कहा था।

स्वामी विवेकानन्द जी ने स्त्रियों और धार्मिक तथा चरित्र संबंधित शिक्षा देने पर बल दिया स्वामी विवेकानंद जी ने बाल विवाह का विरोध किया बाल विवाह की आलोचना की विवेकानन्द ने समाज में रहकर हिंदू और मुस्लिम की एकता पर बल दिया स्वामी विवेकानंद ने आज समाज में फैली व्यर्थ कुरुतिया को हटाकर समाज को एक नई दिशा प्रदान करने पर बल दिया समाज में जितनी भी कुरुतिया थी उनकी कटु आलोचना की।

स्वामी विवेकानंद के विचार प्रमुख हैं

स्वामी विवेकानन्द  संगीत साहित्य और दर्शन उनका शौक था स्वामी विवेकानन्द ने 25 वर्ष की आयु में ही वेद पुराण बाईबल कुरान पूंजीवाद अर्थशास्त्र राजनीति शास्त्र संगीत साहित्य आदि की तमाम तरह के विचारधाराओं को ग्रहण कर लिया था जैसे बड़े होते गए विवेकानंद सभी धर्म और दर्शन के प्रति अविश्वास हो गया।

विवेकानन्द ने कहा है उठो जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य की प्राप्ति ना हो जाए इस कथन के माध्यम से उन्होंने भारत के युवाओं को आगे बढ़ने के लिए संदेश दिया वर्तमान समय में भी विवेकानंद जी का यह संदेश युवाओं को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है जो कि अब युवाओं का मूल मंत्र भी बन चुका है।

आप नीचे दिए गए लिंक का उपयोग करके स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय PDF में डाउनलोड कर सकते हैं। 

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Book का नाम- स्वामी विवेकानंद की जीवनी (vigyan bhairav tantra pdf)
book लेखक का नाम- रोमा रोलां ( Romain Rolland )
प्रकाशक का नाम- सूपर फाइन प्रिंटर्स, इलाहाबाद

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स्वामी विवेकानंद की जीवनी Swami Vivekananda Biography in Hindi

इस लेख में आप स्वामी विवेकानंद की जीवनी Swami Vivekananda Biography in Hindi पढ़ेंगे। जिसमें आप उनका जन्म, प्रारम्भिक जीवन, शिक्षा, महान कार्य तथा मृत्यु के विषय में पढ़ेंगे।

Table of Content

विवेकानंद का प्रारंभिक जीवन Early life of Vivekananda in Hindi

ब्राह्मो समाज एक आधुनिक हिन्दू अन्दोलत था जिसमें उससे जुड़े लोगों ने भारतीय समाज और जीवन को पुनर्जीवित करने की मांग की और अध्यात्मिक ज्ञान को बढ़ावा दिया। उन्होंने चित्र और मूर्ति पूजा जा विरोध किया।

Swami Vivekananda Biography in Hindi स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय

श्री रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानंद Ramakrishna Paramahansa and Swami Vivekananda

शुरुवात में कई बातों में रामकृष्ण परमहंस जी के विचार विवेकनंद से अलग थे। रामकृष्ण परमहंस जी एक अशिक्षित और साधारण ग्रामीण व्यक्ति थे जिन्होंने एक स्थानीय काली मंदिर में एक पद को लिया और वहां रहते थे तब भी उनके साधारण रूप में भी एक अत्याधुनिक अध्यात्मिक तेज़ दीखता था।

विवेकानंद के अध्यात्मिक शक्ति के विषय में रामकृष्ण को जल्द यह पता चल गया और जल्द ही उनका ध्यान विवेकानंद के ऊपर हुआ जो पहले रामकृष्ण के विचारों को सही तरीके से समझ नहीं पाते थे। विवेकानंद शुरुवात में रामकृष्ण के विचारों का विश्वास भी नहीं करते थे और उनके उपदेशों को बार-बार पूछते थे और उनकी शिक्षा के प्रति बहस भी करते थे।

रामकृष्ण के मृत्यु के बाद, अन्य शिष्यों ने विवेकानंद को उनका नेतृत्व करने के लिए कहा ताकि वे भी रामकृष्ण जी के अध्यात्मिक  विचारों से अवगत हो सकें। हलाकि विवेकानंद के लिए व्यक्तिगत मुक्ति काफी नहीं था उनका ध्यान तो गरीब, भूखे लोगों की और था। विवेकानंद जी का कहना था मात्र मानवता से ही इश्वर या भगवान् को पाया जा सकता है।

विश्व धर्म संसद में विवेकानंद का भाषण Vivekananda Speech– World Parliament of Religions.

. ( see Speech to Parliament )

Sisters and Brothers of America, It fills my heart with joy unspeakable to rise in response to the warm and cordial welcome which you have given us. I thank you in the name of the most ancient order of monks in the world; . . .

स्वामी विवेकानंद हिन्दू धर्म का प्रतिनिधित्व करने के लिए चीन गए थे। लेकिन विवेकानंद ने अपने धर्म को बड़ा और अच्छा दिखाने का कोई कोशिश नहीं किया बल्कि उन्होंने वहां विश्व धर्म सद्भाव और मानवता के प्रति आध्यात्मिकता भाव को व्यक्त किया।

He is undoubtedly the greatest figure in the Parliament of Religions. After hearing him we feel how foolish it is to send missionaries to this learned nation. निश्चित रूप से वो धर्म संसद में सबसे ज़बरदस्त व्यक्ति थे। उन्हें सुनने के बाद हम यह एहसास कर सकते हैं कि यह कितना मुर्खता है की हम अपने धर्म-प्रचारक इतने शिक्षित देश में भेजते हैं।

अमरीका में विवेकानंद ने अपने कुछ करीबी शिष्यों को ट्रेनिंग भी देना शुरू किया ताकि वे वेदांत की शिक्षाओं का प्रचार कर सकें। उन्होंने अपने शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए अमरीका और ब्रिटेन दोनों जगह छोटे सेंटर शुरू कर दिए। विवेकानंद को ब्रिटेन में भी कुछ ऐसे लोग मिले जो वेदांत की शिक्षा को लेने में इच्छुक हुए।

मृत्यु Death

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स्वामी विवेकानंद की जीवनी ~ Biography Of Swami Vivekananda In Hindi

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1863
कलकत्ता
(अब कोलकाता)
1902 (उम्र 39)
बेलूर मठबंगाल रियासतब्रिटिश राज
(अब बेलूरपश्चिम बंगाल में)
, भक्ति योगज्ञान योग,माई मास्टर
, जागो और तब तक नहीं रुको जब तक मंजिल प्राप्त न हो जाये"

शिकागो वक्तृता [ स्वामी विवेकानन्द,विश्व धर्म सभा, शिकागो ] | Swami Vivekananda's Complete Speech In Hindi At World's Parliament Of Religions, Chicago

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Nice post meri bhi blog hai http://www.hindihint.com is par bhi aap hindi me biography ke saath bhut kuch pad skte hai

Aapne sawami ji ke baare me bahut achhi jankari di hai.

biography of swami vivekananda in hindi pdf

bhai ek baat bolna tha.... pura to wikipedia ko he chhaap diya uska bhin link dene bolte na.....

You have written a very good article. You have given very interesting information about Swami Vivekananda. Here you have explained all the facts very beautifully.

bahut achha lekh

Very good information about sawami vivekananda

सारगर्भित और ज्ञान से ओत-प्रोत जानकारी के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद !

Very nice information

It is very good biography on my idel Swami Vivekananda

अद्भुत ज्ञान के भंडार हैं स्वामी विवेकानंद जी

Very nice biography

Bahut achha likha hai aapne Swami ji ke bare main

swami ji 1 din me 700 page yaad kar lete the

Bhut hi shandar likha sir aapne bhut si bate nahi janta jo ab jan gya

Great 🙏🙏🙏🙏🙏 ❤❤❤❤❤❤❤❤

kashto se bhara jiban apne laskh or Hindu dharm ko bataye

Swami ji ka lekh pada bahut acchha laga

◦•●◉✿Great man✿◉●•◦

Swami vivekanand ji ko mera namaskar kitne vidvaan hai swami vivekanand ji

Thanku so much this information

संक्षिप्त में बहुमूल्य जानकारी।

आपको हमारे तरफ से बहुत धनबाद 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

बहुत-बहुत धन्यवाद भारत के इतिहास के सबसे बड़े व्यक्ति के जीवन के बारे में बताने के लिए।

if a real good we can talk to anyone that is vivakanand, my hero good is thru but vivakanand is master of everyone. his word to protact other befor himself , i real like

very nice sir

very informational and high quality article about Swami Vivekananda

आपने स्वामी विवेकानंद जी के जीवन के बारे में अच्छी जानकारी दी है

I am able to write my project with it

Bahut hi sundar raha hai ye anubhav mere liye

Bahut hi sundar

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biography of swami vivekananda in hindi pdf

स्वामी विवेकानंद का जीवन और संदेश

  • Vivekananda Kendra Hindi Prakashan Vibhag
  • Swami Vivekananda
  • Swami Vivekananda Sardh Shati Samaroh
More Information
Publication Year 2012
VRM Code 1901
Edition 1
Pages 48
Volumes 1
Format Soft Cover
Author

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biography of swami vivekananda in hindi pdf

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भारतीय विचारक: स्वामी विवेकानंद (1863-1902)

  • 12 Sep 2019
  • सामान्य अध्ययन-IV
  • महापुरुषों के नैतिक विचार व उनके जीवन आदर्श

स्वामी विवेकानंद के बारे में

  • स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी, 1863 को हुआ तथा उनके बचपन का नाम नरेंद्र नाथ दत्त था।
  • वह रामकृष्ण परमहंस के एक मुख्य शिष्य और भिक्षु थे।
  • उन्होंने वेदांत और योग के भारतीय दर्शन का परिचय पश्चिमी दुनिया को कराया।

वेदांत दर्शन:

  • वेदांत दर्शन उपनिषद् पर आधारित है तथा इसमें उपनिषद् की व्याख्या की गई है।
  • वेदांत दर्शन में ब्रह्म की अवधारणा पर बल दिया गया है, जो उपनिषद् का केंद्रीय तत्त्व है।
  • इसमें वेद को ज्ञान का परम स्रोत माना गया है, जिस पर प्रश्न खड़ा नहीं किया जा सकता।
  • वेदांत में संसार से मुक्ति के लिये त्याग के स्थान पर ज्ञान के पथ को आवश्यक माना गया है और ज्ञान का अंतिम उद्देश्य संसार से मुक्ति के माध्यम से मोक्ष की प्राप्ति है।
  • वर्ष 1897 में विवेकानंद ने अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस की मृत्यु के पश्चात् रामकृष्ण मिशन की स्थापना की। इस मिशन ने भारत में शिक्षा और लोकोपकारी कार्यों जैसे- आपदाओं में सहायता, चिकित्सा सुविधा, प्राथमिक और उच्च शिक्षा तथा जनजातियों के कल्याण पर बल दिया।

स्वामी विवेकानंद के दर्शन की मूल बातें-

  • विवेकानंद का विचार है कि सभी धर्म एक ही लक्ष्य की ओर ले जाते हैं, जो उनके गुरु श्री रामकृष्ण परमहंस के आध्यात्मिक प्रयोगों पर आधारित है।
  • स्वामी विवेकानंद ने इस बात पर बल दिया कि पश्चिम की भौतिक और आधुनिक संस्कृति की ओर भारतीय आध्यात्मिकता का प्रसार करना चाहिये, जबकि वे भारत के वैज्ञानिक आधुनिकीकरण के पक्ष में भी मजबूती से खड़े हुए।
  • उन्होंने जगदीश चंद्र बोस की वैज्ञानिक परियोजनाओं का भी समर्थन किया। स्वामी विवेकानंद ने आयरिश शिक्षिका मार्गरेट नोबल (जिन्हें उन्होंने 'सिस्टर निवेदिता' का नाम दिया) को भारत आमंत्रित किया ताकि वे भारतीय महिलाओं की स्थिति में सुधार लाने में सहयोग कर सकें।
  • महात्मा गांधी द्वारा सामाजिक रूप से शोषित लोगों को 'हरिजन' शब्द से संबोधित किये जाने के वर्षों पहले ही स्वामी विवेकानंद ने 'दरिद्र नारायण' शब्द का प्रयोग किया था जिसका आशय था कि 'गरीबों की सेवा ही ईश्वर की सेवा है।‘
  • पश्चिमी राष्ट्रवाद के विपरीत विवेकानंद का राष्ट्रवाद भारतीय धर्म पर आधारित है जो भारतीय लोगों का जीवन रस है। भारतीय संस्कृति के प्रमुख घटक मानववाद एवं सार्वभौमिकतावाद विवेकानंद के राष्ट्रवाद की आधारशिला माने जा सकते हैं।
  • विवेकानंद ने आंतरिक शुद्धता एवं आत्मा की एकता के सिद्धांत पर आधारित नैतिकता की नवीन अवधारणा प्रस्तुत की। विवेकानंद के अनुसार, नैतिकता और कुछ नहीं बल्कि व्यक्ति को एक अच्छा नागरिक बनाने में सहायता करने वाली नियम संहिता है।
  • स्वामी विवेकानंद का मानना है कि किसी भी राष्ट्र का युवा जागरूक और अपने उद्देश्य के प्रति समर्पित हो, तो वह देश किसी भी लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है।
  • विवेकानंद ने युवाओं को आध्यात्मिक बल के साथ-साथ शारीरिक बल में वृद्धि करने के लिये भी प्रेरित किया।
  • स्वामी विवेकानंद ने ऐसी शिक्षा पर बल दिया जिसके माध्यम से विद्यार्थी की आत्मोन्नति हो और जो उसके चरित्र निर्माण में सहायक हो सके।
  • विवेकानंद एक मानवतावादी चिंतक थे, उनके अनुसार मनुष्य का जीवन ही एक धर्म है। धर्म न तो पुस्तकों में है, न ही धार्मिक सिद्धांतों में, प्रत्येक व्यक्ति अपने ईश्वर का अनुभव स्वयं कर सकता है। विवेकानंद ने धार्मिक आडंबर पर चोट की तथा ईश्वर की एकता पर बल दिया। विवेकानंद के शब्दों में “मेरा ईश्वर दुखी, पीड़ित हर जाति का निर्धन मनुष्य है।

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