लोहड़ी पर निबंध| Essay on Lohri Festival in Hindi

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लोहड़ी पर निबंध| Essay on Lohri Festival in Hindi!

मकर संक्रांति से एक दिन पूर्व उत्तर भारत विशेषत: पंजाब में लोहड़ी का त्यौहार मनाया जाता है । किसी न किसी नाम से मकर संक्रांति के दिन या उससे आस-पास भारत के विभिन्न प्रदेशों में कोई न कोई त्यौहार मनाया जाता है ।

मकर संक्रांति के दिन तमिल हिंदू पोंगल का त्यौहार मनाते हैं । इस प्रकार लगभग पूर्ण भारत में यह विविध रूपों में मनाया जाता है । मकर संक्रांति की पूर्व संध्या को पंजाब, हरियाणा व पड़ोसी राज्यों में बड़ी धूम-धाम से लोहड़ी का त्यौहार मनाया जाता है ।

पंजाबियों के लिए लोहड़ी खास महत्व रखती है । लोहड़ी से कुछ दिन पहले से ही छोटे बच्चे लोहड़ी के गीत गाकर लोहड़ी हेतु लकड़ियां, मेवे, रेवडियां, मूंगफली इकट्ठा करने लग जाते हैं । लोहड़ी की संध्या को आग जलाई जाती है ।

लोग अग्नि के चारो ओर चक्कर काटते हुए नाचते-गाते हैं व आग मे रेवड़ी, मूंगफली, खील, मक्की के दानों की आहुति देते हैं । आग के चारो ओर बैठकर लोग आग सेंकते हैं व रेवड़ी, खील, गज्जक, मक्का खाने का आनंद लेते हैं । जिस घर में नई शादी हुई हो या बच्चा हुआ हो उन्हें विशेष तौर पर बधाई दी जाती है ।

ADVERTISEMENTS:

प्राय: घर में नाव वधू या और बच्चे की पहली लोहड़ी बहुत विशेष होती है । लोहड़ी को पहले तिलोड़ी कहा जाता था । यह शब्द तिल तथा रोडी (गुड़ की रोड़ी) शब्दों के मेल से बना है, जो समय के साथ बदल कर लोहड़ी के रुप में प्रसिद्ध हो गया ।

ऐतिहासिक संदर्भ:

किसी समय में सुंदरी एवं मुंदरी नाम की दो अनाथ लड़कियां थीं जिनको उनका चाचा विधिवत शादी न करके एक राजा को भेंट कर देना चाहता था । उसी समय में दुल्ला भट्टी नाम का एक नामी डाकू हुआ है । उसने दोनों लड़कियों, सुंदरी एवं मुंदरी को जालिमों से छुड़ा कर उन की शादियां कीं ।

इस मुसीबत की घड़ी में दुल्ला भट्टी ने लड़कियों की मदद की और लड़के वालों को मना कर एक जंगल में आग जला कर सुंदरी और मुंदरी का विवाह करवाया । दुल्ले ने खुद ही उन दोनों का कन्यादान किया । कहते हैं दुल्ले ने शगुन के रूप में उनको शक्कर दी थी ।

जल्दी-जल्दी में शादी की धूमधाम का इंतजाम भी न हो सका तो दुल्ले ने उन लड़कियों की झोली में एक सेर शक्कर ड़ालकर ही उनको विदा कर दिया । भावार्थ यह है कि ड़ाकू हो कर भी दुल्ला भट्टी ने निर्धन लड़कियों के लिए पिता की भूमिका निभाई ।

यह भी कहा जाता है कि संत कबीर की पत्नी लोई की याद में यह पर्व मनाया जाता है, इसीलिए इसे लोई भी कहा जाता है । इस प्रकार यह त्योहार पूरे उत्तर भारत में धूमधाम से मनाया जाता है ।

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लोहड़ी के त्यौहार (निबंध) क्यों मनाया जाता है, इतिहास महत्व | Lohri Festival Significance and History in Hindi

लोहड़ी के त्यौहार (निबंध) क्यों एवं कब मनाया जाता है, 2024 में कब है, इतिहास, महत्व (Lohri Festival Significance and History Story in Hindi)

लोहड़ी पंजाबी और हरियाणवी लोग बहुत उल्लास से मनाते हैं. यह देश के उत्तर प्रान्त में ज्यादा मनाया जाता हैं. इन दिनों पुरे देश में पतंगों का ताता लगा रहता हैं. पुरे देश में भिन्न-भिन्न मान्यताओं के साथ इन दिनों त्यौहार का आनंद लिया जाता हैं.

lohri Festival

Table of Contents

लोहड़ी के त्यौहार उद्देश्य (Lohri Festival Objective)

सामान्तः त्यौहार प्रकृति में होने वाले परिवर्तन के साथ- साथ मनाये जाते हैं जैसे लोहड़ी में कहा जाता हैं कि इस दिन वर्ष की सबसे लम्बी अंतिम रात होती हैं इसके अगले दिन से धीरे-धीरे दिन बढ़ने लगता है. साथ ही इस समय किसानों के लिए भी उल्लास का समय माना जाता हैं. खेतों में अनाज लहलहाने लगते हैं और मोसम सुहाना सा लगता हैं, जिसे मिल जुलकर परिवार एवम दोस्तों के साथ मनाया जाता हैं. इस तरह आपसी एकता बढ़ाना भी इस त्यौहार का उद्देश्य हैं.

लोहड़ी का त्यौहार कब मनाया जाता हैं (When Lohri Festival Celebrated on)

लोहड़ी पौष माह की अंतिम रात को एवम मकर संक्राति की सुबह तक मनाया जाता हैं यह  प्रति वर्ष मनाया जाता हैं. इस साल 2024 में यह त्यौहार 14 जनवरी को मानाया जायेगा. त्यौहार भारत देश की शान हैं. हर एक प्रान्त के अपने कुछ विशेष त्यौहार हैं. इन में से एक हैं लोहड़ी. लोहड़ी पंजाब प्रान्त के मुख्य त्यौहारों में से एक हैं जिन्हें पंजाबी बड़े जोरो शोरो से मनाते हैं. लोहड़ी की धूम कई दिनों पहले से ही शुरू हो जाती हैं. यह समय देश के हर हिस्से में अलग- अलग नाम से त्यौहार मनाये जाते हैं जैसे मध्य भारत में मकर संक्रांति, दक्षिण भारत में पोंगल का त्यौहार    एवम काईट फेस्टिवल भी देश के कई हिस्सों में मनाया जाता हैं. मुख्यतः यह सभी त्यौहार परिवार जनों के साथ मिल जुलकर मनाये जाते हैं, जो आपसी बैर को खत्म करते हैं.

लोहड़ी के त्यौहार क्यों मनाया जाता है, इतिहास (Why we are Celebrated Lohri Festival History and Story)

पुराणों के आधार पर इसे सती के त्याग के रूप में प्रतिवर्ष याद करके मनाया जाता हैं. कथानुसार जब प्रजापति दक्ष ने अपनी पुत्री सती के पति महादेव शिव का तिरस्कार किया था और अपने जामाता को यज्ञ में शामिल ना करने से उनकी पुत्री ने अपनी आपको को अग्नि में समर्पित कर दिया था. उसी दिन को एक पश्चाताप के रूप में प्रति वर्ष लोहड़ी पर मनाया जाता हैं और इसी कारण घर की विवाहित बेटी को इस दिन तोहफे दिये जाते हैं और भोजन पर आमंत्रित कर उसका मान सम्मान किया जाता हैं. इसी ख़ुशी में श्रृंगार का सामान सभी विवाहित महिलाओ को बाँटा जाता हैं.

लोहड़ी के पीछे एक एतिहासिक कथा भी हैं जिसे दुल्ला भट्टी के नाम से जाना जाता हैं. यह कथा अकबर के शासनकाल की हैं उन दिनों दुल्ला भट्टी पंजाब प्रान्त का सरदार था, इसे पंजाब का नायक कहा जाता था. उन दिनों संदलबार नामक एक जगह थी, जो अब पाकिस्तान का हिस्सा हैं. वहाँ लड़कियों की बाजारी होती थी. तब दुल्ला भट्टी ने इस का विरोध किया और लड़कियों को सम्मानपूर्वक इस दुष्कर्म से बचाया और उनकी शादी करवाकर उन्हें सम्मानित जीवन दिया. इस विजय के दिन को लोहड़ी के गीतों में गाया जाता हैं और दुल्ला भट्टी को याद किया जाता हैं.

इन्ही पौराणिक एवम एतिहासिक कारणों के चलते पंजाब प्रान्त में लोहड़ी का उत्सव उल्लास के साथ मनाया जाता हैं.

कैसे मनाया जाता हैं लोहड़ी का पर्व (How we Celebrate Lohri)

पंजाबियों के विशेष त्यौहार हैं लोहड़ी जिसे वे धूमधाम से मनाते हैं. नाच, गाना और ढोल तो पंजाबियों की शान होते हैं और इसके बिना इनके त्यौहार अधूरे हैं.

पंजाबी लोहड़ी गीत (Song) :

लोहड़ी आने के कई दिनों पहले ही युवा एवम बच्चे लोहड़ी के गीत गाते हैं. पन्द्रह दिनों पहले यह गीत गाना शुरू कर दिया जाता हैं जिन्हें घर-घर जाकर गया जाता हैं. इन गीतों में वीर शहीदों को याद किया जाता हैं जिनमे दुल्ला भट्टी के नाम विशेष रूप से लिया जाता हैं

लोहड़ी खेती खलियान के महत्व :

लोहड़ी में रबी की फसले कट कर घरों में आती हैं और उसका जश्न मनाया जाता हैं. किसानों का जीवन इन्ही फसलो के उत्पादन पर निर्भर करता हैं और जब किसी मौसम के फसले घरों में आती हैं हर्षोल्लास से उत्सव मनाया जाता हैं. लोहड़ी में खासतौर पर इन दिनों गन्ने की फसल बोई जाती हैं और पुरानी फसले काटी जाती हैं. इन दिनों मुली की फसल भी आती हैं और खेतो में सरसों भी आती हैं. यह ठण्ड की बिदाई का त्यौहार माना जाता हैं.

लोहड़ी एवम पकवान :

भारत देश में हर त्यौहार के विशेष व्यंजन होते हैं. लोहड़ी में गजक, रेवड़ी, मुंगफली आदि खाई जाती हैं और इन्ही के पकवान भी बनाये जाते हैं. इसमें विशेषरूप से सरसों का साग और मक्का की रोटी बनाई जाती हैं और खाई एवम प्यार से अपनों को खिलाई जाती हैं.

लोहड़ी बहन बेटियों का त्यौहार :

इस दिन बड़े प्रेम से घर से बिदा हुई बहन और बेटियों को घर बुलाया जाता हैं और उनका आदर सत्कार किया जाता हैं. पुराणिक कथा के अनुसार इसे दक्ष की गलती के प्रयाश्चित के तौर पर मनाया जाता हैं और बहन बेटियों का सत्कार कर गलती की क्षमा मांगी जाती हैं. इस दिन नव विवाहित जोड़े को भी पहली लोहड़ी की बधाई दी जाती हैं और शिशु के जन्म पर भी पहली लोहड़ी के तोहफे दिए जाते हैं.

लोहड़ी में अलाव/ अग्नि क्रीड़ा का महत्व :

लोहड़ी के कई दिनों पहले से कई प्रकार की लकड़ियाँ इक्कट्ठी की जाती हैं. जिन्हें नगर के बीच के एक अच्छे स्थान पर जहाँ सभी एकत्र हो सके वहाँ सही तरह से जमाई जाती हैं और लोहरी की रात को सभी अपनों के साथ मिलकर इस अलाव के आस पास बैठते हैं. कई गीत गाते हैं, खेल खेलते हैं, आपसी गिले शिक्वे भूल एक दुसरे को गले लगाते हैं और लोहड़ी की बधाई देते हैं. इस लकड़ी के ढेर पर अग्नि देकर इसके चारों तरफ परिक्रमा करते हैं और अपने लिए और अपनों के लिये दुआयें मांगते हैं. विवाहित लोग अपने साथी के साथ परिक्रमा लगाती हैं. इस अलाव के चारों तरफ बैठ कर रेवड़ी, गन्ने, गजक आदि का सेवन किया जाता हैं.

लोहड़ी के साथ मनाते हैं नव वर्ष :

किसान इन दिनों बहुत उत्साह से अपनी फसल घर लाते हैं और उत्सव मनाते हैं. लोहड़ी को पंजाब प्रान्त में किसान नव वर्ष के रूप में मनाते हैं. यह पर्व पंजाबी और हरियाणवी लोग ज्यादा मनाते हैं और यही इस दिन को नव वर्ष के रूप में भी मनाते हैं.

लोहड़ी का आधुनिक रूप :

आज भी लोहड़ी की धूम वैसी ही होती हैं बस आज जश्न ने पार्टी का रूप ले लिया हैं. और गले मिलने के बजाय लोग मोबाइल और इन्टरनेट के जरिये एक दुसरे को बधाई देते हैं. बधाई सन्देश भी व्हाट्स एप और मेल किये जाते हैं.

लोहड़ी की विशेषता (Lohri Festival Features)

  • लोहड़ी का त्यौहार सिख समूह का पावन त्यौहार है और इसे सर्दियों के मौसम में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है।
  • पंजाब प्रांत को छोड़कर भारत के अन्य राज्यों समेत विदेशों में भी सिख समुदाय इस त्यौहार को बहुत ही धूमधाम से मनाते हैं।
  • लोहड़ी का पर्व श्रद्धालुओं के अंदर नई ऊर्जा का विकास करता है और साथ ही में खुशियों की भावना का भी संचार होता है अर्थात यह त्यौहार प्रमुख त्योहारों में से एक है।
  • इस पावन त्यौहार के दिन देश के विभिन्न राज्यों में अवकाश का प्रावधान है और इस दिन को लोग यादगार बनाते हैं।
  • इस पर्व के दिन लोग मक्के की रोटी और सरसों का साग बनाकर खाते हैं और यही इस त्यौहार का पारंपरिक व्यंजन है।
  • अलाव जलाकर चारों तरफ लोग बैठते हैं और फिर गजक, मूंगफली, रेवड़ी आदि खाकर इस त्यौहार का आनंद उठाते हैं।
  • इस पावन पर्व का नाम लोई के नाम से पड़ा है और यह नाम महान संत कबीर दास की पत्नी जी का था
  • यह त्यौहार नए साल की शुरुआत में और सर्दियों के अंत में मनाया जाता है।
  • इस त्यौहार के जरिए सिख समुदाय नए साल का स्वागत करते हैं और पंजाब में इसी कारण इसे और भी उत्साह पूर्ण तरीके से मनाया जाता है।
  • किसान भाई बहनों के लिए बियर पावन पर्वत अत्यधिक शुभ होता है और इस पर्व के बीत जाने के बाद नई फसलों का कटाई का काम शुरू किया जाता है।

लोहड़ी के त्यौहार को इस तरह पुरे उत्साह से मनाया जाता हैं. देश के लोग विदेशों में भी बसे हुए हैं जिनमे पंजाबी ज्यादातर विदेशों में रहते हैं इसलिये लोहड़ी विदेशों में भी मनाई जाती हैं. खासतौर पर कनाडा में लोहड़ी का रंग बहुत सजता हैं.

होमपेज

Ans : 14 जनवरी के दिन

Ans : पंजाब में इसे बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है.

Ans : नई फसल की शुरुआत के लिए

Ans : गीत गए जाते हैं, खेल खेले जाते हैं.

Ans : लोहड़ी माता जी की.

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Essay on Lohri in Hindi- लोहड़ी पर निबंध

इस निबंध में आपको पता लगेगा की हम लोहड़ी त्यौहार  कब, क्यों और कैसे मानते है। इस त्यौहार को पंजाब, हरियाणा और हिमाचल में बड़ी धूम धाम से मनाया जाता है। In this article we are providing essay on Lohri in Hindi. In this essay, you get to know- why we celebrate lohri and history of Lohri in Hindi.

लोहड़ी पर निबंध- Essay on Lohri in Hindi

भूमिका- पंजाब की धरती और जीवन सभ्यता और संस्कृति अनेक विशेषताओं से विभूषित है। इन्द्रधनुष के सात रंगों के समान पंजाब की संस्कृति भी अनेक रंगी है। एक ओर धन-धान्य से सम्पूर्ण धरा तो दूसरी ओर गुरुओं के त्याग, आदर्श और शिक्षाओं की गाथाएँ। एक ओर नदियों की पवित्र धाराएँ तो दूसरी ओर लहलहाती फसलों से भरे खेत। एक ओर त्यौहारों और मेलों की धूम तो दूसरी ओर नाच और नृत्य तथा गीतों के मधुर स्वर। लोहड़ी पंजाब का एक विशेष त्यौहार है यद्यपि यह सारे देश में धूमधाम से मनाया जाता है, परन्तु पंजाब में इसके अपने ही स्वर और अपने ही रंग हैं।

पृष्ठभूमि ( Why we celebrate Lohri festival )-

लोहड़ी शब्द का मूल ‘तिल+रोड़ी” है जिससे तिलौड़ी बना है और आगे चलकर इसका रूप लोहड़ी बन गया। कई स्थानों पर लोहड़ी को लोही या लोई भी कहा जाता है। लोग इस त्यौहार को बड़ी धूम धाम से मानते है।

लोहड़ी का धार्मिक व पौराणिक महत्व- ( Religious and mythological significance of Lohri )

लोहड़ी का पर्व मनाने की परम्परा वैदिक काल में भी दिखाई पड़ती है। प्राचीन काल में ऋषि देवताओं को प्रसन्न करने के लिए हवन करते थे। यह एक ऐसा धार्मिक कार्य था, जिसमें परिवार के लोग परस्पर मिलकर एक-दूसरे का सुख-दु:ख बांटते थे। घी, शहद, तिल, गुड़ आदि डाल कर हवन करने से उठता हुआ धुआँ सारे वातावरण को कीटाणु रहित और शुद्ध करता था। यह वर्षा करने में भी सहयोग देता था।

लोहड़ी  त्यौहार   मनाने की कहानियां -( Story behind celebration of lohri in Hindi )

इस त्यौहार से सम्बन्धित कथाएं प्रचलित हैं। कहा जाता है कि इस दिन लोहनी देवी ने एक क्रूर दैत्य को जला कर राख कर दिया था। उस दिन की याद को ताज़ा करने के लिए हर साल आग जला कर खुशियां मनाई जाती हैं।

इस त्यौहार का सम्बन्ध एक पौराणिक कथा ‘सती दहन’ से भी जोड़ा जाता है। भगवान शंकर की पहली पत्नी सती दक्ष प्रजापति की कन्या थी। एक बार प्रजापति दक्ष देवताओं के सम्मेलन में भाग लेने गए। वहाँ पहुँचने पर सभी देवताओं ने खड़े होकर उनका स्वागत किया, परन्तु शिव जी बैठे रहे। प्रजापति दक्ष ने इसे अपना अपमान समझा। रुष्ट होकर उन्होंने शिव को खूब जली कटी सुनाई। अपमान का बदला लेने के लिए उन्होंने एक महान् यज्ञ का आयोजन किया। यज्ञ में भगवान शंकर को छोड़कर सब देवताओं को बुलाया गया। अपने पिता के घर हो रहे यज्ञ का समाचार सुनकर सती ने वहाँ जाने की जिद्द की। भगवान शंकर के बहुत समझाने पर भी वह न मानी। विवश होकर उन्होंने अपने गणों के साथ सती को यज्ञ में जाने की अनुमति दे दी।

सती जब अपने पिता दक्ष के यहाँ पहुँची तो प्रजापति दक्ष ने उससे बात तक न की। उल्टे उसका तिरस्कार किया और शिव जी को भी बुरा-भला कहा। सती इस अपमान को  सहन न कर सकी और यज्ञ की अग्नि में ही छलाँग लगाकर भस्म हो गई। भगवान शंकर को जब वह समाचार मिला तो उनके क्रोध का ठिकाना न रहा। प्रजापति उनके चरणों में गिर पड़ा। देवताओं ने भी उनकी स्तुति की। भगवान शंकर का क्रोध शान्त हो गया और उन्होंने दक्ष को क्षमा कर दिया। दक्ष ने पूर्ण-आहुति डालकर यज्ञ को पूरा किया।

इस पर्व का सम्बन्ध लोक गीत के आधार पर भी माना जाता है। लड़के घर-घर जा कर यह पंजाबी लोक गीत गाते हैं- ( Lohri Song lines in Hindi )

सुन्दर मुन्दरीये, हो; तेरा कौन बचारा, हो;

दुल्ला भट्टी वाला, हो; दुल्ले धी व्याही, हो;

सेर शक्कर पाई, हो; कुड़ी दा सालू पाटा, हो;

कुड्री दा जीवे चाचा, हो; चाचा चूरी कुट्टे, हो;

नंबरदारा लुट्टी, हो; गिन-गिन भाल्ले लाए, हो;

इक भाला रह गया, हो; सिपाही फड़ के ले गया, हो;

इस लोक गीत के आधार पर घटना इस प्रकार है- ( Dulla Bhatti Story Legend of Lohri in Hindi )

एक गरीब ब्राह्मण था। उसकी सुन्दरी और मुन्दरी नाम की दो लड़कियाँ थीं। उनकी सगाई पास के गाँव में पक्की हो गई, दोनों लड़कियाँ सुन्दर थीं। उस इलाके के हाकिम को जब उन लड़कियों की सुन्दरता का समाचार मिला तो उसने उन्हें प्राप्त करना चाहा। वह गरीब ब्राह्मण लड़के वालों के यहाँ गया। उसने प्रार्थना की कि आप विवाह से पहले ही इन लड़कियों को अपने घर ले आओ, नहीं तो दुष्ट हाकिम इन्हें न छोड़ेगा। परन्तु वे भी हाकिम से डरते थे। उन्होंने ऐसा करने से साफ इन्कार कर दिया।

निराशा में डूबा ब्राह्मण जंगल से गुज़रता हुआ अपने घर की ओर लौट रहा था। रास्ते में उसे दुल्ला भट्टी मिला। दुल्ला डाकू होते हुए भी दीन दुखियों का सहायक था, अमीरों के प्रति वह जितना क्रूर था, गरीबों के प्रति वह उतना ही दयालु था। ब्राह्मण ने जब अपनी राम कहानी सुनाई तो दुल्ला पसीज गया। उसने उसे सांत्वना दी और सहायता का वचन देते हुए कहा, “ब्राह्मण देवता आप निश्चिन्त रहे। गांव की बेटी मेरी बेटी है, उनकी शादी मैं करूंगा। इसके लिए भले ही मुझे अपनी जान की बाज़ी क्यों न लगानी पड़े।”

दुल्ला स्वयं लड़के वालों के यहां गया, उनको तसल्ली देकर विवाह की तिथि पक्की कर दी। इलाके के हाकिम के भय से जंगल में ही रात के उस घटाटोप अंधेरे में भी आग जलाई गई। गाँव के सब लोग इकट्ठे हो गये। दुल्ला भट्टी ने स्वयं धर्म पिता बनकर सुन्दरी और मुन्दरी का कन्या दान किया। गरीब ब्राह्मण दहेज में कुछ न दे सका। यहां तक की भाँवरों के समय उन लड़कियों द्वारा ओढ़े हुए सालू भी फटे हुए थे। गाँव बालों ने उसकी भरपूर सहायता की। जिनके यहां पुत्र का विवाह या पुत्र पैदा हुआ था, उन्होंने ने इन कन्याओं का विशेष उपहार दिए। दुल्ला भट्टी के पास उस समय और कुछ न था, केवल शक्कर थी। उसने वही कन्याओं को शगन के रूप में दी।

इस घटना के बाद हर साल लोहड़ी का त्यौहार आग जलाकर इसी रूप में मनाया जाने लगा। यह त्यौहार हिन्दु-मुस्लिम का भेद मिटा कर एकता और दया का संचार करने लगा।

कृषि और ऋतु से सम्बन्ध- भारतीय जन-जीवन कृषि पर आश्रित है। इन दिनों मकई, तिलहन, दाले, मूंगफली, बाजरा आदि फसलें घर में आ जाती हैं। पिछले छ: महीनों का हिसाब उस आग के पास बैठकर किया जाता है। नाई, धोबी, माली, ग्वाला आदि सेवकों और गरीबों को दान दिया जाता है। उस फसल के कुछ अंश उस जलती हुई आग में डाल कर दान किया जाता है। इस त्यौहार का सम्बन्ध ऋतु से भी है। माघ के महीने में सर्दी ज़ोरों पर होती है। हवा के ठण्डे झोंके सारे वातावरण को शीतल कर देते हैं। यहां तक कि पानी भी जम जाता है। सर्दी से बचने के लिए इन दिनों तिल-गुड़ खाना अनिवार्य माना गया है। इस दिन गरीब से गरीब भी गुड़-तिल से बनी रेवड़ियां खाता है।

मनाने का ढंग ( How we celebrate Lohri )- यह त्यौहार माघ मास की मकर संक्रान्ति (माघी) से एक दिन पहले रात के समय मनाया जाता है। लड़के-लड़कियां, चाहे वे गरीब के हों या धनी परिवार के, कई दिन पहले से ही इसको मनाने की तैयारियां शुरु कर देते हैं। वे अपनी-अपनी टोलियां बना कर लोक-गीत गाते हुए घर-घर जाते हैं। वे लकड़ी और गोबर के उपले मांग कर लाते है। उन्हे एक स्थान पर इकट्ठा कर लेते हैं। लोहड़ी के दिन, जिनके यहां लड़के की नई शादी होती है या लड़का पैदा हुआ होता है, वे उनके घर जाकर लोक-गीत गाकर बधाई देते हैं। घर वाले उन्हें रेवड़ियां, गजक आदि देते हैं। इन्हें वे इकट्ठा बैठ कर खाते हैं। सायंकाल होने पर गोलाकार में लकड़ियां तथा गोबर के उपले चिन कर उस पर झण्डा लगा देते हैं। आग लगाने से पहले ढोल ढमाके बजते हैं। मुहल्ले के सभी लोग इकट्ठे रेवड़ियां आदि डाल कर हवन किया जाता है। कुछ लोग गायत्री मंत्र पढ़ कर आग में आहुतियां डालते हैं। फिर वे अग्नि की परिक्रमा करते हैं और आग के चारो ओर बैठकर रेवड़ियां खाते है।

त्योहार के अन्य पक्ष- बच्चों पर वायु का प्रकोप अधिक होता है। कफ से उनकी छाती जम जाती है। इससे उन पर औषधि का भी कम प्रभाव होता है। यदि वे ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाएंगे तो उनकी छाती गर्म होगी। उससे ठण्ड का प्रभाव कम हो जाएगा। यही कारण है कि इन दिनों बच्चों को शोर मचाने की खुली छूट दे दी जाती है।

उपसंहार- इस त्यौहार के दिन हम हवन करके देवताओं को खुश करते है। सती के अपने पति के लिए महान् बलिदान और पंजाब के वीर सपूत दुल्ला भट्टी को याद करते हैं। यह त्यौहार एकता का प्रतीक है। क्या छोटा, क्या बड़ा, क्या अमीर, क्या गरीब सब इकट्ठे बैठकर खाते हैं, आनन्द मनाते हैं। जलती हुई आग की शिखा ऊपर उठने का संदेश देती है। राष्ट्र और समाज के लिये बड़े से बड़ा बलिदान देने के लिये हमें प्रेरित करती है।

हिंदी में लोहड़ी त्यौहार पर निबंध- Long essay on Lohri festival in Hindi

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हमारा देश त्योहारों (Festivals) का देश है और हमारे देश की खास बात यह है कि यहाँ के लोग सभी त्योहार मिलजुल कर मनाते हैं। हमारे देश के सभी त्योहार हम सभी में एक नई खुशी और उमंग भर देते हैं। साल की शुरुआत लोहड़ी के त्योहार से होती है, यानी कि साल में सबसे पहले लोहड़ी का त्योहार मनाया जाता है। अगर आप जानना चाहते हैं कि लोहड़ी क्यों मनाई जाती है, लोहड़ी कैसे मनाई जाती है, लोहड़ी माता की कथा क्या है, लोहड़ी का इतिहास क्या है, तो आपको हमारा लोहड़ी पर निबंध हिंदी में (Lohri Essay in Hindi) पढ़ना होगा।

लोहड़ी (Lohri) पंजाबियों का मुख्य त्योहार है, जो विशेषकर उत्तर भारत के पंजाब प्रांत में बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है। लोहड़ी को मकर संक्रांति से एक दिन पहले मनाया जाता है। लोहड़ी का पर्व मनाने के पीछे बहुत सी ऐतिहासिक कथाएं प्रचलित है। लोहड़ी के दिन पंजाब में फसल काटी जाती है और नई फसल बोई जाती है। इसे किसानों का नया साल भी कहा जाता है। लोहड़ी के पर्व को मनाने के पीछे धार्मिक कथाओं को भी महत्व दिया जाता है।

लोहड़ी कैसे मनाई जाती है?

पंजाबियों के लिए लोहड़ी का खास महत्व होता है। लोहड़ी से कुछ दिन पहले से ही छोटे बच्चे लोहड़ी के गीत गाकर लोहड़ी के लिए लकड़ियां, मेवे, रेवड़ियां, मूंगफली आदि इकट्ठा करने लग जाते हैं। फिर जिस दिन लोहड़ी होती है उसकी शाम को आग जलाई जाती है। सभी लोग अग्नि के चारो ओर चक्कर काटते हुए नाचते-गाते हैं व आग मे रेवड़ी, मूंगफली, खील, मक्की के दानों की आहुति देते हैं। आग के चारों ओर बैठकर लोग आग सेकते हैं व रेवड़ी, खील, गज्जक, मक्का खाने का आनंद लेते हैं। जिस घर में नई शादी हुई हो या बच्चा हुआ हो उन्हें विशेष तौर पर बधाई दी जाती है।

भारत के पंजाब, हरियाणा, चंडीगढ़, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर, उत्तराखंड, बंगाल, ओडिशा आदि इन सभी राज्यों में लोहड़ी का त्योहार मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है की लोहड़ी के पर्व से दिन बड़े और रातें छोटी होने लगती हैं। सिखों के इस त्योहार को हिंदू धर्म के लोग भी उतनी ही आस्था और धूमधाम के साथ मनाते हैं। यह त्योहार अन्य त्योहारों की तरह ही खुशी और उल्लास के साथ भारत में मनाया जाता है। यह ऐसा त्योहार है जिसे परिवार के सभी सदस्यों, रिश्तेदारों और दोस्तों एक साथ मिलकर मनाते हैं। लोहड़ी के दिन सभी लोग एक-दूसरे मिलते हैं और मिठाई बांटकर आनंद लेते हैं। यह सबसे प्रसिद्ध फसल कटाई का त्योहार है जो किसानों के लिए बहुत महत्व रखता है। लोग इस दिन आलाव जलाते हैं, गाना गाते हैं और उसके चारों ओर नाचते हैं।

लोहड़ी का महत्व बहुत अधिक है। लोहड़ी मनाने के पीछे कई महत्व बातें सुनने को मिलती हैं जैसे सर्दियों की मुख्य फसल गेहूँ है जो अक्टूबर मे बोई जाती है, जबकि मार्च के अंत में और अप्रैल की शुरुआत में काटी जाती है। फसल काटने और इकट्ठा करके घर लाने से पहले किसान इस लोहड़ी त्योहार का आनंद मनाते हैं। यह हिन्दू कैलेंडर के अनुसार जनवरी के मध्य में पड़ता है, जब सूर्य पृथ्वी से दूर होता है। लोहड़ी का त्योहार सर्दी खत्म होने और वसंत के शुरू होने का भी सूचक है। हर कोई पूरे जीवन में सुख और समृद्धि पाने के लिए इस त्योहार का जश्न मनाते हैं।

लोहड़ी का इतिहास

लोहड़ी या लोहरी को पहले तिलोड़ी के नाम से जाना जाता था। यह शब्द तिल तथा रोडी (गुड़ की रोड़ी) शब्दों के मेल से बना है, जिसे अब हम सब लोहड़ी बोलते और लिखते हैं।

एक समय में सुंदरी और मुंदरी नाम की दो अनाथ लड़कियां थीं जिनको उनका चाचा विधिवत शादी न करके एक राजा को भेंट कर देना चाहता था। उसी समय में दुल्ला भट्टी नाम का एक नामी डाकू हुआ करता था। उसने दोनों लड़कियों, सुंदरी एवं मुंदरी को जालिमों से छुड़ाकर उन की शादियां की। इस मुसीबत की घड़ी में दुल्ला भट्टी ने लड़कियों की मदद की और लड़के वालों को मना कर एक जंगल में आग जला कर सुंदरी और मुंदरी का विवाह करवाया। दुल्ले ने खुद ही उन दोनों का कन्यादान किया।

कहते हैं कि दुल्ले ने शगुन के रूप में उनको शक्कर दी थी। दुल्ले ने उन लड़कियों की झोली में एक सेर शक्कर डालकर ही उनको विदा कर दिया। डाकू होकर भी दुल्ला भट्टी ने निर्धन लड़कियों के लिए पिता की भूमिका निभाई। यह भी कहा जाता है कि संत कबीर की पत्नी लोई की याद में भी यह पर्व मनाया जाता है, इसीलिए इसे लोई भी कहते हैं। इस तरह से यह त्योहार पूरे उत्तर भारत में बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है।

लोहड़ी माता की कथा

लोहड़ी माता की कथा जानने से पहले आप सभी को नरवर किले के बारे में जानना जरूरी है। नरवर किला एक ऐतिहासिक किला माना गया है जिसके ऊपर बहुत ही प्राचीन कथाएं हैं जिनमें से एक लोहड़ी माता की कहानी भी है। लोहड़ी माता के बारे में विख्यात रूप से तो कोई भी नहीं बता सका है लेकिन ऐसा कहा जाता है कि नरवर किला और लोहड़ी माता का इतिहास ग्वालियर से करीब 60 किलोमीटर की दूरी पर स्थित जिला शिवपुरी के नरवर शहर से संबंधित है।

नरवर का इतिहास करीब 200 वर्ष पुराना है। उस समय नल नामक एक राजा हुआ करते थे। 19वीं सदी में नरवर राजा ‘नल’ की राजधानी हुआ करती थी। नरवर जोकि बीसवीं शताब्दी में नल पुर निसदपुर नाम से भी जाना जाता था। बताया जाता है कि नरवर का किला समुद्र से 1600 और भू तल से 5 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। नरवर किले का क्षेत्रफल करीब 7 किलोमीटर में फैला हुआ है और इसी नरवर किले के सबसे नीचे वाले हिस्से में लोहड़ी माता का मंदिर है। वहां का लोहड़ी माता का मंदिर बहुत ही विख्यात है और प्रसिद्धि के साथ वहां बहुत लोग दर्शन करने जाते हैं। उत्तर भारत और मध्य भारत में लोहड़ी माता की काफी अधिक प्रसिद्धि है।

नल राजा को जुआ सट्टा खेलने की बहुत ही गंदी लत थी जिसके कारण नरवर राज्य अपने जिले में सारी की सारी संपत्ति हार गया था। बाद में राजा नल के पुत्र मारू ने नरवर को जीता और वहां राजकीय नरम मारू एक बहुत ही अच्छा राजा माना गया था। वहीं पर लोहड़ी माता का मंदिर बना हुआ है। इस मंदिर का इतिहास भी राजा नल के इतिहास से जुड़ा हुआ है। नरवर की स्थानीय कथाओं के अनुसार कहा जाता है कि लोहड़ी माता समुदाय से ताल्लुक नहीं रखती थीं। बताया जाता है कि लोहड़ी माता को तांत्रिक विद्या में महारत हासिल थी। वह धागे के ऊपर चलने का असंभव सा काम भी किया करती थीं।

जब लोहड़ी माता ने अपना कारनामा राजा नल के भरे दरबार में दिखाया, तो राजा नल के मंत्री ने लोहड़ी माता से जलन के कारण वह धागा काट दिया जिसके कारण लोहड़ी माता की अकाल मृत्यु हो गयी। तभी से लोहड़ी माता के श्राप से नरवर का किला खंडहर में बदल गया। वर्तमान समय में लोहड़ी माता का मंदिर, लोहड़ी माता के भक्तों ने बनवाया है। यहां पूजा करने के लिए साल भर लाखों श्रद्धालुओं का तांता लग जाता है। लोहड़ी माता की मान्यता बहुत दूर-दूर तक है और प्रत्येक वर्ष हजारों लाखों की तादाद में लोग लोहड़ी माता के दर्शन करने जाते हैं।

लोहड़ी रेवड़ी, मूंगफली, गजक आदि बांटने के साथ-साथ खुशियाँ बांटने का भी त्योहार है। सिख धर्म के इस त्योहार का हम सभी को सम्मान करना चाहिए और आपस में मिलकर खुशी के साथ मनाना चाहिए। साथियों अगर आपको हमारा यह निबंध पढ़ने में अच्छा लगा हो और आपको लोहड़ी के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारी मिली हो, तो इसे अपने दोस्तों के साथ साझा जरूर करें, ताकि वह भी जानकारी प्राप्त कर सकें।

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लोहड़ी पर FAQs

प्रश्न- लोहड़ी क्यों मनाते हैं?

उत्तर :- लोहड़ी पारंपरिक तौर पर फसल की बुआई और उसकी कटाई से जुड़ा एक ख़ास त्योहार है। इस मौके पर पंजाब में नई फसल की पूजा करने की परंपरा है।

प्रश्न- लोहड़ी कैसे जलाते हैं?

उत्तर :- आग का घेरा बनाकर दुल्ला भट्टी की कहानी सुनाते हुए रेवड़ी, मूंगफली और लावा खाते हैं। लोहड़ी (Lohri) का त्योहार शरद ऋतु के अंत में मनाया जाता है।

प्रश्न – लोहड़ी कब की है?

उत्तर :- जनवरी महीने में लोहड़ी मनाई जाती है। त्यौहार मकर संक्राति से एक दिन पहले मनाया जाता है।

प्रश्न – लोहरी कहाँ मनाया जाता है?

उत्तर :- वैसे तो लोहड़ी पुरे देशभर मनाई जाती है लेकिन पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, जम्मू काश्मीर और हिमांचल में धूम धाम तथा हर्षोलास से मनाया जाता है।

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Lohri Par Essay In Hindi – लोहड़ी पर निबंध

July 29, 2024 by Antesh Singh Leave a Comment

लोहड़ी भारत के उत्तरी भागों में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण त्यौहार है, विशेषकर पंजाब और हरियाणा में। यह त्यौहार मकर संक्रांति से एक दिन पहले मनाया जाता है और रबी की फसल की कटाई के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। लोहड़ी मुख्यतः सिख और हिंदू समुदाय के लोगों द्वारा मनाई जाती है।

कंटेंट की टॉपिक

लोहड़ी का महत्व

लोहड़ी का त्यौहार किसानों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह उनकी मेहनत का फल मिलने का समय होता है। यह त्यौहार नई फसल की खुशियों का प्रतीक है और इसे मनाने का उद्देश्य फसल कटाई के समय ईश्वर का धन्यवाद करना है। इस दिन को नए साल की शुरुआत के रूप में भी माना जाता है, जिसमें लोग पुरानी परेशानियों को भुलाकर नए साल का स्वागत करते हैं।

लोहड़ी की रस्में और रीति-रिवाज

लोहड़ी के दिन विशेष तैयारियां की जाती हैं। लोग अपने घरों को सजाते हैं और अलाव जलाते हैं। अलाव के चारों ओर लोग इकट्ठा होते हैं और ‘सुंदर मुंदरिये हो’, ‘दुल्ला भट्टी’ जैसे लोकगीत गाते हुए नृत्य करते हैं। अलाव में तिल, गुड़, मूंगफली, रेवड़ी और मक्का डालकर पूजा की जाती है। इस अवसर पर लोग एक-दूसरे को बधाई देते हैं और मिठाइयां बांटते हैं।

भोजन और मिठाईयां

लोहड़ी के दिन विशेष प्रकार के भोजन बनाए जाते हैं। सरसों का साग और मक्के की रोटी इस दिन का प्रमुख व्यंजन होता है। इसके साथ-साथ तिल और गुड़ से बनी मिठाइयां भी इस त्यौहार का हिस्सा होती हैं। लोग एक-दूसरे के घर जाकर मिठाइयों का आदान-प्रदान करते हैं।

सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व

लोहड़ी का त्यौहार केवल कृषि से संबंधित नहीं है, बल्कि इसका सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व भी है। यह त्यौहार आपसी प्रेम, सौहार्द और भाईचारे का प्रतीक है। लोहड़ी के अवसर पर लोग अपने पुराने झगड़े भुलाकर एक-दूसरे के गले मिलते हैं और एकता का संदेश देते हैं। यह त्यौहार हमें हमारी समृद्ध संस्कृति और परंपराओं की याद दिलाता है।

लोहड़ी का त्यौहार हमारी समृद्ध संस्कृति और परंपराओं का प्रतीक है। यह त्यौहार हमें हमारे पूर्वजों की मेहनत और संघर्ष की याद दिलाता है और हमें उनकी मान्यताओं और परंपराओं का सम्मान करने की प्रेरणा देता है। लोहड़ी के माध्यम से हमें अपनी कृषि संस्कृति और उससे जुड़े लोगों के प्रति आदरभाव रखना चाहिए।

इस प्रकार, लोहड़ी का त्यौहार न केवल एक धार्मिक पर्व है, बल्कि यह हमारे जीवन को खुशियों से भरने वाला एक महत्वपूर्ण अवसर भी है।

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लोहड़ी पर निबंध

Essay on Lohri in Hindi: उत्तर भारत के लोगों के प्रमुख त्योहारों में से एक लोहड़ी का त्योहार है। इसको लोग मकर सक्रांति की पूर्व संध्या को मनाते हैं। लोहड़ी विशेषकर पंजाब, हरियाणा और आसपास के राज्य में मनाया जाता है।

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हम यहां पर लोहड़ी पर निबंध हिंदी में (Lohri Essay in Hindi) शेयर कर रहे है। इस निबंध में लोहड़ी के संदर्भित सभी माहिति को आपके साथ शेयर किया गया है। यह निबंध सभी कक्षाओं के विद्यार्थियों के लिए मददगार है।

Read Also:  हिंदी के महत्वपूर्ण निबंध

लोहड़ी पर निबंध | Essay on Lohri in Hindi

लोहड़ी पर निबंध 250 शब्द.

मकर सक्रांति के एक दिन पहले उत्तर भारत के पंजाब राज्य में लोहड़ी का त्यौहार मनाया जाता है। यह त्यौहार मकर सक्रांति के एक दिन पहले मनाया जाता है। इसके अलावा यह त्योहार भारत के विभिन्न प्रदेशों में भी मनाया जाता है।

मकर सक्रांति के दिन तमिलनाडू में हिंदू लोग पोंगल का त्यौहार मनाते है। संपूर्ण भारत में हर राज्यों में किसी भी प्रकार से अलग अलग नाम से त्यौहार के रूप में मनाया जाता है।

मकर सक्रांति की पूर्व संध्या में पंजाब, हरियाणा और पड़ोसी राज्यों में बहुत ही धूमधाम और उत्साह के साथ लोहड़ी का त्यौहार मनाया जाता है। पंजाबियों के लिए इस त्यौहार का अधिक महत्व है। लोहड़ी के कुछ दिन पहले से ही जो छोटे-छोटे बच्चे हैं, वह लोहड़ी के गीत गाकर लकड़ी, रेवड़ी, मूंगफली को इकट्ठा करने लग जाते हैं क्योंकि लोहड़ी की शाम को आग जलाई जाती है।

उस अग्नि के चारों तरफ चक्कर काटते हुए नाचते, गाते और आग में रेवड़ी, मूंगफली, गज्जक, मक्का के दाने की आहुति देते हैं और आग के चारों तरफ लोग हाथ सेकते हैं। रेवड़ी की गजक, मक्का आदि खाने का भी आनंद लेते हैं और जिस घर में नई शादी होती है या फिर बच्चा हुआ होता है, वहां पर तो यह बहुत विशेष बड़े उत्सव के रूप में मनाया जाता है।

Essay on Lohri in Hindi

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लोहड़ी पर निबंध 850 शब्द

पूरे भारतवर्ष में लोहड़ी को सभी लोग बड़ी उत्सुकता और भरपूर उत्साह के साथ मनाते है। वैसे लोहड़ी सिखों का त्यौहार होता है, लेकिन हिंदू लोग भी इस त्यौहार को बहुत आस्था के साथ मनाते हैं। लोहरी पंजाब में बहुत ज्यादा धूमधाम से मनाई जाती है। पंजाब के साथ-साथ यह आजकल पूरे देश में धूमधाम के साथ मनाई जाती है।

मकर सक्रांति के दिन लोग अलग-अलग त्योहारों को मनाते हैं। जैसे दक्षिण भारत में तमिल हिंदू संक्रांति के दिन पोंगल का त्यौहार मनाते हैं। उसी प्रकार उत्तर भारत में लोहड़ी को विशेषकर पंजाब, हरियाणा और आसपास के सभी राज्यों में मनाया जाता है।

कैसे मनाई जाती लोहड़ी

लोहड़ी का त्यौहार विशेष कर पंजाबियों के लिए बहुत खास महत्व रखता है। लोहड़ी में छोटे बच्चे कुछ दिन पहले से ही लोहड़ी की तैयारी में लग जाते हैं। लोहड़ी के लिए लकड़ी, मेवा, रेवड़ी, मूंगफली आदि को इकट्ठा करने लगते हैं और लोहड़ी वाले दिन शाम को सभी एक साथ इकट्ठा होते हैं और आग जलाई जाती है।

इस अवसर पर लोग मंगल गीत भी गाते हैं और एक दूसरे को बधाइयां देते हैं। अग्नि के चारों तरफ लोग चक्कर लगाते हैं, नाचते हैं, गाते हैं और आग में रेवड़ी, मूंगफली, खील मक्का के दाने आदि की आहुतियां देते हैं।

आग के चारों तरफ बैठकर वो रेवड़ी तिल, गजक, मक्का खाते हैं। लोहड़ी का त्यौहार उन घरों में ज्यादा उत्साह पूर्ण बनाया जाता है, जहां पर किसी की नई शादी हुई हो या बच्चा हुआ हो। उनकी वह पहली होली बहुत ही जोश और उत्साह के साथ मनाई जाती है।

उस में नव वर-वधू आज के चारों तरफ घूमते हैं और अपने आने वाले जीवन के लिए खुशियों की दुआ मांगते हैं और अपने घर के आस पड़ोस के बड़े बुजुर्गों के पैर छूकर आशीर्वाद भी लेते हैं।

पहले कहते थे तिरोड़ी

पहले लोग लोहड़ी को तिरोड़ी कहते थे। तिरोड़ी शब्द ‘तिल’ और ‘रोटी’, जो गुड़ की बनी होती है। इन दो शब्दों से मिलकर बना हुआ है। अब इसका नाम बदलकर लोहरी रख दिया है और अब संपूर्ण भारतवर्ष में यह त्यौहार लोहड़ी के नाम से ही जाना जाता है।

ऐसा भी माना जाता है कि लोहड़ी शब्द “लोई” से लिया गया है, जो कि महान संत कबीर की पत्नी थी। जबकि कुछ लोगों का मानना ​​है कि यह शब्द “लोह” से उत्पन्न हुआ है, जो कि चपातियों को बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला एक उपकरण है।

लोहड़ी का इतिहास

लोहड़ी का त्यौहार दुल्ला भट्टी की कहानी से जोड़ा गया है। लोहड़ी के सभी गानों को दुल्ला भट्टी से ही गाया जाता है और यह भी कहा जाता है कि लोहड़ी के गानों का केंद्र बिंदु दुल्ला भट्टी को ही बनाया गया था। दुल्ला भट्टी मुगल शासक अकबर के समय में पंजाब में रहता था।

यह एक लुटेरा था। उसे पंजाब के नायक की उपाधि से सम्मानित किया गया था। उस समय संदल बार के जगह पर लड़कियों को गुलामी के लिए बलपूर्वक अमीर लोगों के पास में भेज दिया जाता था। इसके लिए दुल्ला भट्टी ने एक योजना के तहत लड़कियों को मुक्ति नहीं करवाया बल्कि हिंदू लड़कों के साथ में उनकी शादी भी करवाई।

दुल्ला भट्टी एक विद्रोही था। उनकी वंशावली बंटी राजपूत थे। उनके जो पूर्वज थे, वह पिंडी भट्टियन के शासक थे, जोकि संदल बार में थे। अब इस समय संदल बार पाकिस्तान में चला गया है। वह सभी पंजाबियों का नायक था। इन ऐतिहासिक कारणों के चलते पंजाब में लोहड़ी का त्यौहार बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। दुल्ला भट्टी का नाम आज भी लोकगीतों में लिया जाता है।

सुंदर मुंदरिये हो…… तेरा कौन बेचारा हो….दुल्ला भट्टी वाला, ………. हो दुल्ले घी व्याही, …………. सेर शक्कर आई, ………….. हो कुड़ी दे बाझे पाई, ………….. हो कुड़ी दा लाल पटारा हो……….

आधुनिक जमाने में लोहड़ी उत्सव

पहले के समय में लोग एक दूसरे को गजक गिफ्ट करके लोहड़ी मनाते थे, लेकिन जैसे-जैसे समय का बदलाव हुआ तो लोग गजब की जगह चॉकलेट और केक गिफ्ट करना पसंद करते हैं। अब लोग पेड़ों को भी काटना पसंद नहीं करते।

लोहड़ी पर आग जलाने के लिए लोग अधिक पेड़ पौधों को काटने से बचते हैं क्योंकि इसके बजाय तो वह अधिक से अधिक पेड़ लगाकर लोहड़ी मनाते हैं ताकि लंबे समय तक पर्यावरण संरक्षण में भी लोहड़ी का योगदान दे।

लोहड़ी का त्यौहार पंजाब में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। इसके अलावा इस परिवार को पूरे देश में मनाया जाता है। लेकिन सभी जगह इसको अलग-अलग नाम से मनाया जाता है। लोहरी मकर सक्रांति के एक दिन पहले मनाया जाता है और यह पंजाबी लोगों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण त्योहार होता है।

हमने यहाँ पर लोहड़ी पर निबंध (Essay on Lohri in Hindi) शेयर किया है। हम उम्मीद करते हैं कि आपको यह लेख अवश्य पसंद आया होगा, उसे आगे शेयर जरूर करें। यदि आपका इस लेख से जुड़ा कोई सवाल या सुझाव है तो कमेंट बॉक्स में जरुर बताएं।

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लोहड़ी पर निबंध Essay on Lohri in Hindi

आज हम लोहड़ी पर निबंध पढ़ेंगे। आप Essay on Lohri in Hindi  को ध्यान से और मन लगाकर पढ़ें और समझें। यहां पर दिया गया निबंध कक्षा (For Class) 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8 के विद्यार्थियों के लिए उपयुक्त हैं।

Essay on Lohri in Hindi

पंजाब का एक प्रसिद्ध त्योहार है-लोहड़ी। यह मकर संक्रांति के एक दिन पहले मनाया जाता है। लोहड़ी से 10-12 दिन पहले ही बच्चे ‘लोहड़ी’ के लोकगीत गाकर दाने, लकड़ी और गोबर के उपले इकट्ठे करते हैं। इस सामग्री से ही चौराहे या मुहल्ले के किसी खुले स्थान पर आग जलाई जाती है। रेवड़ी और मूंगफली अग्नि की भेंट किए जाते हैं तथा ये ही चीजें प्रसाद के रूप में सभी लोगों को बांटी जाती हैं।

घर लौटते समय ‘लोहड़ो’ में से दो-चार कोयले प्रसाद के रूप में, घर पर लाने की प्रथा भी है। रात्रि में खुले स्थान में परिवार और आस-पड़ोस के लोग मिलकर आग के किनारे घेरा बना कर बैठते हैं तथा मिल-जुल कर ढोल की थाप पर नाचते-गाते और थिरकते हैं। रेवड़ी, मूंगफली और मक्की के फूले खाते हैं।

लोहड़ी से संबद्ध परंपराओं एवं रीति-रिवाजों से ज्ञात होता है कि कई पौराणिक और लोक गाथाएं भी इससे जुड़ी हुई हैं। दक्ष प्रजापति की पुत्री सती के योगाग्नि-दहन की याद में ही यह अग्नि जलाई जाती है। दक्ष प्रजापति ने अपने यज्ञ में भगवान शिव, जो उनके दामाद थे, हिस्सा नहीं दिया था, उसी के प्रायश्चित्त रूप में इस अवसर पर विवाहिता के मायके द्वारा अपनी बेटी के पति का उस दिन सम्मान किया जाता है।

पंजाब में दुल्ला भट्टी ने दासी बनाई गई लड़कियों को मुक्ति दिलाई थी तथा उनका विवाह भी करवाया था। उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में खिचड़वार’ और दक्षिण भारत के ‘पोंगल’ भी ‘लोहड़ी’ के समीप ही मनाए जाते हैं।

भारत के अन्य कई पर्यों की तरह यह भी फसलों का त्योहार है। खेतों में लहलहाती फसल से जुड़ी आशा और उत्साह ही इस दिन की मौजमस्ती के रूप में दिखाई देता है।

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जानिए क्यों मनाई जाती है लोहड़ी why lohri is celebrated in hindi.

लोहड़ी एक लोकप्रिय पंजाबी लोक महोत्सव है जो  मुख्य रूप से पंजाब में सिखों और हिंदुओं द्वारा हर साल 13 जनवरी को मनाया जाता है। यह दिन पौष मास की अंतिम रात्रि और मकर संक्रान्ति की पूर्वसंध्या को पड़ता है. इसे सर्दियों के जाने और बसंत के आने के संकेत के रूप में भी देखा जाता है. लोहड़ी/ Lohri पर्व रबी की फसल की बुनाई और कटाई से जुड़ा हुआ है.  किसान इस दिन रबी की फसल जैसे मक्का, तिल, गेहूँ, सरसों, चना आदि को अग्नि को समर्पित करते है और भगवान् का आभार प्रकट करते है.

लोहड़ी/ Lohri की  शाम को लोग प्यार और भाईचारे के साथ लोकगीत गाते है और किसी खुले स्थान पर लकड़ियों और उपलों  से आग जलाकर उसकी परिक्रमा करते है.  ढोल और नगाड़ों का साथ डांस, भांगड़ा और  गिद्दा भी देखने को मिलता है.  आग के चारों ओर बैठकर रेवड़ी, गजक और मूंगफलियों  का आंनद लिया जाता है. और इन्हें प्रसाद के रूप में सभी लोगो को बांटा जाता है. जिस घर में नयी नयी शादी या बच्चे का जन्म होता है वहां खासतोर पर लोहड़ी/ Lohri धूमधाम से मनाई जाती है.

लोहड़ी क्यों मनाई जाती है – Why Lohri is Celebrated in hindi

लोहड़ी का त्यौहार दुल्ला भट्टी की कहानी से जुड़ा हुआ है.  कहानी के अनुसार दुल्ला भट्टी बादशाह  अकबर के शासनकाल के दौरान पंजाब में रहते थे ।  उन्होंने अमीरों और जमीदारों से धन लूटकर गरीबो में बाटने के अलावा, जबरन रूप से बेचीं जा रही हिंदू लड़कियों को मुक्त करवाया । साथ ही उन्होंने हिंदू अनुष्ठानों के साथ उन सभी लडकियों की शादी हिंदू लड़कों से करवाने की व्यवस्था की और उन्हें दहेज भी प्रदान किया। जिस कारण वह पंजाब के लोगो के नायक बन गए.

इसलिए आज भी लोहड़ी के गीतों में  दुल्ला भट्टी का आभार व्यक्त करने के लिए उनका नाम जरुर लिया जाता हैं।

एक अन्य कहानी के अनुसार कंस ने भगवान् श्री कृष्ण को मानने के लिए लोहिता नामक राक्षसी को भेजा जिसका वध कृष्ण ने खेल खेल में कर दिया. लोहिता के वध की ख़ुशी में लोगो द्वारा लोहड़ी का त्यौहार मनाया गया.

लोहड़ी मनाने की मान्यता शिव और सती से भी जुड़ी है.  कथा के अनुसार माता सती के आग में समर्पित होने के कारण लोहड़ी के दिन अग्नि जलाई जाती है.

दोस्तों  त्यौहार चाहे कोई भी हो उसका उदेश्य हमेशा से लोगो में उमंग और प्यार लाना रहा है. आशा करते है की लोहड़ी का पर्व भी आपकी जिन्दगी खुशियों से भर दे.

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लोहड़ी पर निबंध

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रूपरेखा : प्रस्तावना - लोहड़ी कब है - लोहड़ी क्यों मनायी जाती है - लोहड़ी मनाने के पीछे का इतिहास - लोहड़ी कैसे मनाते है - आज की लोहड़ी - लोहड़ी मनाने का महत्व - उपसंहार।

लोहड़ी भारत के प्रसिद्ध त्योहारों में से एक त्यौहार है। यह पंजाब का सबसे लोकप्रिय त्यौहार है जिसे पंजाबी धर्म के लोगो द्वारा प्रत्येक वर्ष मनाया जाता है। यह त्यौहार सर्दियों के महीने में मनाया जाता है। लोहड़ी के दिन माना जाता है की जब दिन साल का सबसे छोटा दिन और रात साल की सबसे बड़ी रात होती है । इस दिन आलाव जलाकर नृत्य और दुल्हा बत्ती के प्रशंसा गायन द्वारा किसानी त्यौहार के रूप मे मनाया जाता है। यह पंजाबियों का त्यौहार है किन्तु आज इसे भारत के उत्तरी राज्य जैसे हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, आदि राज्यो में रहने वाले लोगो के द्वारा भी मनाया जाता है।

वर्ष 2022 में लोहड़ी का त्योहार 13 जनवरी, गुरुवार के दिन मनाया गया ।

लोहड़ी पंजाब का सबसे लोकप्रिय त्यौहार है। पंजाबियों में लोहड़ी मनाने की बहुत सारी किस्से है जैसे माना जाता है कि नाम लोहड़ी शब्द "लोई" (संत कबीर की पत्नी) से उत्पन्न हुआ था। कुछ का कहना है कि यह शब्द "लोह" (चपाती बनाने के लिए प्रयुक्त उपकरण) से उत्पन्न हुआ था। लोहड़ी का त्योहार मनाने का एक और विश्वास है, कि लोहड़ी का जन्म होलिका की बहन के नाम पर हुआ लोग मानते है कि होलिका की बहन बच गयी थी, हालांकि होलिका खुद आग मे जल कर मर गयी। कई लोगों का मान्यता है कि लोहड़ी शब्द तिलोरही (तिल का और रोरही एक संयोजन) से उत्पन्न हुआ था। देश के किसान नए वित्तीय वर्ष की शुरुआत के रूप में लोहड़ी मनाते हैं।

लोहङी मनाने के पीछे का इतिहास बहुत पुराना है। यह नए साल की निशानी है तथा वसंत के मौसम के शुरू होने के साथ ही सर्दी के मौसम के अंत का प्रतीक है। लोगो की मान्यता है कि लोहड़ी की रात साल की सबसे लंबी रात होती है, तब से प्रत्येक दिन बड़ा और रातें धीरे-धीरे छोटी होना शुरू हो जाती है। यह दुल्हा बत्ती की प्रशंसा में बड़े उत्साह में मनाया जाता है। राजा अकबर के समय में एक डाकू था जो अमीर लोगों के घरो से धन चोरी करता था और गरीब लोगों को बांट देता था। वह गरीब लोगों और असहाय लोगों के नायक की तरह था, उसने विभिन्न लड़कियों के जीवन को बचाया जो अजनबियों द्वारा जबरन अपने घर से दूर ले जायी गयी थी। उसने असहाय लड़कियों की उनके विवाह में दहेज का भुगतान करके मदद की। उसके महान कार्यों के लिए दुल्हा भट्टी की प्रशंसा मे लोहड़ी त्योहार मनाना शुरू कर दिया। लोहड़ी के दिन दक्षिण से उत्तर की दिशा में सूर्य की गति को इंगित करती है, और कर्क रेखा से मकर रेखा को प्रवेश करती है। लोहड़ी त्योहार भगवान सूर्य और आग को समर्पित है। यह हर पंजाबी के लिए खुशी का दिन होता है। लोहड़ी सिखों और हिंदुओं धर्मों के लोगों द्वारा मनाया जाता है।

यह त्यौहार अन्य त्योहारों की तरह ही बहुत सारी खुशी और उल्लास के साथ भारत में लोगों द्वारा मनाया जाता है। यह ऐसा त्यौहार है जहां परिवार के सभी सदस्यों, रिश्तेदारों और दोस्तों एक साथ मिलकर मनाते है। लोहड़ी के दिन सभी लोग एक-दूसरे मिलते है और मिठाई बॉटकर आनंद लेते है। यह सबसे प्रसिद्ध फसल कटाई का त्योहार है जो किसानों के लिए बहुत महत्व रखता है। लोग इस दिन आलाव जलाते है, गाना गाते है और उस के चारो ओर नाचते है। आलाव के चारो ओर गाते और नाचते समय आग मे कुछ टॉफी, तिल के बीज, गुड अन्य चीज़ें आग मे डालते है।

यह भारत के विभिन्न प्रांतो मे अलग अलग नामो से मनाया जाता है, जैसे आंध्र प्रदेश मे भोगी, असम मे मेघ बिहू, उत्तरप्रदेश, बिहार और कर्नाटक मे मकर संक्रांति, तमिलनाडू मे पोंगल आदि। इस दिन सभी सुन्दर और रंग बिरंगे कपडे पहनते है और ढोल (एक संगीत यंत्र) की थाप पर भांगड़ा(गिद्दा) करते है। शाम को एक पूजा समारोह रखा जाता है जिसमे लोग अग्नि की पूजा करते है और आलाव के चारो ओर परिक्रमा करते है भविष्य की समृद्धि के लिए आशीर्वाद प्राप्त करते है। तत्पश्चात लोग स्वादिष्ट भोजन जैसे मक्के की रोटी, सरसो का साग, तिल, गुड, आदि खाने का आनंद लेते है। लोहडी का त्योहार किसानों के लिए नए वित्तीय वर्ष के लिए एक प्रारंभिक रूप का प्रतीक है। यह भारत और विदेशो मे रहने वाले सभी पंजाबियो द्वारा प्रत्येक वर्ष मनाया जाता है।

लोहडी का त्यौहार नवविवाहित जोडे के लिये उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि घर मे जन्मे पहले बच्चे के लिये। इस दिन, दुल्हन नई चूड़ियाँ, कपड़े, अच्छी बिंदी, मेंहदी, नए साड़ी पहनकर तैयार होती है वही दूसरी ओर नए कपडे और रंगीन पगड़ी पहने पति तैयार होता है। इस दिन हर नई दुल्हन को उसकी ससुराल की तरफ से नए कपड़े और गहने सहित बहुत से तोहफे दिये जाते है। दोनों परिवार (दूल्हे और दुल्हन) के सदस्यों की ओर से और अन्य मुख्य अतिथियो को इस भव्य समारोह में एक साथ आमंत्रित किया जाता है। नवविवाहित जोडा एक स्थान पर बैठा दिया जाता है और परिवार के अन्य सदस्यों, पड़ोसियों, दोस्तों, रिश्तेदारों द्वारा उन्हें कुछ उपहार दिये जाते है। वे सब उनके बेहतर जीवन और उज्जवल भविष्य के लिए नये जोड़े को आशीर्वाद देते है।

आज कल लोहङी उत्सव का आधुनिकीकरण हो गया है। पहले लोग उपहार देने के लिए गुड़ और तिल इस्तेमाल करते थे तथापि, आधुनिक लोगों ने चॉकलेट केक और चॉकलेट जैसे उपहार देना शुरू कर दिया है। क्योंकि वातावरण में बढ़ रहे प्रदूषण के कारण, लोग लोहङी मनाते समय पर्यावरण संरक्षण और इसकी सुरक्षा के बारे में अत्यधिक जागरूक और बहुत सचेत है। आलाव जलाने के लिए बहुत वृक्ष काटने के बजाय वृक्षारोपण कर के नए तरीके से लोहड़ी त्यौहार का आनंद लेते है।

लोहड़ी मनाने का कई महत्व बताई जाती है जैसे सर्दियों की मुख्य फसल गेहूँ है जो अक्टूबर मे बोई जाती है जबकि, मार्च के अंत मे और अप्रैल की शुरुआत मे काटी जाती है। फसल काटने और इकट्ठा करके घर लाने से पहले, किसान इस लोहड़ी त्योहार का आनंद मनाते हैं। यह हिन्दू कैलेंडर के अनुसार जनवरी के मध्य मे पङता है जब सूर्य पृथ्वी से दूर होता है। लोहङी का त्यौहार सर्दी खत्म होने और वसंत के शुरु होने का सूचक है। हर कोई पूरे जीवन मे सुख और समृद्धि पाने के लिए इस त्योहार का जश्न मनाने है। यह सबसे शुभ दिन माना है जो मकर राशि में सूर्य के प्रवेश को इंगित करता है।

लोहड़ी के दिन घर के बच्चे कुछ पैसे और खाद्य सामग्रियों की मांग करते है। शाम को सूर्यास्त के बाद, लोग एक साथ कटी हुई फसल के खेत मे एक बहुत बङा आलाव जलाते है। लोग आलाव के चारो ओर घेरा बनाकर गीत गाते और नाचते है और सुख समृद्धि के लिए अपने भगवान अग्नि और सूर्य से प्रार्थना करते हैं। पूजा समारोह के बाद वे अपने मित्रो, रिश्तेदारो, पङोसियो आदि से मिलते है और बधाई व बहुत सारी सुभकामनाओं के साथ उपहार, प्रसाद वितरित करते है। लोहड़ी के बाद का दिन माघ महीने की शुरुआत का संकेत है जो माघी दिन कहा जाता है। इस पवित्र दिन पर लोग गंगा मे डुबकी लगाते है और गरीबो को कुछ दान देते है। वे घर में नए बच्चे के जन्म और नवविवाहित जोङे के लिए एक बड़ी दावत की व्यवस्था करते है। यह एक महान पर्व है जब लोग अपने व्यस्त कार्यक्रम या जॉब से एक अल्प विराम लेकर एक दूसरे के साथ का आनंद लेते है। यह बहुत बड़ा उत्सव है जो सभी के लिए एकता और भाईचारे की भावना लाता है। पृथ्वी पर खुश और समृद्ध जीवन देने के लिए लोग अपने भगवान को धन्यवाद देते है।

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पंजाब के लोहड़ी त्यौहार पर निबंध Lohri Festival Essay in Hindi

इस लेख में आप पंजाब के लोहड़ी त्यौहार पर निबंध (Essay on Lohri festival in Hindi) हिन्दी में पढेंगे। इसमें आप लोहरी त्यौहार क्या है, महत्व, कब है, गीत, कहानी, और कैसे मनाई जाती है जैसी मुख्य जानकारियाँ दी गयी गई।

Table of Content

लोहड़ी त्यौहार पर निबंध Lohri Festival Essay in Hindi

यह लोहड़ी पर लेख उन छात्रों के लिए है, जो अभी स्कूल, कॉलेज या किसी यूनिवर्सिटी में पढ़ रहे है। हमने इस अनुच्छेद में लोहड़ी के बारे में सभी जानकारी को विस्तार से बताया है। इसके बारे में जानने के लिए लेख को पूरा पढ़े।

लोहड़ी त्यौहार क्या है? What is Lohri Festival in Hindi?

चूँकि लोहड़ी का त्यौहार पंजाबीयों के लिए बहुत ही ख़ास होता है इसीलिए दुनिया में अलग-अलग जगहों पर रहने वाले पंजाबी इस त्यौहार को बहुत ही उत्साह के साथ मानते है।

लोहड़ी कब है? When is Lohri? 2023

लोहड़ी त्यौहार का महत्व significance of lohri festival in hindi.

Lohri लोहड़ी  सर्दियों के मौसम का अंत दर्शाता है। इसलिए यह एक मौसमी त्यौहार है जो शीत ऋतू के जाने पर मकर संक्रांति के समय मनाया जाता है। यह किसानों के लिए भी एक महत्वपूर्ण त्यौहार और दिन होता है।

वैसे तो पंजाबी इस त्यौहार हर साल 15 जनवरी को पूरे उत्साह और उल्लास के साथ मनाते है। बहुत से लोगो का यह भी मनाना है कि यह त्यौहार उस दिन मनाया जाता है जब दिन छोटे और रातें लंबी होने लगती है। यह त्यौहार भारत में हर जगह मनाई जाती है लेकिन कई लोग इस त्यौहार को अलग नामो से मनाते है।

लोहड़ी का पारंपरिक गीत Lohri Traditional Song in Hindi

‘सुंदर मुंदरिये, होए तेरा की विचारा, होए दुल्ला भट्टी वाला, होए दुल्ले दी धी वियाई, होए सेर शकर पाई, होए’

लोहड़ी का इतिहास व कहानी History of Lohri Festival in Hindi

इसके अलावा लोहड़ी मनाने के पीछे एक और ऐतिहासिक कथा भी है। इसे दुल्ला भट्टी के नाम से जाना जाता है। अधिकतर लोग लोहड़ी मानने के पीछे इसी ऐतिहासिक कथा को मान्यता देता है। ये कथा अकबर के शासनकाल की है।

वैसे तो दुल्ला भट्टी  एक डाकू था लेकिन उसके द्वारा ग़रीबों के लिए किये जाने वालो कामों से वह सभी पंजाबियों का नायक बन गया। यही कारण है कि हर दूसरे लोहड़ी गीत में दुल्ला भट्टी शब्द का इस्तेमाल किया गया है। और शायद यही वजह है कि लोग लोहड़ी इनकी याद मनाते है।

लोहड़ी उत्सव कैसे मनाई जाती है? How Lohri is Celebrated in Hindi?

इस त्यौहार पर लोग आग जाते है और आग के चारों ओर पंजाबी लोहड़ी गाते और नाचते हुए लोग गुड़, रेवड़ी, चीनी-कैंडी और तिल आग में फेंकते हैं।

यह पर्व पंजाब और हरियाण में ज्यादा मनाया जाता है। और इसी दिन को नव वर्ष के रूप में भी मनाते है।

लोहड़ी का आधुनिक रूप Modern form of Lohri festival

आशा करते हैं आपको लोहड़ी त्यौहार पर निबंध Lohri Festival Essay in Hindi अच्छा लगा होगा।

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Essay on Lohri in Hindi । लोहड़ी पर निबंध हिंदी में

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Essay on Lohri in Hindi

लोहड़ी पर निबंध हिंदी में । Essay on Lohri in Hindi 

Hindi Essay: आज हम Essay on Lohri in Hindi | लोहड़ी निबंध हिंदी में पढ़ेंगे। लोहड़ी पर लिखा यह निबंध (Lohri Nibandh) बच्चों (kids) जो class 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11, 12 के विद्यार्थियों के लिए फायदेमंद हो सकता है. इसे speech, Paragraph और Nibandh के रूप में भी प्रस्तुत कर सकते हैं। आओ पढ़ते हैं लोहड़ी पर निबंध Essay on Lohri in Hindi is Important for all classes 3rd to 12th. 

लोहड़ी पर निबंध (Essay on Lohri in Hindi, Lohri Par Nibandh Hindi mein)

भूमिका- पंजाब मेलों और त्योहारों का राज्य है। यहां आए दिन कहीं न कहीं कोई न कोई मेला या त्योहार देखने को मिलता है। वास्तव में, ये मेले और त्यौहार पंजाबियों का आत्मा भोजन हैं। क्योंकि पंजाबी इतने खुले विचारों वाले होते हैं कि नाच-गाकर हर खुशी का इजहार करना चाहते हैं। यह मेले और त्यौहार उनकी खुशी व्यक्त करने का एक बहाना है।

लोहड़ी का अर्थ- लोहड़ी शब्द की उत्पत्ति तिल रोड़ी से हुई है। पहले यह नाम ‘तिलोढ़ी’ प्रचलित हुआ जो बाद में लोहड़ी बन गया। 

पंजाब का लोहड़ी पर्व- वैसे तो पंजाब में हर त्योहार पूरे जोश के साथ मनाया जाता है। 23 लाहरी का त्योहार सिर्फ पंजाबी अलग-अलग अंदाज में नाच-गाकर मनाते हैं। 31 वैसे तो यह पर्व सभी भागों में मनाया जाता है कहां – जहां पंजाबी रहते हैं। आजकल पंजाबियों को देखते हुए दूसरे लोग भी इसे मनाने लगे हैं। क्योंकि यह पर्व खुशियों का पर्व है। यह हर साल तेरी जनवरी को मनाया जाता है और अगले दिन माघी उत्सव आयोजित किया जाता है।

हर्षोल्लास का पर्व- लोहड़ी का पर्व हर्षोल्लास का पर्व है। वैसे तो यह सभी लोगों द्वारा मनाया जाता है, लेकिन जिन लोगों के बेटे का जन्म हुआ या पिछले साल किसी के बेटे की शादी हुई, वे लोग इसे खास तरीके से मनाते हैं और लोहड़ी बांटते हैं। गांवों में इस पर्व की तैयारियां कई दिन पहले से ही शुरू हो जाती हैं। महिलाओं को एक बड़ी सभा में एक साथ इकट्ठा होते हुए, सुंदर कपड़े पहने, सिर पर परात लिए, टोकरियाँ लिए और घर-घर में नाड़ी बांटते हुए देखना आम बात है। लोग अपने रिश्तेदारों मित्रों आदि को रायद, मूंगफली, चिराड, बिस्कुट, फल आदि बांटते हैं। रात में वे अपने घरों में आग जलाते हैं और सभी रिश्तेदारों को घर बुलाते हैं। लोग तिल आदि को धुएँ में फेंक देते हैं। लोग आधी रात तक इस धुनी का आनंद लेते हैं। धूनी के आसपास गिद्धों का बड़ा शोर है। आजकल वगैरा के साथ सिर्फ तलाक ही अच्छा डांस करते हैं।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि- लोहड़ी के पर्व से एक घटना भी जुड़ी हुई है। कहा जाता है कि एक ब्राह्मण की दो बेटियां सुंदरी और मुंदरी थीं।उनका रिश्ता पास के एक गांव में था। लेकिन उस गांव का शासक उन लड़कियों पर बुरी नजर रखता था लड़के उस शासक से डरते थे। इस वजह से लड़कों ने ब्राह्मणों की बेटियों से शादी करने से मना कर दिया। दुल्ला भट्टी एक डकैत था लेकिन वह गरीबों के प्रति सहानुभूति रखता था। बहमन ने अपनी कहानी दुल्ला को सुनाई। सुस्त ने उस रात ब्राह्मण लड़कियों को जंगल में आमंत्रित किया। लड़कों को भी वहीं बुलाया गया। उसने ब्राह्मण लड़कियों को अपनी धार्मिक बहनें बनायीं और उनसे शादी कर ली। उन्होंने उनकी गोद में थोड़ा सा शंकर रखा और उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी ली। उस दिन से यह गाना लोकप्रिय हो गया

‘सुन्दर- मुंदरिये  तेरा कोण विचारा, दुल्ला भट्टी वाला ………………….

बच्चों का लोहड़ी मांगने जाना- गांवों में बच्चे कई दिन पहले से ही ग्रुप बनाकर लोहड़ी मांगने लगते हैं। वे सुंदरी और मुंदरी या दुल्ला-भट्टी का गीत गाकर लोहड़ी मांगते हैं। घरवाले उन्हें पैसे देते हैं, रेवड़ियां, मूंगफली आदि देते हैं। लोहड़ी रात में खुली जगह पर जलाई जाती है। लोग यहां जमा होते हैं। आग आधी रात तक जलती रहती है। लोग उसमें तिल आदि फेंकते हैं और कहते हैं, ‘ईशवरआये, दलीदर जाए।’ लोगों का मानना ​​है कि इस दिन के बाद ठंड कम होगी और अच्छा मौसम आएगा। इसलिए वे राख को धुएँ में जलाते हैं।

सारांश- लोहड़ी का पर्व हर्षोल्लास का पर्व है। पहले लोहड़ी लड़के का जन्म मनाने की प्रथा थी, लेकिन अब लोग बेटी के जन्म का भी जश्न मनाकर खुशी का इजहार करते हैं। जो बहुत ही सराहनीय कार्य है। इसी के साथ लड़का-लड़की का भेद खत्म हो रहा है और यह खुशी का त्योहार बेटा-बेटी दोनों का खुशी का त्योहार बन गया है। 

हमें उम्मीद है आपको इस पोस्ट में लोहड़ी पर निबंध (Essay on Lohri in Hindi) हिन्दी में अच्छा लगा होगा। स्कूल के विद्यार्थी जो लोहड़ी पर निबंध की खोज में हैं वे इस लोहड़ी पर सुंदर निबंध की मदद ले सकते हैं। यह लोहड़ी पर निबंध Essay on Lohri in Hindi Class 3, 4, 5, 6 , 7, 8, 9, 10 मे पूछा जा सकता है।

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Lohri festival 2023: कैसे पड़ा लोहड़ी नाम हर साल क्यों मनाते हैं यह त्योहार, पढ़ें इसका महत्व.

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Lohri Festival 2023: पौष माह के अंतिम दिन लोहड़ी का पर्व मनाने की परंपरा है. लोहड़ी पर पवित्र अग्नि जलाकर उसकी पूजा करन ...अधिक पढ़ें

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  • Last Updated : January 11, 2023, 19:04 IST
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Significance of Lohri 2023: सिख समुदाय के सबसे प्रमुख त्योहारों में से एक लोहड़ी का पर्व 14 जनवरी 2023 को मनाया जाएगा. इस पर्व की सबसे अधिक धूम पंजाब, हरियाणा, दिल्ली में रहती है. यह पर्व कृषि व प्रकृति को समर्पित होता है. इस दिन किसान अपनी नई फसलों को अग्नि में समर्पित करते हैं और भगवान सूर्यदेव को धन्यवाद अर्पित करते हैं. लोहड़ी का पर्व सुख-समृद्धि व खुशियों का प्रतीक है. लोग इस त्योहार को मिलजुल कर मनाते हैं और खुशियों के गीत गाते हैं. लेकिन, क्या आप जानते हैं लोहड़ी का अर्थ क्या है? हर वर्ष यह पर्व क्यों मनाया जाता है. आइए पंडित इंद्रमणि घनस्याल से जानते हैं लोहड़ी नाम कैसे पड़ा और यह पर्व क्यों मनाया जाता है?

क्यों मनाते हैं लोहड़ी का पर्व? लोहड़ी मनाने के पीछे कई प्रचलित कथाएं भी हैं. लोहड़ी का पर्व माता सती, भगवान श्रीकृष्ण व दुल्ला भट्टी से जुड़ा हुआ माना गया है. इस दिन दुल्ला भट्टी वाला गीत गाने की परंपरा है. लोहड़ी पर अग्नि जलाई जाती है. सभी लोग इस पवित्र अग्नि की पूजा करते हैं. घर परिवार व रिश्तेदार सब लोग मिलकर लोहड़ी जलाते हैं. अग्नि में नई फसल, रेवड़ी, तिल, मूंगफली, गुड़ आदि डाले जाते हैं. वहीं, मेहमानों को लोहड़ी से संबंधित वस्तुएं वितरित की जाती हैं और लोहड़ी की बधाइयां देते हैं.

कैसे पड़ा लोहड़ी नाम? पौष माह के अंतिम दिन रात्रि में लोहड़ी जलाने का विधान है. इस दिन के बाद प्रकृति में कई बदलाव आते हैं. लोहड़ी की रात साल की सबसे लंबी रात होती है. इसके बाद धीरे-धीरे दिन बड़े होने लगते हैं. मौसम फसलों के अनुकूल होने लगता है, इसलिए इसे मौसमी त्योहार भी कहा जाता है. लोहड़ी में ल से लकड़ी, ओह से गोहा (जलते हुए सूखे उपले) और ड़ी से रेवड़ी अर्थ होता है, इसलिए इस दिन मूंगफली, तिल, गुड़, गजक, चिड़वे, मक्के को लोहड़ी की आग पर से वारना करके खाने की परंपरा है.

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Tags: Dharma Aastha , Dharma Culture

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भारतीय त्यौहार लोहड़ी प्राचीन कहानी और मान्यताये I Lohri Festival in Hindi

Lohri Festival in Hindi

Lohri Festival in Hindi । Lohri 2021

लोहड़ी का मतलब या होता है ? Lohri Meaning in Hindi लोहड़ी त्यौहार उत्तर भारत का लोकप्रिय त्यौहार है I यह त्यौहार पंजाब का मुख्य त्यौहार है I लोहड़ी मुख्यत तीन शब्दों के मेल से बना है ल + ओह + ड़ी, इसमें ‘ल’ से लकड़ी ‘ओह’ से सूखे उपले (कण्डा) और ‘ड़ी’ रेवड़ी से सम्बंधित है I

लोहड़ी कब है ? ।  When is Lohri?

लोहड़ी का त्यौहार कब मनाया जाता है ? । When is the festival of Lohri celebrated? लोहड़ी पौष माह की अंतिम तिथि को मनाया जाता है I लोहड़ी हिन्दू त्यौहार मकर सक्रांति के एक दिन पहले मनाया जाता है I लोहड़ी त्यौहार जनवरी में 13 तारीख को पड़ता है I कभी कभी यह 12 तारीख को भी पड़ जाता है I लोहड़ी त्यौहार में स्त्री के सभी रूपों का सम्मान देखने को मिलता है I इस त्यौहार पर विवाहित पुत्री को उसके माता पिता के घरो से भेट में वस्त्र, मिठाई, गजक, गुड़ आदि भेट दी जाती है I भारत के उत्तर पूर्व में खिचड़ी पर्व और दक्षिण भारत में पोंगल पर्व लोहरी पर्व के आस पास ही मनाई जाती है I

लोहड़ी के बधाई सन्देश :- Lohri Wishes in Hindi

लौहड़ी क्यों मनाई जाती है ? । Why is Lohri celebrated? भारत के सभी ऐतिहासिक त्यौहार प्रकृति को समर्पित है। अगर लोहरी त्यौहार की बात करे तो शीत ऋतू से वसंत ऋतू के आगमन की ख़ुशी में ये त्यौहार मनाया जाता है। वही अगर इसे देखे तो किसानो द्वारा फसल की कटाई के बाद के उत्सव के रूप में भी इसे मनाया जाता है। लोहड़ी त्यौहार से 1 या 2 दिन के अंतर पर मकर सक्रांति का भी त्यौहार मनाया जाता है। मकर सक्रांति ज्योतिषीय गणना के अनुसार सूर्य का मकर राशि में जाना होता है। इसका अर्थ यह है, की अब ठण्ड का मौसम समाप्ति की घोषणा के साथ वसंत ऋतू का आगमन होगा। नए फसलों की बुवाई के लिए लोग अब तैयार हो जायेंगे।

लोहड़ी पंजाब के साथ साथ हरियाणा दिल्ली और हिमाचल में देखने को मिलती है I पंजाबी समुदाय के लिए लोहरी का बहुत महत्त्व है I लोग लोहरी के कुछ दिन पूर्व ही इसकी तैयारियों में जुट जाते है I  मूंगफली और रेवड़ी की खरीद शुरू हो जाती है I लोहरी सूर्य के डूबने के पश्चात मनाई जाती है I लोहड़ी की शाम को लकड़ियों और उपलों से बने ढेर में आग लगायी जाती है फिर उस आग के घेरे के चारो तरफ लोग नाचते गाते है I उस पावन अग्नि में तीन, मूंगफली, रेवड़ी, खील, फुल्ले आदि की आहूति देते है I

अगर लोहरी त्यौहार को दूसरी दृष्टि से देखे तो इस दिन के पश्चात शीत ऋतू धीरे धीरे समाप्ति की ओर अग्रसर हो जाती है I इस समय अग्नि व इसमें दी जाने वाली आहूति सवरूप तिल, गजग , मूंगफली व खील वातावरण के लिए अमृत सामान है I लोहड़ी में प्रयोग होने वाले गोबर के उपले ओर उसके दी जाने वाली आहूत सामग्री वातावरण को शुद्धता प्रदान करते है I

लोहड़ी का इतिहास क्या है ? । What is the history of Lohri Festival लोहड़ी त्यौहार के पीछे बहुत सी ऐतिहासिक कहानिया जुडी हुई है I इसमें से सबसे जयादा प्रचलित कहानी दुल्ला भट्टी की कहानी है I मुग़ल शासक अकबर के समय दुल्ला भट्टी नमन डाकू हुआ करता थे वो मुगलो के शासन ओर उनकी गलत नीतियों के खिलाफ आवाज़ उठाने वाला साहसी व्यक्ति थे I उस समय पंजाब में लड़कियों को जबरन उठा लिया जाता था I लड़ियो को गुलाम बनाया जाता था उन्हें बेचा जाता था I सुन्दर लड़कियों को मुग़ल दरबार में भोगने के लिए जबरदस्ती भेजा जाता था I

उसी समय दो अनाथ लड़किया जो बहुत सुन्दर थी सुंदरी ओर मुंदरी का जिक्र लोक कथाओ में  मिलता है I सुंदरी मुंदरी को उनका चाचा उपहार स्वरूप मुगलो को सौपना चाहता था पर दुल्ला भट्टी ने इन लड़कियों को छुड़ा कर इनकी शादी हिन्दू लड़को से करवाई I दुल्ला भट्टी पंजाब में किसी हीरो से कम नहीं माने जाते है I दुल्ला भट्टी पंजाब में किसी हीरो से कम नहीं मने जाते है I दुल्ला भट्टी का स्त्रियों के लिए ये सम्मान उस समय में जब स्त्री को भोग की वस्तु उपहार का सामान समझा जाता था उनकी उदारता का परिचय देता है I

लोहड़ी की पार्टी कैसे होती है ? । How is Lohri’s party? लोहरी का त्यौहार पंजाब और हरियाणा में बड़े धूम धाम से मनाया जाता है। इस त्यौहार में लोगो द्वारा लकड़ियों या गोबर के उपलों का ढेर बनाया जाता है। इस दिन सभी नहा धोकर नए नए कपडे पहनते है। सभी घरो में तिल और गुड़ की मिठाईया बनायीं जाती है। नए नए पकवान बनाये जाते है। पुरे घरो को अच्छे से सजाया जाता है। लोग मिठाईया, रेवड़िया, तिल और गज़क अपने रिश्तेदारों और दोस्तों में बांटते है। शाम के समय सभी लोग लकड़ी या उपलों से बने ढेर के पास जमा होते है और देर में आग लगाई जाती है। सभी लोग नाचते है गाते है। आदमी औरत और बच्चे सभी इस आयोजन में भाग लेते है। बाज़ारों में भी रौनक देखने को मिलती है। महीने भर पहले से ही मूंगफलिया रेवड़िया और गजक देखने को मिलते है।

लोहड़ी की आग में क्या डाला जाता है ? । What is put in the fire of Lohri? लोग गोबर के उपलों और लकड़ी से बने ढेर में आग लगते है और सभी लोग मूंगफलिया, रेवड़िया, फुल्ले (पॉपकॉर्न) को उस आग में आहुति से रूप में डालते है। इससे प्रकृति का शुद्दिकरण होता है। ऐसा मानना भी है की यह आग सभी बुराइयों का नाश करके आने वाले कल को बेहतर बनाएगी। लोगो के जीवन में उजाले और राष्ट्र में ख़ुशीहाली ले कर आएगी।

हमें आशा है, lohri in hindi लेख में आप सभी को यह रोचकर जानकारी why we celebrate lohri in hindi और history of lohri in hindi के बारे में जानकार बहुत अच्छा लगा होगा। इस लेख को लिखते समय हमारी पूरी कोशिश रही है की आप सभी को lohri festival in hindi या about lohri in hindi के बारे में पूर्ण जानकारी प्रदान की जाये। यदि आपके पास किसी प्रकार के सुझाव या किसी प्रकार का बदलाव इस लेख में चाहते है तो हमें जरूर बताये धन्यवाद। लोहड़ी त्यौहार की मेरे सभी पाठको को बहुत बहुत शुभकामनाये I

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Why We Celebrate Lohri in Hindi – क्यों मनाया जाता है लोहड़ी का त्योहार, जानें मान्यता

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  • Updated on  
  • जनवरी 12, 2024

Why We Celebrate Lohri in Hindi

भारत त्योहारों का देश है। उन्हीं में से एक है लोहड़ी का त्योहार जो ज्यादातर उत्तर भारत में मनाया जाता है। सिख धर्म के लोगों के लिए ये पर्व एक नए साल की तरह मनाया जाता है। इस दिन किसान अपनी नई फसल को अग्नि को समर्पित कर आभार व्यक्त करते हैं। कहा जाता है कि इस दौरान आग की लपटें जितनी ऊँची जाती हैं उतना ही अच्छा आशीर्वाद मिलता है। लोहड़ी का पर्व तो सब मनाते हैं, लेकिन कुछ ही लोग इसको मनाने का कारण भी जानते हैं। तो चलिए आज के इस ब्लॉग में हम आपको Why We Celebrate Lohri in Hindi के बारे में बताएंगे। 

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फसल से जुड़ा है ये पर्व , इस दिन से गन्ने की फसल को बोया जाता है , लोहड़ी संत कबीर की पत्नी की याद में भी मनाया जाता है , इस दिन किसान अपनी फसल को अग्नि में समर्पित करते हैं, प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करने के लिए मनाया जाता है यह दिन  .

मकर संक्रांति से एक दिन पहले मनाया जाने वाला त्यौहार लोहड़ी का सम्बन्ध फसल से भी है। इस दिन से खेतों में गन्ने की फसल बोई जाती है और रबी की कटी फसलों को अग्नि में समर्पित किया जाता है। लोहड़ी का त्यौहार सुख समृद्धि और हर्षोउल्लास का दिन है। 

नए साल के बाद सबसे पहले आने वाला त्यौहार लोहड़ी किसान और खेती को समर्पित है। इस दिन से ही गन्ने की खेती की शुरुवात होती है लेकिन उससे पहले रबी की फसल को काटा जाता है और उसे घर में संभल कर रख लिया जाता है। माना जाता है की लोहड़ी के त्यौहार के ज़रिए नई फसल का भोग देवी देवताओं को लग जाता है। इस दिन रात्रि में सभी लोग तिल, मुमफली, गुड़ से बानी मिठाइयों को अग्नि में समर्पित करते हैं। 

लोहड़ी को मानने के पीछे का कारण यह भी है की लोहड़ी संत कबीर की पत्नी की याद में मनाया जाता है। जिनका नाम था लोई, इसी कारण लोहड़ी को लोई भी कहा जाता हैं। लेकिन इस त्यौहार से जुड़ी एक प्रचलित कथा दुल्ला भट्टी की भी है। 

अक्सर आपने लोहड़ी के दिन दुल्ला भट्टी के नाम का ज़िक्र तो ज़रूर सुना होगा या उनसे जुड़े गीतों के बारे में। दुला भट्टी एक डांकू था जिसने सुंदरी और मुंदरी नमक लड़कियों को तस्करों से बचाकर उनकी शादी अच्छे लड़के से करवा दी थी जिसके बाद शगुन के तौर गुड़ और शक्कर बांटे गए, तभी से दुल्ला भट्टी की कहानी और गीत लोहड़ी के दिन सुनाए जाने लगे। 

यह भी पढ़ें- Quotes on Lohri in Hindi: पढ़िए लोहड़ी पर्व का उत्सव बनाते वो प्रेरक विचार, जो समाज में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करेंगे

लोहड़ी के त्यौहार की मुख्य चीज रात में जलने वाली आग है जो कि अग्निदेव का प्रतिनिधित्व करती है। इस दिन लोग एक जगह इकठ्ठा होकर अग्नि देव को तिल, गुड़ से बनी चीजें समर्पित करते हैं ताकि उनकी फसल अच्छी हो और बढ़ती रहे। लोक मान्यताओं के अनुसार आग की लपटें लोगों की प्रार्थना सूर्यदेव तक पहुँचाती है। जिसके बदले में उन्हें उनकी भूमि के लिए आशीर्वाद मिलता है। 

यह भी पढ़े – Makar Sankranti in Hindi -जानिए क्यों मनाया जाता है मकर संक्रांति का त्यौहार 

लोहड़ी का त्यौहार मुख्य तौर पर अग्नि और सूर्य को समर्पित है। जिसकी पवित्र अग्नि में नई फसल को अर्पित किया जाता है। साथ ही प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करने के लिए अग्नि में तिल, गुड़, मूंगफली आदि भी समर्पित किया जाता है। जिसके बदले में उन्हें आशीर्वाद प्राप्त होता है और देवी देवताओं तक भी फसल का कुछ अंश पहुँचता है। ताकि उनकी फसल अच्छी और लहराते रहे। 

नई फसल की पूजा की जाती है। 

सूर्य देव और अग्नि देव का। 

रेवड़ी, मूंगफली, गुड़, तिल और गजक चढ़ाने की परंपरा है। 

लोहड़ी का अर्थ तीन शब्दों से बना है ‘ल’ का मतलब लकड़ी, ओह का मतलब उपले और ड़ी का मतलब रेवड़ी होता है। 

उम्मीद है की आपको Why We Celebrate Lohri in Hindi का हमारा ये ब्लॉग पसंद आया होगा। ऐसे ही ट्रेंडिंग इवेंट्स से जुड़े ब्लॉग्स पढ़ने के लिए बने रहिए Leverage Edu के साथ। 

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सीखने का नया ठिकाना स्टडी अब्राॅड प्लेटफाॅर्म Leverage Edu. खुशी को 1 वर्ष का अनुभव है। पूर्व में वह न्यूज टुडे नेटर्वक, जागृत जनता न्यूज (JJN) में कंटेंट राइटर और स्क्रिप्ट राइटर रह चुकी हैं। खुशी ने पत्रकारिता में स्नातक कंप्लीट किया है। उन्हें एजुकेशनल ब्लाॅग्स लिखने के अलावा रिसर्च बेस्ड स्टोरीज करना पसंद हैं।

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लोहड़ी पर निबंध

प्रस्तावना : लोहड़ी मूल रूप से अग्नि और सूर्य की पूजा से जुड़ा पर्व है। भारत में हर दूसरे त्योहार की तरह, लोहड़ी में भी लोग अपने रिश्तेदारों से मिलते हैं और प्यार, बधाई और उपहारों का आदान-प्रदान करते हैं।

पंजाब में, लोहड़ी का बहुत महत्व है क्योंकि यह पंजाब में फसल के मौसम का स्वागत करती है। पंजाब, भारत के सिख, हिंदू, मुस्लिम और ईसाई इस त्योहार को बड़े ही उत्साह के साथ मनाते हैं। लोहड़ी का महत्व पंजाब के रॉबिन हुड दुल्ला भट्टी की पौराणिक कहानी से जुड़ा है। दूसरे शब्दों में, अधिकांश लोहड़ी गीत दुल्ला भट्टी को समर्पित हैं।

मूल रूप से, लोहड़ी और मकर संक्रांति दोनों ही हर साल एक ही समय पर आते हैं, जो लोगों के लिए बहुत सारी खुशियां लेकर आते हैं। इस मौके पर लोग अपने लिए, अपने परिवार, रिश्तेदारों और खासकर गुरुद्वारे के लिए मिठाइयां खरीदते हैं। वे गुरुद्वारे जाते हैं जो उनके उत्सव का सबसे गहन और प्रबुद्ध हिस्सा है।

लोहड़ी का इतिहास : लोहड़ी उत्तर भारत में विशेष रूप से पंजाब में मनाई जाती है। यह 13 जनवरी को मनाया जाता है, जो मकर संक्रांति से एक दिन पहले है। लोहड़ी को पहले तिलोड़ी के नाम से जाना जाता था। मुख्य रूप से लोहड़ी का संबंध किसानों की फसल की कटाई में मनाए जाने वाले उत्सव से भी है।

यह पंजाब में कटाई के मौसम और सर्दियों के मौसम के अंत के रूप में मनाया जाता है। यह त्योहार भारत के विभिन्न राज्यों में मनाया जाता है। पंजाब को छोड़कर, यह त्योहार हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर और दिल्ली में मनाया जाता है।

लोहड़ी का उत्सव : लोहड़ी पंजाबी लोगों के लिए विशेष महत्व रखती है। लोहड़ी के कुछ दिन पहले से छोटे बच्चे लोहड़ी की पूर्व संध्या के लिए लकड़ियां, मेवे, मूंगफली, गजक और तिल रेवाड़ी इकट्ठा करना शुरू कर देते हैं। लोहड़ी की पूर्व संध्या पर शाम को आग जलाई जाती है।

लोग आग की परिक्रमा करते हैं और वहां नाचते-गाते हैं। अग्नि के चारों ओर लोगों को मूंगफली, तिल रेवाड़ी, मक्के के बीज आदि चढ़ाए जाते हैं। इस प्रकार अंत में आग के चारों ओर बैठकर लोग रेवाड़ी, मक्के के बीज, गजक आदि खाने का आनंद लेते हैं।

लोहड़ी मनाने का कारण :पंजाब के किसान लोहड़ी को आर्थिक दिवस के रूप में देखते हैं। इस दौरान किसान भाई फसल काटने से पहले भगवान से प्रार्थना करते हैं और फसल के लिए धन्यवाद देते हैं। लोहड़ी की रात हिंदू कैलेंडर के अनुसार साल की सबसे लंबी रात मानी जाती है। लोहड़ी मनाने के पीछे एक दुल्ला भट्टी की कहानी भी छिपी हुई है,

जिसके अनुसार, मुगल बादशाह अकबर के शासन काल में दुल्ला भट्टी नाम का एक डकैत था, जो सियालकोट के पास था। वह अमीर लोगों को लूटता था और लूटी गई सामग्री को गरीबों में बांट देता था। इस अधिनियम ने उन्हें उस क्षेत्र के गरीब और जरूरतमंद लोगों के लिए लोकप्रिय और उद्धारकर्ता बना दिया।

एक बार उन्होंने सुंदरी और मुंदरी नाम की दो लड़कियों को मुगल बादशाह की सेवा में पेश होने से बचाया। दुल्ला भट्टी ने उन लड़कियों की शादी अपने धर्म के कम उम्र के लड़कों से कर दी। उन्होंने शादी के दौरान गीत और मंत्रों को अपने आप मंत्रमुग्ध कर दिया और वे गीत आज तक लोहड़ी में गाए जाते हैं।

कुछ लोगों का यह भी मानना ​​है कि लोहड़ी संत कबीर की पत्नी लोई की याद में मनाई जाती है। इसके साथ ही लोहड़ी शब्द की उत्पत्ति भी लोई नाम से ही हुई है। इसके अलावा यह कथा प्रचलित थी कि पूर्वकाल में लोगों द्वारा मांसाहारी जानवरों के हमले से बचने के लिए आग जलाई जाती थी।

अलाव जलाने के लिए सूखी लकड़ी, गोबर के कंडे, पत्ते आदि जैसी सामग्री छोटे बच्चों द्वारा इकट्ठी करके लाई जाती थी। लोहड़ी के त्योहार पर आग जलाने की वही परंपरा आज तक निभाई जाती है।

निष्कर्ष : इस प्रकार भारत के अन्य त्योहारों की तरह लोहड़ी भी एक प्राचीन त्योहार है। जिसके पीछे अनेक मान्यताएं मौजूद हैं। यह त्योहार भारत में हर्ष उल्लास के साथ हर वर्ष मनाया जाता है।

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Lohri Essay in 10 Lines & 100, 500 Words for Students

  • Entrance Exams
  • November 10, 2023

Lohri Essay – Lohri is a vibrant Punjabi festival celebrated on January 13th, marking the end of winter and the harvest of rabi crops. It involves worshiping the sun, lighting bonfires, and throwing offerings into the flames.

Lohri Essay in 500 Words

The Lohri essay provides a comprehensive overview of the Punjabi festival celebrated on January 13th. It covers the festival’s origin, which is linked to the legendary hero Dulla Bhatti’s rebellion against the Mughal emperor Akbar. The essay highlights the festive traditions, including lighting bonfires, performing dances, and exchanging sweets. Overall, the Lohri essay captures the essence of the festival, blending cultural richness with festive traditions.

Introduction:

Lohri, a vibrant and joyous festival, holds immense cultural significance, especially among the Punjabi community. It is celebrated with exuberance on the night before Maghi, which typically falls on 13 January. The festival is deeply rooted in the traditions of the Punjabi people, marking the culmination of winter and the beginning of longer days.

Lohri, according to the solar part of the lunisolar Punjabi calendar, consistently falls on 13 January. It is observed the night before Maghi, another important festival in the Punjabi calendar. The festival’s timing aligns with the shift from the winter solstice to longer days, symbolizing the triumph of light over darkness.

The origins of Lohri are intertwined with various legends and historical narratives. One prominent tale associate – Lohri’s roots trace back to the legend of Dulla Bhatti. Dulla Bhatti was a heroic figure who led a rebellion against the mighty Mughal emperor Akbar. His acts of bravery and defiance against injustice earned him a revered status among the people of Punjab.

According to folklore, Dulla Bhatti was not only a valiant warrior but also a savior of Punjabi girls who were in distress. During the reign of Akbar, young girls were often forcibly taken away, and Dulla Bhatti played a crucial role in rescuing these girls from a life of slavery. His selfless acts and courage made him a hero in the eyes of the people.

This gratitude finds expression in the lyrics of almost every Lohri song, where people convey their thanks to Dulla Bhatti for his noble actions. In simple words, Lohri is not just about celebrating the harvest; it’s also a tribute to a legendary hero whose bravery and selflessness resonate in the hearts of the Punjabi people.

Significance:

Lohri carries profound cultural and agricultural significance. Agriculturally, it marks the harvest season, particularly for crops like sugarcane, mustard, and wheat. The festival symbolizes gratitude to nature for a bountiful harvest. Culturally, Lohri is a time for communities to come together, celebrating the warmth of bonfires, traditional music, and dance. It fosters a sense of unity and camaraderie among people.

Celebrations:

Lohri celebrations are marked by various rituals and customs. The day begins with people offering prayers and performing a parikrama (circumambulation) around the bonfire. The traditional lighting of the bonfire is a central aspect, symbolizing the worship of fire. People come together, sing traditional songs, and perform bhangra and gidda, the lively Punjabi folk dances. The throwing of offerings like sesame seeds, popcorn, and gur (jaggery) into the bonfire is a customary practice, accompanied by the chanting of prayers for prosperity.

Traditional Foods:

Lohri is also a culinary delight with a variety of traditional foods. Sarson ka saag and makki di roti, a winter specialty, find a prominent place on the menu. Additionally, the festival is incomplete without the consumption of gajak, til-gur laddoos, gajrela, popcorn, peanuts, and rewri. These delectable treats add flavor to the festivities, making Lohri a gastronomic celebration as well.

Social Aspect:

Lohri transcends familial boundaries and extends its warmth to the wider community. It is a time when neighbors, friends, and relatives come together to celebrate the harvest and share the joy. The communal aspect of Lohri fosters a sense of unity, reinforcing the social fabric.

Conclusion:

In conclusion, Lohri is more than just a festival; it is a celebration of life, harvest, and community bonds. With its rich history, cultural significance, and lively celebrations, Lohri stands as a testament to the spirit and resilience of the Punjabi people. As the bonfires blaze and the beats of folk music reverberate, Lohri continues to illuminate hearts with joy and togetherness.

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10 Lines About Lohri festival in English

The word “Lohri” is believed to have originated from the Punjabi word “loh,” which means the warmth and light of the fire. The festival of Lohri is associated with lighting bonfires, and the warmth and light of these bonfires play a significant role in the celebrations.

  • Lohri is a traditional Punjabi festival celebrated with great enthusiasm in Northern India. It’s also known as Lohadi or Lal Loi.
  • It is observed on January 13 every year, marking the culmination of winter and the arrival of longer days.
  • Bonfires are lit, and people gather around to offer prayers for a prosperous harvest and the Sun God’s blessings.
  • Traditional folk dances like bhangra and gidda are performed during Lohri celebrations.
  • Families come together, share joyful moments, and enjoy the warmth of the bonfire.
  • Sesame seeds, jaggery, and rewri are tossed into the fire as a symbol of offering to the deities.
  • Lohri is closely associated with the harvesting of rabi crops, and farmers express gratitude for the successful harvest.
  • It is a time for socializing, with people exchanging greetings, sweets, and good wishes.
  • Delicious Punjabi dishes like sarson da saag and makki di roti are prepared and shared during Lohri.
  • Lohri signifies the spirit of community, joy, and thanksgiving for the blessings of nature.

Short Essay on Lohri in Punjab in 100 Words

The Essay on Lohri in Punjab describes the vibrant and cultural celebration of Lohri in the state. It highlights the significance of the festival, its connection to the harvest season, and the cultural traditions observed during Lohri. The essay also captures the essence of Lohri as a joyous occasion that brings people together in the spirit of celebration and gratitude.

Lohri in Punjab is a vibrant festival celebrated on January 13th, marking the end of winter and the harvest season. People light bonfires, worship the sun, and indulge in traditional dances and songs. The festival is deeply rooted in Punjabi culture, with an origin tied to the legendary hero Dulla Bhatti’s bravery. Families come together, exchange sweets, and enjoy festive meals, including sarson ka saag and makki ki roti. Lohri is a time of joy, warmth, and gratitude, reflecting the rich cultural heritage of Punjab in a celebration that brings communities closer. Lohri is a time of merriment, community bonding, and expressing gratitude for the harvest.

Essay on Lohri Festival Celebrations

The essay on Lohri Festival Celebrations explores the vibrant and culturally rich festivities associated with this Punjabi harvest festival. It delves into the historical significance, rituals, and traditions, emphasizing the cultural extravaganza that unfolds around bonfires. The essay highlights the importance of Lohri as a harvest celebration, expressing gratitude for the bountiful crops. Additionally, the essay sheds light on the symbolism behind bonfires and the contemporary celebrations, portraying Lohri as a cultural celebration of life and community spirit.

Introduction: Lohri, a significant Punjabi festival, is celebrated with immense zeal and enthusiasm. The festival marks the end of winter and the arrival of longer days. The festival, deeply rooted in agrarian traditions, is a colorful tapestry that weaves together elements of gratitude, community, and cultural festivities. Let’s delve into the rich and diverse celebrations that characterize the festival of Lohri.

Harvest Festival and Agricultural Celebrations – Lohri holds immense significance as it is intricately associated with the harvest of Rabi crops. It marks the culmination of the winter harvest season, and people celebrate the abundance of nature’s offerings, expressing gratitude for a fruitful harvest.

Date and Timing:

Lohri is observed on the night before Maghi, falling on 13th January every year. The timing is significant, as it aligns with the solar part of the lunisolar Punjabi calendar. The festival is linked to the Punjabi calendar and is celebrated with much fervor on this auspicious day.

Historical Roots:

The roots of Lohri can be traced back to the legend of Dulla Bhatti, a legendary hero in Punjab who rebelled against the Mughal emperor Akbar. His heroic deeds and acts of bravery are celebrated in various Lohri songs, adding a historical and cultural dimension to the festival.

Rituals and Traditions

Rituals around the Bonfire: Central to Lohri celebrations are the bonfires, symbolizing Agni, the God of Fire. People gather around these fires, throwing puffed rice, popcorn, and other munchies into the flames. This ritual signifies the offering of food to Agni, seeking blessings for prosperity and abundance.

Community Bonfires: The festival encourages communal celebrations, with large bonfires being lit in neighborhoods and villages. These bonfires not only provide warmth but also foster a sense of community and togetherness.

Significance of Bonfires

Symbolism of Agni Worship: The bonfires during Lohri hold both cultural and spiritual significance. Beyond providing warmth, they symbolize Agni worship, signifying the divine presence in the fire.

Cultural Extravaganza

Folk Songs and Dances: Lohri is synonymous with lively cultural performances. Traditional folk songs and dances like ‘Bhangra’ and ‘Gidda’ take center stage during the celebrations. The rhythmic beats of the dhol, accompanied by energetic dance moves, create an electrifying atmosphere.

Chajja Dance and Hiran Dance: Unique to Lohri celebrations are traditional dances like the ‘Chajja’ dance and ‘Hiran’ dance. These dances, characterized by their cultural richness, add an entertaining and artistic dimension to the festivities.

Lohri Loot Tradition

During Lohri, people adorn traditional Punjabi attire, adding vibrant colors to the festivities. Homes are decorated with bright lights, and bonfires are lit in courtyards. The entire atmosphere is infused with warmth and joy.

Children’s Involvement: An endearing tradition associated with Lohri is the “Lohri Loot” performed by children. They go from door to door, singing folk songs, and in return, receive sweets, savories, and money. This practice not only adds an element of joy but also strengthens community bonds.

Festive Foods

Sarson da Saag and Makki di Roti: No Lohri celebration is complete without the quintessential Punjabi delicacies of sarson da saag and makki di roti. These traditional dishes, made with mustard greens and cornflour bread, symbolize the culinary richness of the festival.

Sweet Delights: Lohri is also synonymous with delightful sweet treats such as gajak, til-gur laddoos, and rewri. These sweets add a touch of sweetness to the festive spread.

Contemporary Celebrations

Urban and Rural Celebrations: While Lohri has deep rural roots, urban areas also embrace the festival with fervor. Communities in cities organize bonfires, cultural performances, and feasts, blending tradition with contemporary celebrations.

Community Bonding: Lohri goes beyond individual celebrations; it fosters a sense of community bonding. Families, neighbors, and friends come together to share the joy. The communal aspect of Lohri reflects the spirit of unity and togetherness.

Modern Trends: While Lohri remains deeply rooted in tradition, modern trends have added new dimensions to the celebrations. Social media platforms are flooded with Lohri wishes and greetings, and virtual celebrations allow people to connect with their loved ones, transcending geographical boundaries.

Conclusion: A Cultural Celebration of Life

In conclusion, Lohri is more than a festival; it is a cultural celebration that encapsulates the spirit of harvest, community, and tradition. As bonfires blaze and cultural performances unfold, Lohri becomes a vibrant tapestry that weaves together the rich tapestry of Punjab’s cultural heritage. It stands as a testimony to the enduring connection between the agricultural rhythms of life and the celebratory spirit of the community.

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Lohri 2024 Katha in Hindi: क्यों मनायी जाती है लोहड़ी, जानें ये पौराणिक कथा

Lohri 2024: लोहड़ी का त्यौहार उत्तर भारत में बहुत धूमधाम से मनाया जाता है. लेकिन यह क्यों मनाया जाता है क्या आप इसके बारे में जानते हैं.

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लोहड़ी क्यों मनाई जाती है? क्या आपको इस बारे में पता है?( Photo Credit : social media)

Lohri 2024 Katha in Hindi: नॉर्थ इंडिया में लोहड़ी का त्योहार बेहद धूमधाम से मनाया जाता है. लेकिन इसे क्यों मनाते हैं इसकी एक पौराणिक कथा है जो बेहद प्रचलित है. अगर आप भी हर साल लोहड़ी मनाते हैं लेकिन उसके बारे में नहीं जानते तो आपको सारी जानकारी दे रहे हैं. किसी भी त्योहार को मनाने के पीछे एक वजह और एक कहानी होती है. हालांकि इसके कई वैज्ञानिक फायदे भी होते हैं लेकिन धर्म के अनुसार भी इनका बहुत महत्व होता है. तो आइए जानते हैं लोहड़ी के त्योहार की ये पौराणिक कथा क्या है. 

कैसे दुल्दुल ने मेहनत की शुरुआत की

एक समय की बात है, पंजाब के गांवों में एक बहादुर और उद्यमी किसान रहता था जिसका नाम दुल्दुल था. वह अपने छोटे से परिवार के साथ एक संघर्षपूर्ण जीवन जी रहा था, लेकिन उसमें हमेशा ऊर्जा और सकारात्मकता का सामर्थ्य था. एक बार, सर्दी के मौसम में जब सभी किसान अपनी फसलों की देखभाल कर रहे थे, तब दुल्दुल ने अपनी बाग-बगिचों में भी मेहनत की शुरुआत की. उसने अपने खेतों में सरसों की बुआई की और उन्हें मिट्टी में समर्पित होकर प्रेम से देखा.

कोई भी पेरशानी रहे लेकिन रहे सकारात्मक

एक दिन, उसने अपने गांव के बच्चों को बुलाया और उन्हें एक बड़े चिराग के चारों ओर बिठा दिया.फिर उसने सभी बच्चों को साथ मिलकर नाचने के लिए कहा.सब ने मिलकर बड़े उत्साह से नृत्य किया, और उनका नृत्य चिराग की रौशनी में एक अद्भुत दृश्य बना दिया. दुल्दुल ने समझा कि उसके बच्चों ने नाच करके चिराग की रौशनी को बढ़ाया है, इससे समझाता है कि जीवन में अगर हम साथ मिलकर हर कठिनाई का सामना करते हैं तो हमेशा सकारात्मक परिणाम होता है. 

इसलिए लोहड़ी कहा जाता है

इस दिन को लोग लोहड़ी कहने लगे, और यही दिन बच्चों के नाचने के साथ एक सामूहिक उत्सव का आयोजन किया जाने लगा. इसे लोहड़ी त्योहार कहा जाने लगा और लोग इसे खास धूमधाम से मनाने लगे. लोहड़ी की कथा यह सिखाती है कि जीवन में संघर्षों का सामना करने पर ही हम सच्ची सफलता को छू सकते हैं और साथ मिलकर मनाए जाने वाले त्योहार हमें और हमारे परिवार को सुख और समृद्धि की ओर बढ़ाते हैं.

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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. न्यूज नेशन इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)

Source : News Nation Bureau

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Pitru Paksha Essay in Hindi: पितृ पक्ष पर निबंध कैसे लिखें?

Pitru Paksha Essay in Hindi: हिन्दू धर्म में कई व्रत-त्योहार और पर्व मनाए जाते हैं। यहां भगवान की अराधना और पूजा अर्चना के साथ ही साथ अपने पूर्वजों को भी पूजने का रिवाज है। पूर्वजों को श्रद्धांजलि देने के इस अवसर को पितृ पक्ष कहा जाता है। पितृ पक्ष 16 दिनों की हिंदू परंपरा है। यह पूर्वजों का सम्मान में होती है और दिवंगत आत्माओं से आशीर्वाद लेने के उद्देश्य से श्राद्ध पक्ष का पालन किया जाता है।

पितृ पक्ष पर निबंध कैसे लिखें?

इस वर्ष पितृ पक्ष की शुरुआत 17 सितंबर से हो गई हैं, जो 2 अक्टूबर तक चलेंगे। पितृ पक्ष को श्राद्ध पक्ष भी कहा जाता है। हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण धार्मिक अवसर है। पितृ शब्द का अर्थ है "पूर्वज" और पक्ष का अर्थ है "पखवाड़ा" या चंद्र मास का "पक्ष" होता है। पितृ पक्ष के दौरान हिंदू धर्मावलंबी हम अपने पूर्वजों को श्रद्धांजलि देते हैं और उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हैं।

पितृ पक्ष 15 से 16 दिनों तक चलता है और यह भाद्रपद माह की पूर्णिमा से लेकर अश्विन माह की अमावस्या तक मनाया जाता है। इस दौरान पितरों एवं पूर्वजों के लिए तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध कर्म किए जाते हैं। पितृ पक्ष में पूर्वजों के प्रति आस्था, श्रद्धा और सम्मान व्यक्त किया जाता है। पितृ पक्ष में पूर्वजों के सम्मान में धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।

पितृ पक्ष पर निबंध कैसे लिखें?

स्कूल के बच्चों के लिए पितृ पक्ष का महत्व समझना आवश्यक है, क्योंकि यह पर्व न केवल धार्मिक है, बल्कि पूर्वजों के प्रति श्रद्धा और कृतज्ञता का प्रतीक भी है। इस पर्व के विभिन्न पहलुओं को तीन निबंधों के माध्यम से समझते हैं। यहां हमने स्कूली बच्चों की सहायता के लिए 100, 250 और 500 शब्दों में पितृ पक्ष पर निबंध लेखन के कुछ प्रारूप प्रस्तुत किए हैं। इस लेख में यहां तीन अलग-अलग निबंध प्रारूप प्रस्तुत किए जा रहे हैं जो स्कूली छात्रों को पितृ पक्ष के महत्व को समझाने में मदद करेंगे।

पितृ पक्ष पर 100, 250, 500 शब्दों में आसान निबंध प्रारूप नीचे दिये गये हैं-

100 शब्दों में पितृ पक्ष पर निबंध

पितृ पक्ष हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण धार्मिक पर्व है। पितृ पक्ष के दौरान हम अपने पूर्वजों को श्रद्धांजलि देते हैं। इस पर्व के दौरान तर्पण और पिंडदान जैसे अनुष्ठान किए जाते हैं। इनका उद्देश्य हमारे पितरों की आत्मा की शांति और मोक्ष की प्राप्ति है। यह पर्व भाद्रपद की पूर्णिमा से शुरू होकर अश्विन माह की अमावस्या तक चलता है। इस समय परिवार के सदस्य पूर्वजों के नाम पर दान-पुण्य भी करते हैं। पितृ पक्ष का महत्व हमारे पूर्वजों के प्रति सम्मान और कृतज्ञता व्यक्त करने में है, जिससे हम अपनी जड़ों को न भूलें और परिवार की एकता को बनाए रखें।

250 शब्दों में पितृ पक्ष पर निबंध

पितरों को समर्पित हिंदू धर्म में पितृ पक्ष एक महत्वपूर्ण पर्व है। इस दौरान हम अपने पूर्वजों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। यह पर्व भाद्रपद माह की पूर्णिमा से लेकर अश्विन माह की अमावस्या तक 15 से 16 दिनों तक चलता है। पितृ पक्ष का मुख्य उद्देश्य पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध करना होता है।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस दौरान पितरों की आत्मा पृथ्वी पर आती है और अपने वंशजों से आशीर्वाद प्राप्त करती है। तर्पण और पिंडदान से पूर्वजों को संतोष मिलता है और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस समय परिवार के सदस्य ब्राह्मणों को भोजन कराते हैं, गायों और गरीबों को दान देते हैं, और पुण्य कार्य करते हैं।

पितृ पक्ष के दौरान किए गए श्राद्ध कर्म को न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण माना जाता है, बल्कि यह हमें हमारे पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता और सम्मान जताने का अवसर भी प्रदान करता है। पितृ पक्ष हमें सिखाता है कि हम अपनी जड़ों को न भूलें और पूर्वजों द्वारा दिए गए जीवन-मूल्यों को आगे बढ़ाएं।

500 शब्दों में पितृ पक्ष पर निबंध

पितृ पक्ष हिंदू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण धार्मिक और आध्यात्मिक अवसर है। यह भाद्रपद माह की पूर्णिमा से अश्विन माह की अमावस्या तक 15 से 16 दिनों तक चलता है। इस दौरान हिंदू धर्मावलंबी अपने पितरों को श्रद्धांजलि देते हैं और उनकी आत्मा की शांति के लिए तर्पण और पिंडदान करते हैं। पितृ पक्ष को श्राद्ध पक्ष भी कहा जाता है, क्योंकि इस समय पूर्वजों के नाम पर श्राद्ध कर्म किए जाते हैं।

पितृ पक्ष का इतिहास पौराणिक कथाओं से जुड़ा हुआ है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, पितृ पक्ष में श्राद्ध की परंपरा महाभारत काल से शुरू हुई। कहा जाता है कि जब राजा कर्ण की आत्मा स्वर्गलोक में पहुंची, तो उन्हें खाने के स्थान पर सोना और रत्न दिए गए। इसके पीछे कारण था कि उन्होंने अपने जीवन में कभी भी भोजन का दान नहीं किया था। उन्होंने भगवान इंद्र से इसका कारण पूछा, तब भगवान इंद्र ने उन्हें पृथ्वी पर वापस जाकर अपने पितरों के नाम पर भोजन और जल का दान करने का सुझाव दिया। इसके बाद से पितरों को तर्पण और पिंडदान करने की परंपरा शुरू हुई।

पितृ पक्ष के दौरान किए जाने वाले अनुष्ठानों में मुख्य रूप से तर्पण और पिंडदान होते हैं। तर्पण का मतलब है पितरों की आत्मा को जल चढ़ाकर संतोष देना। पिंडदान के अंतर्गत चावल, जौ और तिल के मिश्रण से बने पिंडों को पितरों की आत्मा के लिए चढ़ाया जाता है। इन अनुष्ठानों से पितरों की आत्मा को संतोष और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

पितृ पक्ष के महत्व को समझना आवश्यक है क्योंकि यह न केवल धार्मिक अवसर है, बल्कि सामाजिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। यह हमें हमारे पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता जताने का अवसर प्रदान करता है। इसके अलावा पितृ पक्ष के दौरान परिवार की एकता और परंपराओं को बनाए रखने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। पितृ पक्ष में पितरों की आत्मा की शांति से हमें पूर्वजों का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इससे हमारे जीवन में सुख, समृद्धि और शांति बनी रहती है। इसलिए पितृ पक्ष के दौरान दान-पुण्य और श्राद्ध कर्म करना हर हिंदू के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है।

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