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सिपाही / रामधारी सिंह "दिनकर"

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वनिता की ममता न हुई, सुत का न मुझे कुछ छोह हुआ, ख्याति, सुयश, सम्मान, विभव का, त्यों ही, कभी न मोह हुआ। जीवन की क्या चहल-पहल है, इसे न मैने पहचाना, सेनापति के एक इशारे पर मिटना केवल जाना। मसि की तो क्या बात? गली की ठिकरी मुझे भुलाती है, जीते जी लड़ मरूं, मरे पर याद किसे फिर आती है? इतिहासों में अमर रहूँ, है एसी मृत्यु नहीं मेरी, विश्व छोड़ जब चला, भुलाते लगती फिर किसको देरी? जग भूले पर मुझे एक, बस सेवा धर्म निभाना है, जिसकी है यह देह उसी में इसे मिला मिट जाना है। विजय-विटप को विकच देख जिस दिन तुम हृदय जुड़ाओगे, फूलों में शोणित की लाली कभी समझ क्या पाओगे? वह लाली हर प्रात क्षितिज पर आ कर तुम्हे जगायेगी, सायंकाल नमन कर माँ को तिमिर बीच खो जायेगी। देव करेंगे विनय किंतु, क्या स्वर्ग बीच रुक पाऊंगा? किसी रात चुपके उल्का बन कूद भूमि पर आऊंगा। तुम न जान पाओगे, पर, मैं रोज खिलूंगा इधर-उधर, कभी फूल की पंखुड़ियाँ बन, कभी एक पत्ती बन कर। अपनी राह चली जायेगी वीरों की सेना रण में, रह जाऊंगा मौन वृंत पर, सोच न जाने क्या मन में! तप्त वेग धमनी का बन कर कभी संग मैं हो लूंगा, कभी चरण तल की मिट्टी में छिप कर जय जय बोलूंगा। अगले युग की अनी कपिध्वज जिस दिन प्रलय मचाएगी, मैं गरजूंगा ध्वजा-श्रंग पर, वह पहचान न पायेगी। 'न्यौछावर मैं एक फूल पर', जग की ऎसी रीत कहाँ? एक पंक्ति मेरी सुधि में भी, सस्ते इतने गीत कहाँ? कविते! देखो विजन विपिन में वन्य कुसुम का मुरझाना, व्यर्थ न होगा इस समाधि पर दो आँसू कण बरसाना।

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Hindi Essay on “Sipahi”, “सिपाही”, for Class 5, 6, 7, 8, 9 and Class 10 Students, Board Examinations.

सिपाही जनता का सेवक होता है। वह खाकी वर्दी पहनता है तथा सिर पर भी खाकी टोपी पहनता है। वह एक बेल्ट भी लगाता है जिस पर उसका नम्बर लिखा होता है। वह कानून व्यवस्था बनाए रखता है तथा लोगों को सहायता करता है। वह चोरों को पकड़ता है तथा रात में जगह-जगह गश्त लगाता है तथा कानून तोड़ने वालों को पकड़ कर सजा दिलाता है। सिपाही स्वस्थ  तथा लम्बे होते हैं।

वह अपना कार्य बड़ी चुस्ती से करता है। इसका कार्य बहुत मेहनत का होता है। और इसका वेतन थोड़ा होता है। इसका कार्य बहुत कठिन है। वह दिन रात काम में लगा रहता है तथा रात को लोगों की पहरेदारी के कारण यह स्वयं भी नहीं सो पाता। इसका सारा समय अपना कर्तव्य निभाने में ही जाता। है। सिपाही सड़कों के बीच में चौक पर भी खड़ा रहता है तथा आने जाने वालों को कानून सिखाता है। तथा जो इन नियमों का उल्लंघन करते हैं उन्हें दंड भी देता है। तथा उसका चालान भी काट दिया जाता है। इस प्रकार सिपाही राज्य की कानून और व्यवस्था बनाए रखने में सहायता करता है। इसका काम जितना कठिन है इसका वेतन उतना ही कम है। सरकार को इसका वेतन बढ़ाना चाहिए।

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सिपाही पर निबंध / Essay on Policeman in Hindi

essay on sipahi in hindi language

सिपाही पर निबंध / Essay on Policeman in Hindi!

सिपाही किसी भी समाज का सहायक सदस्य होता है । यह अपराधियों का शत्रु तथा आम नागरिकों का मित्र होता है । समाज में शांति बनाए रखने के लिए सिपाही या पुलिसमैन की भूमिका अति महत्त्वपूर्ण होती है । यह चोरों, डाकुओं और अपराधियों को पकड़ पर समाज को सुरक्षा प्रदान करता है ।

सिपाही स्थानीय पुलिस विभाग का सदस्य होता है । भारत में सिपाहियों की नियुक्ति प्रांतीय सरकार द्वारा की जाती है । ये शारीरिक रूप से सक्षम और राइफल, पिस्तौल आदि चलाने में निपुण होते हैं । इसके लिए इन्हें बहाल करने के पश्चात् प्रशिक्षण दिया जाता है । प्रशिक्षण पूरा होने पर उन्हें कार्यस्थल पर तैनात कर दिया जाता है ।

सिपाही का काम बहुत महत्त्व का है । उसकी लापरवाही से समाज में अशांति फैल सकती है । उसकी मुस्तैदी से समाज के सम्मानित सदस्य सिर ऊँचा करके जी सकते हैं । वह यदि चोरों को न पकड़े तो वे निर्भय होकर चोरी करें और जनता अपनी गाड़ी संपत्ति गँवा दे । वह डकैतों को गिरफ्तार न करे तो दिन-दहाड़े लूट और डकैती होने लगे । पॉकेटमारों की तो चाँदी ही होने लगे । बस और ट्रेनों में यात्रा करना दूभर हो जाए ।

पुलिस असावधान रहे तो लोग कानून न मानें और हर कोई अपनी मनमानी करने लगे । हत्या, बलात्कार, अपहरण, छुरीबाजी आदि घटनाओं की संख्या बढ़ जाए । पुलिस के निकम्मेपन का देशद्रोही जमकर लाभ उठाने लगें । आतंकवाद सिर चढ़कर बोले । दबंग लोग निर्बलों पर अत्याचार करने लगें । अपराधी बेखौफ घूमे और निर्दोषों को परेशान करें ।

सिपाही अपनी खास वर्दी में ड्‌यूटी करता है । उसकी वर्दी खाकी होती है । वर्दी पर उसका नाम और पद लिखा होता है । उसके सिर पर एक टोपी होती है । उसके हाथ में डंडा या राइफल होती है । पैरों में यह बूट पहनता है । वह आम तौर पर हृष्ट-पुष्ट और रोबीला दिखाई देता है । लोग उसे दूर से ही पहचान लेते हैं । वह कभी पुलिस चौकी पर ड्‌यूटी करता है, तो कभी भीड़- भाड़ वाले स्थानों पर । यह जीप पर सवार होकर क्षेत्र की निगरानी करता है ।

ADVERTISEMENTS:

मेले, समारोहों और जलसों पर उसकी तैनाती सुरक्षा के लिहाज से की जाती है । कहीं खेल हो रहा हो या राजनीतिक सभा चल रही हो, उसकी उपस्थिति व्यवस्था को बनाए रखने में सहायक होती है । आतंकवाद के बढ़ते खतरे को देखते हुए पुलिस की भूमिका और भी बढ़ गई है ।

पुलिस अपराधियों की खोजबीन में हमेशा तत्पर रहती है । वह अपराधियों को पकड़कर पुलिस चौकी ले आती है । वहाँ उनसे सघन पूछताछ की जाती है । फिर मामला बनाकर उन्हें न्यायालय के समक्ष लाया जाता है । अपराधियों को सजा देने का काम न्यायालय का है । पुलिस न्यायालय के आदेश को मानते हुए उसके निर्देशानुसार कार्य करती है । पुलिस आरोपी के विरुद्ध सबूत इकट्‌ठा करती है । सबूतों के आधार पर ही अपराधी के भाग्य का फैसला होता है ।

सिपाही को बहुत श्रम करना पड़ता है । उसे ड्‌यूटी पर हमेशा सजग रहना पड़ता है । उसे भूख-प्यास और बुरे मौसम की मार झेलनी पड़ती है । ड्‌यूटी में हुई चूक की उसे कीमत चुकानी पड़ती है । उसे अपराधियों से भिड़ते समय जान हथेली पर रखकर कार्य करना होता है । उसे अफसरों की डाँट खानी पड़ती है । उसे आम जनता के क्रोध का शिकार भी बनना पड़ता है । कभी-कभी तो वह बलि का बकरा बन जाता है ।

सिपाही का एक महत्त्वपूर्ण काम यातायात को नियंत्रित करना है । यातायात पुलिस के जवान शहरों में चौराहों पर तैनात रहते हैं । वे सीटी बजाकर तथा हाथ के इशारे से ट्रैफिक को जाने या रुकने का निर्देश देते हैं । वे वाहनों की तलाशी लेते हैं । वे लोगों से यातायात के नियमों का पालन करवाते हैं ।

बढ़ती जनसंख्या के साथ-साथ अपराध का ग्राफ भी तेजी से बढ़ रहा है । इसके साथ-साथ जिम्मेदारियाँ भी बढ़ रही हैं । वह जिम्मेदारियों को पूरा कर सके इसके लिए उसे अच्छी ट्रेनिंग दी जानी चाहिए । उसे आधुनिक हथियारों से सुसज्जित कर देना चाहिए । उसे आकर्षक वेतन एवं अच्छी सुविधाएँ दी जानी चाहिए ।

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Premchand : Kalam Ka Sipahi

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हिन्दी समाज द्वारा व्यापक रूप में स्वीकृत इस पुस्तक को मुंशी प्रेमचन्द की पहली और अपने आप में सम्पूर्ण जीवनी का दर्जा प्राप्त है। जीवनीकार प्रेमचन्द के पुत्र और ख्यात लेखक-कथाकार अमृतराय हैं। लेकिन उन्होंने यह जीवनी पुत्र होने के नाते नहीं, एक लेखक की निष्पक्षता के साथ लिखी है। हाँ, उनके नजदीक होने के चलते यह सुविधा उन्हें जरूर रही कि वे प्रेमचन्द के कुछ उन पक्षों को भी देख सके, जिससे यह जीवनी और समृद्ध हुई। लेखक से इतर एक पिता, पति, भाई और मित्र प्रेमचन्द के कई रूप हम इसी के चलते देख पाते हैं। लेकिन अमृतराय यहीं तक सीमित नहीं रहे। जीवनी को सम्पूर्ण रूप देने के लिए वे हर उस जगह गए जहाँ प्रेमचन्द कभी रहे थे, हर उस व्यक्ति से मिले जो या तो उनके सम्पर्क में रहा था, या उनसे पत्र-व्यवहार करता था। उन्होंने प्रेमचन्द की कलम से लिखी गई हिन्दी और उर्दू की पूरी सामग्री को भी पढ़ा और उनके जीवनकाल की राजनीतिक और सामाजिक पृष्ठभूमि का भी विस्तार से अध्ययन किया।

प्रेमचन्द की इस जीवनी में हम उनकी कहानियों और उपन्यासों की रचना-प्रक्रिया के अलावा वे कब, किन परिस्थियों में लिखी गईं, यह भी जान पाते हैं, और प्रेमचन्द के व्यक्तित्व तथा जीवन के उन पहलुओं को भी जो कथाकार के रूप में उनकी अथाह ख्याति के पीछे छिपे हुए हैं।

More Information
Language Hindi
Binding Paper Back
Publication Year 1962
Edition Year 2021, Ed. 2nd
Pages 591p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Lokbharti Prakashan - Hans Prakashan
Dimensions 21.5 X 14 X 3.5

Amrit Rai

Author: Amrit Rai

अमृतराय का जन्म 15 अगस्त, 1921 को कानपुर (उत्तर प्रदेश) में हुआ। साहित्य की सभी प्रमुख विधाओं में निरन्तर लेखन करते हुए इन्होंने रवीन्द्रनाथ ठाकुर, शेक्सपियर, ब्रेख़्त, जूलियस फूचिक, आस्त्रोवस्की, हावर्ड फ़ास्ट जैसे विश्वचर्चित लेखकों की महत्त्वपूर्ण कृतियों का हिन्दी में अनुवाद किया। दस वर्षों तक ‘हंस’ पत्रिका के सम्पादक रहे। सम्पादक के रूप में लगातार नई प्रतिभाओं को उभरने के अवसर दिए। प्रेमचन्द की ढेर सारी अप्रकाशित रचनाओं को एकत्रित और प्रकाशित करने का श्रेय भी अमृतराय को जाता है।    

इनकी प्रमुख कृतियाँ हैं : ‘बीज, नागफनी का देश’, ‘जंगल’, ‘धुआँ’ (उपन्यास); ‘क़स्बे का एक दिन’, ‘गीली मिट्टी’, ‘भोर से पहले’, ‘सरगम’ (कहानियाँ); ‘चिन्दियों की एक झालर’, ‘शताब्दी’, ‘हमलोग’ (नाटक); ‘प्रेमचन्द : क़लम का सिपाही’ (जीवनी); ‘नई समीक्षा’, ‘विचारधारा और साहित्य’, ‘प्रेमचन्द की प्रासंगिकता’ (आलोचना); ‘अग्निदीक्षा’, ‘आदिविद्रोही’, ‘ख़ौफ़ की परछाइयाँ’, ‘फाँसी के तख़्ते से’, ‘समरगाथा’, ‘हैमलेट’  ‘रवीन्द्रनाथ के निबन्ध’ (अनुवाद) आदि।

अमृतराय को ‘प्रेमचन्द : क़लम का सिपाही’ के लिए 1963 में साहित्य अकादेमी पुरस्कार एवं 1971 में सोवियतलैंड नेहरू पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इन्हें हावर्ड फ़ास्ट के उपन्यास ‘स्पार्टाकस’ के अनुवाद ‘आदिविद्रोही’ के लिए भारत सरकार द्वारा सर्वश्रेष्ठ अनुवाद पुरस्कार दिया गया। उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा भारत भारती पुरस्कार से भी सम्मानित किए गए।

14 अगस्त, 1996 को प्रयागराज में निधन हुआ।

Premchand : Kalam Ka Sipahi

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कलम का सिपाही | Kalam Ka Sipahi

Kalam Ka Sipahi by प्रेमचंद - Premchand

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